World Parkinson’s Day: पार्किंसन बढ़ती उम्र के लोगों में होने वाला डिजनरेटेड डिसऑर्डर है। यह मस्तिष्क के केंद्रीय तंत्रिका तंत्र (सेंट्रल नर्वस सिस्टम) में विकार संबंधी बीमारी है। इसमें मस्तिष्क के एक खास हिस्से के तंत्रिकाएं और कोशिकाएं कमजोर हो जाती हैं जो न्यूरोट्रांसमीटर डोपामिन का स्राव करती हैं। डोपामिन एक प्रकार का रसायन है जो शरीर के अन्य अंगों को कंट्रोल में रखता है और शरीर की गतिविधियों को सुचारू रूप् से चलाने में मदद करता है। डोपामिन रसायन का स्तर कम होने से मस्तिष्क के संदेश शरीर के विभिन्न हिस्सों तक नहीं पहुंच पाते। शरीर के विभिन्न अंगों पर नियंत्रण कम होने लगता है और वे कांपने लगते हैं। ध्यान न दिए जाने पर पार्किंसन गंभीर रूप ले सकता है और मरीज को दैनिक कामकाज में भी परेशानी हो सकती है। हालांकि एक बार पार्किंसन होने पर समस्या जिंदगी भर चलती हैं। लेकिन अगर इसका उपचार और एहतियात शुरुआती अवस्था पर शुरू हो जाए, तो मरीज सामान्य जिंदगी जी सकता है।
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क्या है लक्षण

पार्किंसन होने पर शरीर की गतिविधियां प्रभावित होती हैं। शुरुआती अवस्था में मरीज के हाथों में झनझनाहट होना, हाथ-पैर में कंपन होना, मांसपेशियों में अकड़न आना और दर्द महसूस होना, चलने की रफ्तार कम होना, मुंह और चेहरे पर कंपन होना, बोलते हुए जुबान लड़खडा जाना। समुचित उपचार न मिलने पर मरीज की स्थिति गंभीर भी हो सकती है। अग्रिम अवस्था में मरीज के बोलने, लिखने की क्षमता में कमी आने लगती है। मनोभ्रम या भ्रम रहना, तनाव, घबराहट रहने के कारण वह अपनी दिनचर्या के काम भी ठीक से नही कर पाता।
किसे है अधिक खतरा
आमतौर पर 50 साल से ज्यादा उम्र के लोगों में पार्किंसन होने का खतरा अधिक होता है। यह बीमारी महिलाओं की अपेक्षा पुरुषों में ज्यादा देखने को मिलती है। पारिवारिक इतिहास के कारण 40 साल से कम उम्र के लोगों में भी पार्किंसन डिजीज बढ़ने की आशंका रहती है। आनुवांशिक होने के कारण कई बच्चों में भी देखी जाती है जिसे जुबेनाइल पार्किंसन कहते हैं। इनके अलावा सिर में चोट लगने, ब्रेन स्ट्रोक, ब्रेन हैमरेज, ब्लड क्लाॅटिंग, ब्रेन ट्यूमर से तंत्रिका तंत्र में हुई क्षति भी पार्किंसन होने की संभावना रहती है।
कैसे होता है डायग्नोज
पार्किंसन की पुष्टि के लिए क्लीनिकल डायग्नोज किया जाता है। मरीज की केस हिस्ट्री, लक्षण, जांच से पता लगाया जाता है कि मरीज की पार्किंसंस की किस अवस्था में है। बीमारी से उसकी दिनचर्या और गतिविधियां कितनी प्रभावित है। पार्किंसंस की कोई दूसरी वजह की जांच करने के लिए एमआरआई या सिटी स्कैन भी कराया जाता है।
आहार

- एंटीऑक्सीडेंट और पौष्टिक तत्वों से भरपूर आहार के नियमित सेवन से मरीज पार्किंसन से बचाव कर सकता है। क्योंकि ये मस्तिष्क में ऑक्सीडेटिव तनाव को कम करने में सहायक होते हैं और मरीज की स्थिमि में सुधार लाते हैं। आहार में ज्यादा से ज्यादा फल-सब्जियों, ड्राई फ्रूट्स, साबुत अनाज, दालों, अंडे, मछली और लीन मीट शामिल करना चाहिए।
- चाय-कॉफी जैसे कैफीनयुक्त चीजों का सेवन भी पार्किंसन के खतरे को कम करता है। एंटीऑक्सीडेंट से भरपूर ग्रीन टी दिमाग की कोशिकाओं में डोपामाइन के स्तर को बनाए रखने और पार्किंसन के जोखिम को कम करने में सहायक है।
- ओमेगा 3 फैटी एसिड मस्तिष्क में डोपामाइन रसायन के स्राव और संज्ञानात्मक क्रिया को बनाए रखता है जिससे पार्किंसन मरीजों के लिए फायदेमंद है। सालमन, काॅड और मैकेरल मछली, अंडे, अखरोट, सोयाबीन, सूरजमुखी के बीज इसके अच्छे स्रोत हैं।
- शरीर में विटामिन डी की अधिकता भी पार्किंसन को रोकने में सहायक है। इसके लिए ताजी हवा और धूप में कम से कम आधा घंटा जरूर बिताना चाहिए। गर्मियों में सुबह की धूप अच्छी है जबकि सर्दियों में दिन में किसी भी समय जा सकते हैं। इसके अलावा एनिमल-फैट भी विटामिन डी के अच्छा स्रोत है, इसलिए जहां तक हो सके इसे आहार में शामिल करना चाहिए। विटामिन डी शरीर में कैल्शियम के अवशोषण के लिए जरूरी है जिससे हड्डियां कमजोर हो जाती है और शारीरिक गतिविधियां सुचारू रूप से काम नहीं कर पातीं।
- सबसे जरूरी है हाइड्रेट रहने की यानी रोजाना 6-8 गिलास पानी जरूर पीना चाहिए।
व्यायाम
नियमित व्यायाम करने से मरीज पार्किंसन के जोखिम को तकरीबन 30 प्रतिशत कम कर सकता है। व्यायाम उसकी मांसपेशियों को सक्रिय रखकर कठोर और सख्त होने से बचाए रखते है, जिससे मरीज कंपन जैसी स्थिति कम झेलनी पड़ती है। नियमित रूप से एरोबिक एक्सरसाइज जहां शारीरिक-मानसिक स्वास्थ्य के लिए बेहतर है, वहीं मस्तिष्क में सूजन को कम कर पार्किंसन के विकास को रोकने में मदद करती है।
(डाॅ गुरबक्श सिंह, न्यूरोलाॅजिस्ट, नई दिल्ली)
