माँ बोली, नहीं जी यह कोई भीखमंगी नहीं है, ये तो हमारी बेटी बैशाली है।

बड़े ही घृणित नजरों से उन्होनें दीदी की ओर देखते हुए कहा, ‘कौन बैशाली? उसे मरे तो सालों हो गए, देखो मैं कह रहा हूं निकालो इस भिखारन को हमारे घर से नहीं तो………आज पापा के आँखों से दीदी के लिए प्यार नहीं अंगारे बरस रहे थे।

माँ ने भी चीखते हुए कहा, आपके आँखों पर कल भी पर्दा पड़ा हुआ था। और आज भी पड़ा हुआ है। अब हमारी बेटी हमारे साथ इसी घर में रहेंगी समझे आप? कह कर माँ ने दीदी को अपने कलेजे से लगा लिया। माँ के कलेजे से लग दीदी फफक-फफक कर रो पड़ी । हमारे पूछने पर की बिना कुछ बताए क्यूं वो घर से भाग गयी और उनकी ऐसी दयनीय सि्थती कैसे हो गई? दीदी ने जो बताया, सून कर हमारे तो रोंगटे खड़े हो गए।

बैशाली, रुपेश से प्यार करती थी और दोनों शादी करना चाहते थे। यह बात बैशाली अपने माँ पापा को बताने ही वाली थी पर अचानक से उनकी बुआ उसके लिए रिश्ता ले कर आ गयी और वो अपने पापा को न। नहीं कह पायी। लेकिन जब रुपेश को बैशाली की शादी की बात पता चली तो वह बौखला उठा और कहने लगा कि जिस दिन उसकी डोली उठेगी उसी दिन उसकी अर्थी भी उठेगी। इतना प्यार करने वाला जीवन साथी कहाँ मिलेगा जो उसकी जुदाई बर्दाश न कर पाये? यह सोच कर बैशाली ने शादी की रात ही घर से भागने का प्लान बना लिया। घर से भाग कर, उसी रात दोनों ने एक मंदिर में जाकर शादी कर ली। शादी के बाद दोनों ने एक मंदिर में जाकर शादी कर ली। शादी के बाद दोनों मुंबई पहुंच गए और वहाँ एक कमरे का घर लेकर रहने लगे। हंसी-खुशी के साथ कब उनकी शादी को छह महीने बीत गए, पता ही नहीं चला, लगने लगा बैशाली को कि उसने जो भी किया सही किया। रुपेश जैसा जीवन साथी पाकर वह अपने आप को धन्य समझने लगी थी। कभी भी माँ-बाप बहन का ख्याल तक नहीं आया।

कितने उत्साह के साथ बैशाली ने यह खुशखबरी रुपेश को सुनाई थी। कि वह माँ बनने वाली है और वो पापा । लेकिन उसे क्या पता था। यह बात सुनते ही वह भड़क उठेगा ! कहने लगा कि अभी उसे बच्चा नहीं चाहिए और वह जाकर उस बच्चे को गिरवा आए। लेकिन बैशाली इसके लिए हरगिज तैयार नहीं थी। और इसी बात को लेकर रोज दोनों में झगड़े होने लगे। जहां पहले रुपेश वक्त पर घर आ जाया करता था। वहीं वह देर रात को ही वह घर लौटता और वो भी नशे की हालत में। कुछ पूछती बैशाली तो वह उस पर चीखता -चिल्लाता और अब तो वह उस पर हाथ भी उठाने लगा था। अब बर्दाशत करने के सिवा चारा भी क्या था। उसके पास। उसे लगता, जब बच्चा आ जाएगा। तब खुद व खुद रुपेश के व्यवहार में बदलाव आने लगेगा। लेकिन ऐसा कुछ भी नहीं हुआ बल्कि वह तो अपनी बेटी को देखना ही नहीं चाहता था। एक दिन रुपेश ने आकर बताया कि उसकी नौकरी चली गयी और अब घर कैसे चलेगा उसे समझ नहीं आता। नौकरी चले जाने के कारण कहीं रुपेश टेंशन में न  आ जाए। यह सोचकर बैशाली ने अपने सारे जेवर, जो आते वक्त वह अपनी माँ के घर से ले आई थी। वह उसे देकर बोली कि तब तक इससे काम चल जाएगा। जब तक जेवर चला। तब तक रुपेश का व्यवहार बैशाली के प्रति नरम रहा, पर जैसे ही सारे जेवर बिक गए, फिर वही सब।

एक रोज, जब बहुत रात गए तक रुपेश घर नहीं आया तो उसे उसकी चिंता होने लगी। तभी दरवाजा खड़खड़ाने की आवाज से वह हड़बड़ा कर, बिना पूछे ही दरवाजा खोल दिया, पर सामने किसी और को देखकर वह चौंक गयी। पूछने पर उसने बताया कि रुपेश ने ही उसे वहाँ पर बुलाया है। लेकिन कुछ देर बाद ही वह शख्स बैशाली के साथ गलत हरकत करने लगा और जब वह एतराज जताने लगी तो वह बोला कि उस पर उसका पूरा अधिकार है क्योंकि उसके पति ने पूरे 50 हजार में उसे उसके हाथों बेच दिया है। सुनकर वह शॉक रह गयी कि जिस पर उसने सबसे ज्यादा भरोसा किया, उसी ने उसका सौदा कर दिया। अपनी बेटी के बारें में भी एक बार नहीं सोचा। उसने अपने आप को उस दरिंद्रे से बचाने का भरसक प्रयास किया, पर हार गयी, वह जालिम इंसान, तब तक उसकी अस्मत को लुटता रहा, जब तक उसका मन नहीं भर गया। फिर उसने उसे एक कोठे पर बेच दिया जहां पर रोज लोग, उसके शरीर को भूखे-भेड़िये की तरह नोचने लगे। क्या करती बेचारी ? कहाँ जाती उस नन्हीं सी जान को लेकर? अब वही कोठा, उसकी किस्मत बन गया था। लेकिन न जाने कैसे उसी दरिंदे में से एक को बैशाली पर दया आ गयी और एक रात सबसे छुपते-छुपाते वो उसे, बनारस वाली गाड़ी पर बैठा दिया।

अपनी व्यथा सुनाते-सुनाते दीदी वहीं जमीन पर गिर पड़ी और बेहोश हो गयी। पापा तुरंत उन्हें डॉक्टर के पास ले कर गए, जहां डॉक्टर ने जांच कर पुष्टि किया कि दीदी एडस से ग्रस्त है। और वह कुछ ही महीनों की मेहमान है। सुन कर तो हमारी रुलाई फुट पड़ी । दीदी के आंखों से साफ झलक रहा था। कि वो पश्चाताप की अग्नि में जल रही थी। अपना हाथ जोड़ कर वह बार-बार हमसे क्षमा-याचना किए जा रही थी। रोते हुए वह कहने लगी। पापा एक अंतिम बार….अ……आप अपनी बैशाली को क्षमा कर देना। जैसे उसने भांप लिया हो कि अब वह कुछ ही पलों की मेहमान है और सच में देखते-देखते ही दीदी की आंखे खुली की खुली ही रह गयी। हमेशा के लिए दीदी हमसे विदा हो गयी। एक महीने बाद मैंने भी एक बेटी को जन्म दिया। अभी हम दीदी के दुख से उबरे ही कहां थे जो खुशी मनाते, अब इस बच्ची का क्या होगा। कौन संभालेगा इसे? माँ पापा भी कब तक, आखिर उनकी भी तो उम्र हो चुकी थी। सब की मर्जी से हमने यह फैंसला लिया कि हम उस बच्ची को गोद ले लेगें। बच्चा गोद लेने की सारी फ़ार्मेलिटि पूरी करने के बाद, मैं और नवीन विधि के माता-पिता बन गए।

दरवाजे पर घंटी की आवाज से भारती अतीत में लौट आई। इतनी सुबह-सुबह कौन हो सकता है? अपने मन में ही भारती बोली और उठा कर दरवाजा खोलने लगी।

“मम्मा……मम्मा,” कहते हुए विधि के आँसू अपने आंचल से पोछते हुए भारती बोली।

सुबकते हुए कहने लगी विधि “मम्मा, मुझे माफ कर दो, आप सही थी और मैं गलत, यह बात मैंने वहाँ जाकर महसूस किया। मैंने आपका दिल दुखाया न माँ? पर मैं प्रॉमिस करती हूं, अब आप जो कहोगी मैं वही करुंगी,” लग रहा था जैसे कितने दिनों से वो अपनी माँ से बिछड़ी हुई थी। भारती के गालों पर आंसू लुढ़क आए पर खुशी के, नवीन और पलक भी खड़े-खड़े मुस्करा रहे थे।

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