bhedabhaav kee bhaavana door karane ke lie
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एक बार स्वामी दयानंद कुछ लोगों के साथ भ्रमण के लिए निकले। रास्ते में एक निर्धन व्यक्ति ने उन्हें अपने घर पर भोजन के लिए आमंत्रित किया। स्वामी जी ने इस आमंत्रण को तुरंत स्वीकार कर लिया। वह व्यक्ति मेहनत-मजदूरी करके परिवार का पेट पालता था। वह उच्च कुल का नहीं था। इसलिए उच्च कुल के कुछ लोगों को स्वामी जी का उस व्यक्ति के घर आमंत्रण स्वीकार करना सही नहीं लगा।

नाराज होकर उनमें से एक ने कहा, ‘स्वामी जी, आपको इस व्यक्ति का आमंत्रण स्वीकार नहीं करना चाहिए था।’ दूसरा व्यक्ति बोला, स्वामी जी, दरअसल बात यह है कि यह व्यक्ति उच्च कुल का नहीं है। इसलिए इसका भोजन दूषित है और यहाँ भोजन करना आपके लिए उचित नहीं है। दूसरे व्यक्ति की बात पर स्वामीजी गंभीर होकर बोले, ‘क्या आप लोग जानते हैं कि अन्न-जल कैसे दूषित होता है? स्वामी जी की बात पर सभी चुप हो गए। उन्हें चुप देखकर स्वामी जी बोले, “आप नहीं जानते न तो लीजिए मैं ही बताता हूँ। सुनिए, अन्न-जल दो प्रकार से दूषित होता है। जब यह दूसरे व्यक्ति को दुख देकर प्राप्त किया जाता है और जब उसमें कोई मलिन या अभक्ष्य वस्तु पड़ जाती है, परंतु यह व्यक्ति जो अन्न-जल देगा वह इसके परिश्रम से कमाए गए पैसे का है। भला यह दूषित कैसे हो सकता है? हमारे विचार और सोचने के भाव ही दूषित होते हैं।”

स्वामीजी का यह जवाब सुनकर सभी नीचे मुँह करके खड़े रहे। फिर स्वामीजी बोले, “हमें एक-दूसरे के प्रति भेदभाव को त्यागकर अपने मन और विचारों को दूषित होने से बचाना है। इसी में हमारा और हमारे देश का कल्याण है।” सभी सहमत हुए और उन्होंने माफी माँगकर स्वामी जी को वचन दिया कि वे आगे अपने मन में दूषित विचारों को नहीं पनपने देंगे।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)