आपका बच्चा आपका कहना नहीं मानता है और वह छोटी-छोटी बात पर झूठ बोलता है, अकसर अपना होमवर्क करना भूल जाता है, उसका ध्यान क्लास में नहीं रहता है, पढ़ाई के समय वो पढऩे पर ध्यान देने की बजाय इधर-उधर की बातें सोचता है, खाना खाने में आना-कानी करता है, बहुत ज्यादा एक्टिव रहता है एक जगह टिक कर नहीं बैठता है, तो इसका सीधा सा मतलब यह है कि वो एडीएचडी यानि कि अटेंशन डिफिसिटी हाइपर एक्टिविटी डिसऑर्डर से पीडि़त है। यह सामान्य तौर पर चार-साल से सात साल की उम्र से चालू होता है। कई बार यह बड़ी आयु तक रहता है। यह ऐसा डिसऑर्डर है, जिसमें बच्चा असामान्य व्यवहार करने लगता है कई बार उसके व्यवहार से माता-पिता को शॄमदगी भी उठानी पड़ती है। 

क्या है एडीएचडी

यह बच्चों को होने वाला सामान्य डिसऑर्डर है, जिसमें बच्चा जरूरत से ज्यादा एक्टिव होता है। बच्चे के सामाजिक और मानसिक विकास पर इसकी वजह से नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। आमतौर पर एडीएचडी से लड़कियों के मुकाबले लड़के ज्यादा पीडि़त होते हैं। इस संबंध में क्लिनिकल साइकॉलजिस्ट डॉक्टर मयंक तिवारी का कहना है कि हाइपर एक्टिव बच्चा एक जगह टिक कर बैठ नहीं सकता। कभी वो सोफे पर कूदेगा, तो कभी कोई सामान तोड़ देगा। इसका कारण उसका अपने ऊपर नियंत्रण न होना है। उसका ऐसा व्यवहार घर पर ही नहीं बाहर जाने पर भी इस तरह की हरकत करने से बाज नहीं आता। हाइपर एक्टिव बच्चे इतने ज्यादा सक्रिय होते हैं कि उन्हें संभालना मुश्किल हो जाता है। ऐसा लगता है, जैसे उनके पैरों  में पहिये लगे हों, जिसकी वजह से वो अपना ध्यान एक जगह पर नहीं लगा पाते। ऐसे बच्चे पढ़ाई नहीं करना चाहते। उनकी कंसनट्रेशन बहुत कम होती है जिसकी वजह से वो किसी चीज पर फोकस नहीं कर पाते।

एक सर्वेक्षण में यह बात सामने आई है कि एडीएचडी डिसऑर्डर इतना कॉमन है कि तीस बच्चों की एक क्लास में आठ-नौ माइल्ड डिसऑर्डर और चार पांच क्रॉनिक एडीएचडी डिसऑर्डर से पीडि़त बच्चे रहते हैं। अगर बचपन से ही ध्यान न दिया जाये, तो माइल्ड डिसऑर्डर क्रॉनिक डिसऑर्डर में तब्दील हो जाता है। इसलिए जैसे ही आपको अपने बच्चे के व्यवहार में कोई असमान्यता नजर आये और अपने असमान्य व्यवहार की वजह से बच्चे को सामाजिक आलोचना का शिकार होना पड़ रहा हो, तो तुरंत ही किसी बालरोग मनोचिकित्सक से संपर्क करके बच्चे की काउंसलिंग करायें।

 

 

 

 

 

पहचानें एडीएचडी पीडि़त बच्चे को

1- एडीएचडी से पीडि़त बच्चा अपने आस-पास के वातावरण में हुआ छोटा सा बदलाव भी बर्दाश्त नहीं कर पाता है। अगर उसके रहन-सहन में या उसके कमरे की साज-सज्जा में जरा सा भी बदलाव किया जाये, तो वो उसकी वजह से डरा सहमा सा रहता है।

2- ऐसे बच्चों का ध्यान बहुत जल्दी भटकता है वो किसी भी काम को पूरी तल्लीनता से पूरा नहीं कर पाते हैं, उनके इस व्यवहार का असर उनकी पढ़ाई पर भी दिखता है। अगर आप उनकी नोटबुक देखें, तो वो स्कूल का काम ठीक से पूरा नहीं कर पाते। ऐसे बच्चे अपना होमवर्क पूरा करने में भी लापरवाही बरतते हैं।

3- एडीएचडी डिसऑर्डर से पीडि़त बच्चों में बहुत ज्यादा ऊर्जा होती है। अगर उनकी इस ऊर्जा को सकारात्मक कार्यों में ना लगाया जाये, तो वे अपनी एनर्जी घर के सामान को तोडऩे-फोडऩे में लगाते हैं। अगर उनकी बात ना मानी जाये, तो वे गुस्से में आकर घर का सामान तोडऩे लगते हैं। कई बार बच्चे गुस्से में आकर अपने कपड़े तक उतार कर फेंकने लगते हैं।

4- ऐसे बच्चे ये चाहते हैं कि पेरेंट्स उनका पूरा ध्यान रखें। अगर उनका ध्यान न रखा जाये, तो वे पेरेंट्स का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करने के लिए कुछ भी कर सकते हैं। इसमें वस्तुओं की तोड़-फोड़ और खुद को नुकसान पहुंचाना भी शामिल हैं।

5- पढ़ाई में मन न लगने की वजह से परीक्षा में नंबर अच्छे नहीं आते।

6- हर समय बेचैन रहते हैं। उनका व्यवहार आकस्मिक होता है समझ नहीं आता कि वो कब क्या कर बैठेंगे।

7- सभी गतिविधियों में भाग लेना चाहते हैं, लेकिन किसी को भी सही तरीके से पूरा नहीं कर पाते।

8- नयी चीजों के प्रति आकर्षित होते हैं। घर और स्कूल के नियमों को तोडऩे में इन्हें मजा आता है।

9- सामाजिक दायरों और पारिवारिक मान्यताओं को तोडऩे को तत्पर रहते हैं। संबंधों को लेकर हमेशा असुरक्षित महसूस करते हैं।

पेरेंट्स की भूमिका है महत्वपूर्ण

यह सच है कि जरूरत से ज्यादा एक्टिव बच्चे को संभालना बेहद मुश्किल काम है, लेकिन यह पेरेंट्स की जिम्मेदारी है कि अपने बच्चे में एडीएचडी के लक्षणों को पहचान कर उन्हें नियंत्रित करने का प्रयास करें। ऐसे बच्चों को डांटकर या मारकर समझाया नहीं जा सकता। इन्हें प्यार से ही समझाना उचित रहता है। अगर आपको यह पता है कि आपका बच्चा हाइपर एक्टिव है, तो आप बचपन से ही उसकी एनर्जी को सकारात्मक कार्यों में लगायें।

हाइपर एक्टिव बच्चे बहुत टेलेंटेड होते हैं अगर उनकी ऊर्जा को सही दिशा में लगाया जाये, तो वो जिस भी क्षेत्र का चुनाव करते हैं उसमें अव्वल रहते हैं। जब आपका बच्चा बहुत ज्यादा एग्रेसिव हो जाये, तो उसे डांटने मारने की बजाय प्यार से समझायें। बालमनोरोग विशेषज्ञ डॉक्टर विनीता झा का कहना है कि स्पर्श किसी भी संबंध को बेहतर बनाने का महत्वपूर्ण जरिया है। अगर आपका बच्चा हाइपर एक्टिव है, तो आप उसके गुस्से को नियंत्रित करने के लिए टच थेरेपी का इस्तेमाल करें, इसका सकारात्मक असर पड़ेगा। 

पिता की भूमिका भी रखती है मायने

बच्चे के विकास में जितना योगदान मां का होता है उतना ही पिता का भी होता है। आपका बच्चा एडीएचडी से पीडि़त है, तो उसकी एनर्जी को कन्ज्यूम करने के लिए उसके साथ खेलें। ऑफिस से आने के बाद थोड़ा सा समय अपने बच्चे को दें। उसके साथ बातचीत करें। अगर ज्यादा थक गये हैं, तो उसके साथ उसका मनपसंद कार्टून ही देखें। इस बीच उसके साथ बातचीत करते रहें, जिससे उसका ध्यान नकारात्मक चीजों की ओर ना जाए। एडीएचडी से पीडि़त बच्चे अपने पेरेंट्स का पूरा अटेंशन चाहते हैं अगर आप उन पर ध्यान देंगे, तो वे एग्रेसिव नहीं होंगे। 

इन बातों का रखें ध्यान

-एडीएचडी से पीडि़त बच्चे भावनात्मक तौर पर बहुत कमजोर होते हैं। उन्हें हर समय ऐसा प्रतीत होता है कि उनके साथ कोई भी नहीं है। आप अपने बच्चे को बार-बार इस बात का एहसास दिलाएं कि आप हर समय उसके साथ हैं। इसके लिए आप उसे गले लगाएं उसके साथ समय बिताएं। उसकी बातों को ध्यान से सुनें और उसके कार्यों को सराहें।

-खुद मेडिटेशन करें और बच्चे को भी इसके लिए प्रेरित करें। नियमित तौर पर ध्यान करने से बच्चे की कंसन्ट्रेट करने की क्षमता बढ़ेगी और वो अपने कार्यों पर फोकस कर पायेगा।

-उसकी छोटी सी उपलब्धि की सराहना करने से ना चूकें।

-ऐसे बच्चे किसी भी काम को लेकर बहुत ज्यादा कन्फ्यूज रहते हैं। इसके लिए यह जरूरी है कि उन्हें चीजों को किस तरह से मैनेज करना है, यह सिखायें। उन्हें एक डायरी दें और उनसे कहें कि इसमें वो प्रतिदिन के अपने कार्यों की लिस्ट बनायें और उन कार्यों को किस तरह से पूरा करना है, इसकी योजना के संबंध में भी लिखें।

-जिन चीजों से बच्चे का ध्यान भटकता हो, उसके आस-पास ऐसी वस्तुओं को ना रखें।

-कोई भी कार्य करते हुए बच्चे से मदद जरूर मांगें। 

 

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