Summary: ओरछा के रहस्यमयी सावन-भादो स्तंभ
मध्य प्रदेश के ओरछा में मौजूद सावन-भादो नामक दो रहस्यमयी स्तंभ न सिर्फ वास्तुकला की मिसाल हैं, बल्कि मौसम से भी गहराई से जुड़े हैं। कहा जाता है कि जब सावन खत्म होता है और भादो शुरू होता है, तब ये दोनों स्तंभ आपस में जुड़ जाते हैं।
Orchha Twin Minarets: अपने देश भारत को यूं ही विविध नहीं कहा जाता है, यहां के कोने कोने में कुछ न कुछ ऐसा है जो अपने आप में एक रहस्य को छिपाए बैठा है। किसी मंदिर की घंटी में इतिहास बसा है, तो कहीं पुराने किले की दीवारें सदियों पुरानी कहानियां कहती हैं। ऐसी ही एक जादुई जगह है मध्य प्रदेश का ओरछा, और वहां खड़े हैं दो ऐसे अद्भुत स्तंभ, जिन्हें ‘सावन-भादो’ के नाम से जाना जाता है। ये कोई आम स्तंभ नहीं, बल्कि मौसम के हिसाब से एक दूसरे के गले लगने वाले स्तंभ हैं।
ओरछा की ‘सावन-भादो’ मीनारें

जब आप ओरछा के इन जुड़वा स्तंभों को देखेंगे, तो पहली नजर में आपको यही लगेगा कि ये तो बस दो खूबसूरत मीनारें हैं। लेकिन जैसे ही आप इनके बारे में सुनेंगे, आप हैरान हो जाएंगे। दरअसल बात ही कुछ ऐसी है। इनका नाम हमारे हिन्दू पंचांग के दो खास महीनों सावन और भादो के नाम पर रखा गया है। ऐसा इसलिए क्योंकि ये मीनारें सिर्फ पत्थर की नहीं हैं, ये मानसून की नमी और हवा की चाल को समझने का हुनर जानती हैं।
एक बोले तो दूसरी चुप
आपको यह लाइन पढ़कर आश्चर्य हो रहा होगा लेकिन यही सच्चाई है। इन दोनों मीनारों को एक जैसी ऊंचाई और डिजाइन के साथ बुंदेला शासकों के समय बनाया गया था। सबसे खास बात तो यह है कि तेज हवा के चलने पर एक मीनार हल्की सी हिलती है तो दूसरी बिल्कुल स्थिर रहती है। फिर थोड़ी ही देर बाद इनकी भूमिकाएं आपस में बदल जाती हैं। कभी सावन हिलता है, तो कभी भादो, इन्हें देखकर आपको ऐसा महसूस होगा मानो ये दोनों आपस में मौसम की बात कर रहे हों।
सावन के जाने और भादो के आने पर जुड़ जाती हैं मीनारें

इन मीनारों की सबसे ज्यादा दिलचस्प और रहस्यमयी बात यह है कि सावन खत्म होने और भादो की शुरुआत होने पर ये दोनों मीनारें आपस में जुड़ जाती हैं। इसे देखकर ऐसा लगता है कि जैसे सावन ने जाते-जाते भादो का हाथ थाम लिया हो।
बुंदेलों की विरासत
इन मीनारों का निर्माण उस समय हुआ था जब ओरछा पर वीर सिंह देव बुंदेला का शासन था। उन्होंने ओरछा में कई भव्य महल, मंदिर और स्मारक का निर्माण करावाया था लेकिन सावन भादो के ये स्तंभ आज भी अलग पहचान रखते हैं। ये न केवल स्थापत्य कला का कमाल हैं, बल्कि हमें यह भी बताते हैं कि हमारे पूर्वज प्रकृति के कितने करीब थे।
क्यों जाएं ओरछा?

अगर आप कभी खुद को इतिहास से जुड़ता महसूस करना चाहती हैं या अपने बच्चों को ऐसी जगह ले जाना चाहती हैं जहां वे सिर्फ तस्वीरें ही नहीं, भावनाओं को भी समझें, तो आपको उन्हें लेकर ओरछा जरूर जाना चाहिए। यहां जाने का सबसे अच्छा समय जुलाई से फरवरी है। यहां देखने लायक राम राजा मंदिर, जहांगीर महल, प्रवीण महल हैं।
