हम किसी से कम नहीं

ललिता निझावन
(उद्यमी, शिक्षाविद् एवं प्रख्यात समाजसेवी)

जीने की प्रेरणा
एक ऐसा नाम ललिता निझावन जो महिला उद्यमशीलता के लिए लगाातार प्रयासरत हैं। बच्चों और महिलाओं के लिए बढ़- चढ़ कर आगे आने में ललिता कभी पीछे नहीं रहीं। उनका सपना साकार हुआ और उनके द्वारा संचालित स्कूल ने कई उदास चेहरों को खुशी दी।
उद्देश्य
महिलाओं एवं बच्चों खासकर लड़कियों के
कल्याण हेतु काम करने की ललिता निझावन की
अदम्य भावना उन्हें 1992 में दिल्ली से राजस्थान
के बांसवाडा क्षेत्र में खींच कर ले गई जहां उन्होंने
समाज के वंचित वर्गों के लिए एक स्कूल खोला।
उपलब्धियां
ललिता निझावन को कई पुरस्कारों से सम्मानित
किया गया है जिनमें एमिटी विश्वविद्यालय द्वारा
2009 में ‘महिला उद्यमशीलता के लिए एमिटी
उत्कृष्टता पुरस्कार, भोपाल में अक्तूबर 2008 में
‘ओजस्विनी पुरस्कार, 2005 में भारत निर्माण से
दिल्ली की ‘शीर्ष सर्वश्रेष्ठ प्रतिभाशाली महिला
पुरस्कार, शिक्षा मंत्री प्रोफेसर नरूल हसन द्वारा
1974 में ‘शिक्षा में सर्वश्रेष्ठ विद्यार्थी पुरस्कार
और भारत के उपराष्ट्रपति डॉ. जाकिर हुसैन से
कला उद्यमशीलता के लिए पुरस्कार शामिल हैं।
चुनौतियां
उत्तर-पूर्व के दूर-दराज क्षेत्रों मणिपुर, त्रिपुरा एवं
असम तक इसे फैलाना और हजारों वंचित एवं
सीमांत बच्चों को लाभ पहुंचाने के दौरान उनके
साथ तालमेल बिठाना एक बड़ी चुनौती रही।
कैसी रही सोच
महिलाओं और बच्चों के कल्याण के लिए काम
करने की ललक ने उन्हें इस दिशा में आगे बढने
की प्रेरणा दी।
सफलता का मूलमंत्र
अपने कार्य के प्रति पूर्ण समर्पण।
सकारात्मक सोच।
सपनों के लिए कार्यरत रहना।
समय का सदुपयोग।

मेहा भार्गव
(एसीईओ स्टाइल डॉट आईएनसी)

ऊर्जा को दी सही दिशा

हम सब के अंदर के अलग ऊर्जा होती है
लेकिन बहुत कम लोग ही ऐसे हैं जो उस
ऊर्जा को सही दिशा में लगाते हैं। उनमें
से एक हैं इमेज कंसल्टेंट और स्टाइल डॉट आई
एन सी की सीईओ मेहा भार्गव जिन्होंने अपनी
कम्युनिकेशन स्किल के दम पर एक मुकाम
हासिल कर पहचान बनाई।
कैसे की शुरुआत
आम लोगों को जागरूक करना और इमेज
कंसल्टिंग की जरूरत समझाना उनकी सोच रही
है। पहनावा, रहन-सहन, बॉडी लैंग् वेज और
कम् युनिकेशन स्किल यदि पेशेवर भूमिका और
लक्ष् य के अनुकूल नहीं हो तो संपूर्ण प्रेजेंटेशन ही
खतरे में पड़ जाती है, बस इसी को अपनी सोच
बनाकर मेहा ने इस फील्ड में रखा कदम। मेहा
ने अपने कैरियर की शुरुआत हारपर्स बाजार
इंडिया, एनडीटीवी गुडटाइम् स और जुडिथ रसबैंड
जैसे दिग् ग् जों के साथ बतौर स् टाइलिस् ट काम
करके की।
चुनौतियां
मेहा का मानना है कि हर दिन चुनौतीपूर्ण होता
है। हर एक क् लायंट/ कंपनी के साथ अलग-
अलग तरीके से चुनौतियों का सामना करना
पड़ता है।
उपलब्धियां
मेहा अपने कार्य को लेकर हमेशा ही सजग रहती
हैं। ऐसे में उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि उनकी
नज़र में यही होती है कि उनका क्लायंट या
संस्था की कार्यसंस्कृति में कोई बड़ा बदलाव ना
किया जाए और इस दिशा में वो हमेशा कार्यरत
रहती हैं।
सफलता के मूलमंत्र
आत्मविश्वासी रहें। अपनी प्रतिभा और हुनर को कम कर न आंकें।बड़ा सोचें।हर आलोचना या तारीफ को समालोचनात्मक तरीके से लें।

इंदू कुमारी

दमदार
इरादे
प्रतिभा आपको हर
जगह, हर मोड़ पर
मिलती हैं लेकिन
मुश्किलें, अभाव वो शब्द हैं
जो सिर्फ आपको कमजोर
बनाते हैें। कुछ ऐसी
शख्सियत हैं जिनके लिए यह
शब्द मायने नहीं रखते हैं। वो
अभाव में भी कुछ कर गुजर
जाने का दम रखते हैं। ऐसी
ही एक प्रतिभा है इंदू कुमारी
जिन्होंने गांव में फुटबॉल
खेलकर दिखा दिया कि इतने
दमदार होने चाहिए आपके
इरादे।
दमदार लक्ष्य
पतरातू में फुटबॉल टीम ज्वाइन करने से पहले गांव स्तर के फुटबॉल में इंदू के
कौशल की खास पहचान नहीं थी लेकिन खेल में दिलचस्पी लगातार रही।
आधुनिक सुविधाओं और टेलीविजन या मीडिया का अभाव होने के चलते कोई
मार्गदर्शन नहीं मिला। लेकिन इंदू की लगन ने पहुंचाया लक्ष्य तक।
जेएसपीएल फाउंडेशन ने की मदद
जेएसपीएल फाउंडेशन के सीएसआर के तहत नई गठित उनकी फुटबॉल टीम को
एक कोच दिया और इंदू ने नियमित कार्यों के साथ 4 घंटे पूरी लगन से खेल का
अभ्यास शुरू किया। जेएसपीएल फाउंडेशन का यह प्रयास इंदू की टीम के लिए
वरदान था। इससे उन्हें पहचान मिली और इंदू और उनकी फुटबॉल टीम ने लोकल
और जिला स्तर के टूर्नामेंट में जेएसपीएल और अपने गांव का प्रतिनिधित्व करना
शुरू कर दिया।
उपलब्धियां
स्कूल और डस्ट्रिक्ट फुटबॉल टीम में उनका चयन, साथ ही नेशनल टूर्नामेंट में राज्य
का प्रतिनिधत्व करना इंदु की बड़ी उपलब्धि है। 2011 में रांची में आयोजित
डिस्ट्रिक्ट टुर्नामेंट में चयनकर्ताओं ने उन्हें हजारीबाग के लिए चुना और यह एक
बड़ी उपलब्धि इसलिए थी क्योंकि हजारीबाग टीम की गिनती राज्य की सबसे
अच्छी टीमों में होती थी। इसके बाद उन्होंने मुड़ कर नहीं देखा और अपनी टीम के साथ मिलकर अंडर-17 नेशनल टुर्नामेंट में झारखंड का प्रतिनिधित्व किया।
चुनौतियां गांव से नेशनल टीम तक का सफर आसान नहीं था। महिला टीम के पास बुनियादी फंड भी नहीं होते जिनसे जर्सी और अन्य जरूरी चीजें खरीदी जा सकें। कभी-कभी उन्हें बिना रिजर्वेशन कई दिनों की रेल यात्रा करके टुर्नामेंट की जगह पहुंचना होता था। टुर्नामेंट के दौरान अक्सर लॉजिस्टिक्स की समस्या भी रहती है। लेकिन इस खेल को लेकर इंदु में जो दीवानगी है वही आगे बढऩे का हौसला देती है।
सफलता के मूल मंत्र
कठिन परिश्रम करें।
कार्य करने की लगन बनाए रखें।
लक्ष्य पर अडिग रहें।
मुश्किलों में भी राह निकालें।