जरूरी है पौष्टिक भोजन 

गर्भवती स्त्री की शारीरिक मांगों में वृद्धि होने के कारण उस की भोजन संबंधी जरूरतें भी बढ़ जाती हैं। यदि इन बढ़ी हुई जरूरतों की पूर्ति न की जाए तो अल्पपोषण के परिणामस्वरूप कई बार भयंकर स्थिति उत्पन्न हो सकती है। अल्पपोषण से शिशु के भार में कमी हो जाती है। जन्म के समय स्वस्थ शिशु का औसतन भार 3.2 किलोग्राम होता है, परंतु यदि गर्भवती मां के भोजन में पोषक तत्त्वों की कमी होती है तो बच्चे के भार में बहुत कमी हो जाती है जिससे उसकी मृत्यु तक हो सकती है अल्पपोषण से रोगों का मुकाबला करने की शिशु की ताकत भी कम हो जाती है। कई बार बच्चों को रिकेट्स (रीढ़ की हड्डी तथा दूसरी लंबी हड्डियों का टेढ़ा हो जाना) और अनीमिया (खून की कमी) जैसे भयानक रोग हो जाते हैं। अल्पपोषण से मां का अपना स्वास्थ्य भी गिरने लगता है।

गर्भवती स्त्री की भोजन संबंधी आवश्यकताएं बढ़ अवश्य जाती हैं, परंतु इसका अर्थ यह नहीं कि उसका भोजन पूर्णतया बदल दिया जाए। किसी विशेष प्रकार का भोजन देना भी आवश्यक नहीं है। लेकिन इन अतिरिक्त आवश्यकताओं की पूर्ति अत्यावश्यक है। गर्भवती स्त्री को किन पोषक तत्त्वों की आवश्यकता होती है, इसकी जानकारी होना आवश्यक है।

जरूरी है अतिरिक्त कैलोरी 

गर्भवती स्त्री के शरीर में कई नए तंतुओं (टिशुओं) का निर्माण होता है। इस कारण उसके शरीर की कार्यशीलता में वृद्धि होती है। इसके अतिरिक्त कार्यशीलता के लिए अतिरिक्त कैलोरी (ऊष्मा) की आवश्यकता होती है। डॉक्टरों के अनुसार गर्भवती स्त्री को प्रतिदिन 300 अतिरिक्त कैलोरी की आवश्यकता होती है, परंतु स्त्री की कार्यशीलता के अनुसार इसे कम या अधिक भी किया जा सकता है। कई स्त्रियां इस अवस्था में आलसी हो जाती हैं। कई अन्य स्त्रियां समझती हैं कि इस अवस्था में उन का काम करना खतरनाक है, परंतु उनकी ये आशंकाएं निराधार हैं, क्योंकि इस अवस्था के दौरान स्त्री जितनी अधिक कार्यशील रहती है उतना बेहतर है, परंतु गर्भवती स्त्री को ज्यादा भारी चीजें नहीं उठानी चाहिए। अनाज और चिकनाई को पहले से अधिक मात्रा में लेने से अपेक्षित अतिरिक्त कैलोरी की पूर्ति हो सकती है। अत्यधिक मात्रा में चिकनाई के सेवन से अनावश्यक चरबी बढ़ेगी और इससे मोटापा बढ़ेगा, इसलिए चिकनाई का प्रयोग आवश्यकतानुसार करें।

अतिरिक्त प्रोटीन गर्भावस्था में जरूरी

गर्भ धारण करने की पूरी अवधि में 900-950 ग्राम अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता होती है। यदि इस अवधि को चार बराबर भागों में बांट दें तो पहले भाग में औसतन प्रतिदिन 0.4-0.5 ग्राम, दूसरे भाग में प्रतिदिन 3 ग्राम, तीसरे में प्रतिदिन 4.5 ग्राम तथा चौथे में प्रतिदिन 5.7 ग्राम अतिरिक्त प्रोटीन की आवश्यकता होगी। चूंकि पहले दो भागों में अतिरिक्त प्रोटीन की मात्रा कम ही होती है, इसलिए इसकी पूर्ति भोजन में प्रोटीन की क्वालिटी में सुधार करके की जा सकती है। लेकिन डॉक्टर सलाह देते हैं कि अंतिम चार महीनों में प्रतिदिन 10 से 14 ग्राम प्रोटीन के लिए मांस, मछली, अंडा आदि खाना चाहिए। शाकाहारी लोगों को अपने भोजन में दालें, खास तौर पर साबुत दालें तथा सोयाबीन को शामिल करना चाहिए। प्रोटीन की कमी से भ्रूण का विकास मंद पड़ जाता है।

भोजन में आयरन का होना अति आवश्यक

इसकी कमी से अकसर स्त्रियों में रक्त की कमी की शिकायत हो जाती है। इसलिए गर्भवती स्त्री के भोजन में लोहे की मात्रा 30 मिलीग्राम से बढ़ाकर 40 मिलीग्राम कर देनी चाहिए। लोहे के लिए हरी पत्तेदार सब्जियां, अंडा, मांस आदि का प्रयोग करना चाहिए, शाकाहारी स्त्रियों को हरी पत्तेदार सब्जियों के साथ-साथ चोकर सहित आटे का प्रयोग करना चाहिए। मौसम के अनुसार विभिन्न फलों का भी सेवन करना चाहिए।

मजबूत हड्डियों के लिए जरूरी है कैल्शियम

मजबूत हड्डियों व दांतों के लिए कैल्शियम एक महत्त्वपूर्ण पोषक तत्त्व है। शिशु को गर्भ में पर्याप्त मात्रा में कैल्शियम प्रदान करने के लिए गर्भवती स्त्री को भोजन में 0.5 ग्राम कैल्शियम की वृद्धि की जानी चाहिए। दूध कैल्शियम का एक अति उत्तम साधन है, इसलिए गर्भवती स्त्री के भोजन में दूध तथा दूध से बने खाद्य पदार्थ, हरी पत्तेदार सब्जियां, अंडा, मांस, मछली आदि का पर्याप्त मात्रा में समावेश किया जाना चाहिए।

निर्धारित मात्रा में विटामिन का सेवन भी आवश्यक

ये भी शरीर के सही विकास के लिए अनिवार्य है। इसलिए गर्भवती स्त्री के भोजन में इनका पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है। सामान्यत: गर्भवती स्त्री को अधिक विटामिनों की आवश्यकता नहीं होती, परंतु निर्धारित मात्रा में कमी भी नहीं होनी चाहिए। विटामिन ‘ए’ के लिए अंडा, मछली का तेल, घी, मक्खन, दूध और हरी सब्जियां तथा फलों का प्रर्याप्त मात्रा में समावेश होना चाहिए।

विटामिन ‘डी’ की कमी से हड्डियों में कैल्शियम की कमी हो जाती है और हड्डियों कमजोर हो जाती हैं। इससे बचने के लिए सर्दियों में धूप में बैठना चाहिए। इसके अतिरिक्त खाने में दूध, सूखे मेवे, मक्खन, घी, मछली व मछली का तेल आदि का प्रयोग किया जाना चाहिए। डॉक्टरों के अनुसार गर्भवती स्त्री को विटामिन ‘बी कॉम्पलेक्स’ अधिक मात्रा में लेने चाहिए। इस वृद्धि का मुख्य कारण कैलोरी में वृद्धि है। भोजन की अतिरिक्त कैलोरी को पचाने के लिए अतिरिक्त ‘बी कॉम्पलेक्स’ विटामिन की आवश्यकता होती है। दूध, अनाज, हरी सब्जियां, अंडा, मछली का तेल, घी, मक्खन आदि इन विटामिनों के उत्तम साधन हैं।

‘स्कर्वी’ जैसे भयानक रोग से बचने के लिए गर्भवती स्त्री के भोजन में कच्चे व ताजे फलों तथा सब्जियों का पर्याप्त मात्रा में होना आवश्यक है ताकि विटामिन ‘सी’ उपलब्ध हो सके। दालों को अंकुरित करके विटामिन ‘सी’ का अच्छा साधन बनाया जा सकता है। आंवला विटामिन ‘सी’ का सर्वोत्तम साधन है। इस अवस्था में पसीना बहुत आता है, इसलिए पानी की कमी को पूरा करने के लिए पर्याप्त मात्रा में पानी और पेय पदार्थ पीने चाहिए।

गर्भवती स्त्री को चाहिए कि वे दिन में चार बार भोजन करने की बजाए छ: सात बार भोजन करें। इससे उसे अतिरिक्त भोजन मिल सकेगा। यदि 10-11 बजे फलों का रस, मिल्क शेक, बिस्कुट आदि लिए जाए तो अच्छा रहेगा। रात्रि के भोजन के बाद दूध लिया जा सकता है। यदि आवश्यकता हो तो दोपहर के खाने के बाद और शाम की चाय के बीच तीन चार बजे आइस्क्रीम या दही लें। 

जरा सी असावधानी हो सकती शिशु के लिए घातक

स्त्री के लिए गर्भावस्था बहुत ही नाजुक और तनावपूर्ण होती है। इस अवधि में जरा सी असावधानी से बच्चे के स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है, इसलिए इस समय किसी भी ऐसे पदार्थ का सेवन न करें जिससे खतरा हो, चटपटे, ज्यादा मिर्च मसाले वाले, तले हुए खाद्य पदार्थ तथा मिष्ठान आदि से शिशु की पाचन शक्ति कमजोर हो जाती है। इसी प्रकार चाय, कॉफी, अल्कोहल युक्त उत्तेजक पेय पदार्थ भी हानिकारक होते हैं । ठंडा व बासी भोजन भी नहीं करना चाहिए।

यदि गर्भवती स्त्री अपने भोजन की ओर ध्यान दे तो निश्चय ही वह अपने भावी बच्चे को स्वस्थ जीवन प्रदान कर सकेगी। 

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