जीवन नजरिये का खेल है। यदि हमारी सोच सकारात्मक होगी तो हमें हमारा जीवन तमाम कठिनाइयों के बावजूद भी अच्छा लगेगा वहीं दूसरी ओर यदि हमारी सोच नकारात्मक होगी तो उस उपलब्ध सुख एवं संसाधनों में भी हम तकलीफ ढूंढ लेंगे और तो और नकारात्मक नजरिये के कारण अपने जीवन को खराब कर लेंगे।
हमारे विचार ही हमें बनाते-बिगाड़ते हैं। इसलिए जरूरी है कि हम ऐसे विचारों से बचें जो हमें नकारात्मकता प्रदान करते हैं तथा हमारे दृष्टिकोण को भी नकारात्मक बनाते हैं। इससे पहले कि नकारात्मकता आप को घेरे आप निम्न विचारों से दूर रहें।
1. मैं उन्हें पसंद क्यों नहीं?
हर इंसान को हक है कि वो किसी को पसंद करे या न करे तथा हर इंसान की पसंद एक जैसी हो यह भी जरूरी नहीं। इसलिए इस सोच-विचार में न उलझें कि फलां आदमी को मैं पसंद क्यों नहीं हूं। जैसे हमें हर कोई पसंद नहीं होता ऐसे ही हर कोई हमें पसंद करे यह भी जरूरी नहीं। इस बात को समझें व स्वीकारें इस चिंता में न घुलें कि सामने वाले को मैं पसंद क्यों नहीं? मुझमें क्या कमी है, क्या मैं खराब हूं? जब तक मैं सामने वाले की पसंद नहीं बन जाऊंगा मैं चैन से नहीं बैठूंगा आदि-आदि। ऐसे विचारों को न पालें।
2. सब मेरे बारे में क्या सोचते हैं?
कोई किसी की सोच पर रोक नहीं लगा सकता। सबको हक है कि वह क्या सोचे, क्या नहीं। दूसरे हमसे किस बात पर खुश होंगे यह कहना मुश्किल है और सबको खुश रखना नामुमकिन है क्योंकि सबकी अपनी स्वतंत्रता है, राय व पसंद है। हम उनके नजरिये में फिट हों यह जरूरी नहीं।
3. कुछ कम है
न तो कोई स्वयं परिपूर्ण होता है न ही जीवन में किसी को सब कुछ मिलता है। जिसे देखो उसे शिकायत है कि उसे यह नहीं मिला, वो नहीं मिला। मनुष्य बहुत अजीब है उसे जो मिलता है वह उसको नहीं देखता परंतु जो उसे नहीं मिलता उस कमी में दुखी होता है या फिर जो दूसरों को मिला है, पर स्वयं को नहीं मिला इस बात का उसे विशेष दुख रहता है या फिर जितना मिला है वह कम है। सुखी रहना है तो हमें इस विचार से ऊपर उठना होगा। सौ में सौ
किसी को नहीं मिलता। कुछ न कुछ कम सभी को मिलता है। प्रकृति ने सोने को चमक दी है तो सुगंध नहीं दी और चंदन को यदि सुगंध दी है तो चमक नहीं दी।
4. मैं सब कुछ ठीक न पर पाया तो?
कोशिश करना, मेहनत करना ही हमारा ध्येय होना चाहिए। सब कुछ ठीक करने की कोशिश में हम सब कुछ गड़बड़ कर देते हैं। हम करने से पहले ही परिणाम पर पहुंच जाते हैं। अंदाजे लगाने लगते हैं कि मेरा कार्य पूरा हो पाएगा कि नहीं, होगा तो ठीक ढंग से होगा कि हीं, कहीं मैं बीच में ही हिम्मत न हार जाऊं, कहीं कोई अचानक समस्या न आ जाए? आदि-आदि। कार्य से
पहले ही इस तरह के नकारात्मक विचार अंजाम से पहले ही हमें तोड़ देते हैं। कर पाया, नहीं कर पाया जैसे काल्पनिक विचारों को भीतर बसने न दें। वरना आपकी हार निश्चित है।
5. अकेले सब कुछ असंभव है?
बिना किसी की मदद के मैं कुछ नहीं कर पाऊंगा। कार्य तो बहुत दूर की बात है हम अकेले जीने से भी डरते हैं। सच तो यह है कि हम न केवल अकेले जीने से डरते हैं बल्कि किसी के साथ को खोने से भी डरते हैं कि हम उसके बिना कैसे जिएंगे। हमेशा के लिए हमेशा का साथ किसी को भी नसीब नहीं होता। जो लोग हमेशा किसी के इंतजार में रहते हैं वह कुछ नहीं कर पाते। जो लोग इस विचार को अपने अंदर बसा लेते हैं वह हमेशा सुखी रहते हैं।
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6. हमेशा मैं ही क्यों?
कोई कार्य हो या जिम्मेदारी, मुसीबत हो या चुनौती हम हमेशा यही सोचते हैं कि सारे कष्ट, सारे दुख केवल हमें ही मिलते हैं। सिर्फ हमारी ही किस्मत खराब है, भगवान, जैसे कष्टों के लिए केवल हमें ही चुनता है, जिसे देखो वह मुझे कष्ट देने में लगा है आदि-आदि, ऐसे विचार हमारे मन में रहते हैं परंतु हैरानी कि बात है हर कोई इसी बात से परेशान है। परंतु यह प्रकृति का नियम है। सब के जीवन में संघर्षों के,
तकलीफों के दिन आते हैं, बचता कोई नहीं है। इसलिए इस विचार को त्यागें कि हमेशा मैं ही क्यों?
7. मुझे कोई नहीं समझ सकता
हर आदमी की यही शिकायत है कि कोई उसे नहीं समझ सकता। उसे लगता है कि उसके भाव, उसकी संवेदनाएं सबसे अलग हैं। वो चाहे अपने बारे में किसी को कितना भी समझा दे परंतु उसे समझा नहीं जा सकता। पहले से ही यह धारणा बनाना गलत है। यदि कोई हमें समझ भी ले तो हमारा यह विचार मानने को तैयार नहीं होता कि कोई हमें कैसे समझ सकता है? हमारा दु:ख, हमारी तकलीफ इतनी साधारण कैसे हो सकती है कि किसी को भी आसानी से समझ आ जाए। हम इस नकारात्मक विचार को इतनी गहराई से पकड़ लेते हैं कि हमारा पूरा व्यक्तित्व एवं जीवन प्रभावित होने लगता है। इसलिए हो सके तो इस विचार से बचें।
8. मुझे क्या मिलेगा?
माना फल की इच्छा सब को होती है। बिना फल को ध्यान में रखे कोई मेहनत नहीं करता परंतु इसका मतलब यह नहीं कि ध्यान हमेशा फल पर हो कार्य पर नहीं। कार्य करेंगे तो परिणाम मिलेगा चाहे देर से ही मिले पर हर कार्य से आपको तुरंत लाभ मिले यह जरूरी नहीं तथा हर कार्य को लाभ की ही दृष्टि से न करें। हमेशा यही न सोचें कि आपको मिलेगा क्या या आपके हिस्से में क्या आएगा तथा फल को हमेशा किसी रुपये-पैसे या वस्तु में ही नहीं तोलें आत्मसंतुष्टि के स्तर पर भी सोचें।
9. यहां अपना कोई नहीं
अपना कोई बनाने से बनता है। किसी को सही मायने में अपना बनाना अपने आप में एक तपस्या जैसा है परंतु हम उस तपस्या से बचते हैं और चाहते हैं कि कोई हमारा अपना हो जाए। जरा सी किसी से कहासुनी हुई नहीं कि हम रिश्तों को तोड़ देते हैं। हमारे संबंधों में विश्वास कम परीक्षाएं अधिक होती हैं। हम अपने आस-पास के लोगों को जांचने या उनमें कमी निकालने में ही लगे रहते हैं। जो हमें धोखा देते हैं हम उनके साथ कभी भी बुरा करना नहीं भूलते परंतु जो हमारे शुभचिंतक होते हैं उनके साथ हम भलाई करना कई बार भूल जाते हैं। जिस तरह पांचों उंगलियां कभी बराबर नहीं होती उसी तरह सब लोग एक जैसे नहीं होते। अपने नकारात्मक विचारों को हटाएं और आगे बढ़ें, किसी को अपना बनाएं या फिर किसी के अपने हो जाएं।
10. मेरे अकेले से क्या होगा?
अकेला इंसान बहुत कुछ कर सकता परंतु हर कोई यह सोच बैठा है कि उसके अकेले के करने से कुछ नहीं होगा। सभी सोचते हैं कि मैं नहीं करूंगा तो क्या होगा इसी कारण कोई ठोस परिणाम सामने नहीं आ पाता। हम करेंगे तो दूसरे को प्रेरणा मिलेगी, हम करेंगे तो दूसरे में साहस जागेगा। बूंद-बूंद से घट भरता है और घट से सागर। इस सकारात्मक विचार को याद रखें और अकेले अपने दम पर कुछ करें औरों की राह न देखें।
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