रोज़ की तरह सुबह आंगन को साफ करती हुई माजी ने नीलम को ज़ोर से आवाज़ लगाई। बहू आज नाश्ते में पोहा बना लो, बच्चे भी खा लेंगे।
अब वहां बहू तो पहले से ही तवे पर परांठे सेक रही थी। नीलम बोली, मां नन्ही बुलबुल तो एक खा भी चुकी थी और रोहन को बस परोस रही हूं। अब बहू ने आवाज़ लगाई माजी आलू के परांठे बन गए हैं, आकर खा लीजिए आप भी।
अब ये सुनते ही माजी ने दबे स्वर में कहा अब हमसे कौन पूछता है भाई। सब अपनी अपनी मर्जी करते हैं।
खैर, अब तो ये रोज़ का था। माजी बात बात पर बहू को सिखाने की कोशिश करतीं और बहू तो बस अपने मन की ही सुनती थी।
बहू नहलाने से पहले रोहन की मालिश कर देना, तो वही नीलम बोली माजी वो तो कब का नहा चुका है, अब कल कर दूंगी।
अब बात बात पर माजी जो भी काम कहती, नीलम या तो उससे उलट करती यां फिर करती ही नहीं।
अब शाम ढ़लने लगी थी, पूजा के बाद माजी अपने संदूक को पंलग के नीचे से बाहर की ओर खींचने लगी। तभी नीलम कमरे के पास से गुज़री और उसकी नज़र माजी पर गइ। वो एकदम कमरे में दाखिल हुई और बोली माजी क्या कर रही हैं आप, इतना भारी संदूक अकेले निकाल रही है और ये कहते हुए संदूक निकालकर पलंग पर रख दिया। आपको पहले भी मना किया है कि बुला लिया कीजिए।
अब माजी मन ही मन बहू की चिंता देखकर खुश होने लगीं और कहा चल अगली बार ध्यान रखूंगी। संदूक को खोलते हुए धीमे से बोलीं, गर्म कपड़ें पता नहीं कहां रख दिए मैंने। संदूक खोलते ही सबसे पहले माजी को एक सुर्ख लाल रंग की साड़ी रखी नज़र आई, अब बहू भी पास ही खड़ी थी। उसने झट से पूछा माजी ये कौन लाया। मां ने बोला अरे तुम्हारे पिताजी जब औंरगाबाद गए थे, तब लाए थे। मैंने बस एक ही बार पहनी है। सोचती हूं छुटकी बहू को दे दूंगीं।
अब ये सुनते ही नीलम बहू फिर से गुस्से में तिलमिलाई और मन ही मन कहते लगी कि काम मैं करूं सारा दिन और तोहफे लेते वक्त छुटकी बहू याद आती हैं। अब माजी धीरे धीरे संदूक से कपड़े बाहर निकालने लगी। गर्म कपड़े निकालने के बाद माजी अब गर्मियों के कपड़े समेटने लगीं। तभी गुस्से मेें लाल नीलम कमरे से बाहर निकलने लगी।
तभी माजी ने आवाज़ लगाई बहूरिया कहां चली, ज़रा रूक, देख तो सही ये बनारसी साड़ी तुझ पर कैसे लगेगी। नीलम बोली क्या फायदा माजी, जिसे देनी है उसी को बुलाकर दिखा दो न। माजी बोली, वही तो कर रही हूं। आपका मतलब, हां मैंने ये नई साड़ी मंगवा कर रखी थी, सोचा था तुझे किसी मौके पर दूंगी। मगर आज हाथ लगी, तो सोचा दें दूं। दिवाली आने वाली है न उस पर पहन लेना। चल अब जल्दी से संदूक वापिस वहीं रख दे और जाकर रसोई संभाल।
ये कहानी हमें यही समझाती है कि
कई बार कानों सुनी गलत होती है, तो कई बार आंखों देखी भी गलत हो सकती है। इसीलिए मनमानी करने से पहले एक बार खुद को दूसरों की जगह पर रख कर देंखें।
अगर बहू करने लगे मनमानी तो अपनाएं ये टिप्स
अपने पन का एहसास कराएं
कहते हैं कि बेटी पराया धन होती है। मगर जब वो पराए घर जाती है, वहां भी उसे कुछ ही लोग हैं जो दिल से स्वीकार कर पाते हैं और कई बार वो भी पराए घर के लोगों को अपना बनाने में विफल रहती है। खैर सास मां के समान होती है। मगर मां नहीं होती। लेकिन अगर सास मां बनकर बेटी को समझाए और अपनापन झलकाए, तो सास बहू के मनमुटाव काफी हद तक कम किए जा सकते हैं औश्र घर का माहौल खुशगवार बनाया जा सकता है।
टोकना छोड़ दें
बात बात पर खुद को सही और बहू को गलत ठहराना छोड़ दें। अन्यथा रिश्तों में मिठास घोलना असंभव है। हर काम में टोकने की बजाय बहू के काम में हाथ बटाएं और अपने बड़े होने का परिचय दें। इसके अलावा उसके सुझाावों को भी सूनें और उसके काम के तरीके को सराहें।
सही और गलत का फर्क बताएं
कई बार अपनी बात को मनवाने के चक्कर में हम रिश्तों की बलि दें डालते हैं। ऐसा बिल्कुल न करें। कभी भी प्रतिस्पर्धा का भाव अपने अंदर न लेकर आएं। बहू कोे पास बैठाकर उसके विचारों को जानें और उसे परिवार के मुताबिक सही और गलत का फर्क समझाएं।
उसको तोहफे दें
अपने बच्चों के लिए हम हमेशा नई से नई चीजें खरीदतें हैं। मगर बहू के लिए कुछ लेने की बारी आती है, तो हम ध्यान नही देते हैं और जानबूझकर अनदेखा कर देते हैं। जब कि ऐसा नहीं होना चाहिए, क्यों की बहू भी किसी घर की बेटी है और उसका भी हर चीज़ पर बराबर का अधिकार बनता है।
दूसरों की बातों में न आएं
कई बार रिश्तेदारों की बातों में आकर हम अपनी बहू से दूरी बना लेते हैं। ज़रूरी नहीं कि जो माहौल किसी के घर में हो वही आपके घर में भी सही बैठै। स्वभाव से हर कोई अलग होता है। ऐसे में हमें अपनी अक्ल का इस्तेमाल करके बहू से नज़दीकी बनानी चाहिए। ताकि वो भी आसानी से ससुराल में घुल मिल जाए और आपके हिसब से भी चले।
उसे साथ लेकर बाज़ार जाएं
बाज़ार जाते वक्त बहू को भी साथ लें और उसके सामने खरीददारी करें, ताकि वो भी आपके स्वभाव को जाने और आपके खरीदारी के तरीके को भी अपनाए।
हर वक्त शिकायत न करें
दो पीढ़ियों के अंतर को समाप्त करना आसान नहीं होता है। ऐसे में बहू से हर वक्त खफा न रहें और हर किसी से उसकी शिकायत भी न करें। ऐसा करने से रिश्तों में प्यार की बजाय कड़वाहट की आहट सुनाई देने लगेगी।
बहू भी कुछ बातें याद रखें
जब आप एक बहू होती है, तो घर के हर सदस्य की तरफ आपका कर्तव्य बनता है। परिवार के हर सदस्य का ख्याल रखें।
अपनी सास को अपने विचारों से अवगत कराएं और उन्हें आदर और सम्मान दें।
काम से कतराने की बजाय घर के हर कार्य में रूचि लें और अपना सहयोग प्रदान करें।
घर के रोजमर्रा के कामों के लिए अपनी सास की सलाह ज़रूर लें। कई बार मनमानी हमें किसी बड़ी परेशानी में डाल सकती हैं। ऐसे में उनके सुझाव और उनका तजुर्बा हमें
हर मुश्किल घड़ी में बेहद फायदेमंद साबित होता है।
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