मध्य प्रदेश
मध्य प्रदेश को भारत का हृदय सिर्फ इसलिए नहीं कहा जाता क्योंकि यह देश के मध्य भाग में स्थित है, बल्कि यह हिंदू, बौद्ध, जैन और इस्लाम धर्मों की सांस्कृतिक विरासतों का केंद्र स्थल भी है। अंसख्य स्मारक, मनमोहक मंदिर, स्तूप, किले और विभिन्न ऐतिहासिक इमारतें पूरे राज्य भर में फैली हुई है।

इसके अलावा प्राकृतिक सुंदरता पूरे राज्य को अपने में लपेटे हुए हैं। राज्य में प्रकृति के लगभग सभी रूपों को देखा जा सकता है। जैसे खूबसूरत पर्वत श्रेणियां, बलखाती नदियां, मीलां तक फैले घने जंगल, जहां वन्य जीवन का अद्भूत नज़ारा देखने को मिलता है।

राष्ट््रीय उद्यान कान्हा, बांधगढ़, पन्ना और पेंच में आप शेर, हिरण, मृगहिरण जैसे जानवरों की विभिन् प्रजातियां देख सकते हैं। इसके अलावा मध्य प्रदेश की सबसे बड़ी ख़ासियत है कि यहां पहुंचना आसान है। पांच राज्यों में घिरा यह राज्य चारों दिशाओं के मुख्य पर्यटन स्थलों से भी जुड़ा है। अगर आप दिल्ली, मुंबई, चेन्नई और कोलकाता में हैं, तो मध्य प्रदेश से बहुत दूर नहीं है।

केन्द्र स्थल
भोपाल
एक बहुरंगी शहर
मध्य प्रदेश की राजधानी भोपाल शहर अनूठी नैसर्गिक छवि, ऐतिहासिकता और आधुनिक नगर नियोजन का नायाब नमूना है। ग्यारहवीं सदी के भोजपाल नामक इस नगर को भोज नामक राजा ने बनाया था । बाद में एक प्रतापी अफगान सैनिक दोस्त मोहम्मद (1708-1740) ने इसकी नींव डाली थी। आज का भोपाल की झीलें पर्यटकों के लिए खूबसूरत सौगात है। इन झीलों के किनारे इस शहर का विकास हुआ। भोपाल एक बहुरंगी नज़ारे की तस्वीर पेश करता है। एक ओर पुराना शहर है, जहां लोगों के चहल-पहल के बीच बाजार हैं, जहां प्राचीन संुदर मस्जिदें और महल हैं जो यहां के पूर्व शासकों की सुरूचिपूर्ण शान-ओ-शौकत की कहानी कहते हैं। वहीं दूसरी ओर नया शहर बसा हुआ है। जहां सुंदर पार्क और हरे -भरे वृक्ष इस शहर को गहरी राहत देते हैं। चैड़ी सड़कें और सुंदर आधुनिक इमारतें अपनी आधुनिक भव्यता लिए हुए है।

संाची
(भोपाल से 50 किलोमीटर) सांची की प्रसिद्धी उसके स्तूपों, संधागारों (बिहार), मंदिरों और स्तंभों के कारण है। जिनका निर्माण ईसवीं पूर्व तीसरी सदी से लेकर ईसवीं सन् बारहवीं सदी तक हुआ। इन स्मारकों में सबसे प्रसिद्ध सांची के स्तूपों का निर्माण मौर्य सम्राट अशोक ने किया था। सांची में स्तूप क्र. 1 के पास जो पाषाण स्तंभ-खंड हैं जिस पर मौर्यकालीन पालिश की चमक है, उस पर अशोक का एक शिलालेख मिला है, जिसमें सम्राट अशोक द्वारा बौद्ध धर्म में भेदभाव या फूट डालने वाले के खिलाफ कड़ी चेतावनी दी गई थी। यहां के स्तूपों पर बुद्ध की जातक कथाएं अंकित हैं और यह पुरातन कलाकृतियों का बेजोड़ नमूना है। सम्राट अशोक के पुत्र महेन्द्र और पुत्री संघमित्रा का जन्म उज्जयिनी में हुआ था, जो बाद में श्रीलंका गए थे, जहां उन्होंने वहां के राजा, रानी और प्रजा को बौद्ध धर्म का अनुयायी बनाया था। विदिशा शहर में स्थित म्यूजियम में आज भी प्राचीन काल के महत्वपूर्ण अवशेषों की झलक देखने को मिलती है। दूसरी सदी ई.पू. के हेलिडोरस स्तंभ और पांचवी सदी ई. की उदयगिरी की गुफाएं भी दर्शनीय है।

भीमबेटका

-(भोपाल से 46 किमी)ः भीमबेटका एक विश्व धरोहर स्थल हैं, जो विंध्य पर्वत के उत्तरी किनारों से घिरा हुआ है। इसकी सीमा विशाल चट्टानों से घिरी है और यहां पर 600 से अधिक गुफाओं की खोज की गई है। यह विश्व का सबसे बड़ा समूह है जिन पर हजारों वर्ष पूर्व पाषण युग के दौरान की गई चित्रकारी है।

चित्रांकन का कार्य मुख्यतः लाल और सफेद रंगों से किया गया है। जिसमें कभी-कभी हरे और पीले रंगों का भी प्रयोग हुआ ह। चित्रांकन के विषय युगों पूर्व की दैनंदिन घटनाओं से लिए गए हैं।

इनके दृश्यों में प्रायः आखेट, नृत्य-संगीत, घोड़े और हाथी की सवारी, लड़ते हुए जानवर, मधुसंचय, देह श्रंृगार, मुखोटे तथा तत्कालीन घरेलू जीवन का चित्रांकन बड़ी ही कुशलता के साथ हुआ है। अनेक प्रकार के पशु जैसे-बायसन, बाघ, शेर, जंगली सुअर, हाथी, हिरण, चैसिंग, कुत्ते, बंदर, मगर और छिपकलियां आदि बहुलता से दर्शाये गए हैं। कुछ गुफाओं में लोक प्रचलित कर्मकांड और धर्म विषयक प्रतीक भी चित्रांकित किए गए हैं।

पचमढ़ी- (भोपाल से 210 किमी.) सतपुड़ा की पहाड़ियों से घिरा मध्य प्रदेश का खूबसूरत पर्यटन स्थल पंचमढ़ी हरे-भरे संुदर और शांत वातावरण से पर्यटकों को मंत्रमुग्ध करता है। पहाड़ियों से लिपटी हरित छायावालियों की शांति इसकी घाटियों में उतरती है और यहां चारों ओर बहते जल की मंद-मंद ध्वनि मन को प्रफुल्लित कर देेती है। नदियों और झरनों से घिरा पचमढ़ी साल के घने जंगल, जंगली बांस और जामुन के लिए भी जाना जाता है। यह धार्मिक दृष्टि से भी पर्यटकों में मशहूर है। चट्टानांे से गिरते झरने, हरियाली और सुहाने मौसम की वजह से पचमढ़ी को पर्यटक खूब पसंद करते हैं। पचमढ़ी की घाटी, उपत्यकाओं और गिरिकंदराओं की भूलभुलैयों का निर्माण युगों पहले हवा और मौसम के थपेड़ों से लाल बलुआ पत्थरों को तराश कर हुआ। जिनकी रंग पंक्तियों की छाया यहां शोभित है। सूरज की धूप में यहां के जल प्रपातों का रजत सौंदर्य देखते ही बनता है। सतपुड़ा राष्ट््रीय उद्यान भी पचमढ़ी के प्रमुख स्थलों में से एक है।

तवा मढ़ई- (इटारसी से 35 किमी., पंचमढ़ी से 175 किमी. और होशंगाबाद से इसकी दूरी 45 किमी. है): सामाजिक जनजीवन की हलचल से दूर वन्यजीवन के आनंद को द्विगणित करने के लिए आप सतपुड़ा राष्ट््रीय उद्यान के तवा डैम में तवा बैकवाटर्स पर स्थित मढ़ई, एक आरक्षित वन्य संपदा, में बोटक्रूज की यात्रा द्वारा नौका सवारी से शुरू होती है। यह आपको वाइल्ड लाइफ सफारी का वास्तविक मजा देगा। सतपुड़ा राष्ट््रीय उद्यान, भारत का एक महत्वपूर्ण वाइल्ड लाइफ सेंचुरी है। इस उद्यान का एक बड़ा भू-भाग दुर्लभ प्रजातियों की वनस्पतियों से आच्छादित है। यहां मिलने वाले विविध प्रकार के युग्मक जड़ी-बूटियों की दुर्लभ उपस्थिति का विशाल आवास स्थल पूरे देश में अपने आकार-प्रकार व विभिन्न प्रजातियों के लिए मशहूर है।

ग्वालियर
मध्य प्रदेश की यह पुरातन राजधानी आज भी अपने प्राचीन वैभव की कहानी कहती है। यहां अनेक राजवंशों ने राज किया, जिनमें प्रतिहारों के महान राजपूत कुल, कुश्वाहा वंश के सम्राट और तोमर वंश विशेष उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने राज-प्रसादों, मंदिरों और स्मारकों के इस नगर पर अपनी राज की अमिट छाप छोड़ी। इन शानदार स्मारकों को बड़े ही सुरक्षित ढंग से रखा गया है। जो कि ग्वालियर को अनंत आकर्षण का कें्रद बनाता है। आज ग्वालियर जीवन ही हलचल और स्पंदन से ओतप्रोत एक आधुनिक भारतीय नगर है।

ग्वालियर दुर्गः- बलुए पत्थर की सीधी चट्टानों पर खड़ा हुआ ग्वालियर दुर्ग समूचे शहर की दृष्टि से उत्कृष्ट आसन पर है और यह सबसे शानदार स्मारक है। यह महान घटनाओं, कारागार-सजाओं, युद्धों और जौहरों का मूक साक्षी रहा है। एक खड़ी सड़क उपर की ओर इस दुर्ग की ओर जाती है। जिसके किनारों पर चट्टानों में से काट कर तराशी गई जैन तीर्थंकरों की मूर्तियां है। किले की बाह्य दीवारें आज भी शानदार ढंग से खड़ी हैं जिनकी लंबाई 2 मील और उंचाई 35 फूट है, जो इसे भारत का अपराज्य दुर्ग बनाता है। इसके निराले शानदार स्वरूप को देखकर ही सम्राट बाबर ने इसे ‘हिन्द के दुर्गों का मोती ‘ कहा था।

मान मंदिर महल का निर्माण राजा मानसिंह ने कराया था और इसकी भव्य कहानी को प्रत्येक शाम यहां प्रस्तुत किया जाता है। इस कहानी को सुनाने के लिए सूत्रधार बाॅलीबुड अभिनेता बच्चन की आवाज़ में प्रस्तुत किया जाता है।

शिवपुरी-
(ग्वालियर से 112 किमी.): शिवपुरी अपने शानदार अतीत के लिए मशहूर है। किसी समय ग्वालियर रियासत के सिंधिया राजाओं की ग्रीष्मकालीन राजधानी के रूप में विख्यात शिवपुरी आज भी ऐसी प्रतीत होती है कि मानों अपनी बिगत राजसी विरासत और शान में डूबी हुई हो। शिवपुरी का यह राजसी परिवेश इसके सुंदर राज-प्रसादों, शिकार-सरायगाहों और संगमरमर से निर्मित उसकी भव्य तथा अलंकृत छतरियों में दिखाई देता है, जो सिंधिया राजाओं द्वारा बनवाई गई थी।

चंदेरी- (शिवपुरी से 127 किमी. और ललितपुर से 36 किमी.): चंदेरी ना सिर्फ अपने प्राकृतिक संपदा के लिए जाना जाता है। बल्कि यह देशभर में चंदेरी साड़ी व ब्रोकेड के लिए भी मशहूर है। चंदेरी वेत्रवती एंव उर्वशी नदियों के मध्य में विंध्याचल की सुरम्य चंद्राकर पर्वत श्रेणियों में अवस्थित है। पुराने चंदेरी शहर में कई जैन मंदिर हैं, जो कि नौवीं से दसवीं शताब्दी के बीच बनाए गए थे। यह ऐतिहासिक दुर्ग मुगल शासन की ओर अन्य कई स्मारक बंुदेला राजपुतों के शान की याद दिलाते हैं।

ओरछा- ग्वालियर से 119 किमी. और झांसी से 16 किमी. ओरछा का सौंदर्य पत्थरों में इस तरह मुखरित है जैसे समय की शिला पर ुयगों-युगों के लिए एक समृद्ध विरासत के रूप में अंकित हो गया हो। 16 वीं और 17वीं सदी में बुंदेला राजाओं द्वारा बनवाए गए इस नगर के राज-प्रसाद और मंदिर अभी भी पुरातन गरिमा को बनाए हुए हैं। ओरछा के आसपास कई छोटे-बड़े धार्मिक स्थल और ऐतिहासिक स्मारक हैं, जिनका अपना एक अलग इतिहास है। यह ओरछा की सुंदरता को बढ़ाता है। उत्कृष्ट जहांगीर महल के बहुमंजिलें राज-प्रासाद के शीर्ष में बनाई ई मनोहर छत्रियां इसकी शोभा को और बढ़ाती हैं। अगर ओरछा की नैसर्गिक सुंदरता को देखना हो तो जहांगीर महल जरूर जाएं। राजा महल और लक्ष्मीनारायण मंदिर की वास्तुकला भी प्रशंसनीय हे। चतुर्भुज मंदिर, रामराजा मंदिर भी दर्शनीय स्थल है। नदी के किनारे स्थित छत्रियां भी दर्शनीय है।

अगर आप इतिहास के पन्नों को पुनः जीवित होते हुए महसूस करना चाहते हैं, तो राजा महल में चलने वाले साउंड एवं लाइट शो जरूर देखें, जो ओरछा महाराजाओं के महान जीवनकाल को दर्शाता है।

ओरछा में राॅफ्टिगं की अनोखी सवारी है। जो कंचनघाट से शुरू होकर शिवघाट पर 3.5 किमी की दूरी तय करती है।