caring grandparents

grandparents : एक परिवार की नींव उनके बुजुर्गों से जुड़ी होती है। कहते हैं परिवार तभी पूरा होता है जब घर में दादा दादी होते हैं। दादा-दादी उस जड़ की तरह होते हैं, जो परिवार को पेड़ की तरह मजबूत रखते हैं। बदलते समय के साथ-साथ दादा-दादी की भूमिकाएं भी बदल गयी हैं। एक ऐसी भूमिका जो सिर्फ और सिर्फ दादा-दादी ही निभा सकते हैं।1965 में, शिकागो विश्वविद्यालय में विभिन्न प्रकार के दादा दादी पर एक अध्ययन किया गया था। अध्ययन जेरोन्टोलॉजिस्ट बर्निस न्यूगार्टन द्वारा किया गया था। इस अध्ययन ने दादा-दादी को पांच अलग-अलग प्रकारों में विभाजित किया, और वो कैसे हैं बताएंगे हम।

1. केयरिंग दादा-दादी – जैसे ही रमा ने अपनी पोती की फोन पर आवाज सुनी तो उनका दिल मचल गया होती बार-बार पूछ रही थी अम्मा कब आओगी बहुत समय हो गया। बस क्या था रमा ने अपना और अनिल (अपने पति) का बैग पैक किया और पहुंच गई अपनी पोती सुरभि के पास! अपने दादा दादी को देखकर सुरभि को तो जैसे एक अनमोल खजाना मिल गया था आखिर उसके दादा-दादी उसका ख्याल भी तो बहुत रखते थे।

केयरिंग दादा दादी, जिनके पास एक पारंपरिक भूमिका है। इस प्रकार के दादा-दादी जरूरत पड़ने पर एक अच्छा संतुलन बनाए रखते हैं, और माता-पिता और बच्चे के बीच अच्छे संबंधों को प्रोत्साहित करते हैं। हिंदी सिनेमा की सुपर हिट फिल्म बागवान में अमिताभ बच्चन और हेमा मालिनी थे।

2. खुशमिजाजी या मजेदार  (Fun Seeker)- यह जो खुशमिजाज दादा-दादी होते हैं यह परिवार की जान कहलाते हैं।अगर दादी या दादा में से कुछ मिनट कोई भी चुप हो जाए, तो मानो घर में जलजला आ गया, लोग पूछने लगते हैं क्या बात है? इतनी शांति क्यों? बच्चे तो बच्चे बड़े लोग भी इनसे बहुत खुश रहते हैं। हर साल गर्मी की छुट्टियां होते ही शिखा और उसके बच्चे फौरन दादा दादी से मिलने जोधपुर पहुंच जाते थे। बहुत सी बार तो शिखा की सहेलियां मजाक भी बनाती थी कि छुट्टियों में लोग अपने नाना नानी के जाते हैं, तुम अपने दादा दादी के उल्टा”! लेकिन शिखा ही जानती है ,वह और उसके बच्चे जोधपुर पहुंच कर कितना खुश रहते हैं। उसका मानना है इतने खुश मिजाज पेरेंट्स जिसके पास पहुंच जाएं, मान लो पूरे साल के लिए एनर्जेटिक हो जाते हैं। तभी तो आलोक को खुश मिजाजी अपने माता-पिता से विरासत में मिली थी वह भी हर समय ऐसे ही मजाकिया अंदाज में कोई ना कोई चुटकुला छोड़ते रहते हैं। शिखा को कभी भी ऐसा फील नहीं हुआ कि वह अपनी ससुराल में है। उसके सास-ससुर का अंदाज जो अपने बच्चों के साथ खुलकर जीते हैं, उसे भी बहुत कुछ सिखा देता था। उसके सास ससुर हमेशा अपने बच्चों के हर फैसले में उनका साथ देते। इसके अलावा लेट नाईट पार्टी में भी रोक टोक नहीं करते। इस तरह के दादा-दादी अक्सर फिल्मों में देखने को मिल जाते हैं। जैसे फिल्म सुपर नानी की अभिनेत्री रेखा को ही देख लीजिये। तभी तो इस मूवी को देखते ही बच्चों ने कहा था “अरे यह तो हमारे दादा दादी की कहानी पर पिक्चर बनी है”।

3.     अभिमानी (arrogant type)- हालांकि ऐसे दादा-दादी आज के समय में कम है, लेकिन हैं। उनमें कहीं ना कहीं अपने मनमर्जी करने की आदत होती है। जिनसे कभी कभी घर के छोटे बच्चे परेशान हो जाते हैं। जैसे कि निखिल।वह अपने दादा दादी की कुछ आदतों से बहुत परेशान था। जब भी अपने दोस्तों को घर बुलाना चाहता तो उसे पहले उनसे परमिशन मांगी पड़ती। जोकि बहुत मुश्किल काम था‌ । दादा दादी का मानना था ,”दोस्ती अपने बराबरी वालों से करनी चाहिए और अपने छोटों को बाहर ही रखना चाहिए”। जबकि उसका एक दोस्त उनसे थोड़ी छोटी कास्ट का था। वह अक्सर अपने माता-पिता से इस बात की शिकायत करता। लेकिन मां बाप के पास चुप रहने के अलावा और कोई सलूशन नहीं था। कहते हैं एक परिवार में कई रंग होते हैं। ये रंग भी अलग-अलग तरह के होते हैं। ठीक इसी तरह हर परिवार में दादा-दादी के स्वाभाव भी अलग अलग होते हैं। जहां कुछ दादा-दादी का स्वाभाव मौज मस्ती वाला होता है तो वहीं कुछ दादी दादी का स्वाभाव अभिमान से भरा होता है। जो तेज तर्रार होने के साथ अपनी हनक परिवार में बनाए रखना जानते हैं। जिन्हें बात-बात पर सिर्फ अपनी इज्जत की फ़िक्र सताती रहती है। उन्हें अपनी इज्जत से बढ़कर कुछ भी प्यारा नहीं होता।

4. परिवार के लिए बुद्धि का भंडार (Reservoir of Family Wisdom)- यह भूमिका अक्सर दादाजी द्वारा निभाई जाती है, हालांकि दादी कभी-कभार ये भूमिका निभा लेती हैं। इस विकल्प पर अकसर परिवार के अधिकारों के बारे में फैसले लिए जाते हैं। इस लिए हमें इस तरह के दादा-दादी द्वारा लिए हुए फैसलों का सम्मान भी करना चाहिए। सुमित के दादा दादी बहुत सुशील और ज्ञानी हैं। उसकी पढ़ाई की समस्या हो या घर में किसी सदस्य की कोई परेशानी, सुमित के दादा-दादी चुटकियों में सुलझा देते हैं। सुमित को मैथ्स करना बहुत पसंद है, लेकिन उसकी ट्रिग्नोमेट्री थोड़ी ढीली है। लेकिन वह कभी भी किसी भी सवाल पर अटकता है तो फौरेन उसे अपने दादा की याद आती है और वह मिनटों में मुंह जवानी सवाल का हल और सवाल दोनों ही समझा देते हैं। ऐसे ही सुमित की दादी, कोई कविता लिखनी हो या बच्चों की कहानी चुटकियों में दादी के पास तैयार मिलती है। वह गर्व से कहता है ,”मेरे दादा दादी जैसा तो कोई नहीं”। 

5. दूरी का रिश्ता (Distant Figure)- इस तरह की भूमिका में एक दादा दादी अपने पोते के जीवन में छोटी ही भूमिका निभाते हैं। क्योंकि ये छुट्टियों या त्योहार में ही अपने बच्चों से मिलते हैं। इस भूमिका में एक दादा-दादी को यह देखना चाहिए कि क्या उनके पोते-पोतियों के साथ अधिक जुड़ने का कोई तरीका है? या कहीं ऐसा न हो ऐसा दादा दादी से दूर का रिश्ता हमेशा के लिए दूर का ही हो जाए।मुझे आज भी याद है मैं अपनी दादा दादी से साल में एक बार ही मिल पाती थी। वो भी दिवाली पर ।लेकिन आज तक मैंने उन यादों को संजो के रखा है। क्योंकि मेरे दादा दादी छोटे से समय में मुझे इतनी बातें समझा देते थे जो शायद पूरे साल हम ना समझ पाएं। एक छोटा सा उदाहरण है हम दोनों भाई बहन अक्सर अपनी प्लेट में थोड़ा सा खाना छोड़ देते थे। दादा जी रोज इस बात को देखते और चुप रहते। एक दिन वह हम दोनों बच्चों को लेकर पास की एक बस्ती में गए और दिखाया जितना खाना हम अपनी प्लेट में छोड़ते हैं, उतने खाने के लिए न जाने कितने बच्चे भूखे तरसते हैं ।वह दिन है और आज का दिन हम लोग अपनी भूख के अनुसार ही अपनी प्लेट में खाना लेते हैं।

दादा-दादी के बिना कौन सा परिवार है। जिस तरह इंद्र धनुष में सात रंग होते हैं, उसी तरह दादा-दादी भी कई तरह के होते हैं जिनकी वजह से न सिर्फ घर को ठंडी छाया मिलती है, बल्कि जिन्दगी में भी रंग भर जाते हैं।

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