Rang De Basanti: शहीद भगतसिंह देश की आजादी के लिए मर मिटे थे। कभी सोचा है कि वो क्या जज्बा था कि देश के लिए हंसते-हंसते उन्होंने अपनी जान गंवा दी। उस जज्बे और शहादत को महसूस करना है तो फिल्म रंग दे बसंती को देखें और महसूस करें कि जब सरफरोशी की तमन्ना दिल में होती है तो क्या होता है।
हम भारत में रहने वाले लोग हैं। हम कभी भ्रष्टाचार की शिकायत करते हैं तो कभी हमें अपनी जनसंख्या से ही परेशानी है। हम वो भारतीय हैं जो विदेश जाते हैं तो वहां की दिशा-निर्देशों का बखूबी पालन करते हैं साफ-सफाई का यहां आकर वर्णन करते हैं। लेकिन अपनी ही गली अगर गंदी है तो हम सिस्टम को दोष देते हैं।

स्वतंत्रता का मूलभत अधिकार
हां लेकिन इसके देश की खासियत ये है कि हमें स्वतंत्रता का मूलभत अधिकार प्राप्त है। हम जो मर्जी चाहे धर्म का पालन कर सकते हैं। सूचना के अधिकार के तहत हम कोई भी ऑफिशल दस्तावजों संबंधित जानकारी हासिल भी कर सकते हैं। अपनी सारी विभन्नताओं के बावजूद हम अपने देश से प्रेम करते हैं। यह आजादी हमें यों ही नहीं मिली। यों ही हम लोकतंत्र में नहीं रहते। न जाने कितने लोगों ने इस देश के लिए इस स्वतंत्रता के लिए अपनी जान की कीमत चुकाई है। इसमें शहीदे आजम भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद और राजगुरू का नाम उल्लेखनीय है।

हीरो के तौर पर दोबारा स्थापित
हां लेकिन साल २००६ में आई एक फिल्म ने इन किरदारों को एक हीरो के तौर पर दोबारा स्थापित किया था। फिल्म का नाम था रंग दे बसंती। फिल्म में आमिर खान जैसे एक बड़े हीरो थे, लेकिन यह फिल्म किसी हीरो की वजह से नहीं उसकी कहानी की वजह से याद की जाती है। यह फिल्म कल्ट फिल्म की श्रेणी में आती है। यह वो फिल्में होती हैं जो कि अपनी एक छाप स्थापित करती हैं।

वे अल्हढ़ जो खुद किरदार बन गए
रंग दे बसंती प्रेम और बिछोह से ज्यादा दोस्तों की कहानी है कि कैसे कॉलेज में पढऩे वाले तीन युवा अपनी एक मस्त और अल्हढ़ जिंदगी जीते हैं। उनकी एक दोस्त भी है जिसका बायफ्रैंड फ्लाइट लेफ्टिनेंट है। उनकी दोस्त सोहा के पास एक अंग्रेज लडक़ी डॉक्यूमेंट्री बनाने के लिए हिंदुस्तान आती है। उसे इन दोस्तों में वह किरदार नजर आते हैं। लेकिन जीने वाले स्थितियों के साथ खुद ब खुद ही एक किरदार बनते चले गए। हुआ यों कि मिग दुर्घटना में फिल्म का किरदार मरता है। उसके दोस्त इंडिया गेट पर शांतिपूर्ण धरना करते हैं। पुलिस का असहोयात्मक रवैया सामने आता है। इससे अभियान और विशाल हो जाता है। पुलिस और प्रशासन यह साबित करने की कोशिश करता है कि मिग में कोई गड़बड़ नहीं थे। जबकि यह एक घोटाला था। यह अल्हढ़ लड़क़े प्रशासन को अपने हाथ में लेने की कोशिश करते हैं। अंत में दिल्ली के रेडियो स्टेशन पर कब्जा कर लेते हैं। लापरवाह से दिख रहे लडक़े एक मुद्दे के लिए मौत का भी हंसते-हंसते गले लगा लेते हैं।
तब पता चलेगा
बेशक यह फिल्म विवादों में भी रही लेकिन इसने युवा मन पर जादू कर दिया। इसने साबित कर दिया कि जरूरी नहीं होता कि हम हालात के सामने बेबस नजर आएं, हम हालात से लडक़र उन्हें बदलने की चेष्टा अपनी ओर से कर सकते हैं।