Rajni in Coolie
Rajni in Coolie

Summary : कूली में सपोर्टिंग कास्ट और म्यूजिक ने संभाला मोर्चा

कूली एक क्राइम-थ्रिलर है जिसमें रजनीकांत का किरदार ‘देवा’ हर सीन में बाकी किरदारों से आगे निकल जाता है। अंत में आमिर खान की कैमियो एंट्री थोड़ी हंसी जरूर दिलाती है, पर असरदार नहीं बन पाती।

Coolie Film Review: लोकेश कनगराज की फिल्म ‘कूली‘ इस साल की सबसे ज्यादा चर्चा में रहने वाली भारतीय फिल्मों में से एक है। रिलीज से पहले का हाइप, एडवांस बुकिंग के आंकड़े और दर्शकों की आसमान छूती उम्मीदें… सब कुछ इशारा कर रहे थे कि रजनीकांत की ये साल की सबसे धमाकेदार एंट्री होगी। लेकिन फिल्म देखते-देखते लगता है जैसे लोकेश कनगराज अपने ही पुरानी हिट्स की कॉपी बना रहे हैं और वो फीकी क्वालिटी वाली।

फिल्म की शुरुआत लोकेश के ट्रेडमार्क इंटरकट स्टाइल से होती है… क्राइम वर्ल्ड, पुलिस इन्फॉर्मर, स्मगलिंग सिंडिकेट और हिंसक एंट्रीज। जल्द ही कहानी में ऐसे-ऐसे खाली स्पॉट नजर आते हैं कि दर्शक सोचने लगता है “अरे भाई, कुछ जोड़ना भूल गए क्या?” किरदार आते-जाते रहते हैं। लोग मारे जाते हैं। बीच-बीच में कुछ ‘नियम’ सेट होते हैं, जिनका असली मकसद कभी साफ नहीं होता.. आप सोच-सोचकर सिर दुखा लेते हैं।

फिल्म के हीरो रजनीकांत हैं जो बाकी सभी किरदारों से हमेशा दो कदम आगे रहते हैं। लोकेश ने रजनीकांत की स्टार पर्सनैलिटी को पुरानी श्रद्धा के साथ और हल्की-फुल्की मस्ती के अंदाज में पेश किया है। ‘इंट्रोडक्शन सॉन्ग’ का सेटअप तो है, लेकिन उसे अजीब-सी लोकेशन में शूट किया गया है। रजनीकांत शुरू में अपने हॉस्टल के किरायेदारों के साथ मौज करते हैं, लेकिन जैसे ही उन्हें अपने पुराने दोस्त राजशेखर (सत्यराज) की मौत की खबर मिलती है, कहानी मोड़ लेती है। दोस्त की बेटियां खतरे में हैं, लेकिन क्यों… यह काफी देर से पता चलता है।

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फिल्म की रीढ़ फ्लैशबैक है, लेकिन लोकेश इस बार इसे इतनी उलझी हुई डोर में बांधते हैं कि कई सीन बिना किसी कनेक्शन के शुरू हो जाते हैं। एक वक्त पर तो लगता है, “ये सीन अभी क्यों आया?” विक्रम में जो ब्रेडक्रंब नैरेटिव था, वो यहां भी लाने की कोशिश की गई लेकिन इमोशनल गहराई और मजा गायब है।

नागार्जुन और साउबिन शाहिर स्क्रीन टाइम के मामले में रजनीकांत के बाद आते हैं। दोनों की एक्टिंग में दम है, लेकिन उनके किरदार महज स्टाइलिश खलनायक हैं। लोगों को काटना, मारना, और कैमरे में ‘कूल’ दिखना ही उनका मकसद है।

Rajinikanth
Superstar Rajni in Coolie Movie.

अनिरुद्ध का म्यूजिक यहां असली राहत है। रजनीकांत के पुराने दोस्त की कहानी में लोक-स्टाइल म्यूजिक का इस्तेमाल बाकी के ईडीएम-हैवी बैकग्राउंड से अलग और ताजगी भरा लगता है। सिनेमैटोग्राफर गिरीश गंगाधरन ने एक्शन और ड्रामा के बीच अच्छा बैलेंस रखा। मेंशन वाला एक्शन सीन (उपेन्द्र और रजनीकांत वाला) लोकेश के असली विजुअल सेंस का मजा देता है, लेकिन बाकी एक्शन बस औपचारिक से लगते हैं।

फिल्म में पुरानी रजनीकांत क्लासिक का एक गाना फिट बैठता है। यह फैंस के लिए छोटा लेकिन प्यारा सरप्राइज है। आमिर खान का कैमियो मजेदार है, हंसी भी आती है। वही बात…ये वो प्रभाव नहीं छोड़ता जिसकी उम्मीद थी। जब-जब फिल्म अपने हाईलाइट फ्लैशबैक सीक्वेंस दिखाती है, जिसमें रजनीकांत को डी-एज किया गया है, तभी असली जोश महसूस होता है। अफसोस, बाकी की फिल्म इन पलों की बराबरी नहीं कर पाती।

कूली, रजनीकांत की स्टार पावर, लोकेश के विजुअल्स और अनिरुद्ध के म्यूजिक की वजह से देखने लायक है। कहानी की कमजोरी, अनावश्यक खींचतान और भावनात्मक जुड़ाव की कमी इसे ‘एवरेज’ श्रेणी में डाल देती है। इसे देखते वक्त आपको बार-बार लोकेश की पुरानी फिल्में याद आएंगी और आप सोचेंगे  कि काश, ये भी वैसी होती।

ढाई दशक से पत्रकारिता में हैं। दैनिक भास्कर, नई दुनिया और जागरण में कई वर्षों तक काम किया। हर हफ्ते 'पहले दिन पहले शो' का अगर कोई रिकॉर्ड होता तो शायद इनके नाम होता। 2001 से अभी तक यह क्रम जारी है और विभिन्न प्लेटफॉर्म के लिए फिल्म समीक्षा...