पायल की हिचकिचाहट के मायने कबीर को अब कुछ-कुछ समझ आने लगे थे। लेकिन पायल कातिल हो सकती है यह बात अब भी उसके गले नहीं उतर रही थी। परिस्थितिवश चाहे कुछ भी कर ले पर कत्ल?

‘पायल, इतना उदास क्यों हो रही हो? स्टोरी के कवरेज के लिए टूर पर आना-जाना तो हम लोगों के लिए सामान्य सी बात है। 4-5 दिनों में लौट आऊंगा। वैसे मैं सोच रहा हूं इस बार लौटकर पापा-मम्मी से शादी की बात कर ही लूं। मुझसे अब तुम्हारी उदासी देखी नहीं जाती पायल को कुछ ज्यादा ही उदास देख कबीर ने उसे छेड़ा।
‘लौटने के बाद शायद इसकी नौबत ही न आए अपनी ही सोच में डूबी पायल बुदबुदा उठी।
‘कुछ कहा तुमने?
‘हं…नहीं! अपना ख्याल रखना। अच्छा, मैं रिकॉर्डिंग रूम में जा रही हूं, कुछ काम है। पायल उठकर चली गई। तो कबीर भी उठ खड़ा हुआ। उसे घर जल्दी लौटना था। रात की ट्रेन से गढ़वाल जो निकलना था और अभी सारी पैकिंग बाकी पड़ी थी।
मदमाती हवा के स्पर्श से प्रात: रेल में कबीर की आंख खुली तो चारों ओर बिखरे नैसर्गिक सौन्दर्य को देख उसकी आंखें खुली की खुली रह गईं। सारे पेड़ गलबहियां डाले हवा की स्वरलहरियों पर झूम से रहे थे।


महानगरीय जीवन से प्रकृति की गोद में आ जाना, कबीर को मानो स्वर्ग की सी अनुभूति हो रही थी। गेस्टहाउस पहुंंचते ही अपने काम के तहत उसने वहां के लोगों से घुलना-मिलना आरंभ कर दिया था। यहां के लोग भी कितने परिश्रमी और निश्छल हैं! शादी के बाद एक बार तो पायल को यहां जरूर लाना है! वादियों में घूमते कबीर के मन में कई बार यह ख्याल आया।
केयरटेकर माखन उसका पूरा ध्यान रख रहा था। कबीर का काम अब लगभग समाप्ति की ओर था। गेस्टहाउस में यह उसका आखिरी दिन था। कल सवेरे ही उसे निकल जाना है। नाश्ते के वक्त कबीर ने गौर किया कि माखन कुछ गुमसुम सा है। मन ही मन शायद किसी उधेड़बुन में उलझा है।
‘तबियत ठीक नहीं है क्या माखन?
‘साबजी एक बात पूछूं, नाराज तो नहीं होगें?
‘पूछो, क्या पूछना चाहते हो?
‘आप पायल को कैसे जानते हैं?
कबीर के मुंह का ग्रास गले में ही अटक गया। उसे तेज खांसी आई। घबराए माखन ने पानी का गिलास उसके मुंह से न लगा दिया होता तो शायद उसके प्राण ही निकल जाते।
‘आपका बिस्तर ठीक करते वक्त तकिए के नीचे से मुझे पायल की तस्वीर मिली थी। हमारे ही गांव की है तो इसलिए पूछ बैठा। घबराए माखन ने सफाई देते हुए हाथ जोड़ दिए थे। कबीर पर दूसरा वज्रपात हुआ।
‘पायल गढ़वाल की है? कभी बताया ही नहीं उसने? पर मैंने ही कब पूछा था? कबीर मानो खुद से ही सवाल जवाब करने लगा था। माखन को प्रश्नवाचक नजरों से खुद को देखते पाया तो उसे होश आया।
‘मेरे ऑफिस में है। साथ काम करती है।
‘अच्छा, जेल से छूटकर दिल्ली पहुंच गई?
एक के बाद एक आती तीरों की बौछार से कबीर बौखला सा गया।
‘क्या बकवास कर रहे हो? कबीर ने एक तरह से उसका गिरेबान ही पकड़ लिया था। फिर कुछ देर पहले की अपनी स्थिति का ख्याल आया तो उसने उसे छोड़ दिया।
‘पायल भला जेल क्यों जाने लगी? क्या जानते हो तुम उसके बारे में? मुझे सब बताओ। कबीर अब नरम पड़ गया था।
‘पायल ने गांव के ही एक आदमी का कत्ल कर दिया था। पुलिस उसे पकड़कर ले गई। जेल में बंद कर दिया। उसके मां-बाप तो सदमे से स्वर्ग ही सिधार गए।
‘यह सब कितने साल पहले की बात है?
‘सात साल होने को आ रहे हैं।
‘कौन था वह आदमी? पायल ने उसे क्यों मारा?
‘इतना सब हम नहीं जानते साब! हम तो खुद तब बापू के इलाज के चक्कर में इधर-उधर घूम रहे थे। जब गांव लौटे तो यह सब सुनने में आया। बापू भी फिर ज्यादा दिन नहीं बचे, गुजर गए। इसी से हमें वक्त का सही-सही अनुमान है। पहली बार तस्वीर हाथ में आने पर चेहरा पहचाना सा लगा था। पर पूरी तरह पहचानने में वक्त लगा। रहन-सहन और बालों के अंदाज में बहुत फर्क जो आ गया है।
कबीर का कवरेज का काम तो लगभग पूरा हो ही चुका था। इसलिए वह पूरा दिन उसने पायल के बारे में तहकीकात करने में बिताया। लेकिन कोई खास जानकारी हाथ नहीं लगी। कुछ रहस्य तो अवश्य है। वह पायल को मात्र सवा साल से जानता है। तब ही से तो उसने उसके ऑफिस में जॉइन किया है। ज्यादा घुलने मिलने का स्वभाव नहीं है उसका। पर कबीर को वह पहली नजर में ही भा गई थी। कबीर को उसके इतने गोरे रंग और तीखे नैननक्श का राज अब समझ आ रहा था। वह हमेशा पायल के इर्द-गिर्द बने रहने का प्रयास करता पर पायल उससे दूरी बनाकर रखती। जब उसने पायल पर अपने प्यार का इजहार किया तब भी पायल ने उसे टालना चाहा था।
खोजी पत्रकार का मन किसी भी तरह अपने अंदर चल रहे अन्तर्द्वन्द्व से उबर नहीं पा रहा था। वह जल्द से जल्द पायल से मिलकर इस मसले के आर पार हो जाना चाहता था इसलिए ऑफिस पहुंचने पर पायल पर नजर पड़ते ही वह तुरंत उसका हाथ पकड़कर कैन्टीन ले जाने लगा।
‘मुझे तुमसे बहुत जरूरी बात करनी है। कबीर की बेचैनी छुपाए नहीं छुप रही थी। पायल को इसका पहले से ही अंदेशा था। पर वह भी चाहती थी कि इस आंख-मिचौनी का अब जल्द से जल्द अंत हो जाए। एक न एक दिन तो कबीर को यह सब पता लगना ही था। और पायल को लेकर उसकी दीवानगी खत्म होनी ही थी। अच्छा है, जितनी जल्दी यह सब हो जाए। वह भी अब ज्यादा दिन भुलावे में नहीं रहना चाहती, रेस्तरां का सर्वथा एकांत कोना चुनकर कबीर ने पायल के लिए हमेशा की भांति कुर्सी खींच दी तो पायल को आश्चर्य हुआ।

सब कुछ जान लेने के बाद भी कबीर से इतने सम्मान की उसे अपेक्षा नहीं थी। शायद अभी उसे कुछ पता ही न चला हो। पायल को आशा बंधी, शायद वह किसी और बात को लेकर व्यग्र हो। पर ऐसा कब तक चलेगा?
‘तुमने कभी बताया नहीं कि तुम गढ़वाल की हो? कबीर के पहले ही सवाल ने पायल की बची-खुची आशा पर पानी फेर दिया था।
‘खैर, इसमें गलती मेरी ही है। मैंने तुम्हें कभी कुछ बताने का अवसर ही नहीं दिया। कबीर ने खुद ही जवाब भी दे दिया।
‘मैं एक खोजी पत्रकार हूं पायल! किसी भी बात की तह तक पहुंचे बिना उस पर यकीन नहीं करता। मेरा दिल अब भी यह मानने को तैयार नहीं है कि तुमने किसी का कत्ल किया है। ऐसी क्या मजबूरी थी पायल?
‘मुझे सब कुछ खुलकर बताओ।
‘तीन सदस्यों का हमारा छोटा सा खुशहाल परिवार हुआ करता था। अपनी छोटी सी जमीन पर ही मेरे कर्मठ माता-पिता खेती करके जीविकोपार्जन कर रहे थे। पर मुझे वे ऊंची शिक्षा दिलाना चाहते थे। इसलिए पढ़ने शहर भेज दिया। पिताजी का इंतकाल हुआ तो मां ने जमीन गिरवी रखकर मेरी पढ़ाई जारी रखी। मैं उस दिन अंतिम परीक्षा देकर खुशी-खुशी घर लौटी थी। पता चला मां गिरवी जमीन की किश्त चुकाने साहूकार के यहां गई हुई है। मैं इंतजार न कर सकी और वहां पहुंच गई। बंद दरवाजे से आते आर्तनाद के स्वर पलक झपकते सारी कहानी कह बैठे। मैंने खिड़की के कांच तोड़ डाले और अंदर कूद गई। साहूकार मां को छोड़कर मेरी ओर लपका। बुरी तरह से घायल मां मुझे बचाने दौड़ी तो साहूकार ने टेबल पर रखी फल काटने की छुरी उठा ली। उसका मंतव्य भांप मैं कांप उठी। मैंने उसका छुरी वाला हाथ पकड़ लिया और इसी हाथापाई में छुरी उसके पेट में उतर गई। मां को भी नहीं बचाया जा सका।
‘लेकिन तुम्हें जेल क्यों जाना पड़ा? तुमने तो आत्मरक्षा में हथियार उठाया था।
‘कोई साक्ष्य नहीं था न! जो थे वे मेरे विरूद्ध थे। हमारी न्याय व्यवस्था की खामी मेरे चरित्र की खामी बन गई। मुझे पांच साल की जेल हो गई। जेल से निकलने के बाद गांव जाने का मन ही नहीं हुआ। जेल में मेरे अच्छे चाल-चलन से प्रभावित होकर वहां की अधीक्षिका ने अनुशंसा कर मुझे यह नौकरी दिलवा दी। आज भी वे संरक्षक की तरह मेरी खोजखबर लेती रहती हैं। उन्होंने मुझे सख्त हिदायत दी थी कि अपना अतीत मैं कभी किसी के समक्ष उजागर न करूं।
‘पायल बेटी, दुनिया लाख कहे कि स्त्री-पुरुष बराबर हैं, पर मेरा अनुभव कहता है कि ऐसे कलंक के साथ एक पुरुष भले ही नया जीवन आरंभ कर सकता है, पर एक स्त्री नहीं। मैं नया जीवन शुरू करना भी नहीं चाहती कबीर! इसलिए हमेशा के लिए तुम्हारी जिंदगी से अलग हो रही हूं पायल उठने लगी तो कबीर ने हाथ पकड़कर उसे जबरन बैठा दिया। ‘स्त्री-पुरुष के समकक्ष नहीं, उससे कहीं ज्यादा श्रेष्ठ है, क्योंकि पुरुष उसे जो भी, जितना भी देता है वह उसे और बड़ा, कई गुना करके उसे लौटाती है।

यदि पुरुष उसे स्पर्म देता है तो वह उसे एक शिशु के रूप में लौटाती है। पुरुष उसे मकान देता है तो वह उसे घर बना देती है। पुरुष उसे किराने का सामान लेकर देता है, वह भोजन तैयार कर अन्नपूर्णा के रूप में उसे परोसती है। यदि पुरुष उसे सिर्फ एक मुस्कराहट देता है तो वह बदले में उसे अपना पूरा दिल दे देती है। तो फिर यदि पुरुष उसके साथ अभद्र होता है तो बदले में स्त्री की ओर से सौ गुनी अभद्रता झेलने के लिए भी उसे तैयार रहना चाहिए। सच तो यह है पायल कि सब कुछ जान लेने के बाद तुम्हारे प्रति मेरा प्यार और भी बढ़ गया है। मैं जल्द से जल्द तुम्हारे संग शादी के बंधन में बंधना चाहता हूं। अपने वादे के मुताबिक मैं आज ही पापा-मम्मी से बात करता हूं। कबीर उठने लगा तो पायल ने उसे फिर से बैठा दिया।
‘कबीर, जिद छोड़ दो। माना तुम्हारा दिल बड़ा है, सोच बड़ी है पर, मैं नहीं चाहती कि अपनी असलियत छुपाकर मैं किसी सभ्य परिवार की बहू बनूं।
कबीर ने अपना हाथ पायल के हाथ पर धर दिया। ‘भरोसा रखो मुझ पर! मम्मी-पापा को सब कुछ बताकर ही शादी के लिए राजी करूंगा। चाहे इसमें कितना भी वक्त लग जाए। मेरा इंतजार करोगी ना?
पायल ने उदास चेहरे पर जबरन मुस्कान लानी चाही तो कबीर उसकी पीड़ा समझ और भी द्रवित हो उठा। ‘तुम्हें याद है पायल, हमने वो जो पेड़ के नीचे रखी भगवान् की टूटी मूर्ति की कवरेज न्यूज बनाई थी?
‘हां पर… पायल अचकचा रही थी। भला उस घटना को अभी याद दिलाने का कबीर का क्या औचित्य है?
‘परिस्थितियां कैसी भी क्यों न हो पायल, खुद को कभी टूटने मत देना। तुमने देखा न यह दुनिया टूटने पर भगवान को भी घर से निकाल सकती है तो फिर हम इंसानों की तो औकात ही क्या है?
इस बार पायल खुलकर मुस्करा दी थी। कबीर को आशंका थी उसके अपनी बात रखते ही घर में तूफान सा आ गया था। कबीर जानता था नरमाई से बात जारी रखने पर ही वह मम्मी-पापा के दिलों में पायल के लिए जगह बना सकता है। सोना नरम होने पर ही आभूषण के रूप में ढलता है और आटा नरम होने पर ही रोटी बनता है। इसलिए विनम्रता और पूरी सच्चाई से अपना पक्ष रखकर वह किसी जरूरी काम के बहाने घर से निकल गया था ताकि उसकी अनुपस्थिति में उन्हें सोचने समझने का पर्याप्त समय मिल सके।
‘मैं ऐसी लड़की को कभी अपने घर की बहू नहीं बनने दूंगी। कबीर के घर के बाहर कदम रखते ही मां ने अपना फैसला सुना दिया था, जबकि पापा अभी भी विचारमग्न थे, जिससे कबीर की मां और भी झुंझला उठी।
‘इसमें भला इतना सोचने जैसी क्या बात है? वह हत्यारिन तो कभी भी चाकू उठाकर हमें भी गोद सकती है।
‘माला, यह मत भूलो कि उसने जो कुछ भी किया अपनी और अपनी मां की इज्जत और जान बचाने की खातिर किया। कहां पराक्रम दिखाना है और कहां प्रेम, इतनी समझ उसमें है। छोटी सी अंगुली पर पूरा गोवर्धन पर्वत उठाने वाले श्रीकृष्ण भी बांसुरी दोनों हाथों से थामते थे, थामने वाले हाथों पर भरोसा हो या न हो बांसुरी को अपने स्वभाव के माधुर्य पर तो भरोसा होना चाहिए न? पति का आत्मविश्वास से दिपदिपाता दृढ़ चेहरा देख मालाजी भी स्वीकृति में सिर हिलाए बिना न रह सकीं।

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