Onam festival
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केरल भारत के बेहद सुन्दर प्रदेशों में से एक है। इसकी प्राकृतिक सुंदरता और नयनाभिराम दृश्य मंत्रमुग्ध करने वाले होते हैं। इसी प्राकृतिक सुंदरता और आकर्षण के कारण इस प्रदेश को ‘ईश्वर का अपना देश भी कहा जाता है। इस प्रदेश का सबसे प्रसिद्ध त्योहार है ओणम्। दस दिनों तक चलने वाले इस त्यौहार में केरल की सांस्कृतिक परम्परा अपने सर्वोत्तम रूप में प्रकट होती है।

मलयाली पंचांग के अनुसार, यह त्योहार ‘चिंगम (अगस्त-सितम्बर) में पड़ता है। इस समय यहां मौसम मधुर, चमकदार एवं सुखद रूप से गर्म रहता है जिससे इस त्योहार में चार चांद लग जाते हैं। लहलहाते खेतों के भरे-भरे पौधे एक मनोहारी छवि बिखेरते प्रतीत होते हैं।

केरल में ओणम् बड़े उत्साह व उल्लास से मनाया जाता है। वस्तुतः भारत में जहां-जहां मलयाली आबादी है, यह त्योहार वहां भी बड़े आनन्द और उत्साह से मनाया जाता है।

ओणम् त्योहार मनाने का प्रमुख उद्देश्य यहां के प्राचीन प्रतापी राजा महाबलि को सम्मान देना होता है। राजा महाबलि के शासन में केरल में स्वर्ण युग था। यह मान्यता है कि राजा महाबलि हर वर्ष चिंगम माह में पाताल से अपने राज्य में पधारते हैं। इसलिए ओणम् के सारे कार्यक्रम राजा महाबलि को ही समर्पित रहते हैं।

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ओणम् का मुख्य उद्देश्य अपने प्रिय राजा महाबलि को याद करना है। वह केरल के बेहद सहृदय और उदार राजा थे, जो भगवान विष्णु के परम भक्त थे। उन्होंने कई बार कठिन तप करके वरदान भी प्राप्त किए थे। इन्हीं वरदानों के प्रताप से वे एक शक्तिशाली और प्रतापी राजा बन सके थे।

अपने प्रताप से राजा महाबलि ने तीनों लोकों को जीत लिया था। उनकी कामना इन्द्रलोक तक अपना शासन फैलाने की हुई। इसके लिए उन्होंने एक सौ अश्वमेध यज्ञ करने का संकल्प किया। उनके 99 यज्ञ बिना किसी बाधा के सफल हो गए।

यह देखकर सारे देवता विशेष रूप से इन्द्र आदि भयभीत हो गए। वे सब तुरन्त भगवान विष्णु के पास गए और प्रार्थना की कि महाबलि को सौवां यज्ञ करने से रोकें, तब भगवान ने अपना पांचवां अवतार: वामन अवतार प्रकट करने का निर्णय लिया। वामन रूप धारण कर वे तुरन्त वहीं पहुंचे जहां राजा महाबलि अपना 100वां अश्वमेध यज्ञ प्रारंभ करने वाले थे।

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राजा महाबलि बड़े दानवीर थे और उनके द्वार से कोई भी याचक खाली हाथ नहीं जाता था। विशेषतौर पर ब्राह्मणों पर वे बड़ी कृपा करते थे। महाबलि ने भगवान विष्णु का स्वागत किया जो उस समय ‘वामन’ (एक बौने ब्राह्मण) के रूप में थे। राजा बलि ने कहा, “हे ब्राह्मण! तुम बहुत शुभ समय पर यहां आए हो। इस समय तुम जो भी मांगोगे, वह मैं दूंगा। बताओ …तुम्हें क्या चाहिए?”

वहां राक्षसों के गुरु शुक्राचार्य भी मौजूद थे। उन्होंने तुरंत भांप लिया कि यह वामन कोई साधारण बटुक नहीं है। गुरु ने महाबलि को चेतावनी दी कि बहुत सावधानी से इस ब्राह्मण की मांग समझना, परन्तु महाबलि ने स्पष्ट कह दिया कि वह उस ब्राह्मण को दिया हुआ अपना वचन अवश्य पूरा करेगा, चाहे कुछ भी हो।

वामन ने राजा से कहा- “हे महाराज महाबलि! यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे वह भूमि प्रदान कर दें जो मेरे तीन चरण नाप सकें।”

महाबलि ने सोचा, “बड़ी विचित्र मांग है। यह एक छोटा-सा ब्राह्मण भला कितनी भूमि अपने तीन चरणों में नाप पाएगा?’ फिर राजा ने कहा-ठीक है…तुम अपने चरणों से भूमि नाप लो, …वह तुम्हारी हो जाएगी।”

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वामन ने एक चरण में पूरी पृथ्वी नाप ली और दूसरे चरण में स्वर्ग और तीसरे में पाताल लोक। तब उसने महाबलि से कहा- “हे राजन! मैं अपना तीसरा चरण कहां रखूं?” महाबलि की समझ में आ गया कि यह वामन कोई और नहीं, बल्कि उनके आराध्यदेव विष्णु हैं।

राजा विष्णु के पैरों पर गिर पड़ा और बोला- “हे प्रभु! कितना धन्य हूं मैं कि आपको इस स्वरूप में देख सका। आप अपना तीसरा चरण मेरे शीश पर रखकर मुझे कृतार्थ कर दें।”

भगवान विष्णु राजा बलि की भक्ति देखकर प्रसन्न हो गए और उन्होंने अपना तीसरा चरण उनके शीश पर रखना चाहा पर उसके पहले उन्होंने राजा से पूछा- “क्या तुम्हारी कोई इच्छा बाकी है?”

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राजा बलि ने कहा- “हे प्रभु! एक इच्छा पूरी कर दीजिए कि साल में एक बार मैं अपने प्रिय राज्य (केरल) में वापस आ सकूं।”

भगवान विष्णु ने उनकी यह इच्छा स्वीकार की और कहा कि हर वर्ष चिंगम मास में वह एक बार अपने प्रिय राज्य में वापस आ सकेंगे। भगवान के द्वारा राजा के शीश पर पैर रखने के कारण महाबलि का स्थायी निवास पाताल लोक में हो गया। तभी से यह माना जाता है कि राजा महाबलि चिंगम माह में पाताल लोक से हर वर्ष आते हैं। केरल के लोग ओणम् उत्सव मनाकर हर साल अपने प्रिय राजा का स्वागत करते हैं।

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ओणम् त्योहार समारोहपूर्वक बड़े उत्साह और उल्लास के साथ मनाया जाता है। यह त्योहार दस दिन तक चलता है। पहला दिन ‘अथम्’, नवम् दिन ‘उत्रद’ और दशम् दिवस ‘थीरू ओणम्’ कहा जाता है। इस त्योहार के यही तीन प्रमुख दिवस होते हैं।

अथम अर्थात ओणम् त्योहार की तैयारियों का दिन। लोग बहुत सुबह ही उठ जाते हैं तथा नहा-धोकर शुद्ध होकर अपने घर में या मंदिरों में जाकर पूजा-अर्चना करते हैं।

इस त्योहार की सर्वाधिक आकर्षक गतिविधि है: ‘पूकलम।’ इस दिन घर के आंगन में फूलों का एक कालीन बिछाया जाता है। महाबली के आगमन के स्वागत में। इस फूलों के कालीन को घर की महिलाएं ही तैयार करती हैं। पुरुष फूलों को एकत्र करके लाते हैं।

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‘पूकलम’ बनाने का काम प्रथम दिन से प्रारंभ हो जाता है और त्योहार के अंतिम दिन तक चलता रहता है। फलस्वरूप ‘पूकलम’ एक बेहद सौम्य, मनोहारी एवं सुरुचिपूर्ण कालीन बनकर तैयार होता है।

इसके अलावा लोग अपने घरों की साफ-सफाई करने और सजाने में भी व्यस्त रहते हैं तथा नई वस्तुएं भी खरीदते हैं। अंतिम दिवस (दशम दिवस) थिरु ओणम्’ के दिन खास व्यंजन बनाने की सामग्री इत्यादि लाई जाने लगती है। इस त्योहार के कुछ प्रसिद्ध व्यंजन हैंः एविपल, केले का हलवा, टमाटर की रसम, दोसा और नारियल चटनी।

इन तीनों में पेड़ों पर फूलों से सजे झूले भी डाले जाते हैं और युवा लड़कियां तथा बच्चे उन पर खूब मजे से झूलते हैं।

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इस दिन नियमित पूजा और प्रार्थना की जाती हैं तथा एक खास रिवाज भी होता है। यहां विशाल पारम्परिक संयुक्त परिवारों को ‘तारावदास’ कहते हैं जिनके सदस्यों की संख्या केरल में 100 से भी अधिक हो सकती है। इन विशाल परिवारों का एक विराट संयुक्त रसोईघर होता है। ऐसे परिवारों के वरिष्ठजनों को कर्नावारस कहते हैं।

रिवाज यह है कि इस दिन परिवार के कनिष्ठ सदस्य या किराएदार बड़े-बूढ़ों (कर्नावारसों) को कुछ विशिष्ट तोहफें भेंट करते हैं। बदले में ये बड़े-बूढ़े विशाल प्रीतिभोजों का आयोजन करते हैं जिनमें कनिष्ठों की तथा अन्य जनों की दावत की जाती है। कर्नावारसों को गांव के हस्त-शिल्प के कलाकार अपनी कला के बेहतरीन नमूने भी भेंट देते हैं।

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थिरु ओणम् इस दस दिवसीय विशाल त्योहार का अंतिम दिन होता है। माना जाता है कि आज के ही दिन राजा महाबलि की आत्मा अपने प्रिय देश में आती है। आज का दिन श्रद्धालुजन पूरे भक्तिभाव से मनाते हैं। समृद्ध संस्कृति, संगीत और स्वादिष्ट भोजन वाली केरल की परम्परा अपने पूरे निखार पर होती है।

इस दिन प्रायः लोग सूर्योदय के पूर्व ही उठकर नहाते-धोते हैं और अपनी पूजा पूरे विधि-विधान से अपने घरों में सम्पन्न करते हैं। आज के दिन मिट्टी की देव प्रतिमाएं बनाने का भी रिवाज होता है जिन्हें त्रिक्काकारा अप्पन कहा जाता है। इस रिवाज के पीछे एक पौराणिक महत्व भी है। माना जाता है कि इस रिवाज की शुरुआत त्रिक्काकारा में हुई थी। यह स्थान कोचीन से 10 कि.मी. दूर है।

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इस दिन एक खास त्योहार आरप्पू विलीक्कुकल’ मनाया जाता है जिसमें घर के सभी पुरुष सदस्य लय के साथ एक जोरदार आवाज निकालते हैं। इस ध्वनि के पश्चात ही लोग मंदिर जाकर अपनी प्रार्थना करते हैं।

सुबह के इन कृत्यों के पश्चात् घरों पर ओनासाड्या नामक भोज का आयोजन होता है जिसमें स्वादिष्ट भोजन पूरी पांत के सामने परोसा जाता है। इस दिन लोग जमीन पर चटाइयों पर बैठकर केले के पत्ते पर परोसा भोजन बड़े प्रेम से ग्रहण करते हैं।

भोजनोपरांत खेल-कूद का कार्यक्रम होता है। ओणम् में कुछ विशिष्ट पारम्परिक खेल खेले जाते हैं जिन्हें ‘ओनाकालीकल’ कहते हैं। इनमें शामिल हैं-धनुष चलाना, गेंदों खेलना, कुश्ती और कबड्डी। इन खेलों में प्रायः पुरुष ही भाग लेते हैं। स्त्रियां अपने पारम्परिक नृत्य ‘काइकोट्टीकली’ (एक प्रकार का ताली नृत्य) और ‘थुम्बी थुलाल’ द्वारा अपना मनोरंजन करती हैं।

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ओणम के दौरान पूरे प्रान्त में विशिष्ट सांस्कृतिक और खेल कार्यक्रमों का आयोजन होता रहता है। कुछ प्रसिद्ध आयोजन हैं- ‘अथाचाम्यम’ -सर्वनौका दौड़, सजे-धजे हाथियों के जुलूस निकालना, ‘पूकलम’ के बनाने की प्रतियोगिताएं पुलीकली/काडूवकल्ली – एक नृत्य जिसमें पुरुष चीते की पोशाक में नृत्य करते हैं, कथाकली – प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्य एवं रात्रि को चित्ताकर्षक आतिशबाजी की जाती है।

ओणम एक शानदार विशाल पैमाने पर मनाया जाने वाला त्योहार है। इस दौरान पूरा केरल प्रान्त एक देदीप्यमान सितारे के समान चमकता है। त्योहार के समय दिखाए गए रंग, उत्साह और मौज-मस्ती का आलम मंत्रमुग्ध कर देता है।

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ये त्योहार और इनकी गतिविधियां सभी जाति-धर्म-संप्रदायों को एक सूत्रमें बांधती है। सभी लोग मिल-जुलकर यह त्योहार मनाते हैं। ओणम् त्योहार एकता और भाईचारे के भाव को मजबूत करता है।

केरल के लोग बड़ी उत्सुकता से इस प्यारे त्योहार की वर्ष-भर बाट जोहते हैं। आईए, हम ईश्वर से प्रार्थना करें कि “ओणम् की उदात्त भावना हम सबके जीवन में सुख, आनन्द और प्रेम का संचार करती रहे।”

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