आसनों से जुड़े क्या है नियम किस प्रकार योगासन करें कि हमें उसका लाभ प्राप्त हो, आइए जानते हैं।
समय
आसन प्रात: सायं दोनों समय कर सकते हैं। यदि दोनों समय नहीं कर सकते, तो प्रात:काल का समय उत्तम है। प्रात:काल मन शान्त रहता है। प्रात: शौचादि से निवृत होकर खाली पेट तथा दोपहर के भोजन के लगभग 5-6 घण्टे बाद सांयकाल आसन कर सकते हैं। आसन करने से पहले शौच आदि से निवृत होना चाहिए। यदि कब्ज रहता है तो प्रात:काल तांबें या चांदी के बर्तन में रखे हुए पानी को पीना चाहिए। उसके पश्चात् थोड़ा भ्रमण करें। इससे पेट साफ हो जाता है। अधिक कब्ज हो, तो त्रिफला चूर्ण सोते समय गर्म पानी से लें।
स्थान
स्वच्छ, शान्त एवं एकान्त स्थान आसनों के लिए उत्तम है। यदि वृक्षों की हरियाली के समीप, बाग, तालाब या नदी का किनारा हो, तो सर्वोत्तम है। खुले वातावरण एवं वृक्षों के नजदीक ऑक्सीजन पर्याप्त मात्रा में होती है। यदि घर में आसन-प्राणायाम करें, तो घी का दीपक या गुग्गुल आदि जलाकर उस स्थान को सुगन्धित करना चाहिए।
वेशभूषा
आसन करते समय शरीर पर वस्त्र कम और सुविधाजनक होने चाहिए। पुरुष हाफ ऌपैंट और बनियान का उपयोग कर सकते हंै। माताएं और बहनें सलवार, ब्लाउज आदि पहनकर आसन, प्राणायाम आदि का अभ्यास करें।
आसन एवं मात्रा
भूमि पर बिछाने के लिए मुलायम दरी या कम्बल का प्रयोग करना उचित है। खुली जमीन पर आसन न करें। अपने सामर्थ्य के अनुसार व्यायाम करना चाहिए। आसनों का पूर्ण अभ्यास एक घण्टे में, मध्यम अभ्यास 30 मिनट में तथा संक्षिप्त अभ्यास 15 मिनट में होता है। आधा घण्टा तो प्रत्येक व्यक्ति को योगासन करना ही चाहिए।
आयु
मन एकाग्र कर प्रसन्नता एवं उत्साह के साथ अपनी आयु, शारीरिक शक्ति और क्षमता का पूरा ध्यान रखते हुए यथाशक्ति अभ्यास करना चाहिए तभी वह योग से वास्तविक लाभ उठा सकेगा। वृद्ध एवं दुर्बल व्यक्तियों को आसन एवं प्राणायम अल्प मात्रा में करने चाहिए। दस वर्ष से अधिक आयु के बालक सभी यौगिक अभ्यास कर सकते हैं। गर्भवती महिलाएं कठिन आसनादि न करें। वे केवल शनै:शनै दीर्घ श्रवसन, प्रणव-नाद एवं गायत्री आदि पवित्र मन्त्रों द्वारा ध्यान करें।

अवस्था एवं सावधानियां
सभी अवस्थाओं में आसन एवं प्राणायम किये जा सकते हैं। इन क्रियाओं से स्वस्थ व्यक्ति का स्वास्थ्य उत्तम बनता है। वह रोगी नहीं होता और रोगी व्यक्ति स्वस्थ होता है। परंतु फिर भी कुछ ऐसे आसन हैं, जिनको रोगी व्यक्ति को नहीं करना चाहिए यथा जिनके कान बहते हों, नेत्रों में लाली हो, स्त्रायु एवं हृदय दुर्बल हो, उनको शीर्षासन नहीं करना चाहिए। हृदय-दौर्बल्यवाले को अधिक भारी आसन जैसे पूर्ण शलभासन, धनुरासन आदि नहीं करना चाहिए। अण्डवृद्धिवालों को भी वो आसन नहीं करने चाहिए, जिनसे नाभि के नीचे वाले हिस्से पर अधिक दबाव पड़ता है। उच्च रक्तचाप वाले रोगियों को सिर के बल किये जाने वाले शीर्षासन आदि तथा महिलाओं को ऋतुकाल में 4-5 दिन आसनों का अभ्यास नहीं करना चाहिए। जिनको कमर और गर्दन में दर्द रहता हो, वे आगे झुकनेवाले आसन न करें।
भोजन
भोजन आसन के लगभग आधे घण्टे पश्चात्ï करना चाहिए। भोजन में सात्त्विक पदार्थ हों तले हुए गरिष्ठï पदार्थों के सेवन से जठर विकृत हो जाता है। आसन के बाद चाय नहीं पीनी चाहिए। एक बार चाय पीने से यकृत आदि कोमल ग्रन्थियों के लगभग 50 सेल्स निष्क्रिय हो जाते हैं। इससे आप स्वयं अनुमान कर सकते हंै कि चाय से कितनी हानि है। जठराग्नि को मन्द करने एवं अम्लपित्त, गैस, कब्जादि रोगों को उत्पन्न करने में चाय का सबसे अधिक योगदान होता है। यकृत को विकृत करने में भी चाय और अंग्रेजी दवा दोनों की हानिकारक भूमिका होती है।
श्वास-प्रश्वास का नियम
आसन करते समय सामान्य नियम है कि आगे की ओर झुकते समय श्वास बाहर निकालते हैं तथा पीछे की ओर झुकते समय श्वास अन्दर भरकर रखते हैं। श्वास नासिका से ही लेना और छोड़ना चाहिए, मुख से नहीं, क्योंकि नाक से लिया हुआ श्वास फिल्टर होकर अन्दर जाता है।
दृष्टि
आंखें बन्द करकेयोगासन करने से मन की एकाग्रता बढ़ती है, जिससे मानसिक तनाव एवं चंचलता दूर होती है। सामान्यत: आसन एवं प्राणायाम आंखें खोलकर भी कर सकते हैं।
क्रम
कुछ आसन एक पार्श्व करने होते हैं। यदि कोई आसन दाएं करवट करें तो उसे बाएं करवट भी करें। इसके अतिरिक्त आसनों का एक ऐसा क्रम निश्चित कर लें कि प्रत्येक अनुवर्ती आसन से विघटित दिशा में भी पेशियों और सन्धियों का व्यायाम हो जाये। उदाहरणत: सर्वांगासन के उपरान्त मत्स्यासन, मण्डूकासन के बाद उष्ट्रासन किया जाये। नवाभ्यासी शुरू में 2-4 दिन मांसपेशियों और सन्धियों में पीड़ा अनुभव करेंगे। अभ्यास जारी रखें। लेटी अवस्था में किये गये आसनों के बाद जब भी उठा जाये, बाईं करवट की ओर झुकते हुए उठना चाहिए। अभ्यास के अन्त में शवासन 8-10 मिनट के लिए अवश्य करें, ताकि अंग-प्रत्यंग शिथिल हो जायें।
विश्राम
आसन करते हुए जब-जब थकान हो, तब-तब शवासन या मकरासन में विश्राम करना चाहिए। थक जाने पर बीच में भी विश्राम कर सकते हैं।
गुरु
गुरुपदिष्टमार्गेण योगमेव समभ्यसेत्।
योग की सिद्धि गुरुकृपा और गुरु-उपदिष्ट मार्ग से ही होती है। इसलिए योगासन, प्राणायाम, ध्यान आदि का अभ्यास प्रारम्भ में गुरु के सान्निध्य में ही करना चाहिए।
यम-नियम
योगाभ्यासियों को यम-नियम का पालन पूरी शक्ति के साथ करना चाहिए। बिना यम-नियमों के पालन के कोई भी व्यक्ति योगी नहीं हो सकता।
शरीर का तापमान
शरीर का तापमान अधिक उष्ण होने या ज्वर होने की स्थिति में योगाभ्यास करने से तापमान बढ़ जाये तो चन्द्रस्वर यानी बाईं नासिका से श्वास अन्दर खींचकर (पूरक कर), सूर्य-स्वर, यानी दायीं नासिका से रेचक (श्वास बाहर निकालना) करने की विधि बार-बार करके तापमान सामान्य कर लेना चाहिए।
पेट की सफाई
पेट की ठीक से सफाई न होती हो, कब्ज और अपच की शिकायत रहती हो तो कुछ दिन प्रारम्भ में कोई सौम्य रेचक हरड़ या त्रिफलादि चूर्ण रात को सोते समय ले लें। अन्यथा पेट साफ न होने की स्थिति में आंख, मुख, सिर में विकार एवं स्नायु-मण्डल में कमजोरी होने की शिकायत हो सकती है। अत: पेट का साफ होना, कब्ज-रहित होना, , रात को समय से सोकर पूरी नींद लेना और उचित आहार-विहार करना बहुत ही आवश्यक है।
कठिन आसन
जिन व्यक्तियों का कभी अस्थिभंग हुआ हो, वे कठिन आसनों का अभ्यास कभी नहीं करें, अन्यथा उसी स्थान पर हड्डी दोबारा टूट सकती है।
पसीना आने पर
अभ्यास के दौरान पसीना आ जाये तो तौलिये से पोंछ लें, इससे चुस्ती आ जाती है, चर्म स्वस्थ रहता है और रोगाणु चर्म-मार्ग से शरीर में प्रवेश नहीं कर सकेंगे। योगासनों का अभ्यास यथासम्भव स्नानादि से निवृत्त होकर करना चाहिए। अभ्यास के 15-20 मिनट बाद भी शरीर का तापमान सामान्य होने पर स्नान कर सकते हैं।
बाबा रामदेव की पुस्तक से साभार
यह भी पढ़ें –कैसे और क्यों रखें उपवास?
स्वास्थ्य संबंधी यह लेख आपको कैसा लगा? अपनी प्रतिक्रियाएं जरूर भेजें। प्रतिक्रियाओं के साथ ही स्वास्थ्य से जुड़े सुझाव व लेख भी हमें ई-मेल करें-editor@grehlakshmi.com
