तब मैं सरस्वती शिशु मंदिर में 5 वीं कक्षा का विद्यार्थी था। हर रोज की तरह मैं स्कूल के लिए तैयार हुआ। उस वक्त आसमान बादल से घिर गया था और हम सब बच्चे स्कूल के छुट्टी और बारिश में भीगने का इंतजार कर रहे थे। छुट्टी  हो गई तो एक दोस्त के साथ साइकिल लेकर बारिश में भीगते हुए घर की ओर जा रहा था। हमारे पास 2 रुपये थे जिससे हमने रास्ते में पडऩे वाली एक दुकान पर कुछ खाने के लिए लेने की बात सोची। तभी दुकान से एक बूढ़ी औरत 1 किलो आटा लेकर निकली। वह कुछ ही दूर चली होगी कि उसकी पन्नी फट गई और सारा आटा पानी में फैल गया। हम उसे देखने लगे। वो बूढ़ी औरत वहीं रास्ते में बैठकर आटे को बारिश के पानी के साथ समेटने लगी। यह देखकर हमें देखकर बहुत ही खराब लगा। तब हमें पहली बार गरीबी का एहसास हुआ था। आज भी यह घटना याद आ जाती है तो दिल दुखी हो जाता है।

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