अक्सर पुरूषों/लड़को को मैंने यह कहते सुना है कि यह मैं क्यों करूं यह काम तो मां का है, बहन का है या पत्नी का है…बर्तन धोने को कह दो तो यह मेरे मतलब का  नहीं है। कपड़े धोने के लिए बोल दो तो यह काम वो कर लेगी, मेरा इससे क्या लेना देना। और तो और खाना बनाने को बोल दो तो मैं लड़की हूं क्या? कुछ इस तरह के ही जवाब सुनने को मिलते हैं हमें लड़को/पुरषों से।
खैर इन सब बातों से मेरा एक ही सवाल है कि आपके पति/भाई या आपका बेटा आपकी जिम्मेदारी क्यों नहीं निभा सकता है?

 

क्या इगो करता है मना?
 
इस बात से तो आप सब वाकिफ होंगी कि मर्दों में इगो यानी अहम की कोई कमी नहीं होती है। शायद यह एक वजह है उनके महिलाओं के काम ना करने की। उनके मन में यह ख्याल आते देर नहीं लगती कि मैं यह काम क्यों करू? पर लड़कियां/महिलाएं तो कभी यह नहीं कहती कि मैं बाजा़र से सब्जी क्यों लाऊं? या मैं राशन क्यों लाऊं? या फिर मैं बिजली का बिल जमा करने के लिए क्यों जाऊं? क्या उनमें अहम नहीं होता जो वो सारे काम खुशी-खुशी कर देती हैं? नहीं, ऐसा नहीं है..उनमे अहम होता है, आत्मसम्मान भी होता है लेकिन एक महिला काम बटवाना जानती है और उसे अपने अपनों से हमदर्दी होती है बस इसलिए एक औरत, पुरूष से अलत होती है बहुत अलग होती है।
 

 

बचपन से ही दिमाग में भरा जाता है  कि लड़कियां ही करती हैं सारे काम..
 
मां ने बुलाया कि आकाश बेटा ज़रा पापा को पानी पिला दे…इतने में पापा कहते हैं आकाश से क्यों कह रही हो? राधा कहां गई..? मां ने बोला सब्जी काट दो तो आकाश का जवाब आया पापा कहते हैं यह सारे काम लड़कियों के होते हैं तो आप राधा से कहो कर देगी। कुछ ऐसी ही बाते भरते हैं ना हम लड़को के दिमाग में बचपन से ही..है ना? और अक्सर मैंने लोगों को यह कहते सुना है कि बच्चे तो कच्चा घड़ा होते हैं, उन्हें जैसे सिखाओगे वो सीख जाएंगे और ताउम्र उनके मन में यही भाव रहेगा कि मैं क्यों करूं यह काम तो मां/बीवी/बहन का है।

 

इसलिए अगर आप यह नहीं चाहती कि बड़े होकर आपका बेटा भी अपनी बीवी/पत्नी या बहन से ना करे ऐसा बर्ताव तो उनके मन ने ना लाए भाव कि मैं यह क्यों करू?
 
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