‘पद्मश्री’ और ‘पद्म भूषण’ से सम्मानित हिंदी जगत के मशहूर गीतकार और कवि गोपालदास नीरज सक्सेना का गुरुवार की शाम दिल्ली के एम्स अस्पताल में निधन हो गया। 94 वर्षीय नीरज को फेफड़ों में संक्रमण की वजह से बीते मंगलवार की रात आगरा के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था। तबीयत में सुधार नहीं होने की वजह से उन्हें गुरुवार को आगरा से दिल्ली के एम्स में शिफ्ट किया गया, जहां शाम करीब 8 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली। महाकवि नीरज आगरा के बल्केश्वर में रहने वाली बेटी कुंदनिका शर्मा के घर आए थे। यहां मंगलवार को सुबह के नाश्ते के बाद तबीयत बिगड़ गई थी। नीरज की बेटी कुंदनिका शर्मा ने बताया कि नीरज जी का पार्थिव शरीर शुक्रवार को एम्स में ही रखा जाएगा। कई फॉर्मेलिटी पूरी करनी है। इसके बाद शनिवार को लोगो के अंतिम दर्शन के लिए आगरा में सुबह 4 घण्टे रखा जाएगा। वहां से अलीगढ़ ले जाया जाएगा।
हिंदी साहित्य और फिल्मी जगत में शोक की लहर
नीरज के निधन ने हिंदी साहित्य और फिल्मी जगत में शोक की लहर दौड़ गई है। बड़े-बड़े साहित्याकार, फिल्मी दुनिया और कई राजनेताओं ने उनके निधन पर शोक व्यक्त किया है। कवि गोपाल दास नीरज की प्रसिद्ध रचनाओं और गीतों को कभी भुलाया नही जा सकेगा।
रुख़्सती में भी कर गए ये काम
अपने गीतों से सभी को मंत्रमुग्ध करने वाले मशहूर गीतकार गोपालदास नीरज दुनिया को रुखस्त करते हुए ऐसा काम कर गए जिन्हें गीतों के अलावा भी हमेशा याद किया जाएगा। नीरज ने अपनी मृत्यु से पहले अपने अंगदान करने की घोषणा कर दी थी. उनकी अंतिम इच्छा के अनुसार एम्स के डॉक्टर शुक्रवार की सुबह अंगदान की क्रिया पूरी करेंगे. इसके बाद उनका पार्थिव शरीर अलीगढ़ ले जाया जाएगा, जहां उनका अंतिम संस्कार किया जाएगा.
गीतों से बनाई खास पहचान
उन्होंने हिंदी फिल्मों के लिए भी अनेक गीत लिखे और उनके लिखे गीत आज भी गुनगुनाए जाते हैं। हिंदी मंचों के प्रसिद्ध कवि नीरज को उत्तर प्रदेश सरकार ने यश भारती पुरस्कार से भी सम्मानित किया था। ‘कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे’ जैसे मशहूर गीत लिखने वाले नीरज को तीन बार ‘फिल्म फेयर’ पुरस्कार भी मिला था। ‘पहचान’ फिल्म के गीत ‘बस यही अपराध मैं हर बार करता हूं’ और ‘मेरा नाम जोकर’ के ‘ए भाई! ज़रा देख के चलो’ ने नीरज को कामयाबी की बुलंदियों पर पहुंचाया।
जीवन रहा संघर्ष पूर्ण
गोपालदास नीरज का जन्म 4 जनवरी, 1924 को उत्तर प्रदेश के इटावा जिले के पुरावली गांव में हुआ था। जब नीरज 6 वर्ष के थे तो उनके पिता बाबू ब्रजकिशोर सक्सेना का निधन हो गया था। उन्होंने अपनी शिक्षा उत्तर प्रदेश में ही पूरी की। एटा से प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल किया। घर चलाने के लिए पढ़ाई छोड़कर इटावा की कचहरी में टाइपिस्ट का काम किया फिर वहीं के एक सिनेमाघर की एक दुकान पर भी नौकरी की। यह नौकरी भी ज्यादा दिन नहीं चल सकी। फिर खाद्य विभाग में टाइपिंग की नौकरी की।
ज्यादा दिन नहीं टिके नौकरी में
दिल्ली के बाद उन्होंने कानपुर का रुख किया और नौकरी करते हुए ही इंटर,बीए और हिंदी साहित्य में एमए किया। पढ़ाई में वे शुरू से ही तेज़ थे और एग्जाम्स में हमेशा फर्स्ट डिवीजन ही पास होते थे। एमए करने के बाद उन्होंने मेरठ कॉलेज मेरठ में हिंदी प्रवक्ता के पद पर अध्यापन का काम किया। यहां से नौकरी छोड़ने के बाद वे अलीगढ़ आ गए और धर्म समाज कॉलेज में प्राध्यापक नियुक्त हुए। इसके बाद नीरज अलीगढ़ में बस कर रह गए और अपने जीवन के अंतिम समय तक अलीगढ़ में ही रहे। जीवन के संघर्षों के बीच ही वे मंच पर कविताएं पढ़ने लगे और उनकी प्रसिद्धि फैलने लगी। इस बीच उन्होंने मुंबई का रुख किया और कई फिल्मों के लिए मशहूर गीत लिखे लेकिन मुंबई की माया नगरी भी उन्हें ज्यादा दिन रास नहीं आई नीरज मुंबई की ज़िन्दगी से उब गए और वे मुंबई को भी अलविदा कह आए। यह भी कहा जाता है कि बॉलीवुड में उनके गीतों की कद्र करने वाले संगीतकारों की फेहरिश्त खत्म हो गई थी, इसलिए वे अपने शहर लौट आए।
