Summary: माइक मोहन: एक ही दिन तीन सुपरहिट फिल्में देने वाला तमिल सिनेमा का अनोखा सितारा
तमिल सिनेमा के सुपरस्टार मोहन, जिन्हें 'माइक मोहन' कहा जाता था, 1980 के दशक में अपने भावनात्मक और पारिवारिक किरदारों के लिए बेहद लोकप्रिय थे। 1984 में उन्होंने एक ही साल में 14 फिल्में कीं, जिनमें से तीन एक ही दिन रिलीज होकर सुपरहिट रहीं। लाइव साउंड रिकॉर्डिंग की वजह से उन्हें ‘माइक मोहन’ नाम मिला।
Mike Mohan Career Story: जब बात बॉलीवुड या टॉलीवुड के ऐसे सितारों की होती है जो साल में सबसे ज़्यादा फिल्में करते हैं, तो अक्सर अक्षय कुमार या प्रभास जैसे नाम दिमाग में आते हैं। लेकिन आज हम एक ऐसे अभिनेता की कहानी आपको बताने जा रहे हैं, जिन्होंने 1980 के दशक में ऐसा रिकॉर्ड बना दिया, जिसे सुनकर आज भी लोग हैरान रह जाते हैं।
ये कलाकार हैं तमिल सिनेमा के सुपरस्टार मोहन, जिन्हें प्यार से ‘माइक मोहन’ कहा जाता था। उन्होंने एक साल में 14 फिल्में कीं और इनमें से तीन एक ही दिन सिनेमाघरों में रिलीज हुईं, और कमाल की बात ये है कि तीनों सुपरहिट रहीं।
छोटे किरदार से सुपरस्टार तक का सफर

मोहन का फिल्मी सफर साल 1977 में शुरू हुआ था, जब उन्हें प्रसिद्ध सिनेमैटोग्राफर और निर्देशक बालू महेंद्र की फिल्म कोकिला में पहला मौका मिला। इस फिल्म में मुख्य भूमिका में कमल हासन थे, लेकिन मोहन के छोटे से रोल ने भी दर्शकों का ध्यान खींचा। धीरे-धीरे उन्होंने तमिल फिल्म इंडस्ट्री में अपनी जगह बनानी शुरू की और जल्द ही मूडुपानी, नेनजाथाई किलाथे, क्लिनचलगल और पयानागल मुडियाथिल्लई जैसी सुपरहिट फिल्मों में अभिनय कर अपने अभिनय कौशल का लोहा मनवाया।
उनके सौम्य और भावनात्मक अभिनय की वजह से दर्शक उनसे जुड़ाव महसूस करने लगे। मोहन खासकर पारिवारिक और सामाजिक फिल्मों में काम करना पसंद करते थे, जिनमें साफ-सुथरी कहानी और मजबूत भावनात्मक तत्व होते थे। उनके किरदारों में एक सादगी होती थी जो आम आदमी से जुड़ाव बनाती थी। यही वजह थी कि उनकी फिल्मों को पूरे परिवार के साथ देखने का चलन बन गया था।
‘माइक मोहन’ के नाम से क्यों जाने जाते हैं मोहन
मोहन को इंडस्ट्री में ‘माइक मोहन’ के नाम से इसलिए बुलाया जाने लगा क्योंकि वह अधिकतर फिल्मों में डबिंग के बजाय लाइव साउंड रिकॉर्डिंग करते थे। उनकी आवाज़ में एक खास तरह की मिठास और साफगोई थी, जिसे दर्शकों ने खूब पसंद किया।
1984 का साल मोहन के लिए गोल्डन ईयर

1984 मोहन के करियर का सबसे सुनहरा साल साबित हुआ। इस साल उनकी 14 फिल्में रिलीज़ हुईं यानी लगभग हर महीने एक से ज्यादा फिल्म। इससे भी बड़ी बात यह थी कि एक ही दिन, अक्टूबर महीने में, तीन फिल्में एक साथ रिलीज़ हुईं, ओ माने माने, ओसाई और उन्नई नान मतान। तीनों फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट रहीं।
इस साल रिलीज़ होने वाली उनकी अन्य फिल्मों में नान पदुम पाडल, नुरावदु नाल, निरापाराधि, विथि, अंबिगाई नेरिल वंधल, अनबे ओडी वा, शांति मुकुर्थम, नेनजाथाई अल्लिट था, माकुडी, रूसी और वैपंधल शामिल थीं। ये सभी फिल्में दर्शकों के दिलों को छू गईं और मोहन का नाम हर दर्शक की जुबान पर छा गया।
उस दौर का भरोसेमंद सितारा
1980 के दशक में जब रजनीकांत और कमल हासन जैसे दिग्गज कलाकारों का जलवा था, उसी दौर में मोहन ने अपनी खास जगह बनाई। वे उन चुनिंदा कलाकारों में से थे जिनपर हर निर्देशक और निर्माता आंख मूंदकर भरोसा करता था। उनकी फिल्मों की साफ-सुथरी छवि, पारिवारिक भावनाएं और सामाजिक संदेश ने उन्हें हर वर्ग के दर्शकों का चहेता बना दिया।
मोहन की लोकप्रियता इस हद तक थी कि तमिलनाडु के कई सिनेमाघरों में उनकी फिल्में दोबारा देखने के लिए लोग पूरे परिवार के साथ जाते थे। उनकी फिल्मों में कोई अश्लीलता या जबरदस्ती का मसाला नहीं होता था, बल्कि उनमें भावनाओं की गहराई होती थी जो सीधे दिल को छू जाती थी।
