ओलंपिक 2021: साल, 2021 खेल के लिहाज से बहुत अच्छा रहा है। टोक्यो ओलंपिक में भारत ने व्यक्तिगत स्पर्धा खेल जैवलिन थ्रो में पहला गोल्ड मेडल अपने नाम किया। गोल्ड मेडल एथलीट नीरज चोपड़ी ने दिलाया। इसके अलावा 2 सिल्वर और 4 ब्रॉन्ज मेडल भी हासिल किए। इस बार के ओलंपिक में महिलाओं को प्रदर्शन शानदार रहा।
अब साल के जाते-जाते पूरी दुनिया ने भारतीय महिला एथलीट के हुनर को सलाम किया है। यहां बात हो रही है भारत की बेस्ट एथलीट अंजू बॉबी जॉर्ज की, जिसे वर्ल्ड एथलेटिक्स-2021 के वुमन ऑफ द ईयर अवार्ड से सम्मानित किया गया है। यह अवॉर्ड अंजू को महिलाओं को स्पोर्ट्स में बढ़ावा देने और उन्हें प्रेरित करने के लिए दिया गया है।
इस मौके पर अंजू बॉबी ने कहा, “वर्ल्ड एथलेटिक्स की तरफ से वुमन ऑफ द ईयर का खिताब मिलना मेरे लिए सम्मान की बात है।” उन्होंने आगे कहा कि खेल के क्षेत्र में योगदान देना और महिला व लड़कियों को इसके माध्यम से सशक्त बनाने से अच्छी फिलिंग क्या हो सकती है।
अंजू बॉबी जॉर्ज अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त भारत की पूर्व लॉन्ग जंप एथलीट हैं। अंजू वर्ल्ड 2003 में पेरिस में हुए वर्ल्ड एथलेटिक्स चैंपियनशिप में लॉन्ग जंप में पदक जीतने वाली इकलौती भारतीय हैं। और वे एथेंस ओलिंपिक में छठे स्थान पर रहीं थीं।
Truly humbled and honoured to be awarded Woman of the Year by @WorldAthletics
— Anju Bobby George (@anjubobbygeorg1) December 1, 2021
There is no better feeling than to wake up everyday and give back to the sport, allowing it to enable and empower young girls!
Thank you for recognising my efforts. 😊😊 pic.twitter.com/yeZ5fgAUpa
अंजू को एथलेटिक्स में भारत के लिए पहला अंतर्राष्ट्रीय पदक हासिल करने और एथेंस ओलंपिक में छठे स्थान पर रहने के लिए जाना जाता है। लेकिन वे एक अच्छी खिलाड़ी होने के साथ-साथ एक अच्छी इंसान भी हैं। जब वे इंडियन एथलेटिक्स फेडरेशन की सीनियर वाइस प्रेसिडेंट थीं, तो इन्होंने लिंग समानता के लिए आवाज उठाई। उन खिलाड़ियों की बातों को सबके सामने रखा जो किसी डर से कुछ कह नहीं पाते थे।
उन्होंने स्कूली लड़कियों को खेल में अच्छा प्रदर्शन करने के लिए प्रोत्साहित किया और उनका मार्गदर्शन भी किया। अंजू ने 2016 में युवा लड़कियों के लिए एक ट्रेनिंग एकेडमी भी खोली, जिसमें अंडर-20 पदक विजेताओं को तैयार किया गया।
वर्ल्ड एथलेटिक्स गोल्ड मेडल विजेता
अंजू केरल की रहने वाली हैं और वर्तमान में 44 साल की हैं। आईएएएफ वर्ल्ड चैंपियनशिप 2003 में भारत के लिए एकमात्र मेडल (ब्रॉन्ज) अंजू ने जीता था। 2005 में आईएएएफ वर्ल्ड एथलेटिक्स में अंजू ने गोल्ड मेडल जीता था। 2004 के एथेंस ओलिंपिक में 6.83 मीटर जंप के साथ अंजू छठें स्थान पर रही थीं जो कि बाद में 5वें स्थान के तौर पर बदल गया। क्योंकि, अमेरिका की मरियन जोन्स को डोपिंग के आरोपों की वजह से डिसक्वालिफाई कर दिया गया।

सुबह की शुरुआत 4 बजे से
अंजू की शुरूआती पढ़ाई सेंट एनी गर्ल्स स्कूल में हुई। इनके पिता सामान्य पिता जैसे नहीं थे। इनके पिता ने इनको खेल में बढ़ने के लिए बहुत प्रोत्साहित किया और खुद अंजू को सुबह उठाते थे। अंजू कहती हैं कि अगर मैं कभी खेल में ढीली पड़ने भी लगती थी तो भी मेरे पिता मुझे ऐसा करने नहीं देते और आगे बढ़ने के लिए खूब प्रोत्साहित करते। अंजू के दिन की शुरुआत सुबह 4 बजे से होती थी। वे सुबह ही मैदान पर चली जातीं जहां उनके पापा उन्हें गाइड किया करते थे। फिर उसके बाद वे स्कूल जाती थीं। यह शेड्यूल उनके लिए काफी थकाने वाला होता था। शाम को फिर से ट्रेनिंग होती थी। लेकिन उनके पिता उन्हें कभी थकने और रुकने नहीं देते।
स्कूल में सीखें एथलेटिक्स के बेसिक्स
अंजू ने स्कूल में एथलेटिक्स के बेसिक्स सीखे। इन्होंने पांच साल की उम्र से ही एथलेटिक्स कॉम्पटिशन में भाग लेना शुरू कर दिया था। इसके बाद वे ‘सीकेएम कोरूथोड़े स्कूल’ चली गईं, जहां इनके कोच ने इनके टैलेंट को और चमकाया।
पीटी उषा से रही हैं प्रभावित
अंजू अपनी जिंदगी में हमेशा से एक शख्सियत से प्रभावित रही, पीटी उषा। पीटी उषा भारत की पहली महिला एथलीट थीं जो किसी भी ओलंपिक फ़ाइनल में पहुंची थीं। अंजू को भी पीटी उषा बनना था और इस जिद ने ही उन्हें यहां तक पहुंचाया। उन्हें शुरू में यह नहीं मालूम था कि उन्हें किस खेल में आगे जाना चाहिए इसलिए अंजू ने स्कूल में कई खेलों में हिस्सा लेना शुरू किया। चाहे वो हाई जंप हो, लॉन्ग जंप हो, 100 मी. रेस हो, या हैप्थलॉन हो।
फिर उन्होंने नेशनल स्कूल गेम्स में 100 मीटर रेस और 400 मीटर रिले रेस में हिस्सा लिया जहां वो तीसरे नंबर पर रहीं। बाद में उन्होंने सिर्फ जंपिंग गेम में ध्यान देना शुरू किया। 1996 में दिल्ली जूनियर एशियाई खेलों में मेडल जीता। इसके बाद वे त्रिचुरी पहुंची जहां उनका करियर थोड़ा शेप में आने लगा। उनका नाम नेशनल लेवल पर आया। यहीं इनका सलेक्शन नेशनल कोचिंग कैम्प में हुआ।

सिडनी ओलंपिक में नहीं ले पाईं थीं हिस्सा
अंजू ने 20 साल की उम्र में ट्रिपल जंप में नेशनल रिकॉर्ड बनाया। 1999 अंजू के लिए सबसे अच्छा और बुरा दोनों रहा था। इस साल इन्होंने नेपाल में हुए साउथ एशियन फेडरेशन कप में सिल्वर मेडल जीता। ये उनके अब तक के करियर की सबसे बड़ी जीत थी। लेकिन इसी साल इनके एंकल में गहरी चोट लग गई और वे 2000 में हुए सिडनी ओलंपिक में हिस्सा नहीं ले पाई थी।
2001 में बनाया रिकॉर्ड
लेकिन अंजू ने जिद पकड़ी थी कि उन्हें पीटी उषा बनना है। इसलिए उन्होंने अपनी प्रैक्टिस में बदलाव किया। मेहनत दोगुनी की। राष्ट्रीय चैंपियन राबर्ट बॉबी जॉर्ज का मार्गदर्शन लिया। इस तरह वो 2001 में अपनी चोट से उभरीं और लंबी कूद में 6.74 मीटर का रिकॉर्ड कायम किया। आगे चल कर अंजू ने इन्हीं बॉबी जॉर्ज के साथ शादी कर ली।
राष्ट्रमंडल खेल में जीता सिल्वर मेडल
अंजू ने मैनचेस्टर के राष्ट्रमंडल खेलों में सिल्वर मेडल जीता। इस मंच पर किसी भारतीय महिला एथलीट की पहली जीत थीं। यहां उन्होंने 6.49 मीटर लम्बी छलांग लगाई थी। इसके वाद बुसान एशियाई खेलों में उन्होंने गोल्ड मेडल जीता। यहां उन्होंने 6.53 मीटर की छलांग, 1.8 मीटर प्रति सेकंड की स्पीड से लगाई थी। इसके बाद अंजू ने दुनिया के प्रसिद्ध एथलीट माइक पावेल से कड़ी ट्रेनिंग ली। जिसके बाद इन्होंने 2003 में वो कर दिखाया जो अब तक किसी खिलाड़ी ने नहीं किया था। इन्होंने 2003 में विश्व-स्तर के कॉम्पिटिशन में मेडल जीता और वो ऐसा करने वाली पहली इंडियन बनीं। ये जीत उन्होंने 6.7 मीटर की जंप लगा कर अपने नाम दर्ज की थी।
अपने पर भरोसा रखें
अंजू ने अपनी सफलता का राज बताते हुए कहा था-आप जो भी कर रहे हैं, उस पर आपको भरोसा होना चाहिए। जब मैं प्रैक्टिस करती थी तो मेरी प्रैक्टिस पर मुझे और मेरे कोच के अलावा किसी को भरोसा नहीं था। हमलोग अंतर्राष्ट्रीय स्टर पर मेडल जीत सकते हैं, यह सुनकर तो सब हंसते थे। लेकिन मैंने किसी की नहीं सुनी और प्रैक्टिस करती रही और आज में यहां आप सब के सामने खड़ी हूं। इसके साथ ही अंजू अपने करियर का श्रेय अपने पति को देती हैं।
तो यह थी अंजू के पूरे जीवन के संघर्ष और सफलता की कहानी, जिसे पढ़कर एक चीज अच्छी तरह समझ आती है कि जीवन में फोकस रहना और खुद पर भरोसा रखना बहुत जरूरी है।
