तब मैं बहुत छोटी थी। मेरी दादी को मेरे दादाजी का दाढ़ी-मूंछें रखना बिल्कुल पसंद नहीं था। अक्सर बातचीत के दौरान वे दादाजी से इस बात का जिक्र किया करती थी। मुझे दादी से बहुत लगाव था, क्योंकि वे मुझे बहुत प्यार करती थी। मैं उन्हें खुश रखना चाहती थी। एक दिन जब दादाजी रात को गहरी नींद में सो रहे थे, मैं चुपके से कैंची उठा लाई और सोते हुए दादाजी की दाढ़ी-मूंछें काट डाली। सुबह हुई तो दादाजी को इस बात का पता चला। वे गुस्से में खूब लाल-पीले हुए। बाद में भेद खुला तो वे पहले तो खूब नाराज हुए, पर मेरी नादानी भरी शरारत पर उन्होंने हंसते हुए मुझे माफ कर दिया। इस बात पर घर में सभी लोग खूब हंसे। यह शरारत आज भी मुझे गुदगुदा जाती है।
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