भारत कथा माला
उन अनाम वैरागी-मिरासी व भांड नाम से जाने जाने वाले लोक गायकों, घुमक्कड़ साधुओं और हमारे समाज परिवार के अनेक पुरखों को जिनकी बदौलत ये अनमोल कथाएँ पीढ़ी दर पीढ़ी होती हुई हम तक पहुँची हैं
नेहा, नेहा, हे भगवान! कहां मर गई ये लड़की पता नहीं हमेशा अपनी ही मस्ती में रहती है। आज इसकी बहन की शादी है और इसे अपने से ही फुरसत नहीं। गोपाल, नेहा को देखा कहीं? हां बुआ जी थोड़ी देर पहले ही बाहर गई है लीला के साथ। लीला के साथ हे भगवान कितनी बार कहा है इसे, इस लड़की के साथ ना घुमा कर। एक दिन इसे ऐसा घुमाएगी, पता भी नहीं चलेगा, घर पर इतने काम हैं। इसकी बहन को तैयार होना है। बारात आने वाली है। घर के न जाने कितने काम मैं अकेली क्या-क्या करूं। कुछ समझ नहीं आता।
आइये पंड़ित जी। निर्मल, नेहा कहां है? गई है उस लीला के साथ। फिर क्या हुआ? बहन की शादी है तैयार होने गई होगी। आ जाएगी, तुम भी ना सब सिर पर उठा लेती हो। हां आपने तो बिगाड़ रखा है। इस लड़की को। लो आ गई। कहां मर गई थी। क्या मां आप भी हमेशा मुझे ही खोजती रहती हो। कितनी बार कहा है तुझे, उस लीला से दूर रहा कर पर तुझे समझ नहीं आता क्या? मां ठीक है, दूर रहूंगी। बारात आने वाली है। तूने कुछ खाया या नहीं। आ कुछ खा ले और सुन अपनी बहन को भी कुछ खिला देना। क्या पता फिर कुछ खाए या नहीं। ठीक है मां खिला दूंगी। अरे वाह मेरी बहन तो बहुत सुन्दर लग रही है। और तू कब तैयार होगी। अरे दीदी मेरा क्या है?सब तो आप को ही देखेंगे मुझे थोड़ी, दुल्हन तो आप हो। क्या पता कोई तुझे भी उठा ले जाए। हां-हां मैं कोई हूर की परी हूँ, जो मुझे कोई उठा ले जाएगा। ठीक है। जा जल्दी तैयार हो जा, बारात आने वाली है।
थोड़ी देर बाद बारात भी आ गई। सब बहुत खुश थे। दीदी के लिए खुश थी। हम तीन बहन-भाई थे। ये तो आप समझ ही गए होंगे कि हमारा एक भाई है, सबसे छोटा। सब उसे बहुत प्यार करते हैं। वह अभी 13 वर्ष का ही है। मुझसे 5 साल छोटा, मैं दीदी से 2 साल छोटी हूँ। अरे कहां मैं आपको परिवार गाथा सुनाने लगी। मैं तैयार हो कर मण्डप में आ गई, और दीदी को भी लाया गया। मैं उस दिन बहुत खुश थी। पर खुश होने का ये मेरा आखिरी दिन था। इस शादी ने दीदी की ही जिन्दगी को नहीं बदला, बल्कि मेरी जिन्दगी को भी पूरी तरह बदल दिया। शादी बहुत अच्छे से हो गई।
नेहा चलो ना खाना खाते हैं। अरे! नहीं अभी बारात खाना खा रही है। उनके बीच में खाना ठीक नहीं है। फिर चलते हैं। क्या यार! तुम्हारे ही घर में शादी है और कह रही है, फिर चलेंगे। ठीक है चल। पर मुझे बड़ा अजीब लग रहा है। देख ना सब हमें घूर रहे हैं। मुझे नहीं तुझे क्योंकि तू बहुत सुन्दर है ना इसलिए। अच्छा! ठीक है। खाना खा। जा तू लेकर आ मेरे लिए। मैं! पर क्यों? क्यों क्या? मैं तुम्हारी सहेली हूँ, इसलिए ठीक है, लाती हूं।
ओ सॉरी मैंने देखा नहीं, आप पर गिर गया। कोई बात नहीं पर, हमने तो देखा। थोड़ी देर में दीदी की विदाई हो गई। मैं बहुत रोई थी। दो दिन के बाद में स्कूल में जाने के लिए तैयार थी। मेरी सभी सहेलियां भी आ गई थी। मैं ग्यारहवीं कक्षा में पढ़ती हूं। हम ट्रेन से स्कूल जाती हैं। उस दिन बड़ा अजीब लगा, क्योंकि जब हम स्टेशन पर पहुंचे तो वही लड़का खड़ा था जो बारात में आया हुआ था। मैंने नजरअंदाज कर दिया। आते वक्त भी वह लड़का वहीं खड़ा था। ऐसा कम से कम दस-बारह दिनों तक रहा। वो वही खड़ा रहता मुझे बड़ा अजीब लगता, क्योंकि वह मुझे हमेशा घूरता रहता था। एक दिन तो हद हो गई। घर से बाहर आते ही दूसरी गली में खड़ा था। पर कुछ बोला नहीं, मेरे तथा मेरी सहेलियों के पीछे-पीछे चल पड़ा। ऐसा दो-तीन दिन किया। एक दिन मैंने उस से पूछ ही लिया कि वो ऐसा क्यों कर रहा है? उसने कहा वो मुझसे दोस्ती करना चाहता है। मैंने उसे डांट दिया और कहा कि फिर कभी भी यहां दिखाई न दे। नहीं तो बहुत बुरा होगा। पर उसे कुछ समझ नहीं आ रहा था। मैंने उसे कई बार कहा पर वो नहीं माना।
मेरी सहेलियां मेरा मजाक बनाती और कहती कि तेरा दीवाना आ गया है। मुझे बहुत बुरा लगता पर क्या करती। मैंने अपनी मां को भी बताया। मां ने कहा कुछ नहीं लड़कों की तो आदत होती है। पर छोटी सी बात का तील का ताड़ बनने में समय नहीं लगता। सब कहने लगे कि मेरा उसके साथ चक्कर चल रहा है। सब जगह यही बात होती थी। मैं चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रही थी। एक दिन तो हद हो गई मुझे मेरे पापा ने तथा ताऊ जी ने बहुत डांटा और कहा कि अपनी हद में रहूं। जबकि मेरी कोई गलती नहीं थी। मैं तो उसका नाम भी नहीं जानती थी। एक दिन हद की भी हद हो गई जब मैं स्कूल जा रही थी तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया। और बात हर जगह फैल गई। लेकिन उसे कोई कुछ ना कह कर सब मुझ पर ही दोष लगा रहे थे। मां ने भी मुझे ही सुनाया। पापा ने मेरा स्कूल जाना बंद कर दिया। गांव वाले तरह-तरह की बातें करने लगे। कभी-कभी वो हमारे घर के बाहर से आता-जाता था। क्योंकि वह बहुत पैसे वाले का बेटा था इसलिए उसे कोई कुछ नहीं कह रहा था। मुझे ही सब कह रहे थे कि मैंने उसे शह दी है। तभी वह घर के आस-पास आता है। गांव वाले कहते कि मैं उसे बुलाती हूं। पर मुझे कुछ समझ नहीं आ रहा था।
एक दिन घर पर अकेली थी वह बाहर से जा रहा था मैंने उसे बुलाया और कहा कि मेरा पीछा छोड़ दे। पर गांव वालों ने कहा कि अब तो घर पर ही बुलाने लगी। कहा गया कि मैं जल्द ही घर से भाग जाऊंगी। पता नहीं कैसी-कैसी बातें होती। ताऊ तथा पापा ने उस लड़के को बहुत धमकाया और मारा भी, पर पता नहीं उसके मन में क्या था। वो हर रोज आ जाता और घर के बाहर से चला जाता।
बुआ ने कहा कि एक हफ्ते में इसकी शादी कर दो कहीं ये परिवार पर कालिख ना पोत दे। मैं, केवल 18 साल की थी। ताऊ जी के डर के मारे मेरा रिश्ता तय कर दिया और मेरी शादी बहुत जल्दबाजी में करने का फैसला लिया गया। मुझे किस बात की सजा मिल रही थी, मुझे नहीं मालूम। मैं बहुत रोई, चिल्लाई पर किसी ने मेरी एक ना सुनीं। सब कहते इतनी चिन्ता होती तो ये गुल ना खिलाती। मेरी कोई नहीं सुन रहा था। बस सब चाहते थे कि मैं शादी कर लूं और इस घर से निकलूं ताकि उन्हें गांव वाले कुछ ना कहें। लड़के को केवल बुआ जी तथा ताऊ ने देखा था। जिस दिन मेरी शादी हो रही थी सबको पता था पर मुझे नहीं। जिससे मेरी शादी हो रही थी वह दूहाजू था। यानि यह उसकी दूसरी शादी थी। मैं बहुत रोई पर ताई ने मुझे बहुत गालियां दीं कि मेरी वजह से घर में दूसरी लड़की भी बिगड़ जाएगी। मेरा चले जाना ही अच्छा है।
एक 35 साल के आदमी से मेरा रिश्ता जुड़ गया। मुझे एक ऐसी सजा मिली जो मुझे पुरी उम्र ही निभानी थी। ऐसा घर मिला जो घर कम कसाई खाना ज्यादा था। दिन-रात सब लड़ते रहते थे। सास तो सास ही थी, मां कभी बनी ही नहीं। कहती मुझे सब पता है कि मैं क्या गुल खिला कर आई हूं पीछे। हमें तो बाद में पता चला नहीं तो उसके बेटे के लिए क्या रिश्तों की कमी थी। उसने अपने बेटे की जिन्दगी तबाह कर दी। एक ऐसा लड़का जिसकी ये दूसरी शादी थी, उसकी जिन्दगी मैंने तबाह कर दी। मैंने तबाह की या उसने मेरी जिंदगी तबाह की है। सब कुछ खत्म हो गया था। ना चाहकर भी सब कुछ करना पड़ता था। एक साल के बाद मुझे लड़का पैदा हुआ। सब लड़के पर तो खुश थे, पर मुझे तो कभी कोई खुशी मिली ही नहीं। सोचा चलो लड़का होने पर तो इज्जत होगी। पर कोई फर्क नहीं पड़ा, हर रोज की वही जिल्लत व गाली। अपने बेटे को देखती और जिती थीं। मेरी सास मेरे बेटे को भी मुझसे छीन लेती थी और वह रोता रहता पर मुझे नहीं देती थी। कहती इस कुलटा के हाथ में यदि उसका पोता रहा तो ना जाने क्या होगा। मेरा बेटा ना होकर उसका पोता था। मेरे पति हमेशा ही अपनी मां की सुनते, चाहे वो झूठ कहे या सच, वही ठीक था। मेरे लिए भी वो केवल पति थे और कुछ नहीं। मेरी भावनाएं कभी उन्होंने सुनी ही नहीं। जब चाहते अपनी करते और मैं ऐसी औरत बन गई जो लड़की कभी नहीं बनी। सोचती मैं मर जाऊं। पर क्या करती मुन्ने के मारे नहीं मरा गया। सोचा मेरे मरने के बाद इसका क्या होगा।
घर वालों को तो कभी मेरी याद आती नहीं थी। जब कभी दीदी घर आती थी तो वो मुझे बुला लेती थी। और मैं चली जाती थी। दीदी का सब हाल-चाल पूछते थे। पर मुझे तो जैसे किसी ने देखा ही नहीं हो। जब सब कुछ उनके कहे अनुसार किया फिर भी वे मुझे अब भी दोषी कह रहे थे।
एक बार मुझे और मेरी पति को उनकी बुआ के घर जाना था। हम ट्रेन में बैठ गए। वे बोले मैं सीट पर बैठ जाऊं। मैं बैठ गई और बाहर देखने लगी। मेरे सामने वाली सीट पर एक लड़की व एक लड़का आ कर बैठ गए। शायद उनकी नई-नई शादी हुई थी। उस लड़की के पहनावे से लग रहा था। उन्हें देख कर मैं चौंक गई। मेरे पूरे शरीर में पसीना आ रहा था। मेरी पूरी जिन्दगी जैसे सिमट गई थी। ऐसा लग रहा था जैसे चारों ओर खामोशी हो। मुझे लग रहा था कि मैं जोर-जोर से चिल्लाऊ और रो लूं ताकि मेरा भारीपन खत्म हो जाए। मेरे सामने वाली सीट पर वही लड़का बैठा था जिसने मेरी पूरी जिन्दगी खत्म कर दी। मेरा मन कर रहा था कि मैं उसे कुछ कहूं। उसे कोशु, बुरा-भला कहूं। वो मेरी तरफ ही देख रहा था। उस ओर से एक खामोशी थी। पर न जाने क्यों मैं उसे कुछ कह नहीं पाई। ट्रेन से हम उतर गए। मैं बहुत देर तक वहीं बैठी रही। बहुत से सवालों ने मुझे घेर रखा था। कुछ ऐसे अनसुलझे सवाल जिन्हें मैं नहीं सुलझा पा रही थी। मैं नहीं जानती, मैंने उसे कुछ क्यों नहीं कहा। शायद उस लड़की में मैं खुद को देख रही थी। इसलिए ये सवाल आज भी अनसुलझे हैं, जिन्होंने मुझे घेरा हुआ है, एक भारीपन के साथ।
भारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा मालाभारत की आजादी के 75 वर्ष (अमृत महोत्सव) पूर्ण होने पर डायमंड बुक्स द्वारा ‘भारत कथा माला’ का अद्भुत प्रकाशन।’
