बच्चों के साथ-साथ अभिभावकों पर भी परीक्षा का भूत सवार हो जाता है। सभी अभिभावकों को अपने बच्चों से यही उम्मीद होती है कि वह परीक्षा में अच्छे नंबरों से उतीर्ण हों। इसी वजह से वह अपने बच्चों पर पढ़ाई का इतना दबाव बना देते हैं कि इसी वजह से कई बार बच्चे या तो एक्जामिनेशन फीवर का शिकार हो जाते हैं या फिर डिप्रेशन का। अगर अभिभावक समझदारी से काम लें तो उनके बच्चे डिप्रेशन का शिकार न होकर परीक्षा में अच्छी रैंक पा सकते हैं। अभिभावक अपने बच्चों को परीक्षा की तैयारी कराने में सहयोग करें तो इससे बच्चों का आत्मविश्वास भी बढ़ेगा और वह अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण भी होगा-

समझें बच्चों में तनाव के लक्षण-

बच्चे का बात-बात पर चिड़चिड़ाना।

हर वक्त खोए-खोए रहना, किसी भी काम में ध्यान न देना।

जरा-जरा सी बात पर रो पड़ना, नाखून काटना, होंठ चबाना इत्यादि।

मनोचिकित्सकों का मानना है कि यदि बच्चा तनाव के दौर से गुजर रहा हो तो अधिक-से-अधिक समय बच्चे के साथ गुजारने की कोशिश करें। उसे प्यार व दुलार दें तथा बच्चे को यह महसूस न होने दें कि वो किसी प्रकार की बीमारी से ग्रस्त है। बच्चे पर अपनी बात मनवाने के लिए दबाव न बनाए, बल्कि उसे समझाकर मनाने की कोशिश करें।

मनोचिकित्सक के परामर्श अनुसार दवाइयों का इस्तेमाल करें।

अभिभावकों को चाहिए कि वे बच्चे से खुलकर बात करें। उसकी अनकही समस्याओं को बिना पूछे समझने की कोशिश करें।

बच्चे को बाहर घुमाने ले जाएं, उसे नई-नई चीजें दिखाएं। इससे उसके मस्तिष्क में नए-नए विचार आएंगे, जिससे तनाव को कम करने में मदद मिलेगी।

मनोचिकित्सकों के अनुसार तनाव के दौरान बच्चे में हार्मोंस भी असंतुलित हो सकते हैं, इसलिए बच्चे के खान-पान पर विशेष ध्यान दें।

अभिभावक करें बच्चों की मदद

-बच्चों का टाइमटेबल बनाएं। टाइमटेबल को परीक्षा तक की तिथि के अनुसार बनाएं। फिर बच्चों को टाइमटेबल के हिसाब से उनके विषय तैयार करने को कहें।

-अकसर बच्चे याद तो करते हैं, लेकिन जल्द ही वह भूल जाते हैं। अगर ऐसा है तो बच्चों में लिखकर याद करने की आदत डालें। इससे लिखने की गति भी बढ़ेगी, लिखावट भी सुंदर होगी और याद्दाश्त भी बढ़ेगी।

बच्चों की पढ़ाई के लिए समय सीमा का निर्धारण करना जरूरी है। अगर आपका बच्चा लगातार 2-3 घंटे पढ़ता रहे तो वह ऊब जाएगा और पढ़ाई पर उसका ध्यान भी नहीं होगा। इसलिए बच्चों को हर एक-डेढ़ घंटे में थोड़ा आराम या अपना मनपसंद काम करने की अनुमति दें, जिससे बच्चा तरोताजा अनुभव करे।

अकसर बच्चे परीक्षा की तैयारी में इतना ज्यादा जुट जाते हैं कि खाना-पीना सब भूल बैठते हैं, पर सेहत के लिए ऐसा करना बिल्कुल सही नहीं है। माता-पिता को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वह अपने बच्चों को समय से भोजन कराएं। हां, भोजन पौष्टिक होना चाहिए गरिष्ठ नहीं। गरिष्ठ भोजन आलस्य उत्पन्न करता है जो बच्चों की पढ़ाई बाधित करेगा।

अभिभावकों की आदत होती है कि परीक्षा नजदीक आई नहीं कि बच्चों का खेलकूद बंद करवा देते हैं, मगर ऐसा करने से बच्चों पर विपरीत असर पड़ता है। बच्चों को परीक्षा टाइम में भी थोड़ा-बहुत खेलने-कूदने दें।

अगर वह शाम को पढ़ते हैं तो उन्हें टहल कर पढ़ने दें। शाम की ताजी हवा के साथ याद करने का तरीका अच्छा है।

बच्चों को काफी देर तक जागने न दें। कोशिश करें कि वह समय से सो जाएं और समय से उठें।

बच्चों को दें ये सुझाव

सबसे कमजोर विषय को पहले पढ़ें।

लिखकर याद करें।

दिमाग को भी आराम दें।

पुराने प्रश्न्न पत्रों को हल करने का प्रयास करें।

हो सके तो परीक्षा की तय अवधि से पहले प्रश्नपत्र खत्म करने का प्रयास करें।

बच्चों के साथ-साथ उनके माता-पिता एवं अभिभावकों के लिए भी यह समय किसी परीक्षा से कम नहीं। आपका सहयोग ही उन्हें हर परीक्षा में उतीर्ण कर सकता है।