बेटियों की मां खून के आंसू रो रही हैं-गृहलक्ष्मी की कविता
Betiyon ki Maa Khoon ke Asoon Ro Rahi Hain

Hindi Poem: क़ाश मैं गौतम ऋषि होती
शाप की शक्ति से उगा पाती
दुष्कर्म के प्रतीक दुष्कर्मियों की देह पर
छाप सकती कलंक का दाग
उज्ज्वल चरित्र के पीछे छुपे
  सत्ताधारियों पर
शिला बना पाती उन्हें जो
बचाने आते ऐसे दैत्यों को
ताकि  अंधा संविधान टटोल लेता
सारे सबूत अपने लम्बे हाथों से
मेरे हत्यारे वो लेखक हैं जिन्होंने लिखे
अपनी कलम से अश्लील साहित्य
वो फ़िल्मकार जिन्होंने उसे
साकार किया पर्दे पर
मेरा हत्यारा है वो संविधान
जिससे मेरी देह उघाड़ी
पर काँप गया दुष्कर्मियों के
अँग काटते समय
मेरा हत्यारा है वो वकील
जो रुपयों के लिए पैरवी कर रहा
मेरी हत्यारी है वो जनता ,
जो बिक गयी मुफ़्त की सुविधा के लिये
मुफ़्त चूल्हे की लकड़ी मेरा कफ़न है
राशन उन्हें पाल रहा
टैक्स का लोहा मेरे ताबूत की कील बन गया
मेरी हत्यारी वो  समस्त स्त्रियाँ हैं
जिन्होंने स्वयँ  के अस्तित्व
को प्रस्तुत किया उत्पाद की तरह
मेरा खून हर घर में फैला है
सबके दामन पर
सबको मुफ़्त  सुविधा चाह थी
मेरे खून की छींटों पर
मुफ्तखोर जनता की छाप है
आदम और आदमखोर में
फ़र्क़ घर मे सिखाया जाता
वो उन्हें  उनके सिरों से फारिग करती
राजा  की पीठ पर भितर घात का
छुरा भोंका गया है
अदालत में कदम कदम पर
न्याय को रोका गया है
आज मैं हूँ कल और थी
कल कोई और होगी
शिक्षा आत्मनिर्भरता कोने में रो रही है
बेटियोँ की माँ खून के आँसू रो रही है
लिखने से क्या होगा?

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