Hindi Poem: औरत करती कितने काम, बात भले ये लगती आम,
तनिक नहीं मिलता आराम, काम चले बस सुबहो शाम,
*दिनचर्या*की कर लो बात, सम है उसके तो दिन रात,
पाँच बजे से पहले जाग, पूरा दिन फिर भागमभाग ।
सबसे पहले करें स्नान, फिर देवों का हो सम्मान,
बना पिलाती सबको चाय, वो ही सबकी नींद भगाय,
फिर तो कामों की शुरुआत, बहुत बुरे होते हालात,
खाने में हो जाए देर,ताने सबके सहती ढेर।
देख रसोई का फिर हाल, गाल हुए गोरी के लाल,
पीकर पानी एक गिलास, फिर से मन में भरे उल्लास,
बर्तन कपड़ो का वो ढेर, सारे काम करे बिन देर,
थक के हो जाती है चूर, फिर भी मुखड़े पर है नूर।
दिन बीता फिर हो गई शाम, बोलूँ क्या कामों के नाम,
रोटी ,सब्जी, चावल, दाल, बिखरे बेचारी के बाल,
तनिक नहीं माने पर हार, सबको इतना करती प्यार,
औरत से है घर संसार, औरत बिन कैसा परिवार ।
औरत का जो करे मखोल,यही कहूँ मैं उनको बोल,
सारे काम करो दिन चार, जाओगे जब करके हार,
औरत की समझोगे पीर, समझोगे नैनों का नीर,
समझोगे उसका व्यवहार, समझोगे क्या होती नार ।
अबला नहीं कहोगे बोल, समझोगे बोली का मोल,
समझोगे क्या होती मात, कैसी होती औरत जात,
औरत की दिनचर्या देख, कितने भी तुम लिख लो लेख,
हर औरत को बारम्बार, नमन हमारा हो स्वीकार॥
