“ऐसा क्यूँ कह रही हो मालकिन? क्या मुझसे कोई भूल हो गयी जो मुझे काम से निकाल रही हो? – विनीता ने घबराये हुए स्वर में पूछा ।
“अरे….कोई गलती नहीं हुई है तुझसे और न ही मैं तुझे काम से निकाल रही हूँ।”
“तो फिर मालकिन…..महीने के बीच में पैसे देके ऐसा क्यूँ कह रही हो कि कल से मत आना।” विनीता ने कौशल्या से अचरज भरी नज़रों से देखते हुए पूछा ।
“ओफ्फो…तू तो मुर्ख की मूर्ख ही रहेगी।अरे टी वी पर देखा नहीं कि सारी दुनिया में कोरोना नाम की बीमारी फ़ैल रही है।इसीलिए सरकार ने पूरे देश में लॉक डाउन करने का निर्णय लिया है।कल से कोई भी अपने घर से बाहर नहीं निकलेगा, इसीलिए तू भी मत निकलनाI” कौशल्या देवी ने बड़े ही प्यार से विनीता को समझाया ।
“यकीन मानिए मालकिन…..हमको तो कोई बीमारी नहीं है फिर क्यूँ?”
“अरे बाबा मैंने कब कहा कि तू बीमार है, लेकिन ऐसा सरकार कह रही है कि किसी को भी घर से नहीं निकलना है।समझी?”
“समझ गई मालकिन ,लेकिन आप तो अकेले रहती हो, अगर मैं नहीं आउंगी तो आपका काम कौन करेगा? कौन आपका ध्यान रखेगा? अब दीदी और भैया भी तो यहाँ नहीं हैं यहाँ” – विनीता ने धीरे से कहा।
“अरे नहीं हैं तो क्या हुआ?….. अभी यहाँ नहीं हैं तो आ जायेंगे दोनों……अब ऐसे में तो उनको आना ही पढ़ेगा यहाँ।आखिर उन दोनों को भी तो ये चिंता रहेगी कि मैं यहाँ अकेली हूँ।तू फिकर मत कर जा” कौशल्या देवी ने मुस्कुराते हुए विनीता को विदा कर दिया।
विनीता हाथ में पैसे और चेहरे पे उदासी लिए हुए चली गई।कौशल्या देवी भी जानती थीं कि विनीता के लिए कल से मत आना सुनना कितना कष्टदायक रहा होगा।लेकिन उससे भी ज्यादा कष्टदायक था कि उनका खुद का समय कैसे कटेगा? एक विनीता ही तो है उनके अकेलेपन का सहारा ।कहने को तो कौशल्या देवी के दोनों बच्चे ज्यादा दूर नहीं रहते थे, मगर आजकल की पीढ़ी को माता-पिता की नसीहतें, किसी बंदिश से ज्यादा नहीं लगती हैं।शायद यही वज़ह थी कि दोनों ने दिल्ली से ही सटे गुडगाँव और नॉएडा में अलग आशियाँ बना रखा था ।पति की मृत्यु के बाद कितनी मुश्किलों से उन्होंने दोनों बच्चों को पाला-पोसा और पढ़ा-लिखा कर इस काबिल बनाया कि अपने पैरों पर खड़े हो सकें। मगर पूरे जीवन की तपस्या का फल ये मिला कि आज उन्हीं बच्चों के पास उनके लिए समय तक नहीं है। बेटा अपनी बीवी के साथ अलग रहने लगा और बेटी शादी से पहले ही परायी हो गई ।
लेकिन पता नहीं क्यों आज इस लॉक डाउन की खबर ने कौशल्या देवी के मन में एक उम्मीद की किरण जगा दी थी।कौशल्या देवी मन में ये सोचकर फूलीं नहीं समा रही थीं कि ऐसे वक़्त पर तो उनके बच्चे ज़रूर अपनी माँ के लिए आज रात को तो घर आ जायेंगे और फिर पूरे १५ दिन सिर्फ और सिर्फ उनके साथ ही समय बिताएंगे।आख़िर औलाद है, माँ के लिए इतनी भी निर्दयी नहीं हो सकती।उन्होंने तो पंद्रह दिन की लिस्ट भी बना ली थी कि क्या क्या पकवान बनाकर बच्चों को खिलायेंगी।
शाम होने को आई, कौशल्या देवी ने बड़े ही उत्साह से बेटे अमन को फ़ोन लगाया
“हेलो”-
“हेल्लो…माँ” – अमन
“बेटा….कितनी देर में घर पहुँच रहे हो ?”- कौशल्या देवी ने पूछा।
“घर! कैसी बातें करती हो माँ आप भी….मैं भला घर क्यूँ आऊंगा? माँ कुल १५ दिन का तो लॉक डाउन है और फिर मेरे ऑफिस की छुट्टी थोड़े ही है।घर से तो काम करना ही होगा न”- अमन ने कहा ।
“मैं जानती हूँ बेटा लेकिन काम तो तुम यहाँ घर पर रह कर भी कर सकते हो।मैंने आज तुम्हारे मनपसंद राजमा बनाये हैं”।
“सॉरी माँ.. मैं नहीं आ सकता।आप समझने की कोशिश करो प्लीज।और फिर आप जानती तो हो कि श्रेया का उस छोटे से घर में दम घुटता है।वो वहां एडजस्ट नहीं हो पाती हैI”- कहकर अमन ने फ़ोन काट दिया ।कौशल्या देवी अपना मन मसोस कर रह गयीं।जिस घर में उन्होंने अपना पूरा जीवन निकाल दिया, उसी घर में बहू का दम घुटता है।बेटे की बेरुखी से घायल कौशल्या देवी ने जल्द ही अपनेआप को संभाला और फिर अपनी बेटी नीतू को फ़ोन लगाया।कौशल्या देवी को पूरी उम्मीद थी कि उनकी बेटी उनके अकेलेपन की तकलीफ़ को ज़रूर समझेगी ।
“हेलो नीतू”
“हेल्लो माँ… कैसी हो आप?
“मैं तो ठीक हूँ बेटी….तुम कितनी देर में घर पहुँच रही हो?”
“घर! ओह्ह….सॉरी माँ मैं तो आपको बताना भूल ही गयी।मुझे तो दोपहर को ही ऑफिस के काम से चंडीगढ़ आना पड़ा।अब तो मैं यहाँ से निकल भी नहीं सकती”।
“बेटा, अमन भी नहीं आ पा रहा है और विनीता का भी अब काम पर आना मुश्किल है।मैं अकेली कैसे रहूंगी?”
“माँ भईया पर तो आपका बस चलता नहीं, मैं लड़की हूँ इसीलिए बस मुझे ही दबाने की कोशिश करती हो”,नीतू ने भी फ़ोन रख दिया।कौशल्या जानती थीं कि चंडीगढ़ तो सिर्फ एक बहाना था ।दो साल से नीतू, एक लड़के के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहती है।मगर कौशल्या देवी ने कभी भी इसका ज़िक्र नहीं किया क्यूंकि वो चाहतीं थीं कि उनकी बेटी सामने आकर उन्हें खुद ये बात बताये।कौशल्या देवी की रही सही उम्मीद भी टूट गई।उनके मन का दुःख आंसू बनकर आँखों से बहने लगा।रात के सन्नाटे और घर के सूनेपन में अपने मन के दुःख को आंसुओं में बहाते हुए कब उनकी आँख लग गयी उन्हें पता ही नहीं चला।
अगली सुबह जब आँख खुली तो मन के साथ-साथ शरीर भी बेढाल सा लग रहा था।अनमने मन से उठकर बालकोनी में गयीं तो देखा चारों तरफ दूर-दूर तक सन्नाटा पसरा हुआ था।सड़क पर किसी के भी आने-जाने की कोई आहट तक नहीं सुनाई दे रही थी।घर और बाहर दोनों जगह एक दम शांति छाई हुयी थी।पूरा दिन बीत गया मगर कौशल्या देवी ने एक तिनका तक नहीं तोडा।दिन रात यूँ ही अकेलेपन में बीतते रहे।कौशल्या देवी सोफे पर पड़ीं हुई बस दरवाज़े की तरफ़ ही निहारतीं रहतीं कि काश कोई आये और उनसे दो बात करे।अपने ही घर की ख़ामोशी उनको धीरे-धीरे खाये जा रही थी ।
आज लॉक डाउन के बारह दिन बीत चुके थे।कौशल्या देवी के घर से एक अजीब सी दुर्गन्ध आने पर पड़ोसियों ने पुलिस को खबर दी।अन्दर से दरवाज़ा न खुलने पर, पुलिस जब दरवाज़ा तोड़ कर अन्दर गयी तो कौशल्या देवी का मृत शरीर सोफे पर पड़ा हुआ था, मगर उनकी आँखें खुली हुई थीं।उनकी खुली हुई मृत आँखें घर के दरवाज़े की ओर अब भी ऐसे ताक रहीं थी कि मानो अब भी शायद वो अपने बच्चों के या किसी के आने का इंतज़ार कर रहीं हो।
