Menstrual Hygiene
Menstrual Hygiene

Menstrual Hygiene: पीरियड्स के दौरान हाइजीन रखना बहुत जरूरी है, जिससे किसी तरह का इंफेक्शन न हो सके। आज भी बहुत सी महिलाएं हैं, जो सैनेटरी पैड्स की जगह कपड़ा इस्तेमाल करती हैं। ऐसा करने से महिलाओं में कई तरह की बिमारियों का खतरा बढ़ जाता है। सैनेटरी पैड्स के इस्तेमाल के लिए महिलाओं को जागरूक करना बहुत आवश्यक है।

किशोरावस्था में आते ही एक लड़की के शारीरिक और मानसिक बदलाव की दस्तक के साथ ही जीवन में कई चीजों का आगमन होता है जिन्हें नए सिरे से सीखना और समझना पड़ता है। पीरियड्स का शुरू होना और उसी क्रम में सैनेटरी पैड्स इस्तेमाल करना ऐसी ही चीज़ें हैं। लेकिन दुखद है कि हम जिस तरह के समाज में
रहते हैं वहां किशोरियों को इसके प्रति उस हद तक जागरुक नहीं किया गया है, यहां तक कि बहुत बड़ी संख्या में वयस्क महिलाएं खुद इसकी पहुंच से महरूम हैं। बीते समय पैडमैन जैसी जागरुक करने वाली फिल्में भी आईं, जिसके साथ बहुत बड़े सेलिब्रिटी भी इस विषय में जागरूकता अभियान चला रहे हैं। यह सकारात्मक है, लेकिन फिर भी एक शोध के अनुसार देश में केवल 18 फीसदी महिलाओं तक ही सैनेटरी हाइजीन तक पहुंच है। आज भी खासकर ग्रामीण क्षेत्र में महिलाएं सैनेटरी पैड्स के इस्तेमाल के प्रति अनभिज्ञ हैं। स्त्री
रोगों से बचाव और सुरक्षा के क्रम में सैनेटरी पैड का इस्तेमाल सबसे पहली कड़ी है, जो एक स्त्री को बड़ी-बड़ी बीमारियों के जोखिम से बचाती हैं, जिनका हम अंदाज़ा भी नहीं लगा सकते। अक्सर खबरें आती हैं
कि माहवारी के दौरान साफ-सफाई न बरतने से महिलाओं को इन्फेक्शन हो गया और उनकी जान तक चली गई। ज़रूरी है कि हमारी महिलाएं, किशोरियां इसके प्रति जागरुक हों। आइए जानते हैं कैसे हैं सैनेटरी
पैड्स इतने ज़रूरी

संसाधनों के आभाव में या अन्य कारणों से महिलाएं कपड़े का इस्तेमाल करतीं हैं, जिसके पीछे यह सोच होती है कि वही कपड़ा बार-बार धो कर इस्तेमाल किया जाएगा, इसके लिए अक्सर वो घर में ही पुराने कपड़ों से पीस बना बना कर इस्तेमाल करतीं हैं, लेकिन सच्चाई है कि हर महीने होने वाले रक्तस्राव को लेकर साफ-सफाई नहीं बरते जाने से इन्फेक्शन का खतरा होता है। और एक ही कपड़े को बार-बार इस्तेमाल
करने से, भले ही वह अच्छी तरह से धुला हुआ क्यों न हो उसमें इन्फेक्शन की गुंजाइश बनी रहती है जो कि सैनेटरी पैड के साथ नहीं है, यह एक ही बार इस्तेमाल होता है।

समय बदलने के साथ-साथ सैनेटरी पैड्स में भी वैरायटी आई हैं, महिलाओं के काम काज और रोज़ की दिनचर्या को ध्यान में रखकर समय-समय पर शेप और कम्फर्ट के हिसाब से इनमें भी बदलाव आए हैं, जो किसी और परम्परागत तरीके में संभव नहीं है। और अब तो बीते समय से अल्ट्रा थिन पैड्स भी आने लगे हैं जो आकार में अन्य पैड्स के मुकाबले पतले होते हैं, जिनमे रक्त को सोखने के लिए महीन जेल बॉल्स होते हैं, जो लीकेज नहीं होने देते। इसलिए कपड़े के बजाय पैड्स अपनाएं। वे महिलाएं जो दफ्तरों में लगातार मीटिंग से लेकर फील्ड तक में काम करती हैं वे अपने समय के अंदाज़े से पैड बदल सकती हैं और अतिरिक्त तनाव से बची रहती हैं।

एक पैड को हर चार घंटे में एक बार बदलना होता है, हालांकि यह अवधि हरेक महिला के रक्तस्राव की अवधि और मात्रा पर निर्भर कर सकती है, लेकिन यही प्रक्रिया बार-बार कपड़े को धोना, अन्य कोई विकल्पहीनता की स्थिति से बचाती है। इससे स्कूल जाने वाली किशोरियों और खासकर बीमार महिलाओं को आराम रहता है।

1. ध्यान रखें पैड रखते समय पैंटी और वेजाइनल एरिया ड्राई हो क्योंकि अक्सर कई स्त्रियों को शिकायत रहती है कि उनका पैड टिकता नहीं या जगह से खिसक जाता है क्योंकि उसका स्टीकर सही जगह पर नहीं
चिपक पाता साथ ही रैशेज़ पड़ने की भी संभावना इसी वजह से होती है। यदि फिर भी दिक्कत आए तो डॉक्टर की सलाह लें लेकिन किसी भी परंपरागत तरीके को न अपनाएं।

2. हर चार घंटे में अपना पैड बदलें या चेक ज़रूर करें, क्योंकि हरेक पैड के सोखने की अवधि सामान्य तौर पर इतनी होती है। लगायें। यह प्रक्रिया पीरियड्स के दौरान दिन में तीन बार दोहराएं।