Gujarati Handicrafts: गुजरात हैंडीक्राफ्ट देश की विलक्षण हस्तकलाओं में से एक है। इनको खरीदने और आजमाने के लिए विदेशी भी खुद को रोक नहीं पाते हैं। इस खूबसूरत राज्य की पहचान वैसे तो यहां की ऐतिहासिक जगहें भी हैं। लेकिन गुजरात की हस्तकला इस राज्य को मानो अपने साथ अपनी जमीं तक ले जाने का साधन है। टाई एंड डाई हो या कलमकारी। बीड वर्क हो या टेराकोटा और ब्लॉक प्रिंटिंग। इन सभी में इस राज्य की खुशबू है, जिसे एक बार महसूस करने के बाद भूल पाना कठिन ही होता है। गुजरात हैंडीक्राफ्ट की एक खासियत, इसके रंग भी होते हैं। इस राज्य की तकरीबन सभी तरह की हस्तकला में चटख रंगों का इस्तेमाल बखूबी किया जाता है। गुजरात हैंडीक्राफ्ट से एक बार जान-पहचान तो की ही जानी चाहिए। गुजरात हैंडीक्राफ्ट में क्या है खास, रूबरू हो लीजिए-

1. सिंधु सभ्यता से आई हैंडब्लॉक प्रिंटिंग–
गुजरात राज्य की हस्तकला हैंडब्लॉक प्रिंटिंग के लिए जानी जाती है। माना जाता है कि ये कला सिंधु घाटी सभ्यता से होती आ रही है। इसको कॉटन, सिल्क, लिनेन और खड़ी जैसे फेब्रिक पर किया जाता है और मान्यता है कि इसकी डिजाइन अलग-अलग समुदायों के हिसाब से बनाई जाती थीं। छिप्पा और खत्री समुदायों को इस कला की शुरुआत करने वाला माना गया है। इस कला में तीन तरह की तकनीक का इस्तेमाल होता है, डाइरेक्ट, रेसिस्ट और डिस्चार्ज प्रिंटिंग। ब्लॉक प्रिंटिंग के दो तरीके काफी पसंद किए जाते हैं। अजरख प्रिंटिंग और बटिक प्रिंटिंग।
अजरख प्रिंटिंग– इस हैंड ब्लॉक प्रिंटिंग जहां इस्लामिक आर्किटेक्चर से प्रेरित है और इसमें खास तरह के जियोमेट्रिक डिजाइन का इस्तेमाल किया जाता है।
बाटिक प्रिंटिंग– गुजरात के कोस्टल एरिया में ये प्रिंटिंग अभी भी की जा रही है। हालांकि नई तकनीकी प्रिंटिंग की वजह से इसका बनना कम हुआ है लेकिन फिर भी कुछ परिवार इसे अभी भी बना रहे हैं।
2. बैंबू वाली कलमकारी–
इस कला को ये नाम बैंबू स्टिक की वजह से मिला है। दरअसल इसमें बैंबू की नुकीली स्टिक से मॉटिफ बनाए जाते हैं। इस कला की शुरुआत वघारी समुदाय ने विरोध जताने के लिए की थी। दरअसल उन्हें देवी शक्ति के मंदिर में जाने से मना किया गया था। उन्होंने इस रोक का विरोध करने के लिए ये पेटिंग की, जिसमें माता शक्ति को ही पेंटिंग्स में बनाया जाता है। इस कला को माता नी पछेड़ी भी कहा गया है। इसका मतलब होता है माता के पीछे। ये एक तरह माता मंदिर ही है, जिसे कपड़े पर बनाया जाता है। इसमें नेचुरल रंगों का इस्तेमाल किया जाता है। पहले जहां इसमें लाल, सफेद और काले का इस्तेमाल ही किया जाता था वहीं अब नए कलाकारों ने इसमें नीले, हरे और पीले रंगों का इस्तेमाल भी शुरू किया है।

3. टाई एंड डाई का रूप बांधनी डिजाइन–
बांधनी डिजाइन को टाई एंड डाई का ही एक रूप माना जाता है। इसमें नाखूनों के सहारे कपड़े में छोटी-छोटी गांठें बांध दी जाती हैं। इन्हीं गांठों से फूलों, जानवरों, चिड़ियों के आकार बनाए जाते हैं। इस कला की शुरुआत के सबूत जैन ताम्रपत्रों में मिलते हैं। बांधनी शब्द का मूल संस्कृत के शब्द बांध से बना है। इसमें कपड़े के कुछ हिस्सों में छोटी गांठें बना दी जाती हैं। फिर कपड़े को कलर किया जाता है। इस तरह से कपड़े की गांठ वाला हिस्सा कलर नहीं होता है। इन गांठों को खोलकर सुंदर डिजाइन को रूप दिया जाता है। इस कला को ऊनी, कॉटन, जूट और सिल्क आदि में खूब आजमाया जाता है। इसमें गांठें भी गोल और चौकौर जैसे अलग-अलग आकार में बनाई जाती हैं। इस प्रिंटिंग में चंद्रकुकड़ी, शिकारी और रास लीला जैसे पैटर्न काफी पसंद किए जाते हैं। इस कला को खासतौर पर जामनगर, भुज, आनंद, सुरेन्द्रनगर और मांडवी आदि में बनाया जाता है।
4. कठपुतली वाला गुजरात–
दुनिया भर में मशहूर कठपुतली कला का आगाज भी गुजरात से ही हुआ है। पुराने कपड़ों से तैयार इन स्तफ़्ड खिलौनों में मानिए कि गुजरात की झलक दिखती है। इसमें इस तकनीक से वॉल हैंगिंग बनाए जाते हैं तो होम डेकोरेशन आइटम भी। खास बात ये है कि अलग-अलग रीजन में इस कला के अलग-अलग रूप बनाए जाते हैं। जैसे कच्छ प्रांत में तिकोने आकार में चिड़िया बनाई जाती हैं। इस कला में औरतें और बच्चे बड़ा रोल निभाते हैं। वही इसमें शीशे और कढ़ाई का काम करते हैं। इस कला को अहमदाबाद, भावनगर, अमरेली, कच्छ आदि में बनाया जा रहा है। यहां बनी कठपुतली दुनियाभर में मशघूर हैं और काफी पसंद की जाती है।
5. दो फैब्रिक से बना पैचवर्क–
मुगल राजाओं की पसंदीदा इस कला में एक कपड़े को दूसरे पर सजा कर सिला जाता है। ये काफी जानी पहचानी कला है और अब मॉडर्न ड्रेसेज में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके दो तरीके इस्तेमाल किए जाते हैं। पहले में मुख्य कपड़े पर दूसरे कपड़े का खास आकार में कटा छोटा टुकड़ा सिला जाता है। वहीं दूसरे डिजाइन में कपड़ा सिला ही एक खास डिजाइन में जाता है। इसमें रंगों और आकार का खास रोल हो जाता है। अब कपड़ों के साथ पर्दे, चादर, कुशन कवर भी बनाए जा रहे हैं।
6. रंगों से सजा बीड वर्क–
बीड को आपस में संजोने की ये कला सिर्फ बीड वर्क ही नहीं कहलाती है बल्कि इसे मोती भारत भी कहा जाता है। यूरोपीय समुदाय के भारत आने के बाद इस कला को बेहतरीन इस्तेमाल शुरू हुआ था। इसमें प्रयोग में लाए जाने वाले बीड्स हैं, टेराकोटा, स्टोन, मेटल, प्लास्टिक और क्लॉथ।
7. लेदर वर्क है खास–
गुजरात के हैंडीक्राफ्ट में लेदर वर्क भी खास है। इससे यहां पर जूते ही नहीं स्टेशनरी, पर्स और डेकोरेटिव आइटम भी बनाए जाते हैं। कुशल कारीगरों ने इस कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। लेदर वर्क में भी पैच वर्क का इस्तेमाल किया जाता है। इस लेदर वर्क को विदेशी भी खूब पसंद करते हैं।
8. 15 तरह की कढ़ाई–
गुजरात हस्तकला में 15 तरह की यूनिक कढ़ाई की जाती हैं। हर कढ़ाई में अलग तरह के मोटिफ़्स का इस्तेमाल होता है। इन कढ़ाई के काम में धागों, सीक्वेंस और खास सिलाई भी प्रयोग की जाती है। सौराष्ट्र और कच्छ प्रांत में बहुत से लोफ़ इस कला को बढ़ावा दे रहे हैं। इन्हीं में से के कढ़ाई के नाम पर तो सौराष्ट्र के दूसरे नाम काठीवाड़ का नाम भी रखा गया है। काठीवाड़ को इसका नाम काठी से मिला है, जो काठीपा नाम की कढ़ाई किया करते थे।
राबरी कढ़ाई के पीछे की कहानी भी काफी रोचक है। ये लोहाना समुदाय खूब बनाता है और इसमें खास मौकों का जिक्र भी करता है। इसमें हुए शीशे के इस्तेमाल को माना जाता है कि ये बच्चों को बुरी चीजों से बचाता है। पहले ये सिर्फ मेरून बैक ग्राउंड पर बनाए जाते थे लेकिन अब समय के साथ इनका कलर पैलेट बदल गया है। इसके साथ ही कच्छ प्रांत में अरी कढ़ाई की जाती है, जिसमें सिल्क के धागे से नाचते हुए फिगर और मोर बनाए जाते हैं। कह सकते हैं गुजरात के हर प्रांत में अपनी एक अलग कढ़ाई है।

9. क्ले और टेरकोटा वर्क–
मिट्टी से बनाई जाने वाली इस कला की मांग पूरी दुनिया में है। इस इकोफ्रेंडली कला से बर्तन, सजावटी समान, और खिलौने तक बनाए जाते हैं। टेरकोटा काला भी काफी पसंद की जाने वाली आर्ट है। गुजरात में टेरकोटा से जानवरों के आकार बनाए जाते हैं। लेकिन इसमें बॉडी कुछ ओवल होती है। खासतौर पर पेट पर कई तरह की डिजाइन भी बनाई जाती है।
10. अनोखा मड वर्क–
गुजरात का भुंगा समुदाय आज भी मिट्टी के घरों में रहता है और घरों बिलकुल अनोखे अंदाज में सजाता है। इन घरों की दीवारें उनके लिए कैनवास का काम करती हैं। इन डिजाइन को आपदाओं से बचाने वाला और पवित्र माना जाता है। इस समुदाय के पुरुष मिट्टी के डेकोरेटिव आर्टिकल बनाते हैं, जिन पर मिरर वर्क भी किया गया होता है। मड वर्क से अब तो ज्वेलरी भी बनाई जा रही है। कच्छ जिले के टुंडा वंध, होदका, लुडिया, कावड़ा गांव और भुज में इस कला को विस्तार दिया जा रहा है।
11. बर्ड हैंगिंग्स की सुंदरता–
खूब सारे रंगों वाली बर्ड हैंगिंग्स आपने खूब देखी होगी। इसमें स्टफिंग की जाती है। ये एक तरह से गुजरात की पहचान भी है। इनका निर्माण भावनगर और छोटा उदयपुर में काफी होता है। यहां के समुदाय बेकार सामान और कपड़ों को स्टफिंग के लिए इस्तेमाल करते हैं। राठवास, नायक्स और भिलाल्स जैसे आदिवासी समुदाय भी खास तरह के वाल हैंगिंग्स बनाते हैं। इसमें पिथौरा पेंटिंग का इस्तेमाल होता है और जीवन के खास मौकों के बारे में इन पेंटिंग्स में बताया जाता है।
12.वुड वर्क है दमदार–
इस कला को बढ़ावा देने में उत्तर भारत से गुजरात गए कलाकारों को भी जाता है। ये कला आपको लकड़ी के खिलौनों पर बहुत अच्छी लगेगी। इस कला के फालना-फूलना कच्चा के झूरा और निरोना क्षेत्रों में खूब हुआ है। हिम्मतनगर, भावनगर खिलौने के लिए खासतौर पर जाने जाते हैं।
13. मेटल वर्क की चमक–
गुजरात हैंडीक्राफ्ट में मेटल वर्क का काफी योगदान है। इस कला को पीतल, तांबा, चांदी, सोना और कई दूसरे मेटल में भी बनाया जाता है। इसने विंड चाइम्स, डेल्स, जेवर आदि खूब बने और पसंद किए जाते हैं। इसमें कास्टिंग, हैंड बीटिंग, स्मेल्टिंग, इंग्रेविंग और इम्बोजिंग का इस्तेमाल किया जाता है।
14. कलरफुल वुवेन वर्क–
गुजरात अपनी कलाओं के लिए यूंहीं नहीं जाना जाता है, इसमें अनगिनत कलाएं हैं और वुवेन वर्क भी इन्हीं में से एक है। इसमें सिल्क के धागों को ऐसे पिरोया जाता है कि बिलकुल नायाब नमूना हमारे सामने होता है। लेकिन हां, ये कला जगह-जगह के हिसाब से बदलती रहती है। इसमें कई फेब्रिक पैटर्न, इकत, बंधेज, पटोला और मशरू का इस्तेमाल भी खूब होता है।
15. रोगन पेंटिंग की सादगी–
हैंड पेंटिंग में ही इम्बोजिंग का नायाब नमूना है। इसमें गाढ़े रंगों को खास फूलों या कैस्टर ऑयल के साथ भिगोया जाता है। फिर इन्हें मिट्टी के बर्तन में स्टोर किया जाता है। इससे मनमुताबिक रंग तैयार होता है। खत्री परिवार के कलाकारों ने इस कला को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान दिलाई है। इसको सिल्क या कॉटन फेब्रिक पर बनाया जाता है।
16. अलहदा तंगालिया वर्क–
तंगालिया वर्क…ये शब्द टांग या लेग से बना है। इस कला की खासियत डॉटेड पैटर्न होते हैं। अब तो डंगासिया और भरवाड़ समुदाय इस काम के लिए अलग तरह के ऊन का इस्तेमाल भी करने लगा है। जबकि पहले ये सिर्फ ऊंट और काली भेड़ों के ऊन से ही बनता था। सुरेन्द्रनगर जिला इस काम के लिए पहचाना जाता है।
17. खूबसूरत वर्ली वर्क–
वर्ली वर्क की प्रेरणा जियोमेट्री से मिलती है। दरअसल इसमें जियोमेट्री की तरह ही त्रिकोड़, चौकोर और सर्कल का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें मिट्टी पर चावल के पेस्ट से डिजाइन बनाई जाती है। डिजाइन में रोजाना के जीवन पर बात की जाती है, जैसे चिड़िया, जानवर, इंसान।
रोगन आर्ट बनाने वाला अकेला परिवार– ऊपर रोगन आर्ट के बारे में बताया गया है। ये आर्ट दिखती सुंदर है लेकिन बहुत मेहनत का काम है। खास बात ये है कि इस आर्ट को आगे बढ़ाने वाला अब बस एक ही परिवार है। अब्दुल गफ्फ़ूर खत्री का परिवार रोगन कला को लगातार बढ़ावा दे रहा है। ये परिवार कच्छ जिले के निरोना गांव में काम करता है। इस्ङ्कि छह लोगों की एक टीम इस इको फ्रेंडली कला को जीवंत रखने की कोशिश कर रही है। कैस्टर ऑयल का इस्तेमाल रोगन के लिए किया जाता है, जिसको 3 दिन तक उबाला जाता है। फिर इसमें वेजीटेबल रंगों को मिलाया जाता है। फिर एक लंबी प्रक्रिया के बाद इस कला का नमूना बन कर तैयार होता है। खास बात ये भी है कि सिर्फ 1 वर्ग फुट का रोगन वर्क होने में महीनों लग जाते हैं।