विशेष कर 60 वर्ष की उम्र के बाद यह रोग परेशान करता है। शुरुआत में पतली दरार आती है, जिसे माइक्रो फ्लेट कहते हैं, जो दर्द का कारण बनती है। इसमें रोगी की हड्डियों में सूजन, अकड़न और जोड़ों में दर्द होता है। यह बीमारी किसी को भी हो सकती है। मगर अधिकतर मामलों में यह समस्या अधिक उम्र के लोगों में ही होती है। सर्दियों में लोगों की जीवनशैली बदल जाती है। गरमी के मौसम के मुकाबले खान-पान बढ़ जाता है, सुबह की एक्सरसाइज या वाकिंग नहीं हो पाती, सुबह लेट उठना, धूप नहीं लेना आदि कारणों से आर्थराइटिस की समस्या बढ़ जाती है। आर्थराइटिस का दर्द इतना तेज होता है कि व्यक्ति को न केवल चलने-फिरने बल्कि घुटनों को मोड़ने में भी बहुत परेशानी होती हैं। घुटनों में दर्द होने के साथ-साथ दर्द के स्थान पर सूजन भी आ जाती है। कभी-कभी दर्द के कारण बुखार भी हो जाता है और यहां तक कि जोड़ों का आकार भी टेढ़ा हो जाता है। इस रोग की सबसे बड़ी पहचान ये है कि रात को जोड़ों का दर्द बढ़ता है और सुबह अकड़न महसूस होती है। यदि शीघ्र ही उपचार कर नियंत्रण नहीं किया गया तो जोड़ों को स्थायी नुकसान हो सकता है।

गठिया के पीछे यूरिक एसिड की जबर्दस्त भूमिका रहती है। यूरिक एसिड मूत्र की खराबी से उत्पन्न होता है। यह प्राय: गुर्दे से बाहर आता है। जब कभी गुर्दे से मूत्र कम आने (यह सामान्य कारण है) अथवा मूत्र अधिक बनने से सामान्य स्तर भंग होता है, तो यूरिक एसिड का रक्त स्तर बढ़ जाता है और यूरिक एसिड के क्रिस्टल भिन्न-भिन्न जोड़ों पर जमा हो जाते हैं। रक्षात्मक कोशिकाएं इन क्रिस्टलों को ग्रहण कर लेते हैं जिसके कारण जोड़ों वाली जगहों पर दर्द देने वाले पदार्थ निर्मुक्त हो जाते हैं। इसी से प्रभावित जोड़ खराब होते हैं।

आर्थराइटिस के प्रकार

रूमेटाइड आर्थराइटिस- यह इस बीमारी का बहुत अधिक पाया जाने वाला गंभीर रूप है। इस आर्थराइटिस का समय पर प्रभावी उपचार करवाना आवश्‍यक होता है वरना बीमारी बढ़ने पर एक साल के अन्दर ही शरीर के जोड़ों को काफी नुकसान हो जाता है।

सोरायटिक आर्थराइटिस- आर्थराइटिस के दर्द का यह रूप सोरायसिक के साथ प्रकट होता है। समय पर और सही इलाज न होने पर यह बीमारी काफी घातक और लाइलाज हो जाती है।

ऑस्टियोपोरोसिस- इस तरह का आर्थराइटिस अनुवांशिक हो सकता है। यह उम्र बीतने के साथ प्रकट होता है। यह विशेष रूप से शरीर का भार सहन करने वाले अंगों पीठ, कमर, घुटनों और पांव को प्रभावित करता है ।

पोलिमायलगिया रूमेटिका- यह 50 साल की आयु पार कर चुके लोगों को होता है। इसमें गर्दन, कंधा और कमर में असहनीय पीड़ा होती है और इन अंगों को घुमाने में कठिनाई होती है। अगर सही समय पर सही इलाज हो तो इस बीमारी का निदान किया जा सकता है। लेकिन कई कारणों से आमतौर पर इसका इलाज संभव नहीं हो पाता है।

एंकीलांजिंग स्पॉन्डिलाइटिस- यह बीमारी सामान्यत: शरीर के पीठ और शरीर के निचले हिस्से के जोड़ों में होती है। इसमें दर्द हल्‍का होता है लेकिन लगातार बना रहता है। लेकिन सही समय पर इसकी पहचान कर सही इलाज किया जा सकता है। 

रिएक्टिव आर्थराइटिस- शरीर में किसी तरह के संक्रमण फैलने के बाद रिएक्टिव आर्थराइटिस होने का खतरा रहता है। 

गाउट या गांठ– गांठ वाला आर्थराइटिस जोड़ों में मोनोसोडियम युरेट क्रिस्टल के समाप्‍त होने पर होता है। भोजन में बदलाव और कुछ सहायक दवाओं के कुछ दिन तक सेवन करने से यह बीमारी ठीक हो जाती है।

सिडोगाउट- यह रूमेटाइड और गाउट वाले आर्थराइटिस से मिलता जुलता है। सिडोगाउट में जोड़ों में दर्द कैल्शियम पाइरोफासफेट या हाइड्रोपेटाइट क्रिस्टल के जोड़ों में जमा होने से होता है।

सिस्टेमिक ल्यूपस एरिथेमेटोसस– यह एक ऑटो इम्यून बीमारी है जो जोड़ों के अलावा शरीर के त्वचा और अन्य अंगों को प्रभावित करती है। यह बच्चे पैदा करने वाली उम्र में महिलाओं को होती है। वैसे तो यह जीवन के लिए खतरा पैदा करने वाली बीमारी है लेकिन समय पर इसकी पहचान कर इसे नियंत्रण में रखा जा सकता है।

आर्थराइटिस  के लक्षण:

इसमें ज्यादातर कूल्हा, रीढ़ एवं जोड़ों की हड्डियां प्रभावित होती हैं। इनमें फ्लेट होना आम बात है। रोग की शुरुआत में दर्द नहीं होता है। लेकिन जब हड्डियां काफी कमजोर हो जाती हैं, तो हल्के झटके से भी फ्लेट हो जाती है। इस स्थिति में भी भयंकर दर्द होता है। ठंड में यह दर्द और बढ़ जाता है।

  • उंगलियों के जोड़ों में दर्द रहना।
  • घुटनों के आस-पास सूजन हो जाना।
  • उठने या बैठने में घुटनों में दर्द रहना या लड़खड़ाना।
  • जोड़ों के लचीलेपन में कमी, जोड़ों को ज्यादा हिला डुला नहीं सकना।
  • जोड़ों की विकृति।
  • वजन घटना और थकान।
  • अविशिष्ट बुखार या अधिक समय तक हल्का बुखार रहना, जिसे हड्डियों का बुखार भी कहते हैं।
  • पैर के पंजों में दर्द रहना या हल्का सा भी चलने से पंजों में दर्द होना।
  • पैर की उंगलियों में कभी भी सूजन हो जाना।
  • किसी भी जोड़ में अधिक समय तक दर्द या सूजन रहना।
  • जोड़ों से काम करने में तकलीफ होना।
  • मांसपेशियों में जकड़न या दर्द रहना।
  • यदि आर्थराइटिस के लक्षण दिखें तो लापरवाही न बरतें तुरंत डॉक्टर की सलाह लें। बढ़ती उम्र में हड्डियों को मजबूत बनाने के लिए डॉक्टर कई तरह के सप्लीमेंट्स व कैल्शियम देते हैं। उनके द्वारा दी गयी दवाइयों का सेवन नियमित रूप से करें। निर्देशानुसार कसरत करें। बढ़ती उम्र में होने वाले रोग को दवाइयों से उसी स्तर पर रोका जा सकता है जहां तक वह पहुंच चुकी है। इससे हड्डियां और अधिक कमजोर नहीं होती हैं और दर्द से भी छुटकारा मिल जाता है।

कारण

जब हमारे शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा जरूरत से ज्यादा हो जाती है तो हड्डियों और जोड़ों में दर्द शुरू हो जाता है, जो बाद में जाकर गठिया के रोग में तब्दील हो जाता है। 

यह उम्र के साथ होनेवाली हड्डियों के क्षय की प्रक्रिया है। इसमें हड्डियां कमजोर होकर टूटने लगती हैं। पोषण की कमी से भी यह रोग हो सकता है। शराब का सेवन भी इसका खतरा बढ़ाता है। आर्थराइटिस खान-पान में बदलाव से भी हो सकता है  यह रोग अनुवांशिक भी हो सकता है। मोटापा, हाइ बीपी की वजह से भी यह हो सकता है। महिलाओं में यह समस्या मेनोपॉज के बाद होती है। महिलाओं में यह समस्या एस्ट्रोजन की कमी व थायराइड में विकार के कारण भी हो सकती है।

  • त्वचा या खून की बीमारी जैसे ल्यूकेमिया आदि होने पर भी जोड़ों में दोष पैदा हो जाता है।
  • अधिक खान-पान और शारीरिक कामों में कमी के कारण, शरीर में आयरन और कैल्शियम की अधिकता होने से भी यह रोग हो सकता है।
  • कई बार शरीर के दूसरे अंगों के संक्रमण भी जोड़ों को प्रभावित करते हैं जैसे टायफाइड या पैराटाइफाइड में बीमारी के कुछ हफ्तों बाद घुटनों आदि में दर्द हो सकता है।
  • आंतों को प्रभावित करने वाले कीटाणु जोड़ों में भी विकार पैदा करते हैं।
  • पोषण की कमी के कारण, खासतौर से बच्चों में रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने से रूमेटाइड आर्थराइटिस होता है जिससे जोड़ों में दर्द, सूजन गांठों में अकड़न आ जाती है।

निवारण

  • गठिया के रोग में रक्त में खटाई की प्रधानता हो जाती है, नमक खाने से यह खटाई बढ़ती है अत: गठिया के रोगी को नमक का सेवन नहीं करना चाहिए। 
  • चाय पेशाब में यूरिक एसिड बढ़ाती है। उससे जोड़ों का दर्द व वजन बढ़ता है अत: वात के रोगियों को चाय नहीं पीनी चाहिए।
  • वायु एवं वात रोगों में मेथी का साग लाभ करता है। मेथी को घी में भूनकर पीसकर छोटे-छोटे लड्ïडू बनाकर दस दिन सुबह शाम खाने से वात पीड़ा में लाभ होता है। गुड़ में मेथी का पाक बनाकर खिलाने से गठिया मिटता है। चाय की चार चम्मच दानामेथी रात को एक गिलास पानी में भिगो दें। प्रात: पानी छानकर हल्का गर्म करके पीने से लाभ होता है। भीगी मेथी को अंकुरित करके खायें। दो चम्मच दानामेथी को दो कप पानी में उबालें जब आधा पानी रहे तो पानी नित्य दो बार एक महीने तक पिएं। इससे गठिया, कमरदर्द और कब्ज में लाभ होता है।
  • इस बीमारी में चिकित्सक आहार पर विशेष ध्यान देने की सलाह देते हैं क्योंकि आप जो भी खाते हैं वो सीधा आपके स्वास्‍थ्‍य को प्रभावित करता है। आर्थराइटिस से बचाव के लिए आपके आहार में ग्लूकोसामाइन और कांड्रायटिन सल्फेट होना चाहिए। ग्लूकोसामाइन और कांड्रायटिन सल्फेट हड्डियों और कार्टिलेज के लिए अच्छे होते हैं।
  • आर्थराइटिस जैसी बीमारी लम्बे समय तक रहती है इसलिए मरीज को दवाओं से ज्यादा बचाव और सावधानियों पर ध्यान देना चाहिए। आज फीजियोथेरेपी से लेकर नैचुरोपैथी तक में आर्थराइटिस के बहुत से समाधान निकाले गये हैं, लेकिन घरेलू नुस्खे और सावधानियां सबसे सुरक्षित उपचार हैं।
  • दर्द को कम करने का सबसे कारगर उपाय उन बिमारियों के उपचार की दवाओं का नियमित सेवन ही है। मगर ये दवाएं बिना डॉक्टर की सलाह के न लें। आमतौर पर सेंकने और गरम पट्टियों अथवा दस्ताने व जुराबों से आराम मिलता है। दर्द कम करने के लिए मलहम लगाया जा सकता है। मगर दर्द की दवा का कम-से-कम सेवन करना ही बेहतर है।
  • गठिया रोग के कुछ कुदरती उपचार भी हैं जो इसकी पीड़ा को कम करते हैं और इसके प्रभाव को कम करने में सहायक होते हैं। तो आइये जानें गठिया रोग के इलाज के कुछ घरेलू तरीके।
  • जैतून के तेल से भी मालिश करने से भी गठिया की पीड़ा काफी कम हो जाती है।
  • गठिया के रोगी को कुछ दिनों तक गुनगुना एनिमा देना चाहिए ताकि रोगी का पेट साफ हो, क्योंकि गठिया के रोग को रोकने के लिए कब्जियत से छुटकारा पाना जरूरी है।
  • भाप से स्नान और शरीर की मालिश गठिया के रोग में काफी हद तक लाभ देते हैं।
  • जस्ता, विटामिन सी और कैल्शियम के सप्लीमेंट का अतिरिक्त सेवन करने से भी काफी लाभ मिलता है।
  • समुद्र में स्नान करने से भी गठिया के रोग में काफी हद तक आराम मिलता है।
  • सुबह उठते ही आलू का ताजा रस और पानी को बराबर अनुपात में मिलाकर सेवन करने से भी काफी फायदा मिलता है।
  • सोने से पहले दर्द वाली जगह पर सिरके से मालिश करने से भी पीड़ा काफी कम हो जाती है।
  • गठिया के रोगी को न ही ज्यादा देर तक खाली बैठना चाहिए और न ही आवश्यकता से अधिक परिश्रम करना चाहिए, क्योंकि गतिहीनता के कारण जोड़ों में अकड़न हो जाती है, और अधिक परिश्रम से अस्थिबंध को हानि पहुंच सकती है।
  • नियमित रूप से 6 से 50 ग्राम अदरक के पाउडर का सेवन करने से भी गठिया के रोग में फायदा मिलता है।
  • गठिया के रोग में विटामिन और कैल्शियम का सेवन करें।
  • समुद्र में नहाने से काफी हद तक गठिया की बीमारी से आराम मिलता है।
  • गुनगुने पानी में शहद एक चम्मच लें उसमें थोड़ी सी दालचीनी पाउडर मिला लें। इसे प्रतिदिन पिएं आपको लाभ मिलेगा।
  • अमरूद के कुछ पत्ते लें और उसे पीसकर उसमें थोड़ा काला नमक मिलाकर खाएं, आपको आराम मिलेगा।
  • रात को सोने से पहले दर्द वाले स्थान पर सिरके से मालिश करें। इससे गठिया के दर्द में आराम मिलेगा।
  • कपूर में लहसुन का रस मिलाकर मालिश करें, आपको आराम मिलेगा। लहसुन की कुछ कलियों को छीलकर नियमित रूप से चबाने से भी लाभ मिलता है।
  • सुबह सुबह खाली पेट नारियल पानी का प्रतिदिन सेवन करें।
  • प्रतिदिन 10 मिनट धूप में बैठें आपको लाभ मिलेगा।
  • सोंठ, मेथी और हल्दी इन तीनों को बराबर मात्रा में पीस लें और सुबह-सुबह खाली पेट गुनगुने पानी के साथ लें, आपको बहुत लाभ मिलेगा।
  • एक गिलास गुनगुने पानी में लगभग 8 से 10 चम्मच नमक डाल कर दर्द वाली जगह पर सिकाई करें। इससे आपको आराम मिलेगा।
  • गाजर को पीसकर उसमें नीबू का रस मिला कर इसका सेवन करें।
  • अपने भोजन में गाजर, पत्तागोभी, लौकी, मूंग दाल और अदरक को शामिल करें।
  • तिल को भुन लें और हल्का दूध मिलाकर पीसकर लेप बना लें। अब दर्द वाली जगह पर लेप लगाएं, इससे आराम मिलेगा।
  • गिलोय का रस पिएं इससे दर्द भी कम होगा और सूजन भी खत्म होगी।
  • जामुन के छाल का लेप बना लें और जोड़ों पर लगाएं।
  • अमरूद के चार-पांच पत्ते लेकर उसे पीसें उसमें थोड़ा सा काला नमक मिलाकर नियमित सेवन करें इससे गठिया में राहत मिलती है।
  • जामुन के छाल का लेप जोड़ों पे लगाएं इससे गठिया में जल्द ही निजात मिलती है।
  • गठिया के रोगी को तांबे के बर्तन का पानी खाली पेट पीना चाहिए। 
  • आपके आहार में पर्याप्त कैल्शियम होना चाहिए। इससे हड्डियां कमजोर पड़ने का खतरा नहीं रहता। अगर साधारण दूध नहीं पीना चाहते तो दही, चीज और आइसक्रीम खाएं। मछली, विशेषकर सलमोन (कांटे सहित) भी कैल्शियम का अच्छा स्रोत है।
  • नाश्ता अच्छा करें। फल, ओटमील खाएं और पानी पीएं। जहां तक मुमकिन हो कैफीन से बचें।
  • अपने आहार में 25 प्रतिशत फल व सब्जियों को शामिल करें और ध्यान रखें कि आपको कब्ज ना हो।
  • फलों में सन्तरे, मौसमी, केले, सेब, नाश्पाती, नारियल, तरबूज और खरबूज आपके लिए अच्छे हो सकते हैं।
  • चोकरयुक्त आटे का प्रयोग करें क्योंकि इसमें फाइबर अधिक मात्रा में होता है।
  • गठिया में केले का सेवन करने से भी लाभ होता है कुछ डॉक्टरों का मानना है कि गठिया से पीड़ित रोगी को प्रतिदिन आठ से नौ केले दिये जा सकते हैं।
  • शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ़ने पर खीरे के रस में गाजर चुकन्दर और अजवायन के पत्तों का रस मिलाकर देने से शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा में कमी होती है।
  • यूरिक ऐसिड मात्रा कम करने में सेब का उपभोग भी लाभदायक है। सेब को उबालने के बाद इसकी जैली को दर्द और सूजन वाले स्थान पर लगाने से रोगी को आराम मिलता है।
  • गठिया में आलू के छिलके का सेवन भी कारगर है।
  • गठिया के रोगी को वसायुक्त भोजन या ऐसे पदार्थ जिनसे शरीर में वायु का प्रकोप होता है का उपभोग नहीं करना चाहिए।
  • गठिया के रोगी को अचार, इमली, सिरका आदि किसी भी प्रकार की खट्टïी चीजों का सेवन करने से बचना चाहिए।
  • अंकुरित अन्न का प्रयोग गठिया में लाभदायक है।
  • प्याज खाने एवं उसके रस का प्रयोग करने से भी गठिया में राहत मिलती है।
  • गठिये में पुदीने के उपयोग से भी राहत मिलती है। पुदीने के कुछ पत्ते को एक गिलास पानी में डालकर उबालें। जब पानी आधा रह जाये तो रोगी को दिन में दो बार पीने के लिए दें।
  • अदरक के रस में घी या शहद मिलाकर पीने से भी कमर, जांघों तथा अन्य दर्दों में राहत मिलती है।
  • गठिया में नींबू का प्रयोग भी उपयोगी है। ठंडे या गर्म पानी में नींबू का रस मिलाकर पीना चाहिए।

दर्द से राहत पहुंचाने वाले घरेलू नुस्खे

  • दर्द के समय आप सन बाथ ले सकते हैं।
  • 5 से 10 ग्राम मेथी के दानों का चूर्ण बनाकर सुबह पानी के साथ लें।
  • 4 से 5 लहसुन की कलियों को एक पाव दूध में डालकर उबालकर पीएं।
  • लहसुन के रस को कपूर में मिलाकर मालिश करने से भी दर्द से राहत मिलती है।
  • लाल तेल से मालिश करना भी आरामदायक होता है।
  • गर्म दूध में हल्दी मिलाकर दिन में दो से तीन बार पीएं।
  • शरीर में पानी की मात्रा संतुलित रखें।  
  • जोड़ों के दर्द से बचने के लिए सबसे अच्छा योगासन है गोमुखासन।

सरसों तेल की मालिश 

आर्थराइटिस में जोड़ क्षतिग्रस्त हो जाते हैं। सरसों के तेल में लहसुन जायफल मिलाकर जोड़ों में मालिश करने से मोबिलिटी रहती है और दर्द दूर होता है। मालिश के लिए महानारायण तेल, महामास तेल आदि भी यूज कर सकते हैं।

क्यों होता है ठंड में दर्द?

ठंड में क्या करें

मरीज अधिक-से-अधिक समय धूप में रहने की कोशिश करें। जोड़ों को पूरी तरह ढंक कर रखें। एक बार ठंड लग जाने के बाद काफी परेशानी होती है। यदि दवा लेने के बाद भी परेशानी हो, तो पुरानी दवाई न खाएं और डॉक्टर से सलाह लें।  

  • ठंड में हड्डियों, खास कर जोड़ों में दर्द की समस्या बढ़ जाती है। इसका प्रमुख कारण ऑस्टियोआर्थराइटिस या ऑस्टियोपोरोसिस है। इसके अलावा कई अन्य प्रकार के दर्द भी हैं, जो इस मौसम में हावी हो जाते हैं। इसके लिए जरूरी है आप अपने खान-पान में थोड़ा-सा सुधार करें और डॉक्टर की सलाह पर दवाइयों का सेवन करें व  नियमित कसरत करें।
  • ठंड के मौसम में गठिया के मरीजों को अधिक परेशानी होती है इसलिए उन्हें ठंड से बचने का हर संभव प्रयास करना चाहिए।
  • सर्दियों में हड्डियों एवं जोड़ों का दर्द ज्यादा परेशान करता है। इस मौसम में आर्थराइटिस एवं पुराने चोट का दर्द उखड़ जाता है। ठंड के कारण ब्लड वेसेल्स का सिकुड़ना इसका प्रमुख कारण है। इसके कारण दर्द पैदा करने वाले केमिकल्स जमा हो जाते हैं, जिससे दर्द का एहसास होने लगता है।

मांसपेशियों में दर्द का कोई निश्चित या प्रमाणित कारण नहीं है। माना जाता है कि शरीर पर एटमोस्फेरिक प्रेशर समान रूप से पड़ता है और शरीर को इसकी आदत होती है। मौसम के ठंडे होने पर प्रेशर में परिवर्तन होता है। कोशिकाओं में भी खिंचाव होता है। इसी कारण दर्द की शिकायत बढ़ जाती है। यह थ्योरी सर्वमान्य नहीं है, क्योंकि सभी लोगों को यह समस्या नहीं होती। दूसरी थ्योरी है कि ठंड के दिनों में लोग घर से कम निकलते हैं और फिजिकल एक्टीविटी भी कम हो जाती है। इस कारण कैल्शियम आयरन के प्रभाव से दर्द की समस्या होती है। अत: ऐसी स्थिति में नियमित व्यायाम और न्यूट्रिशन काफी महत्त्वपूर्ण है।

नसों का दर्द- शरीर में नसें विद्युत तार की तरह जुड़ी होती हैं सर्दी में वातावरण में ऑक्सीजन की कमी होने के कारण नसों में संकुचन बढ़ जाता है, जिससे खून का बहाव अपेक्षाकृत कम हो जाता है। यह स्थिति माइग्रेन और ट्राईजेमिनल न्यूरेल्जिया भी कारण बन सकती है। इसमें नर्व पेन अधिक होता है।

अन्य सलाह

  • गठिया के रोगी के लिए आयुर्वेद में पंचकर्म का वर्णन है इसमें शरीर में मालिश, भाप स्नान, विरेचन अथवा जड़ी-बूटियों से बनाई गयी गरम पोटलियों से सेंक और मालिश की जाती है। परंतु अधिक कमजोर रोगी के लिए पंचकर्म ठीक नहीं है। पूरी तरह से प्रशिक्षित न होने से रोगी को इससे हानि भी हो सकती है। 
  • वे जूते न पहनें जो आपका पंजा दबाते हों और आपकी एड़ी पर जोर डालते हों। पैडेड जूता होना चाहिए और जूते में पंजा भी खुला-खुला रहना चाहिए।
  • सोते समय गर्म पानी से नहाना मांसपेशियों को रिलैक्स करता है और जोड़ों के दर्द को आराम पहुंचाता है। साथ ही इससे नींद भी अच्छी आती है।
  • काम के दौरान कई-कई बार ब्रेक लेकर सख्त जोड़ों और सूजी मांसपेशियों को स्ट्रैच करें।
  • यदि शीघ्र ही उपचार कर नियंत्रण नहीं किया गया तो जोड़ों को स्थायी नुकसान हो सकता है।

आहार चिकित्सा

किसी भी प्रकार की गठिया हो, आहार से रोगी की पीड़ा कम हो सकती है तथा यदि रोग अधिक पुराना नहीं है, तो पूरी तरह ठीक हो सकता है।

आहार चिकित्सा एक महीने तक लेनी चाहिए और यदि आवश्यक हो तो आगे भी चलाई जा सकती है, नीचे दिए गए चार्ट के अनुसार प्रात:काल जल्दी उठकर शुरू करना हमेशा ठीक रहता है लेकिन उसके लिये समय पर सोना भी आवश्यक है।

प्रात:काल 5 बजे

एक चम्मच नींबू का रस, दो चम्मच शहद तथा चार कली लहसुन की कुचली हुई एक गिलास गर्म पानी में मिलाकर लें।

प्रात:काल 6.30 बजे

25 ग्राम मेथी एक रात पहले पानी में भिगोई हुई। उसका पानी गर्म करके पीएं।

प्रात:काल 9 बजे

मौसमी सब्जियों का रस विशेषतौर से गाजर का रस आधा गिलास लें।

प्रात:काल 11 बजे

गेहूं के संपूर्ण आटे की दो रोटी, उबली हुई हरी सब्जियां, अंकुरित मेथी तथा सलाद लें। जिस भीगी हुई मेथी का पानी पिया था, उसे ही अंकुरित किया जा सकता है। इसका स्वाद बढ़िया करने के लिए इसमें खीरा, टमाटर, गाजर आदि मिलाए जा सकते हैं।

दोपहर 2 बजे

4 मौसमी फल तथा एक गिलास रस।

शाम 4 बजे

नींबू का रस तथा शहद गर्म पानी में।

शाम 6.30 बजे

फल तथा अंकुरित अनाज।

लौकी, तोरई आदि अनाज में शामिल की जा सकती है। फल विशेष तौर से पपीता, आम तथा खट्टे फल और उनका रस लेना चाहिए। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि आहार चिकित्सा में बिना पकाई हुई सब्जी तथा फल अधिक मात्रा में लेने चाहिए। 

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