बदल गई है सफलता की परिभाषा
पहले के समाज में सफलता आध्यात्मिक या आत्मिक उपलब्धि मानी जाती थी, सुख और शांति का पर्याय थी। आज के भौतिक युग में सफलता का प्रायोजन और उद्देश्य दोनों बहुत बदल गए हैं। अब सफलता भौतिक है और अधिकाधिक धन लाभ से जुड़ी हुई है। आज कार, बंगले, रंगीन टीवी, वीसीआर, मोटे बैंक बैलेंस को ही सफलता मान लिया गया है। यह सफलता की कसौटी है। शक्ति, सत्ता और संपत्ति सफलता की कसौटी बन चुकी है। दाल-रोटी के बजाय मुर्ग-मुसल्लम और पीजा हमारे खानपान का स्टेट्स सिंबल बन गए हैं।
सफलता के उद्देश्य व लक्ष्य अलग-अलग
सफलता शब्द की दार्शनिक व्याख्या की जाए तो यह व्यक्ति सापेक्ष शब्द है। हर व्यक्ति का अपना अलग अर्थ और पैमाना है। हर युग में सफलता सामाजिक दृष्टि से भी अलग-अलग अर्थ में प्रयुक्त होती रही है। सफलता का संबंध व्यक्ति की इच्छाशक्ति, कार्यक्षमता और आत्म-अभिव्यक्ति से भी है। इसका उद्देश्य और लक्ष्य अलग-अलग है।आज से 10 साल पहले तक युवावर्ग डॉक्टर, इंजीनियर, आई.ए.एस. अफसर या व्यवसायी बनना चाहता था। आज का युवावर्ग कंप्यूटर डिजाइनर, मॉडल बहुराष्ट्रीय कंपनियों में अधिकारी या सॉफ्टवेयर कंपनी का मालिक बनना चाहता है। इस तरह सफलता के मानक पद युग के अनुसार बदलते रहते हैं।सफलता का संबंध व्यक्ति की कार्य क्षमता सेआज युवा लड़कियां सॉफ्टवेयर इंजीनियर से ले कर पायलट तक बनने का सपना देखने लगी हैं।
आत्मविश्वास से मिलती है सफलता
हर्षद मेहता और मदर टेरेसा की सफलता एक जैसी नहीं मानी जा सकती है। एक का उद्देश्य निजी महत्वाकांक्षा की पूॢत है, जिसके लिए गैरकानूनी प्रयत्न भी किए गए। लेकिन मदर टेरेसा की सफलता वृहत्तर समाज के लिए किया गया प्रयास है, जिससे अनेक व्यक्तियों के जीवन की समस्याओं और विपदाओं को दूर किया गया।युवावर्ग व हर व्यक्ति समाज में अपनी पहचान, शक्ति और सत्ता चाहता है। इस अर्थ में सफलता मनोकामना की प्राप्ति के बाद कर्म का फल है।सफलता सुखसंतोष व आत्मविश्वास देती है।
