स्तनपान का आरंभ
शिशु को स्तनपान कराना एक स्वभाविक-सी प्रक्रिया है लेकिन फिर भी मांएँ इसे सही तरीके से नहीं कर पातीं। स्तनों में दूध भी अपने-आप उतर आता है लेकिन आपने यह हुनर सीखना है कि स्तन का निप्पल शिशु के मुंह में कैसे दिया जाए।
इस हुनर को सीखना ही पड़ता है। कई बार कुछ शारीरिक तकलीफों की वजह से यह प्रक्रिया पूरी नहीं हो पाती क्योंकि दोनों ओर से तर्जुबे की कमी होती है। माँ को दूध पिलाना नहीं आता और शिशु को दूध पीना नहीं आता।
अगर आपको पहले से इस बारे में थोड़ी जानकारी होगी तो यह मामला काफी हद तक संभल जाएगा। इसके लिए किताबों व कक्षाओं या ऑनलाइन जानकारी लें। बर्थिंग रूम में ही इसकी शुरूआत करें। अगर शिशु व आपको पहले-पहल स्तनपान का मौका न मिले तो निराश न हों। इसका मतलब यह नहीं कि आप इसकी शुरूआत नहीं कर पाएँगी। आप दोनों को ही इस बारे में काफी कुछ सीखना है। शिशु के भूख लगने पर स्वयं को तैयार रखें। कहीं ऐसा न हो कि वह भूख से रोए और आपकी आंखें नींद से बोझिल हो रही हों।
जितना हो सके, दूसरों की मदद लें। लेक्टेशन विशेषज्ञ भी इस बारे में मदद कर सकते हैं।यदि यह सुविधा न हो तो अनुभवी नर्स या डॉक्टर से मदद लें। वे आपको उपयोगी टिप्स दे सकते हैं।
स्तनपान व आई.सी.यू में शिशु
यदि नवजात शिशु को किसी कारण से आई.सी.यू (इन्सेंटिव केयर यूनिट) में रखा गया है तो स्तनपान कराना न छोड़ें यदि प्रत्यक्ष रूप से स्तनपान न करा सकें तो पंप की मदद से दूध निकाल कर बोतल से दें। पंप से दूध निकालने से दूध की आपूर्ति भी बनी रहेगी। शुभचिंतकों की भीड़ से बचें। मुलाकाती आपकी व शिशु की इस प्रक्रिया में बाधा दे सकते हैं आपको एक आरामदायक माहौल बनाना है। पूरी एकाग्रता के साथ शिशु को स्तनपान कराना है ताकि दोनों ओर से भरपूर संतुष्टि मिल सके।
यदि शिशु की शुरूआत धीमी हो तो निराश न हों। हो सकता है कि उसे भी डिलीवरी की थकान हो। नवजात शिशु को नींद भी बहुत आती है। उनके पास पहले से कुछ दिन का पोषण होता है इसलिए खुलकर भूख लगने पर उनके पास पर्याप्त मात्रा में दूध पीने की ताकत भी आ जाएगी।
शिशु को बोतल के दूध से बचाएँ। कहीं ऐसा न हो कि वह स्तनपान करने से पहले फार्मूला दूध से ही अपना पेट भर लें बोतल के दूध से उसकी भूख भी शांत नहीं होगी और उसे उपयोगी कोलोस्ट्रम भी नहीं मिल पाएगा। अगर सप्लीमेंट्री खुराक दे भी रही हैं तो उसे स्तनपान के आसपास न दें उसे बोतल का चस्का पड़ गया तो मुश्किल होगी क्योंकि उसमें दूध पीने में कम मेहनत लगती है। हो सकता है कि स्तनपान में उसकी रुचि ही खत्म हो जाए।
दिन में कम से कम 8 से 12 बार दूध पिलाएँ। दूध भी पूरा बनेगा। शिशु भी प्रसन्न रहेगा। अगर चार घंटे बाद दूध पिलाएंगी तो दूध भी नहीं बन पाएगा और स्तनों में रक्तसंकुलता हो जाएगी। शिशु को सहीपोजीशन में दूध पिलाएं जोकि निप्पलों में सूजन या दर्द न बन जाए। यदि पोजीशन सही हो तो आप कितनी भी देर आराम से दूध पिला सकती हैं।
शिशु को दोनों स्तनों से दूध पिलाएँ। एक स्तन खाली होने के बाद दूसरा स्तन मुंह से लगाएँ। इस तरह उसकी भूख भी शांत होगी और पूरा पोषण भी मिलेगा। उसे एक ही स्तन से पूरा दूध पीने दें। यदि वह चाहे तो उसे दूसरा स्तन दें लेकिन जबरदस्ती न करें।याद रखें कि आपने अगली बार भरे हुए स्तन से दूध पिलाना है। यही क्रम बनाए रखें।
स्तनपान कैसे कराएँ
कोई शांत सी जगह चुनें। शांत जगह पर आपको भी आराम मिलेगा और शिशु भी आराम से अपना पेट भर सकेगा। अपने पास कोई पेय पदार्थ रखें। यह तेज गर्म न हो वरना यह शिशु पर छलक सकता है।यदि आपको खाना खाए काफी देर हो गई हो तो कोई पौष्टिक स्नैक्स भी साथ-साथ खाएँ।
अपने पास कोई किताब रख लें लेकिन स्तनपान के दौरान किताब पढ़ते समय, बीच-बीच में शिशु पर भी नजर डालें। शुरूआती दिनों में टी.वी. चलाने से काफी बाधा हो सकती है, फोन भी न लें। उसे,वॉइस मेल पर डाल दें या किसी दूसरे को फोन उठाने दें।
शिशु को आरामदायक तरीके से उठाने के लिए गोद में तकिया रख लें। बिना सहारे न उठाने से बाजुओं में ऐंठन या दर्द हो सकता है। यदि हो सके तो टाँगे भी ऊंची रखें। शिशु का मुँह अपने निप्पल की ओर करके लिटाएँ। उसका पूरा शरीर आपकी ओर होना चाहिए। सही पोजीशन होने से आप भी स्तनपान से जुड़ी कई तकलीफों से बच जाएँगीं।
पहले कुछ सप्ताहों में स्तनपान की दो पोजीशन उचित बताई जाती हैं। पहली है‘क्रासओवर होल्ड’‒एक हाथ से शिशु के सिर को सहारा दें व दूसरे हाथ से उसका पूरा शरीर संभालें। फिर शरीर संभालने के बाद उसी हाथ से अपना निप्पल उसके मुँह में डालें। स्तन को हल्के से दबाएँ ताकि उसके भार से शिशु का नाक न दबे। अब आप स्तनपान कराने के लिए तैयार हैं।
दूसरी पोजीशन ‘फुटबॉल होल्ड’ कहलाती है। इसे ‘क्लच होल्ड’ भी कहते हैं। सी-सैक्शन के बाद यह काफी फायदेमंद होती है क्योंकि इससे पेट पर फालतू दबाव नहीं पड़ता। अगर आपकी छातियाँ बड़ी हैं या शिशु प्रीमेच्योर है या आप जुड़वां को दूध पिला रही हैं तो शिशु को अधलेटी मुद्रा में लिटाएँ। उसके हाथ पैर आपकी बाजू के नीचे हों। एक हाथ से उसके सिर को सहारा दें व दूसरे हाथ से स्तन संभालें। जब आपको अच्छी तरह स्तनपान कराना आ जाएगा तो आप चित्र में दी गई स्थिति के अनुसार ‘क्रेडल होल्ड’ भी अपना सकती हैं।
निप्पल को शिशु के नाक के पास से निचले होंठ तक ले जाएँ ताकि वह चौड़ा मुँह खोल सके। इस तरह स्तनपान के दौरान उसका निचला होंठ नहीं दबेगा। यदि वह अपना सिर घुमा ले तो उसे प्यार से वापिस लौटा लाएँ।
जब शिशु मुंह खोल ले तो स्तन को आगे की ओर लाने की बजाए उसके मुँह को स्तन के पास लाएँ। जब माँ स्तन को जबरन शिशु के मुंह में देती है तो कई तरह की परेशानियां हो सकती हैं। अपनी पीठ सीधी रखते हुए, शिशु को स्तन के पास लाएं।
शिशु को निप्पल अपने मुँह में लेने से दूध नहीं निकलेगा। उसके आसपास का कुछ हिस्सा भी शिशु के मुँह में जाना चाहिए क्योंकि वही दूध ग्रंथियाँ हैं जिन्हें दबाने से दूध निकलता है। कई शिशु तो भूखे होने पर स्तन का कोई भी हिस्सा चूसने लगते हैं, चाहे दूध न निकले। इससे स्तन पर चोट पहुँच सकती है।
यदि स्तन से शिशु का नाक दबे तो स्तन को अंगुली से दबाएँ शिशु को थोड़ा ऊँचा उठा कर सांस लेने दें लेकिन इस प्रक्रिया में एरिओना से उसकी पकड़ ढीली न पड़ने दें।
अगर शिशु का मुँह फूल रहा है तो पता चल जाएगा कि उसके मुँह में दूध की पूरी धार जा रही है। यदि वह दूध पीना बंद करने के बाद भी स्तन न छोड़े तो अचानक खींचने से निप्पल में दर्द हो सकता है। शिशु के मुंह के एक कोने में अंगुली डाल कर थोड़ी हवा निकलने दें। फिर धीरे से निप्पल बाहर निकालें।
शिशु को खाली पेट ज्यादा देर तक सोने न दें। अगर वह पिछले चार घंटे से सो रहा है तो अब उसे दूध पिलाने के लिए जगाना होगा। उसके भारी कपड़े हटा दें ताकि नींद खुल जाए।
उसे गोद में उठाकर धीरे से पीठ मलें। हाथों-पैरों की मालिश करें या माथे पर एक-दो बूंद पानी डालें।
ज्यों ही वह जाग जाए। दूध पिलाने की पोजीशन में आ जाएं । या सोते हुए शिशु को अपनी नंगी छाती पर लिटाएँ। आपकी छाती की सुगंध ही उसे उठाने के लिए काफी होगी।
चीखने-चिल्लाने वाले शिशु को दूध न दें। भूखे शिशु का रोना बंद करने के लिए उसे थोड़ा हिलाएं-डुलाएँ या मुँह में अंगुली डालकर बहला दें। जब तक निप्पल उसके मुँह में आएगा। वह काफी हद तक शांत हो चुका होगा। शांत रहें, स्तनपान कराते समय स्वयं ही बेचैन न हों। स्तनपान से पहले आसपास का माहौल शांत करें। थोड़ी गहरी सांसें लें, संगीत सुनें।तनाव से दूध बनने की प्रक्रिया में बाधा आ सकती है। यदि शिशु भी तनाव में आ गया तो वह पेट भरकर दूध नहीं पी पाएगा।
रिकॉर्ड रखें
आपको हर बार भरे स्तन से दूध पिलाना है। इसके लिए अपने हाथ में एक कड़ा पहनें। जब एक स्तन से दूध पिला लें तो कड़े को दूसरे हाथ में पहन लें। अगली बार आपको कड़े वाले हाथ की ओर वाले स्तन से दूध पिलाना होगा।
स्तनपान सही तरीके से शुरू हो जाए तो शिशु के दूध का रिकार्ड रखें। उसके सूखे व पीले डायपर कितने रहे। उसने दिन में कितनी बार, कितनी देर तक दूध पिया। डॉक्टर यह रिकार्ड देखकर ही अंदाजा लगा लेंगे कि उसे पर्याप्त मात्र में पोषण मिल रहा है या नहीं। उसके वजन से भी आपको पता चल जाएगा कि उसे पूरा दूध मिल रहा है या नहीं। दिन में कम से कम 6 डायपर मूत्र वाले तथा कम से कम तीन मल वाले होने चाहिए।
स्तनों की रक्त संकुलता
कोलोस्ट्रम तक तो सब ठीक रहता है लेकिन इसके बाद जब छातियों में दूध उतरता है तो वे काफी बड़ी व सख्त हो जाती हैं। जिनमें छूने से भी दर्द होता है। यह अवस्था 24 से 48 घंटे में सामान्य हो जाती है ऐसे स्तनों से स्तनपान कराना, मां व शिशु दोनों के लिए थोड़ा तकलीफ देह हो सकता है। इस दौरान होने वाली तकलीफ से बचाव के लिए निम्नलिखित उपाय आजमाए जा सकते हैं
- नर्सिंग पोजीशन बदलती रहें व एक स्तन खाली होने पर ही दूसरा स्तन शिशु के मुंह में दें।
- दर्द की वजह से स्तनपान को न टालें। शिशु जितना कम दूध पिएगा, तकलीफ उतनी बढ़ेगी।
- स्तनपान के बाद आइसपैक लगाएं। स्तनों पर ठंडी पत्ता गोभी के पत्ते लगाने से भी राहत मिलेगी।
- दूध पिलाने से पहले स्तनों का हल्का सेंक करें। गुनगुने पानी में डूबे कपड़ों को स्तनों पर रखें। वे नरम पड़ जाएंगे।
- जिस स्तन से शिशु दूध पी रहा हो, उसकी हल्के हाथ से मालिश करें।
- बढ़िया नर्सिंग ब्रा पहनें। यह ज्यादा तंग न हो। ऐसे कपड़े न पहनें जिनमें स्तनों का दम घुट जाए।
- हर छाती से अपने दोनों हाथों से दबा कर थोड़ा दूध निकालें। इस तरह निप्पल भी नरम होंगे और शिशु स्तन पर अपनी पकड़ बना पाएगा।
- तेज दर्द से राहत पाने के लिए टाइलीनोल या फिर कोई दूसरी हल्की दर्द निवारक दवा लें।
थोड़ा धीरज रखें जी
हां, स्तनपान से जुड़ी शुरूआती तकलीफें लंबे समय तक नहीं रहतीं। मां का स्तनपान शिशु का नैसर्गिक अधिकार है और वह बड़ी आसानी से अपना अधिकार ले लेता है। तब तक आपको कुछ ऐसे प्रयास करने हैं, जिनसे दूध के उत्पादन में बाधा न आए।
स्तनपान से जुड़ा आहार
स्तनपान कराने से प्रतिदिन 500 कैलोरी लगती हैं इसलिए आपके आहार में अतिरिक्त 500 कैलोरी होनी चाहिए। आहार में मात्र की बजाय गुणवत्ता पर ध्यान दें। हालांकि आप पिछले नौ महीनों में पौष्टिक खान-पान के कई तरीके सीख चुकी हैं या उन्हें अपना भी रही हैं लेकिन यहां थोड़ा और ध्यान देना जरूरी है। स्तनपान से जुड़े आहार के नियमों का पालन करें।
दूध का रिसाव
स्तनपान के पहले कुछ सप्ताह में स्तनों से कभी भी दूध का रिसाव हो सकता है। यह आपके स्तन से फुहार बनकर भी निकल सकता है। यह कभी भी, बिना किसी चेतावनी के हो सकता है। अचानक ही गीलेपन का एहसास होता है और पैड या स्वेटर उठाने से पहले ही आपके कपड़ों पर गीलापन दिखने लगता है। ऐसे हालात में झेंपने या शर्मिंदा होने की बजाय इसका इंतजाम कर लें क्योंकि यह एक सामान्य प्रक्रिया है। कई बार सोते समय गर्म पानी से नहाते समय या शिशु के रोने पर भी दूध निकलने लगता है। अगर शिशु नियमित समय पर दूध पीने लगा है तो नियमित अंतराल पर दूध रिस सकता है। अगर वह एक स्तन से दूध पी रहा है तो दूसरे स्तन से दूध आ सकता है। वैसा हमेशा नहीं, कभी-कभी ही होता है। पहली बार मां बनने वाली महिलाओं के साथ ऐसा अधिक होता है। स्तनपान का समय व्यवस्थित होने के बाद इस रिसाव में काफी कमी आ जाती है। आप इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपना सकती हैं।
अपने पास नर्सिंग पैड रखें ताकि दूध पिलाने के बाद आप उनका इस्तेमाल कर सकें। याद रखें कि इन्हें भी डायपर की तरह गीला होने पर बदलना पड़ेगा। ऐसे पैड न लें जो प्लास्टिक या वाटरप्रूफ लाइनर वाले हों। उनकी नमी के कारण निप्पलों में तकलीफ हो सकती है। कई महिलाएँ इस्तेमाल के बाद फेंकने वाले पैड लगाती हैं तो कई सूती कपड़ा लगाती हैं जो धुलकर दोबारा काम आ जाता है। अपने बिस्तर का ध्यान रखें। अगर सोते समय ज्यादा दूध रिसता है तो अपनी चादर हर रोज बदलें।
रिसाव से बचने के लिए दूध न निकालें। इस तरह तो पंपिंग करने से ज्यादा दूध बनेगा और रिसेगा। जरूरत से ज्यादा बहाव को रोकने की कोशिश करें। पहले कुछ सप्ताह में ऐसा करने पर दूध की गांठें बन सकती हैं इसलिए जब स्तनपान का क्रम व्यवस्थित हो जाए तो बहाव रोकने के लिए आप छातियों के ओर बाजुएं बांध सकती हैं या अकेले में निप्पल दबा सकती हैं।
क्या खाएँ
प्रोटीन: 3 सर्विंग
कैल्शियम 5 सर्विंग, आयरन युक्त भोजन: 1 या इससे अधिक सर्विंग, विटामिन सी: 2 सर्विंग, हरी पत्तीदार व पीली सब्जियाँ व फल : 3 से 4 सर्विंग दूसरे फल व सब्जियां 1 से अधिक सर्विंग। साबुत अनाज व कांप्लैक्स कार्ब, 3 से अधिक उच्च वसा युक्त आहार, 8 गिलास से ज्यादा पानी व जूस आदि। शिशु के सर्वांगीण मस्तिष्क के विकास के लिए डीएम युक्त आहार, प्रसव पूर्व विटामिन प्रतिदिन शिशु के बड़े होने के साथ-साथ कैलोरी की मात्र बढ़ानी होगी। यदि उसे फार्मूला देंगी तो आपको कैलोरी की मात्र घटानी होगी।
क्या न खाएँ:– स्तनपान के दौरान मदिरा का सेवन न करें। हां शिशु को दूध पिलाने के बाद आप एक गिलास ले सकती है। ताकि अगले कुछ घंटों में उसका असर घट जाए थोड़ी-बहुत कॉफी दोबारा शुरू कर सकती हैं। इसके अलावा गैस बनाने वाला भारी भोजन न करें। यदि आपके परिवार में किसी को या आपको एलर्जी है तो ऐसा भोजन न करें। जिससे एलर्जी हो सकती है। कोई भी जड़ी-बूटी युक्त खाद्य पदार्थ लेने से पहले उस पर लिखा लेबल पढ़ लें।
आपका भोजन व शिशु:– शिशु को मां के दूध से ही कई तरह के स्वाद मिल जाते हैं। यदि आप विविध प्रकार के भोजन करेंगी तो बड़ा होने पर शिशु भी खाने-पीने में ज्यादा जिद नहीं करेगा। इसके अलावा ऐसे खाद्य पदार्थ न खाएँ, जिनसे आपको तकलीफ होती हो, ये शिशु के लिए भी नुकसानदायक हो सकते हैं।

निप्पलों में घाव
नाजुक निप्पलों के कारण स्तनपान कई बार तकलीफदेह हो जाता है। वैसे अधिकतर महिलाओं के निप्पल स्तनपान कराने लायक हो जाते हैं व उन्हें कोई मुश्किल नहीं होती। कई माँए जो स्तनपान कराते समय शिशु को सही तरह से नहीं उठातीं या जिनके शिशु बहुत जोर से चूसते हैं, उन्हें निप्पलों में दर्द व घाव की समस्या का सामना करना पड़ता है। इसके लिए निम्नलिखित उपाय अपनाए जा सकते हैं:
शिशु को सही तरीके से उठाएँ। शिशु का मुंह स्तन की ओर हो। अपने स्तनपान की स्थिति बदलती रहें ताकि निप्पल के आसपास के हिस्से पर एक समान दबाव पड़े। अपने निप्पलों को थोड़ी सांस लेने दें। घर में दर्द भरे निप्पलों को थोड़ी देर कपड़ा हटाकर छोड़ दें। उन पर ऐसा कपड़ा न पहनें,जिससे चुभन या तकलीफ हो।
उन्हें सूखा रखें। नर्सिंग पैड गीला होते ही बदलें। नर्सिंग पैड में प्लास्टिक का लाइनर न हो। इससे नमी बढ़ जाती है। अगर आप उमस वाले माहौल में रहती हैं तो दूध पिलाने के बाद स्तनों को कुछ मिनट तक ब्लो ड्रायर के आगे रखें। इससे काफी आराम मिलेगा हालांकि यह कहना मुश्किल है कि इस दौरान कोई आ गया तो कैसा दृश्य होगा। दूध से ही उपचार करें। स्तनों का दूध ही उनके घाव भर सकता है। दूध पिलाने के बाद स्तनों पर लगा दूध न पोंछें या दूध पिलाने के बाद कुछ बूंद दूध निकाल कर निप्पलों पर मल दें। ब्रा पहनने से पहले निप्पल सूखने दें।
इन्हें मलें। निप्पलों की पसीने व तैल ग्रंथियों से कुदरतन सुरक्षा होती है। वे इन्हें तैलीय बनाए रखते हैं लेकिन निप्पलों में दरार आने पर बाजार में उपलब्ध ‘लेनोलिन’ की मदद ली जा सकती है। दूध पिलाने के बाद ‘लेनसिनोह’ दवा लगाएँ लेकिन पैंशलियमजैली युक्त पदार्थों व वैसलीन का प्रयोग न करें। निप्पलों को साबुन, एल्कोहल या वाइन से धोने की बजाय पानी का प्रयोग करें। शिशु कीटाणुओं से पूरी तरह सुरक्षित हैं और आपका दूध उसके लिए अमृत समान है। आप ठंडे पानी में डूबे टी बैग इस्तेमाल करें। इन्हें निप्पलों पर रखें। चाय के तत्त्व घाव को राहत देंगे व जख्म भरेंगे।
दोनों स्तनों पर बराबर ध्यान दें। निप्पलों को मजबूत बनाने का एक ही तरीका है कि उनका इस्तेमाल किया जाए। दोनों स्तनों को बराबर दूध बनाने के लिए जरूरी है कि दोनों को एक सा समय दिया जाए। अगर एक निप्पल में ज्यादा तकलीफ है तो इसका इस्तेमाल कम करें। थोड़ा आराम आते ही दोनों ओर से दूध पिलाएँ क्योंकि एक ही ओर से दूध पिलाने पर दूध बनने में कमी आ सकती है।
दूध पिलाने से पहले थोड़ा शांत हो जाए तब शिशु को दूध पीने के लिए जोर से निप्पल नहीं चूसना पड़ेगा और आपको ज्यादा दर्द नहीं होगा।
घावों को राहत देने के लिए स्तनपान से पहले ‘टाइलीनोल’ लें। निप्पलों में पड़ी दरारों पर नजर रखें। इनकी वजह से संक्रमण भी हो सकता है। यदि दरार से किसी दूध की गांठ में कीटाणु घुस जाएं तो ऐसा हो सकता है।
जब स्तन पान में आए उलझन
एक बार स्तनपान कराने का क्रम व्यवस्थित हो जाए तो कोई दिक्कत नहीं आती लेकिन कभी-कभी छोटी-मोटी उलझन हो सकती है।
दूध की गांठ बनना:- कई बार दूध की गांठ बन जाती है और दूध चढ़ जाता है। इसमें स्तन पर छोटा लाल गूमड़ दिखता है, सही इलाज न होने पर संक्रमण भी हो सकता है। बेहतर इलाज तो यही है कि शिशु को उसी स्तन से दूध पिलाएँ ताकि वह पूरी तरह खाली हो जाए। अगर शिशु यह काम पूरा न कर सके तो अपने हाथों या ब्रेस्ट पंप की मदद से इसे करें।आपकी ब्रा इतनी तंग न हो कि वह उन गांठों पर ज्यादा दबाव डालें। नर्सिंग की पोजीशन भी बदलती रहें। गर्म सेंक, या मालिश से भी आराम आ सकता है। अगर शिशु को स्तनपान के समय सही पोजीशन में लिटाया जाए तो उसके चिबुक से भी अच्छी मालिश हो सकती है। शिशु जितना ज्यादा दूध पीएगा, गांठ उतनी आसानी से खत्म हो जाएगी।
छाती का संक्रमण:– कई बार एक या फिर दोनों स्तनों में संक्रमण भी हो जाता है। यह स्तनपान के वक्त कभी भी हो सकता है। कई बार निप्पल की दरारों से, कीटाणु स्तनों में प्रवेश कर जाते हैं। तनावग्रस्त माएँ इसका जल्दी शिकार होती हैं। इसके लक्षणों में प्रमुख हैं‒तेज दर्द, सख्ती, लाली, गर्माहट, स्तनों की सूजन, हल्की सर्दी लगना, 101 या 102 तक बुखार होना। ऐसे लक्षण सामने आते ही डॉक्टर के पास जाने में देर न करें। इसमें आपको आराम, एंटीबायोटिक्स, दर्दनिवारक दवाएँ, तरल पदार्थों की अधिक मात्रा व नम गर्म सेंक की जरूरत होगी। दवाएँ लेना शुरू करने के 2-3 दिन में ही काफी आराम आ जाएगा। अगर तब तक आराम न आए तो डॉक्टर को बताकर कोई और एंटीबायोटिक दवाएँ लें। इलाज के दौरान भी शिशु को स्तनपान कराएं।
शिशु के कीटाणुओं से ही संक्रमण हुआ है इसलिए उनसे अब कोई हानि नहीं होगी। एंटीबायोटिक दवाएँ भी सुरक्षित होती हैं। स्तनों से दूध खाली होता रहेगा तो उसकी गांठें भी नहीं बनेंगी। अगर दूध पिलाने से काफी दर्द हो तो गर्म पानी के टब में लेटकर पंप से दूध निकालें, इससे दर्द घट जाएगा। उस समय इलैक्ट्रिक पंप का इस्तेमाल न करें।
अगर इलाज में देरी हो या उसे रोक दिया जाए तो लक्षण काफी बिगड़ने लगते हैं।
सिजेरियन के बाद स्तनपान
सिजेरियन के कितने समय बाद आप शिशु को स्तनपान करा पाएँगी यह काफी हद तक आपकी व शिशु की स्थिति पर निर्भर करता है। अगर आप दोनों ठीक है तो रिकवरी रूम में ही स्तनपान शुरू कराया जा सकता है। अगर आपको एनस्थीसिया दिया गया है या शिशु को नर्सरी में रखा गया है तो आपको इंतजार करना पड़ सकता है। अगर 12 घंटे बाद भी स्तनपान शुरू न हो सके तो आप पंप की मदद से कोलोस्ट्रम निकाल सकती हैं ताकि उसे शिशु को पिलाया जा सके।
पहले-पहल दूध पिलाने में थोड़ी तकलीफ हो सकती है। आप कोशिश करें कि चीरे पर कम से कम दबाव पड़े। शिशु के नीचे तकिया लगाएँ, करवट के बल लेटें या फिर उसे फुटबॉल की तरह उठाएँ। स्तनपान कराने के कुछ ही दिन में सारी दिक्कतें घट जाएँगी।
जुड़वां या इससे अधिक शिशुओं का स्तनपान
दो बच्चों को स्तनपान कराना अपने-आप में काफी चुनौतीपूर्ण लगता है। हालांकि एक बार आपको इसकी आदत पड़ जाए तो आप दो-तीन शिशुओं को भी आसानी से दूध पिला सकती हैं।
इसके लिए आपको निम्नलिखित बातों पर ध्यान देना चाहिए‒
बढ़िया हो खानपान:– डेयरी खाद्य पदार्थों की भरपूर मात्रा लें। शिशु के बड़ा होने के साथ-साथ आपको अपनी कैलोरी की मात्रा भी बढ़ानी चाहिए। अगर आप उसे साथ में फार्मूला दूध भी दे रही हैं तो उसी हिसाब से कैलोरी की मात्रा घटेगी। अपने भोजन में प्रोटीन व कैल्शियम की मात्रा भी बढ़ाएं
पंप करें:– अगर शिशु नर्सरी में है और स्तनों में दूध की मात्रा बढ़ानी चाहती हैं तो इलैक्ट्रिक पंप का इस्तेमाल करें। तब आप थोड़ा चैन से सो पाएंगी ।हालाँकि कभी कभी पंप का इस्तेमाल फायदेमंद हो सकता है ।
दो शिशुओं को एक साथ स्तन पान:– क्या आप दोनों शिशुओं को एक साथ स्तनपान कराने के लिए तैयार हैं । अगर आपका शिशु चुस्त है तो वह 10 से 15 मिनट में अपना पेट भर लेगा और आपके लिए किसी वरदान से कम नहीं होगा ।
घर के काम में मदद लें:- बच्चों के साथ घर के काम में किसी की मदद लें ताकि आपकी ऊर्जा बनी रहे और पूरा दूध बने ।
डिनर में विविधता:– आपके दोनों शिशुओ की भूख व स्वाद में अंतर है इसलिए आपको दोनों की पूर्ति करनी है । अपने डिनर में विविधता लायें और पता लगाएं कि वे भर पेट दूध पी रहे हैं या नहीं ।
दोनों स्तनों से दूध पिलायें:– दो स्तनों से बारी-बारी से दूध पिलायें ताकि उनमें बराबर दूध उतरता रहे ।
मल्टीपलनर्सिंग
कुछ माँए जुड़वां में से एक ही शिशु को एक बार में दूध पिलाना पसंद करती हैं कई दोनों को एक साथ दूध पिलाती हैं ताकि उन्हें सारा दिन यही काम न करना पड़े। 1- आप एक पोजीशन में दोनों को ‘फुटबॉल होल्ड‘ की तरह पकड़ सकती हैं 2- दूसरी पोजीशन में क्रेडल होल्ड व फुटबाल होल्ड को मिलाया जाता है । सहारे के लिए तकिया लगाएँ व अपनी सुविधा के हिसाब से पोजीशन चुनें।
थोड़ा समय लगेगा
अभी आप काफी अस्त-व्यस्त हैं। मन व शरीर दोनों की हालत नाजुक है। आपको यह नहीं पता कि शिशु को चुप कैसे कराएँ। आपको उसके रोने के अलग-अलग मतलब पता नहीं चलते। आपको उसे नहलाना नहीं आता। डायपर बदलते समय वह पांव से गंदगी फैला देता है। दरअसल अभी आपको सही मायनों में ‘माँ’ बनने में समय लगेगा। हालांकि यह प्रक्रिया थोड़ी कठिन है लेकिन कुछ ही समय में आप सब सीख जाएंगी। मम्मा! अपने-आप को थोड़ा समय दें।
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