Eyes Care Tips: आज के डिजीटल युग में लाइफस्टाइल ओरिएंटेड डिजीज काफी मात्रा में सिर उठा रही हैं। जिनमें नज़र कमजोर होना भी एक है। पढ़ाई, ऑफिस वर्क से लेकर सोशल कनेक्शन-ज्यादातर कंप्यूटराइज हो गया है। ऊपर से दिन-रात सोशल मीडिया खासकर रील्स देखने के नशा इसे और बढ़ावा दे रहा है। रियल और रील्स का फर्क धुंधला होता जा रहा है। लोगों का कीमती वक्त रील्स बनाने या देखने में गुजर रहा है। आलम यह है कि लंबे समय तक मोबाइल, कंप्यूटर स्क्रीन को देखने से छोटे-छोटे बच्चों की आंखों की सेहत में बदलाव आ रहा है, नजर कमजोर हो रही हैं और चश्मे का नंबर बढ़ रहा है।
इस दिशा में हुई रिसर्च के मुताबिक 18 साल से कम उम्र के बच्चे अगर लगातार मोबाइल फोन या कंप्यूटर पर लगे रहते हैं और बाहर नहीं निकलते, सन एक्सपोजर नहीं होता-उनकी आंखें में माइनस का नंबर या मायोपिया का चश्मा चढ़ सकता है। आंकडों पर नज़र डालें तो चीन में 94 लोगों को चश्मा लग गया है, कोरिया में 90 प्रतिशत, सिंगापुर में 88 प्रतिशत लागों को चश्मा लग गया है। भारत में भी यही ट्रेंड आता जा रहा है जिसके पीछे यही वजह है- लंबे समय तक मोबाइल पर काम करना।
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कैसे होता है नुकसान

असल में आंखों को नुकसान पहुंचाने में इलेक्ट्राॅनिक गैजेट्स की स्क्रीन में से निकलती ब्लू रेज़ की अहम् भूमिका रहती है। हालांकि आधुनिक गैजेट्स में हाई-रिज़ाल्यूशन स्क्रीन या एंटी-ग्लेर मैट होने के कारण ब्लू रेज़ की इंटेंसिटी कम है। लेकिन स्क्रीन के सामने आइज़ ब्लिंक रेट कम हो जाता है। यानी नाॅर्मल इंसान एक मिनट में 18-20 बार आंखों को झपकाता है। लेकिन स्क्रीन के सामने व्यक्ति का फोकस स्क्रीन देखने पर रहता है जिसकी वजह से आइज ब्लिंक करने का नंबर कम हो जाता है। यानी 8-10 रह जाता है। इस वजह से आइज ब्लिंक न होने से आंखों को नुकसान पहुंचता है। ब्लिंक करने से पलकें आंखों में मौजूद आंसू को पूरी आंख में फैला देती है जो लुब्रीकेटिंग इफेक्ट का काम करते है। स्क्रीन देखते हुए ब्लिंक न करने से आंसू आंख में ठीक तरह फैल नहीं पाते और आंखों में ड्राइनेस या स्ट्रेन की शिकायत होने लगती है। इसे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम कहा जाता है।
मोबाइल की रील्स रात को देखने का ट्रेंड ज्यादा है। रात को सोने से पहले बेड पर मोबाइल इस्तेमाल करते समय अक्सर लोग तेड़ा होकर देखते हैं। जिसमें एक आंख तकिये की वजह से बंद हो जाती है और दूसरी से स्क्रीन देखते रहते हैं। इससे उनमें ट्रांजिडेंट विजन लाॅस की स्थिति आ सकती है। यानी कुछ समय के लिए वो आंख से धुंधला दिखने लगता है क्योंकि उसकी मसल्स स्पाज्म में चली जाती है। मोबाइल से निकलने वाली ब्लू लाइट आंखों की नजर के लिए नुकसानदायक तो है ही, साथ ही इससे स्लीप साइकल डिस्टर्ब होता है। रात को नींद आने में परेशानी होती है।
क्या होती हैं समस्याएं
इसकी वजह से आंखों की मसल्स थक जाती हैं और आंखों में रूखापन, धुंधला दिखना, दर्द होना, आंखों का लाल होना, खुजली, जलन, थकान, आंखों से पानी आना जैसी समस्याएं होने लगती है। आंखें कमजोर होने लगती हैं।
अपनाएं 20ः20ः20 रूल

व्यक्ति कुछ लाइफस्टाइल मोडिफिकेशन से अपनी आंखों को ज्यादा खराब होने से बचा सकते हैं। कंप्यूटर या लैपटाॅप पर लगातार काम करने के से बचें। सबसे जरूरी है कि वो 20ः20ः20 का रूल फोलो करना चाहिए। व्यक्ति को एक बार में 20 मिनट ही काम करना चाहिए। 20 सेकंड की ब्रेक लें और 20 फुट दूर देखते हुए कम से कम 20 बार ब्लिंक करना चाहिए। इससे आंखों की को झपकाने की लय सामान्य हो जाएगी। आंखों के आंसू पूरी आंखों में फैल जाएंगे और आंखें लुब्रीकेंट रहेंगी। स्पाज़्म में गई आंखों की मसल्स को आराम मिलेगा और टियर फिल्म स्मूथ होंगी। आंखों को आराम मिलेगा। यथासंभव बड़ी स्क्रीन वाले कंप्यूटर या मोबाइल पर काम करें। उसका टेक्स्ट बड़ा हो ताकि आंखों पर तनाव न पडें। स्क्रीन को आंखों के लेवल से थोड़ा नीचे और कम से कम 20 इंच की दूरी पर रखकर देखें। इससे आंखों पर तनाव कम पड़ेगा। आंखों को स्ट्रेन से बचाने के लिए कंप्यूटर या लेपटाॅप की स्क्रीन पर स्क्रीन गार्ड जरूर लगवाएं।
जहां तक हो सके मोबाइल कंप्यूटर का टाइम रिस्ट्रिक्ट होना चाहिए। एक बार में स्क्रीन टाइम 20-25 मिनट की अवधि का रखें। उसके बाद थोड़ा-सा ब्रेक जरूर लें ताकि आंखों पर ज्यादा स्ट्रेन न पड़े। कोशिश करें कि रात को सोने से एक घंटा पहले मोबाइल से दूरी बना लेनी चाहिए। संभव न हो तो आंखों को बचाने के लिए ब्लू लाइट को एडजस्ट करना जरूरी है। मोबाइल फोन में ब्लू लाइट फिल्टर साॅफ्टवेयर होता है, उसे ऑन करके देखने से स्क्रीन कंफर्ट ज्यादा हो जाता है। सेल्फ मेडिकेशन न करके जल्द से जल्द डाॅक्टर से संपर्क करना चाहिए। डाॅक्टर द्वारा सुझाए गए लुब्रिकेटिंग ड्राॅप दिन में 3-4 बार जरूर डालनी चाहिए जो आंखों में आर्टिफिशियल टीयर्स बनाते हैं जिनसे आइज ड्राइनेस कम होती है।
(डाॅ नीलम अ़त्री, आइज स्पेशलिस्ट, दिल्ली)
