ब्रेन स्ट्रोक से बचने के लिए सर्तकता है जरूरी: World Stroke Day 2023
World Stroke Day 2023

World Stroke Day 2023: आज के बदलते परिवेश में गतिहीन लाइफ स्टाइल, खान-पान की गलत आदतें जैसे कारणों के चलते अनेक तरह की बीमारियां तेजी से बढ़ रही हैं जिनमें से एक है-ब्रेन स्ट्रोक, जो व्यक्ति को शारीरिक और मानसिक रूप से अपाहिज बना सकता है। और अगर ठीक समय पर समुचित उपचार न कराया जाए, तो जिंदगी के लिए खतरनाक साबित होता है। दुनिया भर में मौत का तीसरा बड़ा कारण स्ट्रोक है। एक रिसर्च के हिसाब से पिछले एक दशक में भारतीयों में ब्रेन स्ट्रोक की समस्या बढ़ रही है और इसके कारण हर साल हजारों लोग जान गवां रहे है। देश में हर तीन सैकंड में एक व्यक्ति इसका शिकार होता है और हर तीन मिनट मे एक व्यक्ति की असमय मौत हो जाती है। यह ऐसी खतरनाक जानलेवा बीमारी है जिसकी चपेट में उम्रदराज लोग ही नहीं, बड़े पैमाने पर युवा भी आ रहे हैं। स्ट्रोक के शिकार लोगों में करीब 28 प्रतिशत 65 वर्ष से कम आयु के होते हैं। 

क्या है ब्रेन स्ट्रोक

ब्रेन हमारे शरीर का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो पूरे शरीर को नियंत्रित करता है। ब्रेन में मौजूद लाखों सेल्स को सुचारू रूप से चलाने का काम करती हैं-रक्त धमनियां, जिनके माध्यम से ब्लड हृदय से ब्रेन तक लगातार सप्लाई होता है, फिर शरीर के विभिन्न हिस्सों तक पहुंचता है। ब्रेन के किसी हिस्से में अचानक या किसी कारणवश इन धमनियों में ब्लाॅकेज आ जाती है जिससे ब्लड सप्लाई नहीं हो पाती। ब्रेन के किसी भाग में ब्लड की सप्लाई बाधित होना या गंभीर रूप से कम होने के कारण स्ट्रोक या ब्रेन अटैक होता है। स्ट्रोक के कारण ब्रेन के टिशू में ऑक्सीजन और पोषक तत्वों की कमी होने पर कुछ ही मिनटों में ब्रेन सेल्स डेड होने लगते हैं। इसका असर शरीर पर पड़ता है-मरीज पैरालाइसिस, याददाश्त खो जाना, बोलने में मुश्किल होना जैसी स्थितियों में पड़ जाता है। कई बार ऑक्सीजन की सप्लाई रुकने से रक्त धमनियां फट जाती हैं और ब्रेन हेमरेज हो जाता है।

मेडिकल टर्म में ब्रेन स्ट्रोक दो प्रकार

इस्केमिक स्ट्रोक: ब्रेन में प्लाॅक जमने या ब्लड क्लाॅट बनने पर ब्लड वेसल्स ब्लाॅक हो जाती हैं। जिसकी वजह से इनमें ब्लड सर्कुलेशन बंद हो जाता है और व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। ब्रेन स्ट्रोक के तकरीबन 85 प्रतिशत मरीजों को इस्केमिक स्ट्रोक होता है।

हेमोरेजिक स्ट्रोक: ब्रेन में ब्लड वेसल्स के कमजोर होने या फट जाने पर खून का रिसाव होने लगता है। निकला रक्त ब्रेन के सेल्स या दूसरी ब्लड वेसल्स के आसपास जमने लगता है जिससे ब्लड सर्कुलेशन अवरूद्ध हो जाता है और व्यक्ति को ब्रेन स्ट्रोक हो जाता है। यह ब्रेन स्ट्रोक के करीब 15 प्रतिशत मरीजों में होता है जिसके पीछे हाई ब्लड प्रेशर से उनके ब्रेन की नसें फट जाती हैं।

ब्रेन स्ट्रोक का लगाएं अंदाज फास्ट (FAST) लक्षणों से-ब्रेन स्ट्रोक की पहचान के लिए मरीज में यदि नीचे दिए गए लक्षण दिखें, तो परिवार या आस-पास लोगों को उसे तुरंत डाॅक्टर के पास ले जाना चाहिए-

F-फेस (चेहरा)- एक तरफ का चेहरा लटक रहा हो या झुका हुआ हो।
A-आर्म- मरीज अपना एक हाथ या दोनो हाथ ऊपर न उठा पा रहा हो।
S-स्पीच- बोलने में दिक्कत हो रही हो, उसकी आवाज लडखडा रही हो, या वह अजीब तरीके से बोल रहा हो। उसकी कही बात समझ न आ पा रही हो।
T-टाइम-अगर मरीज में इनमें से कोई भी लक्षण दिखें, तो ऐसे अस्पताल में संपर्क करें जहां न्यूरोलाॅजिस्ट और न्यूरो सर्जन हों।

कारण

World Stroke Day
World Stroke Day-Stroke Reason

ब्रेन स्ट्रोक के कई रिस्क फैक्टर्स हैं। ब्रेन को ब्लड सप्लाई करने वाली रक्त वाहिकाओं के क्षतिग्रस्त होने का मुख्य कारण आर्टेरियो-स्क्लेरोसिस है। इससे वाहिकाओं की दीवारों में वसा का जमाव हो जाता है, वे सिकुड़ जाती हैं और ब्लड सप्लाई में बाधा आती है। उम्र बढ़ने के साथ होने की अधिक संभावना रहती है। इसके अलावा ब्रेन स्ट्रोक बढ़ने के पीछे इन कारणों का हाथ रहता है-

  • अनहेल्दी लाइफ स्टाइल, एक्टिव न होना
  • बढ़ता मोटापा
  • ध्रूमपान और एल्कोहल पदार्थो अधिक सेवन
  • न्यूट्रीशियन से भरपूर बैलेंस डाइट के बजाय फास्ट फूड और जंक फूड का क्रेज
  • हाई ब्लड प्रेशर
  • बढ़ताकोलेस्ट्राॅल लेवल
  • हृदय रोग-एट्रियल फाइबिलेशन जैसी बीमारी होना
  • फैमिली हिस्ट्री हो

उपचार

स्ट्रोक होने पर जल्द से जल्द समुचित उपचार किए जाने पर ब्रेन की क्षति और संभावित जटिलताओं को कम किया जा सकता है। बशर्ते कि स्ट्रोक को पहचान कर होने के 3 घंटे के भीतर यदि मरीज को समुचित उपचार मिलना शुरू हो जाए तो रिकवरी जल्दी हो सकती है। प्राथमिक स्तर पर इसके उपचार के लिए ब्लड सप्लाई को सुचारु और सामान्य करने की कोशिश की जाती है ताकि ब्रेन सेल्स को क्षतिग्रस्त होने से बचाया जा सके। ब्रेन में मौजूद ब्लड क्लाॅट्स का पता लगाने के लिए अल्ट्रा साउंड, सिटी स्कैन, एमआरआई किया जाता है। इससे पता चल जाता है कि स्ट्रोक इस्कीमिक है या हैमरेजिक। ब्रेन में बना ब्लड क्लाॅट कितना बड़ा है और ब्रेन के किस हिस्से में है।

ब्रेन स्ट्रोक के उपचार के लिए मूलतः दो तरीके अपनाए जाते हैं- ओपन और इंडोवैस्कुलर तकनीक या कायलिंग। ओपन तकनीक में ब्रेन में सर्जरी में सर्जरी करके नष्ट हुई ब्लड वाहिकाओं में क्लिप लगाकर रक्तस्राव का रोका जाता है। इंडोवैस्कुलर तकनीक में पैर में छोटा-सा छेद करके कैथेटर के विशिष्ट प्रकार के कायल को प्रभावित वाहिकाओं तक पहुंचाया जाता है। यह तकनीक रक्तस्राव को तो रोकती है, क्षतिग्रस्त ब्लड वाहिकाओं को ठीक भी करती है। इसे अधिकतर ब्रेन हैमरेज के उपचार में उपयोग किया जाता है।

इस्केमिक स्ट्रोक में बने क्लाॅट्स को हटाने के लिए ब्लड वाहिकाओं में क्लॉट बस्टिंग इंजेक्शन दिए जाते है। ब्लड फ्लो बनाए रखने के लिए खून पतला करने के लिए टिशू प्लाजमिनोजेन एक्टिवेटर या टीपीए मेडिसिन दी जाती है। इसके अलावा ब्लड क्लाॅट्स को हटाने के लिए एंजियोप्लास्टी, कैरोटिड एंडारटेरेक्टाॅमी सर्जरी और आल्टर्ड ब्लड फ्लो सर्जरी की जाती है। हेमोरेजिक स्ट्रोक में ब्रेन के बाहरी हिस्से की ब्लड वाहिकाओं में जमें ब्लड को हटाने के लिए क्लाॅट रिमूवल क्रेनियोटोमी सर्जरी की जाती है।

नाॅर्मल लाइफ जीने में ये थेरेपी हैं असरदार

स्ट्रोक झेल चुके मरीज को जीवन जीने लायक बनाने में कई डाॅक्टर मदद करते हैं। इन्हें चलने-फिरने और बैलेंस बनाने में फिजीकल थेरेपिस्ट मदद करते हैं। ऑक्यूपेशनल थेरेपिस्ट उन्हें स्वयं खाने, नहाने, कपड़े पहनने जैसी दैनिक कार्यकलापों को करने की ट्रेनिंग देते है। स्पीच लैंग्वेज पैथेलाॅजिस्ट उन्हें ठीक तरह बोलने में मदद करते है। इनमें फिजियोथेरेपिस्ट डाॅक्टर का रोल सबसे अहम होता है क्योंकि उनके द्वारा कराई जाने वाली एक्सरसाइज से मरीज फिजीकली इंडिपेंडेंट होता है।

क्या रखें सावधानी

  • जीवनशैली में बदलाव लाना बेहद जरूरी है।
  • संयमित जीवनशैली अपनाएं। सोने-जागने, खाने-पीने, काम और फिजीकल एक्टिविटी का समय नियत करें।
  • डायबिटीज, हाइपरटेंशन जैसी बीमारियां हो तो रेगुलर चेकअप और बिना नागा दवाइयों का सेवन कर यथासंभव कंट्रोल में रखें।
  • जंक फूड, फास्ट फूड या प्रोसेस्ड फूड से परहेज करें। यह ब्लड क्लाॅट्स को बढ़ावा देता है। हेल्दी और न्यूट्रीशियन से भरपूर आहार का सेवन करें।
  • स्वस्थ वजन या बीएमआई पैरामीटर मेंटेन करें। मेेटाबाॅलिक सिंड्रोम होने पर ब्रेन स्ट्रोक का रिस्क बढ़ता है।
  • रोजाना फिजिकल एक्टिविटीज जरूर करें। रोजाना कम से कम 30 मिनट या सप्ताह में 150 मिनट माॅडरेट इंटेसिटी में एक्सरसाइज करें। इसमें आप अपनी पसंद और क्षमतानुसार कोई भी एक्टिविटी कर सकते है जैसे-ब्रिस्क वाॅक, कार्डियो एक्सरसाइज, ऐरोबिक्स, डांस, स्वीमिंग, साइकलिंग आदि।
  • स्मोकिंग, एल्कोहल या मादक द्रव्यों के सेवन से परहेज करें।
  • यथासंभव वातावरण प्रदूषण से बचें।
  • रात को कम से कम 7-8 घंटे की नींद जरूर लें।

( डाॅ दिनेश कुमार सती, न्यूरोसर्जन स्पेशलिस्ट,  नई दिल्ली)