Summary : अंदाज 2 फिल्म रिव्यू: शानदार म्यूजिक के बावजूद कमजोर कहानी और पुराना ट्रीटमेंट
अंदाज 2 में धर्मेश दर्शन का निर्देशन और कहानी असर नहीं छोड़ पाते, लेकिन नदीम का मेलोडियस म्यूजिक फिल्म को थोड़ी राहत देता है। अगर आप सिर्फ पुराने बॉलीवुड अंदाज के गानों के शौकीन हैं, तो यह फिल्म एक बार देखी जा सकती है।
Andaaz 2 Film Review: धर्मेश दर्शन में सबकुछ चुक गया है, बस एक चीज लगता है निखर रही है। संगीत की समझ आज भी उनमें कमाल है। ‘अंदाज 2’ को आप केवल संगीत के दम पर ही झेल पाते हैं। संगीत ही फिल्म की सबसे बड़ी ताकत है। नदीम का म्यूजिक मेलोडियस है और पुराने जमाने की याद दिलाता है। ‘रब्बा इश्क न होवे 2.0’ सबसे अच्छा गाना है, वहीं ‘तुम बिन कहीं दिल ना लगे’, ‘यू आर ब्यूटीफुल’ और ‘वक्त ने किया इस कदर सितम’ जैसे गाने भी सुकून देते हैं। बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा होना था, जो नहीं है। सिनेमैटोग्राफी और लोकेशन्स अच्छे हैं। कपड़े काफी ग्लैमरस हैं। एक्शन थोड़ा ओवर ड्रामेटिक है और एडिटिंग में कसावट की कमी साफ दिखती है। और इसी तरह गाड़ी पटरी से उतरती चली जाती है।
कहानी बिना दम की है। दो लड़कियों की एक ही लड़के से मोहब्बत है। आरव (आयुष कुमार) एक स्ट्रगल करता हुआ गायक है जो छोटे-छोटे रेस्टोरेंट्स और क्लबों में गाने गाकर अपनी जिंदगी चला रहा है। उसके पापा विकास (संजय मेहंदीरत्ता) हर समय उसे डांटते रहते हैं कि वह कोई ढंग की नौकरी क्यों नहीं करता। एक दिन आरव और उसके दोस्त टोनी और एहसान को अचानक एक मशहूर सिंगर प्रियंका (नताशा फर्नांडिस) के साथ गाने का मौका मिल जाता है क्योंकि असली बैंड समय पर नहीं पहुंच पाता।
परफॉर्मेंस के दौरान प्रियंका को आरव अच्छा लगने लगता है और वह उसे अपने म्यूजिक लेबल में साइन कर लेती है। उसे उम्मीद होती है कि अब वो आरव के करीब जा सकेगी। लेकिन उसे इस बात की खबर नहीं होती कि आरव पहले से ही अलीशा (आकैशा) के साथ रिश्ते में है। अब इन तीनों के बीच जो भावनाओं की उठा-पटक होती है, वही फिल्म की कहानी बनती है। सुनील दर्शन खुद ऐसी कहानियों पर आधा दर्जन फिल्में बना चुके हैं।
अंदाज 2 का दूसरा हिस्सा बेहद कमजोर

फिल्म का पहला हाफ थोड़ा हल्का-फुल्का और रोमांटिक अंदाज में है। इंटरवल से पहले जो ट्विस्ट आता है, वह थोड़ा चौंका देता है। लेकिन कोई फायदा नहीं, सेकेंड हाफ में कहानी लड़खड़ाने लगती है। कहानी अचानक परिवार की समस्याओं और इमोशनल ड्रामे की तरफ मुड़ जाती है। प्रेम त्रिकोण पूरी तरह से बैकफुट पर चला जाता है और फिल्म बोर करने लगती है। कुछ फैसले बेहद अजीब हैं, जैसे आरव अपने पिता को ये नहीं बताता कि उसे एक बड़ी डील मिल गई है, जबकि उसका पिता हर रोज उसे नाकाम कहकर ताने मारता है। विलेन का ट्रैक भी बेहद गैरजरूरी है। ‘येडा अन्ना’ नाम का गुंडा पहले ही आरव की पिटाई कर चुका होता है लेकिन फिर अचानक क्लाइमेक्स में दोबारा लौट आता है, जो बिल्कुल नकली नहीं लगता।
अंदाज 2 में काम तो सबका ठीक है
एक्टिंग की बात करें तो आयुष कुमार अच्छे लगते हैं और अपने किरदार में ईमानदारी से डूबे हुए हैं। कितना कर पाते है… यह बात अलग है। स्क्रीन प्रेजेंस ठीक है और वे इस लायक दिखते हैं कि दो लड़कियां उनसे प्यार कर बैठें। आकैशा भी प्यारी लगती हैं और सधी हुई एक्टिंग करती हैं। नताशा फर्नांडिस का रोल पहले हाफ में प्रभावशाली है लेकिन दूसरे हिस्से में उन्हें लगभग भुला ही दिया गया है। श्रीकांत मास्की और परमार्थ सिंह अपना काम ठीक से करते हैं। कुछ कलाकार ओवरएक्टिंग भी करते हैं, खासकर डॉली बिंद्रा और जीतू वर्मा।
काश, कुछ नयापन होता
कुल मिलाकर कहा जाए तो अंदाज 2 में कहानी और निर्देशन बिल्कुल असर नहीं छोड़ पाते। फिल्म का ट्रीटमेंट पुराना लगता है। भावनात्मक व रोमांटिक गहराई की कमी साफ नजर आती है। अगर आप पुराने बॉलीवुड स्टाइल के म्यूजिक और ड्रामा के शौकीन हैं तो ये फिल्म एक बार देखी जा सकती है, वरना इस अंदाज को टालना ही बेहतर होगा।

