Summary : कमजोर स्क्रिप्ट हरा देती है 'वॉर 2' को
‘War 2’ में ऋतिक रोशन और जूनियर एनटीआर का एक्शन, लोकेशन और स्टाइल दमदार हैं, लेकिन ढीली कहानी, बेतरतीब फ्लैशबैक और धीमी गति इसे साधारण बना देते हैं...
War 2 Film Review: साल 2012 की ‘एक था टाइगर’ से यशराज फिल्म्स ने ‘स्पाई यूनिवर्स’ की नींव रखी। कहानी थोड़ी टेढ़ी-मेढ़ी थी, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर ये रॉकेट बन उड़ी। यश राज की स्पाई सीरीज में असली धमाका 2019 की ‘वॉर’ ने ही किया था। ऋतिक रोशन और टाइगर श्रॉफ की जोड़ी महज़ स्टार पावर नहीं, बल्कि एक स्मार्ट कास्टिंग मास्टरस्ट्रोक थी। छह साल बाद, ‘वॉर 2’ आ गई है। टाइगर श्रॉफ अब कहानी से बाहर हैं और उनकी जगह खलनायक के रूप में आए हैं जूनियर एनटीआर। सुनने में कास्टिंग मजेदार लगती है, लेकिन यहां मामला लगता है रचनात्मकता से ज्यादा बिजनेस का।
वॉर 2 में केवल ऋतिक को होना ही काफी
पुरानी फिल्म में टाइगर का अपने आइडल ऋतिक पर फिल्म भर में फिदा रहना कहानी में असली-फिल्मी का फर्क मिटा देता था। ये टाइगर की सबसे पॉलिश्ड परफॉर्मेंस थी, भले ही एक्सप्रेशन लिमिटेड थे, लेकिन क्रेडिट डायरेक्टर को जाता है। पुरानी वॉर को खास बनाया था इसकी पॉलिश्ड एक्शन और किरदारों की कमजोरियों को भी दिखाने वाली लिखावट ने। यहां विजुअल इफेक्ट्स जरूर थे, लेकिन टाइगर का दमदार वन-शॉट एक्शन सीन थ्रिलर को अलग लेवल पर ले गया। ऋतिक ने एक बार फिर साबित किया कि हीरो बनने के लिए नसें नहीं फुलानी, बस स्क्रीन प्रेजेंस काफी है। अब ‘वॉर 2’ में ऋतिक का एजेंट कबीर वापस आ गया है। नया मिशन, पुराना बदला और बीच-बीच में रोमांटिक इंटरेस्ट।
अयान की लीग वॉर नहीं
इस बार डायरेक्टर के तौर पर आए हैं अयान मुखर्जी। ये फिल्म उनकी लीग की नहीं लगती। उन्हें तो हम ‘वेक अप सिड’ जैसी प्यारी फिल्मों के लिए जानते हैं। आखिरी ‘ब्रह्मास्त्र’ को भी कमजोर ही कहा जाएगी। ‘वॉर 2’ में स्पाई फिल्म का पूरा ‘पावरपफ गर्ल्स’ जैसा मिक्स है। स्लो मोशन, प्लॉट ट्विस्ट, फ्लैशबैक, बीच सॉन्ग, ग्लोबल लोकेशन, बिकिनी, और ढेर सारा वीएफएक्स।
पहला सीन कमजोर है वॉर 2 का

फिल्म की शुरुआत जापान में कबीर के मिशन से होती है। ऐसा हर स्पाई फिल्म में होता आया है, बॉन्ड ने इसे पैदा किया। तो हीरो का इम्प्रेशन जमाने वाला सीन यहां जापान में है। तलवारबाजी का ये सीन उतना ही फीका है जितना पॉलिश्ड दिखने की कोशिश करता है। फिर लोकेशन बदलने की मैराथन शुरू होती है। आधे घंटे में जापान से बर्लिन, फिर दिल्ली, फिर एम्स्टर्डम, फिर सोमालिया… आप ना जाने कहां-कहां घूम आते हैं।
वॉर 2 में जूनियर एनटीआर का जादू
इस फिल्म की कमाई जूनियर एनटीआर हैं। वो आते ही स्क्रीन पर रंग जमा देते हैं। डायलॉग, वन-लाइनर्स और पूरी एनर्जी.. एनटीआर कमाल कर देते हैं। ऋतिक-एनटीआर की जोड़ी के साथ कई एक्शन सेट-पीस हैं … ट्रेन, जहाज और हवाई जहाज तक में वो आपस में भिड़ते हैं। हर बार निर्देशक की कोशिश यही है, सब भव्य हो… इस चक्कर में काफी-कुछ नकली हो जाता है।
रफ्तार से पिटती है वॉर 2
फिल्म की सबसे बड़ी दिक्कत है रफ्तार। ‘वॉर’ के सेट किए गए स्टैंडर्ड को पार करने की कोशिश में ये वहीं अटक जाती है। कहानी इतनी जल्दी-जल्दी एक जगह से दूसरी जगह कूदती है कि कोई लोकेशन याद भी नहीं रहती। एक फ्लैशबैक तो ऐसा है जैसे किसी दूसरी फिल्म से उठा लाए हों।ऋतिक के यंग वर्जन के लिए लगता है कि कोई मिलता ही नहीं… फिर गलत एक्टर चुना गया। धरती पर कौन मान सकता है कि ऋतिक गली-मोहल्ले का आम लड़का था?
कुछ ज्यादा ही सीरियस हो गई…
‘वॉर 2’ की शुरुआत में तो लगा कि ये एक हल्की-फुल्की, मजेदार मसाला फिल्म होगी लेकिन जैसे-जैसे आगे बढ़ी, इसने खुद को बहुत सीरियस लेना शुरू कर दिया। यह अयान मुखर्जी की दिक्कत है। नतीजा यह हुआ कि लंबे-लंबे डायलॉग, बेवजह की फाइट्स होने लगीं और मजा कम होता गया। दो बड़े सितारे जिन्होंने कई मसाला फिल्मों में धमाल मचाया है, यहां स्क्रिप्ट की कमजोरियों में फंस गए। बड़ी फिल्म है, फुरसत और इच्छा है तो थिएटर में ही देखें। घर तो यह उतना मजा भी नहीं देगी। गानों से भी यहां राहत नहीं है, क्योंकि अभी ये जुबान पर चढ़े नहीं हैं। बस देख ही सकते हैं!


