Ulcer – अल्सरों अर्थात् उदर की दीवारों में घावों का तात्कालिक कारण है अत्यधिक अम्ल-स्राव। विकल्प में, जठरीय-आंत्र अस्तर में कुछ अति हो गई है और यह अम्ल के प्रति अति संवेदनशील हो गई है। एस्पिरीन, कैफीन, निकोटीन और शराब गंभीर कारक उपादन है। व्यापक रूप से स्वीकार किया जाता है कि खाने की आदतों में परिवर्तन अंतर ला सकता है। सबसे आसान बात है 2-3 मुख्य भोजन के स्थान पर 6 छोटे भोजन किए जाने चाहिए।
गोविन्दवल्लभ पंत हॉस्पिटल, के चिकित्सकों ने रिर्पोट दी है कि दूध अल्सर ठीक नहीं करता और अधिक दूध वाला आहार वास्तव में अल्सर के उपचार को रोकते हुए हालत को और खराब कर देता है। दूध पीने वाले और दही खाने वाले लोगों को अल्सर कम हो सकता है, किंतु अल्सर के रोगी दूध-दही से लाभ प्राप्त नहीं कर सकते।
अल्सर के रोगी को अम्लीय या अम्ल पैदा करने वाले आहारों से बचने का प्रयास भी पेट में अम्ल के उत्पादन को प्रोत्साहित करता है। काली मिर्च, मिर्च पाउडर और तेज मसाले भी वही करते हैं। इनसे बचना चाहिये। वीयर, शराब, अन्य मादक पदार्थ पेयों से बचना चाहिये। इसी प्रकार गन्ने के रस और मैदा उत्पादों से बचना चाहिये। इस स्थिति से बचने के लिए निम्नलिखित खाद्यों का सेवन किया जा सकता है।
1. बंदगोभी का रस-स्टैन्फर्ड के डॉ. चेनी और केंद्रीय दवा अनुसंधान संस्थान, लखनऊ के भारतीय वैज्ञानिक पेट के अल्सर (ब्राणों) के लिए कच्ची बंद गोभी के रस का पूरी शक्ति से निर्देश करते हैं। बंद गोभी में अल्सर-विरोधी विटामिन यू होता है। इसके अतिरिक्त रस का सल्फर, क्लोरीन, आयोडीन यौगिक आंत्र प्रदेश और अमाशय के श्लेष्मा झिल्ली की सफाई करता है। इस रस में नमक न मिलाया जाये। इस उद्देश्य के लिए बंद गोभी की बाहरी पत्तियां अधिक सशक्त होती हैं। कभी-कभी बंद गोभी का रस गाजर के रस के साथ मिलाकर लीजिये।
2. कच्चा हरा केला- इसे उबाल कर, सेंक कर या अन्य प्रकार से पका कर अथवा पूर्ण बना कर लिया जा सकता है। यह पौष्टिक, गैस्ट्रिक और ग्रहणी अल्सरों के लिए अच्छा है। यह उदर के अस्तर को हानिप्रद रसों से सुरक्षा के रूप में गाढ़ा बनाता है। यह अमाशय अस्तर पर जैविक परिवर्तन आरोपित करता है और उदर के ब्राणित भागों की कोशिकाओं को भरता है।
3. भिंडी- शोधकर्ताओं ने पुष्टि की है कि चूर्ण की हुई सूखी भिंडियां शीघ्रता से दर्द से राहत देती हैं और पेप्टिक और गैस्ट्रिक अल्सर ठीक करती हैं। उनका चूर्ण उदर में संवेदनशील सतहों की सुरक्षा करता है।
4. पालक का रस-खीरा, अवोकैडो, शीरा और किण्विक की खमीर भी ब्राणों (अल्सर) के लिए अच्छे हैं।
5. शहद-अमाशय और आंतर ब्राणों के लिए अच्छा है।
6. बहु-असंतृप्त तेलों का लिनोलीक अम्ल अल्सर उत्प्रेरक तत्त्वों के दुष्प्रभावों के विरुद्ध सुरक्षा करने में सहायक है।
7. ब्राउन-चावल के पाउडर को पानी में उबालने से जो चावल का पानी प्राप्त होता है वह एक अच्छा शामक है और ब्राणों के लिए अच्छा है। कमोवेश यही आहार हृदय के छालों के लिए भी प्रभावी होंगे।
इसके अतिरिक्त निम्नलिखित आहारों का सेवन उत्तम होता है-
1. बेल का फल-अधपका बेल का फल पेचिश के लिए एक पूर्ण और विश्वासनीय औषधि है। गूदा एक चम्मच से निकाल कर खाया जा सकता है। यह गूदा सुखाकर, चूर्ण बनाकर, जब बेल का मौसम न हो, प्रयोग में लाया जा सकता है।
2. तोड़ (दही का पानी) और मट्ठा –पनीर अलग करने के बाद दूध का जो पानी वाला हिस्सा बचा रहता है, वह पेचिश के उपचार में लाभदायक है। मट्ठा भी सहायक होता है। लैक्टिक एसिड की उपस्थिति में पेचिश और अतिसार के कीटाणु बढ़ नहीं सकते।
3. लहसुन- आंत्र-संदूषण का सामना करने में मदद करता है। इसे कच्चा खाना चाहिये। यह शामक है, सफाई करता है और सूजन तथा जलन कम करता है।
4. केला- केला अतिसार में नियामक है। किशमिश भी अतिसार समेत सब आंत्र-जठरीय संदूषणों के विरुद्ध प्रभावी है।
5. अनार का छिलका- अनार का छिलका महीन पीस लिया जाये, इसका जोशांदा अतिसार के लिए अच्छा है। अनार का फल भी लाभप्रद है।
6. चावल-चावल भी पेचिश में लाभप्रद है जब मीठे फल दही के साथ लिया जायें।
7. पिसा हुआ जीरा- पिसा हुआ जीरा भी दही के साथ इन बिमारियों के लिए अच्छा है।
8. पपीते की पत्तियों-पपीते की पत्तियों में एक तत्त्व कार्पिन होता है जो पेचिश के संदूषण के विरुद्ध लाभदायक है। इन पत्तियों की चाय इस रोग में सहायक होती है।
9. जिन बच्चों में लगातार अतिसार रहता है उनमें विटामिन ए की कमी प्राय: रहती है। अत: ऐसे बच्चों को विटामिन ए देना वांछनीय है।
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