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खाने के लिए व किसी काम को करने के लिए हाथों का प्रयोग करना एक आम बात है, फिर इनकी सहायता से कोई वाद्य बजाना हो या कोई चित्र बनाना, लिखनेपढ़ने से लेकर इशारे आदि करने में इनका भरपूर उपयोग होता है, परंतु इनका इतना उपयोग इनका पूरा व सही उपयोग नहीं है। यह हथेली, अंगूठा और उंगलियां प्रकृति का सूक्ष्म रूप हैं। जो दिव्य ऊर्जा पंच तत्त्व के रूप में पूरे ब्रह्मïड में व्याप्त है वह अपने पूर्ण गुणों के साथ हमारे हाथों में भी विद्यमान है परंतु हमें इसका ज्ञान नहीं है। ‘मुद्रा विज्ञान या ‘मुद्रा चिकित्सा के माध्यम से हम न केवल बेहतर मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पा सकते हैं बल्कि ध्यान एवं योग में इन मुद्राओं की सहायता से परमात्मा को या परम सुख को भी उपलब्ध हो सकते हैं। ब्रह्मïड अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल इन पंच तत्त्वों से मिलकर बना है और मानव शरीर भी इन्हीं पांच तत्त्वों से मिलकर बना है। हथेली में मौजूद उंगलियां व अंगूठे पांचों तत्त्व की ऊर्जा को अपने भीतर छिपाए हुए हैं जिन्हें मुद्राओं के माध्यम से उपयोग में लाया जा सकता है। पांचों उंगलियां पांच तत्त्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं जैसे-
1. अंगूठा अग्नि तत्त्व को 2. तर्जनी यानी दूसरी उंगली वायु तत्त्व को, 3. तीसरी यानी मध्यमा उंगली आकाश तत्त्व को, 4. चौथी यानी अनामिका उंगली पृथ्वी तत्त्व को तथा पांचवीं यानी कनिष्का उंगली जल तत्त्व को दर्शाती है।
कैसे व कब करें?
मुद्राओं को कभी भी, कहीं भी उठते-बैठते, चलते-फिरते यहां तक कि लेटे-लेटे भी कर सकते हैं परंतु इनका लाभ पद्ïमासन, सुखासन या वज्रासन में करने से अधिक प्राप्त होता है। सुबह हो या शाम, रात हो या किसी यात्रा के दौरान इन्हें बाहर, बगीचे में, बंद कमरे में या ऑफिस में कहीं भी किया जा सकता है। इन्हें एक ही समय में दोनों हाथों से किया जा सकता है। मुद्रा के दौरान उंगलियों को साधारण रखें उनमें कोई तनाव, खिंचाव या कसाव न हो।
कितनी देर तक करें?
मुद्राओं से लाभ प्राप्त करने के लिए किसी भी मुद्रा को प्रारंभ में कम से कम दस मिनट तक अवश्य करना चाहिए फिर चाहे तो इस अवधि को तीस मिनट से लेकर एक घंटे तक बढ़ाया जा सकता है। यदि एक साथ लम्बे समय के लिए इन्हें करना मुश्किल हो तो आप इन्हें दो-तीन बार में भी कर सकते हैं। यदि इन मुद्राओं को जीवन में नियमित रूप से किया जाए तो साधारण कान के दर्द से लेकर हार्ट अटैक जैसे गंभीर रोग तक को ठीक किया जा सकता है। यूं तो रोगों के अनुसार एक दर्जन से भी अधिक मुद्राएं हैं परंतु हम यहां केवल उन्हीं मु
द्राओं का उल्लेख कर रहे हैं जो तनाव को कम कर एकाग्रता और आत्मविश्वास को बढ़ाती हैं। जैसे- ज्ञान मुद्रा, व्यान मुद्रा, अपान मुद्रा, उत्तर बोधि मुद्रा, ध्यानी मुद्रा, हाकिनी मुद्रा, त्रिमुख मुद्रा, शिव लिंग मुद्रा तथा अहम्कारा मुद्रा आदि।
1. ज्ञान मुद्रा
विधि– आराम से बैठें। अपनी पीठ और गर्दन को सीधी रखें। तस्वीर अनुसार अपनी तर्जनी यानी पहली उंगली और अंगूठे के टिप यानी अग्रभाग को हल्के दबाव के साथ मिलाएं और शेष तीनों उंगलियों को सीधा व ढीला रखें। सुखासन या पद्ïमासन में बैठकर, हथेली को अपने दोनों घुटनों पर आकाशोन्मुख रखें। रोज बीस से तीस मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करें।
लाभ– इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से मन शांत और स्थिर होता है। याददाश्त व एकाग्रता बढ़ती है। तनाव, अवसाद, चिंता, भय और अनिद्रा जैसे रोग दूर होते हैं। आध्यात्मिक उन्नति या आत्म जागरण के लिए यह मुद्रा विशेष उपयोगी है।
2. व्यान मुद्रा
विधि– आराम से बैठें। अपनी पीठ और गर्दन को सीधी रखें। चित्र अनुसार अपनी तर्जनी एवं मध्यमा उंगली के अग्रभागों को अंगूठे के अग्रभाग से हल्के दबाव के साथ मिलाएं तथा शेष दोनों उंगलियां सीधा व ढीली रखें। सुखासन में बैठकर, हथेली अपने दोनों घुटनों को आकाशोन्मुख रखें। रोज पंद्रह से बीस मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करें।
लाभ– इस मुद्रा के नियमित लाभ से तनाव व उच्च रक्तचाप की समस्या दूर होती है जो कि अच्छी पढ़ाई व एकाग्रता के लिए जरूरी है।
3. उत्तर बोधि मुद्रा
विधि– दोनों हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में फंसाए। तर्जनी उंगली एवं अंगूठे को अलग करके दोनों उंगलियों एवं अंगूठे के अग्रभाग को जोड़ ले। मुद्रा को कुछ इस तरह बनाएं कि उंगलियां आकाश की ओर हों तथा अंगूठा धरती की ओर हो। इस मुद्रा को गोद में नाभि के पास रखें। इस मुद्रा को कहीं भी, कभी भी, कितनी भी देर के लिए किया जा सकता है।
लाभ- इस मुद्रा से शरीर व मन में ऊर्जा का संचार होता है। आलस दूर होता है, तन-मन नई ताजगी से भरता है, जो कि एकाग्रता व कार्य एवं पढ़ाई आदि में सफलता के लिए जरूरी है। इससे अशांत और बेचैन मन शांत होता है। फेफड़ों में श्वास का उचित संचार होता है जिससे भीतर ताजगी बनी रहती है। तनी हुई नसें व श्वास शिथिल होती है। परीक्षा, मंच या इंटरर्व्यू आदि का भय नहीं रहता। स्वयं से जुड़ने के लिए, ध्यान एवं आत्म रूपांतरण के लिए भी यह मुद्रा प्रभावशाली है।
4. ध्यानी मुद्रा
विधि– दोनों हथेलियों को अपनी गोद में ऐसे रखें कि वह एक कटोरे का आकार लें। बायीं हथेली को नीचे और दायीं हथेली को उसके ऊपर रखें। दोनों अंगूठों के अग्रभाग को हल्के दबाव के साथ मिला लें। इसे सुखासन या पद्ïमासन में जितनी देर कर सकें उतना अच्छा है।
लाभ– ध्यान व साधना के लिए एक प्राचीन व पारंपरिक मुद्रा है इससे एकाग्रता शक्ति बढ़ती है, मन विचार शून्य और शांत होता है। यह मुद्रा जीवन में संतुलन लाती है।
5. हाकिनी मुद्रा
आज के समय में अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि वे हमेशा कुछ न कुछ भूल जाते हैं। लेकिन हाकिनी मुद्रा द्वारा आप अपने दिमाग की क्षमता और स्मरण शक्ति बढ़ा सकते हैं। यह मुद्रा व्यक्ति के एकाग्रता के स्तर को बढ़ाने में काफी प्रभावी मानी गई है। हाकिनी मुद्रा का संबंध छठे चक्र यानी तीसरी आंख से है। बहुत पहले मिले किसी व्यक्ति के बारे में याद करने या कुछ समय पहले पढ़ी गई किसी बात को याद करने में यह मुद्रा काफी मददगार साबित हो सकती है। कुछ नया सोचने पर भी इस मुद्रा को करने से बेहतर आइडिया आपके दिमाग में आ सकते हैं। बहुत सारे काम एक साथ करने पर या ज्यादा मानसिक कार्य करने पर भी इस मुद्रा को करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
विधि– अपने दोनों हाथों की उंगलियों और अंगूठों के अग्रभागों को आपस में मिलाएं व हाथों के बीच दूरी बनाए रखें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपकी हथेलियां आपस में जुड़ने न पाएं। दिमाग और स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए रोजाना 45 मिनट हाकिनी मुद्रा का अभ्यास करें या फिर 15-15 मिनट करके दिन में तीन बार अभ्यास करना पर्याप्त है। हाकिनी मुद्रा के अभ्यास के लिए कोई विशेष समय तय नहीं है। किसी भी समय इस मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है।
यह मुद्रा दिमाग के दाएं और बाएं हिस्से के बीच संतुलन स्थापित करने का काम करती है। दिमाग का बायां हिस्सा तार्किक विचारों से संबंधित है, जबकि दायां हिस्सा सृजन से। दिमाग के दोनों हिस्से जब एक साथ मिलकर काम करते हैं तो परिणाम बेहतर ही आते हैं।
यह मुद्रा स्मरण शक्ति बढ़ाती है। द्य इससे एकाग्रता के स्तर में वृद्धि होती है।
यह धैर्य में वृद्धि करने में सहायक है। द्य इस मुद्रा के अभ्यास से विचारों में स्पष्टïता आती है तथा निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है।
यह मुद्रा श्वसन प्रक्रिया में भी सुधार लाती है जिससे दिमाग को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त होती है। दिमाग में ऑक्सीजन का पर्याप्त संचरण दिमाग के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। द्य यह मुद्रा विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी है। इस मुद्रा से एकाग्रता में वृद्धि होती हजिससे लेक्चर के समय सुनी गई बातें उन्हें ठीक से याद रहती हैं और उनके परीक्षा परिणाम भी बेहतर होते हैं।
6. अपान मुद्रा
विधि– आराम से सुखासन या पद्ïमासन में बैठें। अपनी पीठ और गर्दन को सीधा रखें। चित्र अनुसार मध्यमा एवं अनामिका उंगली के अग्रभागों को अंगूठे के अग्रभाग से हल्के दबाव के साथ मिलाएं तथा शेष उंगलियों को सीधा व शिथिल रखें। हथेलियों को दोनों घुटनों पर आकाशोन्मुख रखें। रोज पंद्रह से बीस मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करें
लाभ– इस मुद्रा के नियमित लाभ से लिवर एवं गॉल-ब्लैडर संबंधी समस्याएं तो दूर होती ही हैं साथ ही आत्मविश्वास, धैर्य, स्थिरता एवं दिमागी संतुलन में भी सुधार होता है।
7. त्रिमुख मुद्रा
त्रिमुख मुद्रा बेहद प्रभावशाली व पारंपरिक मुद्रा है जो कि एकाग्रता का स्तर तथा स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए उपयोग में लाई जाती है।
विधि– दोनों हाथों की मध्यमा, अनामिका और कनिष्का उंगलियों के पोरों को आपस में जोड़कर रखें। ध्यान रहे हथेलियां आपस में जुड़ने न पाएं। इस मुद्रा का अभ्यास करने के लिए बिल्कुल सीधे रीढ़ की हड्डïी पर बिना कोई दबाव डाले आरामदायक स्थिति में बैठें। प्रतिदिन दस मिनट का अभ्यास लाभदायक है।
लाभ– आध्यात्मिक विकास व उन्नति में सहायक। द्य एकाग्रता, ध्यान तथा स्मरण शक्ति बढ़ान हेतु उपयोगी।
सिर दर्द में कमी या पूरी तरह इससे छुटकारा दिलाने में मददगार।
शरीर के आरोग्य में वृद्धि हेतु लाभदायक।
8. स्वीकार मुद्रा
विधि– तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के बीच जगह बनाए रखें। अंगूठे के नाखून का बाहरी निचला हिस्सा छोटी (कनिष्का) उंगली के नाखून से मिलाते हुए यह मुद्रा बनाएं।
लाभ– इस मुद्रा से भावनात्मक व आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होता है। निराशा व विरोधी परिस्थितियों की स्थिति में खुद को मजबूत बनाने तथा हताशा के भाव से बाहर निकालने के लिए इस मुद्रा का अभ्यास करें।
9. प्राण मुद्रा
विधि– कनिष्का और अनामिका दोनों उंगलियों को अंगूठे से स्पर्श करें। इसके बाद बाकी उंगलियों को सीधा रखें।
लाभ– प्राण मुद्रा हमें शक्ति व स्फूर्ति प्रदान करने में सहायक है।
10. अहम्कारा मुद्रा
विधि– अपनी तर्जनी उंगली को धीरे से मोड़ें और अंगूठे का ऊपरी हिस्सा तर्जनी उंगली के बीचोबीच ऊपरी हिस्से पर रखें। बाकी सभी उंगलियां सीधी रखें।
लाभ– इस मुद्रा के अभ्यास से आत्मविश्वास व आत्म दृढ़ता में वृद्धि होती है। किसी भी प्रकार के भय का सामना करने के लिए इस मुद्रा के अभ्यास से हिम्मत मिलती ह
11. शिवलिंग मुद्रा
शिव लिंग मुद्रा को ऊर्जादायक मुद्रा भी कहा जाता है। जब भी आप तनाव या किसी बात
12. शून्य मुद्रा
विधि– मध्यमा उंगली को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अंगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी उंगलियों को सीधा रखें।
लाभ– इस मुद्रा के अभ्यास से जागरुकता बढ़ती है तथा यह मुद्रा व्यक्ति को धैर्य जैसा गुण भी प्रदान करती है
परेशान हों तो ऐसे में आप इस मुद्रा के अभ्यास से स्वयं को बहुत ही ऊर्जान्वित महसूस करते हैं। विधि– अपने बाएं हाथ को प्याले (बाउल) की आकृति जैसा बनाएं। इसके बाद दाएं हाथ का मुक्का बनाकर बाएं हाथ के ऊपर रखें, अंगूठा ऊपर उठा होना चाहिए। अपने हाथों को पेट की सीध में रखते हुए इस मुद्रा का अभ्यास करें। इस मुद्रा को आप अपनी इच्छानुसार कितनी भी देर तक कर सकते हैं। वैसे दिन में दो बार 4 मिनट के लिए इस मुद्रा का अभ्यास करना फायदेमंद है। लाभ– इस मुद्रा को ऊर्जा संवर्धक मुद्रा माना जाता है। ऐसे में थकान, असंतुष्टिï या सुस्ती होने पर इस मुद्रा के अभ्यास द्वारा आप स्वयं को ऊर्जान्वित कर सकते हैं। द्य अवसाद की स्थिति से निपटने के लिए यह मुद्रा काफी प्रभावशाली है। द्य किसी भी प्रकार के मानसिक तनाव व दबाव की स्थिति में भी यह मुद्रा आपके लिए उपयोगी है।
करने के लिए बिल्कुल सीधे रीढ़ की हड्डïी पर बिना कोई दबाव डाले आरामदायक
स्थिति में बैठें। प्रतिदिन दस मिनट का
अभ्यास लाभदायक है।
लाभ- आध्यात्मिक विकास व उन्नति में
सहायक।
द्य एकाग्रता, ध्यान तथा स्मरण शक्ति बढ़ान
ेतु उपयोगी।
द्य सिर दर्द में कमी या पूरी तरह इससे
छुटकारा दिलाने में मददगार।
द्य शरीर के आरोग्य में वृद्धि हेतु लाभदायक।
8. स्वीकार मुद्रा
विधि- तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के
बीच जगह बनाए रखें। अंगूठे के नाखून का
बाहरी निचला हिस्सा छोटी (कनिष्का) उंगली
के नाखून से मिलाते हुए यह मुद्रा बनाएं।
लाभ- इस मुद्रा से भावनात्मक व
आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होता है। निराशा
व विरोधी परिस्थितियों की स्थिति में खुद
को मजबूत बनाने तथा हताशा के भाव से
बाहर निकालने के लिए इस मुद्रा का
अभ्यास करें।
9. प्राण मुद्रा
विधि- कनिष्का और अनामिका दोनों
उंगलियों को अंगूठे से स्पर्श करें।
इसके बाद बाकी उंगलियों को
सीधा रखें।
लाभ- प्राण मुद्रा हमें शक्ति व स्फूर्ति
प्रदान करने में सहायक है।
10. अहम्ïकारा मुद्रा
विधि- अपनी तर्जनी उंगली को धीरे से
मोड़ें और अंगूठे का ऊपरी हिस्सा तर्जनी
उंगली के बीचोबीच ऊपरी हिस्से पर रखें।
बाकी सभी उंगलियां सीधी रखें।
लाभ- इस मुद्रा के अभ्यास से
आत्मविश्वास व आत्म दृढ़ता में वृद्धि
होती है। किसी भी प्रकार के भय का
सामना करने के लिए इस मुद्रा के अभ्यास
से हिम्मत मिलती ह
12. शिवलिंग मुद्रा
शिव लिंग मुद्रा को ऊर्जादायक मुद्रा भी कहा
जाता है। जब भी आप तनाव या किसी बात
11. शून्य मुद्रा
विधि- मध्यमा उंगली को हथेलियों
की ओर मोड़ते हुए अंगूठे से उसके
प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी
उंगलियों को सीधा रखें।
लाभ- इस मुद्रा के अभ्यास से
जागरुकता बढ़ती है तथा यह मुद्रा
व्यक्ति को धैर्य जैसा गुण भी प्रदान
करती ह
े परेशान हों तो ऐसे में आप इस मुद्रा के
अभ्यास से स्वयं को बहुत ही ऊर्जान्वित
महसूस करते हैं।
विधि- अपने बाएं हाथ को प्याले
(बाउल) की आकृति जैसा बनाएं। इसके
बाद दाएं हाथ का मुक्का बनाकर बाएं
हाथ के ऊपर रखें, अंगूठा ऊपर उठा होना
चाहिए। अपने हाथों को पेट की सीध में
रखते हुए इस मुद्रा का अभ्यास करें। इस
मुद्रा को आप अपनी इच्छानुसार कितनी
भी देर तक कर सकते हैं। वैसे दिन में दो
बार 4 मिनट के लिए इस मुद्रा का अभ्यास
करना फायदेमंद है।
लाभ- इस मुद्रा को ऊर्जा संवर्धक मुद्रा माना
जाता है। ऐसे में थकान, असंतुष्टिï या सुस्ती
होने पर इस मुद्रा के अभ्यास द्वारा आप स्वयं
को ऊर्जान्वित कर सकते हैं।
द्य अवसाद की स्थिति से निपटने के लिए
यह मुद्रा काफी प्रभावशाली है।
द्य किसी भी प्रकार के मानसिक तनाव व
दबाव की स्थिति में भी यह मुद्रा आपके लिए
उपयोगी है।
खाने के लिए व किसी काम को करने के लिए हाथों का प्रयोग करना एक आम बात है, फिर इनकी सहायता से कोई वाद्य बजाना हो या कोई चित्र बनाना, लिखनेपढ़ने से लेकर इशारे आदि करने में इनका भरपूर उपयोग होता है, परंतु इनका इतना उपयोग इनका पूरा व सही उपयोग नहीं है। यह हथेली, अंगूठा और उंगलियां प्रकृति का सूक्ष्म रूप हैं। जो दिव्य ऊर्जा पंच तत्त्व के रूप में पूरे ब्रह्मïड में व्याप्त है वह अपने पूर्ण गुणों के साथ हमारे हाथों में भी विद्यमान है परंतु हमें इसका ज्ञान नहीं है। ‘मुद्रा विज्ञान या ‘मुद्रा चिकित्सा के माध्यम से हम न केवल बेहतर मानसिक व शारीरिक स्वास्थ्य पा सकते हैं बल्कि ध्यान एवं योग में इन मुद्राओं की सहायता से परमात्मा को या परम सुख को भी उपलब्ध हो सकते हैं। ब्रह्मïड अग्नि, वायु, आकाश, पृथ्वी और जल इन पंच तत्त्वों से मिलकर बना है और मानव शरीर भी इन्हीं पांच तत्त्वों से मिलकर बना है। हथेली में मौजूद उंगलियां व अंगूठे पांचों तत्त्व की ऊर्जा को अपने भीतर छिपाए हुए हैं जिन्हें मुद्राओं के माध्यम से उपयोग में लाया जा सकता है। पांचों उंगलियां पांच तत्त्वों का प्रतिनिधित्व करती हैं जैसे
अंगूठा अग्नि तत्त्व को 2. तर्जनी यानी दूसरी उंगली वायु तत्त्व को, 3. तीसरी यानी मध्यमा उंगली आकाश तत्त्व को, 4. चौथी यानी अनामिका उंगली पृथ्वी तत्त्व को तथा पांचवीं यानी कनिष्का उंगली जल तत्त्व को दर्शाती है।
कैसे व कब करें?
मुद्राओं को कभी भी, कहीं भी उठते-बैठते, चलते-फिरते यहां तक कि लेटे-लेटे भी कर सकते हैं परंतु इनका लाभ पद्ïमासन, सुखासन या वज्रासन में करने से अधिक प्राप्त होता है। सुबह हो या शाम, रात हो या किसी यात्रा के दौरान इन्हें बाहर, बगीचे में, बंद कमरे में या ऑफिस में कहीं भी किया जा सकता है। इन्हें एक ही समय में दोनों हाथों से किया जा सकता है। मुद्रा के दौरान उंगलियों को साधारण रखें उनमें कोई तनाव, खिंचाव या कसाव न हो।
कितनी देर तक करें?
मुद्राओं से लाभ प्राप्त करने के लिए किसी भी मुद्रा को प्रारंभ में कम से कम दस मिनट तक अवश्य करना चाहिए फिर चाहे तो इस अवधि को तीस मिनट से लेकर एक घंटे तक बढ़ाया जा सकता है। यदि एक साथ लम्बे समय के लिए इन्हें करना मुश्किल हो तो आप इन्हें दो-तीन बार में भी कर सकते हैं। यदि इन मुद्राओं को जीवन में नियमित रूप से किया जाए तो साधारण कान के दर्द से लेकर हार्ट अटैक जैसे गंभीर रोग तक को ठीक किया जा सकता है। यूं तो रोगों के अनुसार एक दर्जन से भी अधिक मुद्राएं हैं परंतु हम यहां केवल उन्हीं मुद्राओं का उल्लेख कर रहे हैं जो तनाव को कम कर एकाग्रता और आत्मविश्वास को बढ़ाती हैं। जैसे- ज्ञान मुद्रा, व्यान मुद्रा, अपान मुद्रा, उत्तर बोधि मुद्रा, ध्यानी मुद्रा, हाकिनी मुद्रा, त्रिमुख मुद्रा, शिव लिंग मुद्रा तथा अहम्कारा मुद्रा आदि।
ज्ञान मुद्रा
विधि- आराम से बैठें। अपनी पीठ और गर्दन को सीधी रखें। तस्वीर अनुसार अपनी तर्जनी यानी पहली उंगली और अंगूठे के टिप यानी अग्रभाग को हल्के दबाव के साथ मिलाएं और शेष तीनों उंगलियों को सीधा व ढीला रखें। सुखासन या पद्ïमासन में बैठकर, हथेली को अपने दोनों घुटनों पर आकाशोन्मुख रखें। रोज बीस से तीस मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करें। लाभ- इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से मन शांत और स्थिर होता है। याददाश्त व एकाग्रता बढ़ती है। तनाव, अवसाद, चिंता, भय और अनिद्रा जैसे रोग दूर होते हैं। आध्यात्मिक उन्नति या आत्म जागरण के लिए यह मुद्रा विशेष उपयोगी है।
2. व्यान मुद्रा
विधि- आराम से बैठें। अपनी पीठ और गर्दन को सीधी रखें। चित्र अनुसार अपनी तर्जनी एवं मध्यमा उंगली के अग्रभागों को अंगूठे के अग्रभाग से हल्के दबाव के साथ मिलाएं तथा शेष दोनों उंगलियां सीधा व ढीली रखें। सुखासन में बैठकर, हथेली अपने दोनों घुटनों को आकाशोन्मुख रखें। रोज पंद्रह से बीस मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करें। लाभ- इस मुद्रा के नियमित लाभ से तनाव व उच्च रक्तचाप की समस्या दूर होती है जो कि अच्छी पढ़ाई व एकाग्रता के लिए जरूरी है।
3. उत्तर बोधि मुद्रा
विधि- दोनों हाथों की उंगलियों को एक दूसरे में फंसाए। तर्जनी उंगली एवं अंगूठे को अलग करके दोनों उंगलियों एवं अंगूठे के अग्रभाग को जोड़ ले। मुद्रा को कुछ इस तरह बनाएं कि उंगलियां आकाश की ओर हों तथा अंगूठा धरती की ओर हो। इस मुद्रा को गोद में नाभि के पास रखें। इस मुद्रा को कहीं भी, कभी भी, कितनी भी देर के लिए किया जा सकता है। लाभ- इस मुद्रा से शरीर व मन में ऊर्जा का संचार होता है। आलस दूर होता है, तन-मन नई ताजगी से भरता है, जो कि एकाग्रता व कार्य एवं पढ़ाई आदि में सफलता के लिए जरूरी है। इससे अशांत और बेचैन मन शांत होता है। फेफड़ों में श्वास का उचित संचार होता है जिससे भीतर ताजगी बनी रहती है। तनी हुई नसें व श्वास शिथिल होती है। परीक्षा, मंच या इंटरर्व्यू आदि का भय नहीं रहता। स्वयं से जुड़ने के लिए, ध्यान एवं आत्म रूपांतरण के लिए भी यह मुद्रा प्रभावशाली है।
4. ध्यानी मुद्रा
विधि- दोनों हथेलियों को अपनी गोद में ऐसे रखें कि वह एक कटोरे का आकार लें। बायीं हथेली को नीचे और दायीं हथेली को उसके ऊपर रखें। दोनों अंगूठों के अग्रभाग को हल्के दबाव के साथ मिला लें। इसे सुखासन या पद्ïमासन में जितनी देर कर सकें उतना अच्छा है। लाभ- ध्यान व साधना के लिए एक प्राचीन व पारंपरिक मुद्रा है इससे एकाग्रता शक्ति बढ़ती है, मन विचार शून्य और शांत होता है। यह मुद्रा जीवन में संतुलन लाती है।
5. हाकिनी मुद्रा
आज के समय में अक्सर लोग शिकायत करते हैं कि वे हमेशा कुछ न कुछ भूल जाते हैं। लेकिन हाकिनी मुद्रा द्वारा आप अपने दिमाग की क्षमता और स्मरण शक्ति बढ़ा सकते हैं। यह मुद्रा व्यक्ति के एकाग्रता के स्तर को बढ़ाने में काफी प्रभावी मानी गई है। हाकिनी मुद्रा का संबंध छठे चक्र यानी तीसरी आंख से है। बहुत पहले मिले किसी व्यक्ति के बारे में याद करने या कुछ समय पहले पढ़ी गई किसी बात को याद करने में यह मुद्रा काफी मददगार साबित हो सकती है। कुछ नया सोचने पर भी इस मुद्रा को करने से बेहतर आइडिया आपके दिमाग में आ सकते हैं। बहुत सारे काम एक साथ करने पर या ज् यादा मानसिक कार्य करने पर भी इस मुद्रा को करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है। विधि- अपने दोनों हाथों की उंगलियों और अंगूठों के अग्रभागों को आपस में मिलाएं व हाथों के बीच दूरी बनाए रखें। इस बात का विशेष ध्यान रखें कि आपकी हथेलियां आपस में जुड़ने न पाएं। दिमाग और स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए रोजाना 45 मिनट हाकिनी मुद्रा का अभ्यास करें या फिर 15-15 मिनट करके दिन में तीन बार अभ्यास करना पर्याप्त है। हाकिनी मुद्रा के अभ्यास के लिए कोई विशेष समय तय नहीं है। किसी भी समय इस मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है। द्य यह मुद्रा दिमाग के दाएं और बाएं हिस्से के बीच संतुलन स्थापित करने का काम करती है। दिमाग का बायां हिस्सा तार्किक विचारों से संबंधित है, जबकि दायां हिस्सा सृजन से। दिमाग के दोनों हिस्से जब एक साथ मिलकर काम करते हैं तो परिणाम बेहतर ही आते हैं। द्य यह मुद्रा स्मरण शक्ति बढ़ाती है। द्य इससे एकाग्रता के स्तर में वृद्धि होती है।
यह धैर्य में वृद्धि करने में सहायक है। द्य इस मुद्रा के अभ्यास से विचारों में स्पष्टïता आती है तथा निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि होती है। द्य यह मुद्रा श्वसन प्रक्रिया में भी सुधार लाती है जिससे दिमाग को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन प्राप्त होती है। दिमाग में ऑक्सीजन का पर्याप्त संचरण दिमाग के स्वास्थ्य के लिए अच्छा है। द्य यह मुद्रा विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी है। इस मुद्रा से एकाग्रता में वृद्धि होती ह
जिससे लेक्चर के समय सुनी गई बातें उन्हें ठीक से याद रहती हैं और उनके परीक्षा परिणाम भी बेहतर होते हैं।
6. अपान मुद्रा
विधि- आराम से सुखासन या पद्ïमासन में बैठें। अपनी पीठ और गर्दन को सीधा रखें। चित्र अनुसार मध्यमा एवं अनामिका उंगली के अग्रभागों को अंगूठे के अग्रभाग से हल्के दबाव के साथ मिलाएं तथा शेष उंगलियों को सीधा व शिथिल रखें। हथेलियों को दोनों घुटनों पर आकाशोन्मुख रखें। रोज पंद्रह से बीस मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करें। लाभ- इस मुद्रा के नियमित लाभ से लिवर एवं गॉल-ब्लैडर संबंधी समस्याएं तो दूर होती ही हैं साथ ही आत्मविश्वास, धैर्य, स्थिरता एवं दिमागी संतुलन में भी सुधार होता है।
7. त्रिमुख मुद्रा
त्रिमुख मुद्रा बेहद प्रभावशाली व पारंपरिक मुद्रा है जो कि एकाग्रता का स्तर तथा स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए उपयोग में लाई जाती है। विधि- दोनों हाथों की मध्यमा, अनामिका और कनिष्का उंगलियों के पोरों को आपस में जोड़कर रखें। ध्यान रहे हथेलियां आपस में जुड़ने न पाएं। इस मुद्रा का अभ्यास करने के लिए बिल्कुल सीधे रीढ़ की हड्डïी पर बिना कोई दबाव डाले आरामदायक स्थिति में बैठें। प्रतिदिन दस मिनट का अभ्यास लाभदायक है। लाभ- आध्यात्मिक विकास व उन्नति में सहायक। द्य एकाग्रता, ध्यान तथा स्मरण शक्ति बढ़ान ेतु उपयोगी। द्य सिर दर्द में कमी या पूरी तरह इससे छुटकारा दिलाने में मददगार। द्य शरीर के आरोग्य में वृद्धि हेतु लाभदायक।
8. स्वीकार मुद्रा
विधि- तर्जनी उंगली को मोड़कर अंगूठे के बीच जगह बनाए रखें। अंगूठे के नाखून का बाहरी निचला हिस्सा छोटी (कनिष्का) उंगली के नाखून से मिलाते हुए यह मुद्रा बनाएं। लाभ- इस मुद्रा से भावनात्मक व आध्यात्मिक स्तर पर लाभ होता है। निराशा व विरोधी परिस्थितियों की स्थिति में खुद को मजबूत बनाने तथा हताशा के भाव से बाहर निकालने के लिए इस मुद्रा का अभ्यास करें।
9. प्राण मुद्रा
विधि- कनिष्का और अनामिका दोनों उंगलियों को अंगूठे से स्पर्श करें। इसके बाद बाकी उंगलियों को सीधा रखें। लाभ- प्राण मुद्रा हमें शक्ति व स्फूर्ति प्रदान करने में सहायक है।
10. अहम्ïकारा मुद्रा
विधि- अपनी तर्जनी उंगली को धीरे से मोड़ें और अंगूठे का ऊपरी हिस्सा तर्जनी उंगली के बीचोबीच ऊपरी हिस्से पर रखें। बाकी सभी उंगलियां सीधी रखें। लाभ- इस मुद्रा के अभ्यास से आत्मविश्वास व आत्म दृढ़ता में वृद्धि होती है। किसी भी प्रकार के भय का सामना करने के लिए इस मुद्रा के अभ्यास से हिम्मत मिलती ह
12. शिवलिंग मुद्रा शिव लिंग मुद्रा को ऊर्जादायक मुद्रा भी कहा जाता है। जब भी आप तनाव या किसी बात
11. शून्य मुद्रा
विधि- मध्यमा उंगली को हथेलियों की ओर मोड़ते हुए अंगूठे से उसके प्रथम पोर को दबाते हुए बाकी उंगलियों को सीधा रखें। लाभ- इस मुद्रा के अभ्यास से जागरुकता बढ़ती है तथा यह मुद्रा व्यक्ति को धैर्य जैसा गुण भी प्रदान करती ह े
परेशान हों तो ऐसे में आप इस मुद्रा के अभ्यास से स्वयं को बहुत ही ऊर्जान्वित महसूस करते हैं। विधि- अपने बाएं हाथ को प्याले (बाउल) की आकृति जैसा बनाएं। इसके बाद दाएं हाथ का मुक्का बनाकर बाएं हाथ के ऊपर रखें, अंगूठा ऊपर उठा होना चाहिए। अपने हाथों को पेट की सीध में रखते हुए इस मुद्रा का अभ्यास करें। इस मुद्रा को आप अपनी इच्छानुसार कितनी भी देर तक कर सकते हैं। वैसे दिन में दो बार 4 मिनट के लिए इस मुद्रा का अभ्यास करना फायदेमंद है। लाभ- इस मुद्रा को ऊर्जा संवर्धक मुद्रा माना जाता है। ऐसे में थकान, असंतुष्टिï या सुस्ती होने पर इस मुद्रा के अभ्यास द्वारा आप स्वयं को ऊर्जान्वित कर सकते हैं। द्य अवसाद की स्थिति से निपटने के लिए यह मुद्रा काफी प्रभावशाली है। द्य किसी भी प्रकार के मानसिक तनाव व दबाव की स्थिति में भी यह मुद्रा आपके लिए उपयोगी है।
1. ज्ञान मुद्रा
विधि- आराम से बैठें। अपनी पीठ और
गर्दन को सीधी रखें। तस्वीर अनुसार
अपनी तर्जनी यानी पहली उंगली और
अंगूठे के टिप यानी अग्रभाग को हल्के
दबाव के साथ मिलाएं और शेष तीनों
उंगलियों को सीधा व ढीला रखें।
सुखासन या पद्ïमासन में बैठकर, हथेली
को अपने दोनों घुटनों पर आकाशोन्मुख
रखें। रोज बीस से तीस मिनट तक इस
मुद्रा का अभ्यास करें।
लाभ- इस मुद्रा के नियमित अभ्यास से
मन शांत और स्थिर होता है। याददाश्त व
एकाग्रता बढ़ती है। तनाव, अवसाद,
चिंता, भय और अनिद्रा जैसे रोग दूर होते
हैं। आध्यात्मिक उन्नति या आत्म जागरण
के लिए यह मुद्रा विशेष उपयोगी है।
2. व्यान मुद्रा
विधि- आराम से बैठें। अपनी पीठ और
गर्दन को सीधी रखें। चित्र अनुसार अपनी
तर्जनी एवं मध्यमा उंगली के अग्रभागों को
अंगूठे के अग्रभाग से हल्के दबाव के साथ
मिलाएं तथा शेष दोनों उंगलियां सीधा व
ढीली रखें। सुखासन में बैठकर, हथेली
अपने दोनों घुटनों को आकाशोन्मुख रखें।
रोज पंद्रह से बीस मिनट तक इस मुद्रा का
अभ्यास करें।
लाभ- इस मुद्रा के नियमित लाभ से
तनाव व उच्च रक्तचाप की समस्या दूर
होती है जो कि अच्छी पढ़ाई व एकाग्रता
के लिए जरूरी है।
3. उत्तर बोधि मुद्रा
विधि- दोनों हाथों की उंगलियों को एक
दूसरे में फंसाए। तर्जनी उंगली एवं अंगूठे
को अलग करके दोनों उंगलियों एवं अंगूठे
के अग्रभाग को जोड़ ले। मुद्रा को कुछ इस
तरह बनाएं कि उंगलियां आकाश की ओर
हों तथा अंगूठा धरती की ओर हो। इस मुद्रा
को गोद में नाभि के पास रखें। इस मुद्रा को
कहीं भी, कभी भी, कितनी भी देर के लिए
किया जा सकता है।
लाभ- इस मुद्रा से शरीर व मन में ऊर्जा का
संचार होता है। आलस दूर होता है, तन-मन
नई ताजगी से भरता है, जो कि एकाग्रता व
कार्य एवं पढ़ाई आदि में सफलता के लिए
जरूरी है। इससे अशांत और बेचैन मन शांत
होता है। फेफड़ों में श्वास का उचित संचार
होता है जिससे भीतर ताजगी बनी रहती है।
तनी हुई नसें व श्वास शिथिल होती है।
परीक्षा, मंच या इंटरर्व्यू आदि का भय नहीं
रहता। स्वयं से जुड़ने के लिए, ध्यान एवं
आत्म रूपांतरण के लिए भी यह मुद्रा
प्रभावशाली है।
4. ध्यानी मुद्रा
विधि- दोनों हथेलियों को अपनी गोद
में ऐसे रखें कि वह एक कटोरे का
आकार लें। बायीं हथेली को नीचे और
दायीं हथेली को उसके ऊपर रखें।
दोनों अंगूठों के अग्रभाग को हल्के
दबाव के साथ मिला लें। इसे सुखासन
या पद्ïमासन में जितनी देर कर सकें
उतना अच्छा है।
लाभ- ध्यान व साधना के लिए एक
प्राचीन व पारंपरिक मुद्रा है इससे
एकाग्रता शक्ति बढ़ती है, मन विचार
शून्य और शांत होता है। यह मुद्रा जीवन
में संतुलन लाती है।
5. हाकिनी मुद्रा
आज के समय में अक्सर लोग शिकायत
करते हैं कि वे हमेशा कुछ न कुछ भूल जाते
हैं। लेकिन हाकिनी मुद्रा द्वारा आप अपने
दिमाग की क्षमता और स्मरण शक्ति बढ़ा
सकते हैं। यह मुद्रा व्यक्ति के एकाग्रता के
स्तर को बढ़ाने में काफी प्रभावी मानी गई है।
हाकिनी मुद्रा का संबंध छठे चक्र यानी तीसरी
आंख से है। बहुत पहले मिले किसी व्यक्ति
के बारे में याद करने या कुछ समय पहले पढ़ी
गई किसी बात को याद करने में यह मुद्रा
काफी मददगार साबित हो सकती है। कुछ
नया सोचने पर भी इस मुद्रा को करने से
बेहतर आइडिया आपके दिमाग में आ सकते
हैं। बहुत सारे काम एक साथ करने पर या ज्
यादा मानसिक कार्य करने पर भी इस मुद्रा
को करके लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
विधि- अपने दोनों हाथों की उंगलियों और
अंगूठों के अग्रभागों को आपस में मिलाएं व
हाथों के बीच दूरी बनाए रखें। इस बात का
विशेष ध्यान रखें कि आपकी हथेलियां
आपस में जुड़ने न पाएं।
दिमाग और स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए
रोजाना 45 मिनट हाकिनी मुद्रा का अभ्यास
करें या फिर 15-15 मिनट करके दिन में तीन
बार अभ्यास करना पर्याप्त है।
हाकिनी मुद्रा के अभ्यास के लिए कोई
विशेष समय तय नहीं है। किसी भी समय
इस मुद्रा का अभ्यास किया जा सकता है।
द्य यह मुद्रा दिमाग के दाएं और बाएं हिस्से
के बीच संतुलन स्थापित करने का काम
करती है। दिमाग का बायां हिस्सा तार्किक
विचारों से संबंधित है, जबकि दायां हिस्सा
सृजन से। दिमाग के दोनों हिस्से जब एक
साथ मिलकर काम करते हैं तो परिणाम
बेहतर ही आते हैं।
द्य यह मुद्रा स्मरण शक्ति बढ़ाती है।
द्य इससे एकाग्रता के स्तर में वृद्धि होती है।
द्य यह धैर्य में वृद्धि करने में सहायक है।
द्य इस मुद्रा के अभ्यास से विचारों में स्पष्टïता
आती है तथा निर्णय लेने की क्षमता में वृद्धि
होती है।
द्य यह मुद्रा श्वसन प्रक्रिया में भी सुधार लाती
है जिससे दिमाग को पर्याप्त मात्रा में
ऑक्सीजन प्राप्त होती है। दिमाग में ऑक्सीजन
का पर्याप्त संचरण दिमाग के स्वास्थ्य के लिए
अच्छा है।
द्य यह मुद्रा विद्यार्थियों के लिए भी उपयोगी
है। इस मुद्रा से एकाग्रता में वृद्धि होती ह
जिससे लेक्चर के समय सुनी गई बातें उन्हें
ठीक से याद रहती हैं और उनके परीक्षा
परिणाम भी बेहतर होते हैं।
6. अपान मुद्रा
विधि- आराम से सुखासन या
पद्ïमासन में बैठें। अपनी पीठ और
गर्दन को सीधा रखें। चित्र अनुसार
मध्यमा एवं अनामिका उंगली के
अग्रभागों को अंगूठे के अग्रभाग से
हल्के दबाव के साथ मिलाएं तथा शेष
उंगलियों को सीधा व शिथिल रखें।
हथेलियों को दोनों घुटनों पर
आकाशोन्मुख रखें। रोज पंद्रह से बीस
मिनट तक इस मुद्रा का अभ्यास करें।
लाभ- इस मुद्रा के नियमित लाभ से
लिवर एवं गॉल-ब्लैडर संबंधी
समस्याएं तो दूर होती ही हैं साथ ही
आत्मविश्वास, धैर्य, स्थिरता एवं
दिमागी संतुलन में भी सुधार होता है।
7. त्रिमुख मुद्रा
त्रिमुख मुद्रा बेहद प्रभावशाली व पारंपरिक
मुद्रा है जो कि एकाग्रता का स्तर तथा
स्मरण शक्ति बढ़ाने के लिए उपयोग में
लाई जाती है।
विधि- दोनों हाथों की मध्यमा, अनामिका
और कनिष्का उंगलियों के पोरों को आपस
में जोड़कर रखें। ध्यान रहे हथेलियां आपस
में जुड़ने न पाएं। इस मुद्रा का अभ्यास
करने के लिए बिल्कुल सीधे रीढ़ की हड्डïी पर बिना कोई दबाव डाले आरामदायक