तीन दिन पहले परमेश्वरी बाबू का पत्र मिला था, “राजेश्वर भाई, आजकल इलाहाबाद में हूँ। कल हिरनापुर जाना है, हिरनापुर यानी शहीद मोहनाv उसे पेड़ पर लटकाकर फाँसी दी गई थी। गाँव में हर साल वहाँ शहीद मेला लगता है। तुम यहाँ आओ तो साथ-साथ चलेंगे।”
परमेश्वरी बाबू मेरे बचपन के मित्र हैं, पर बड़े जिद्दी। दीवानगी की हद तक।
बरसों हम साथ-साथ पढ़े। फिर वे एक बड़ी यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर हुए। पर अचानक इस्तीफा देकर सड़क पर आ गए। एक बड़ा काम करना है। भारत के शहीदों की महागाथा लिखेंगे। आखिर किसी को तो करना ही चाहिए न यह काम!
पत्र पढ़कर बचपन की तमाम स्मृतियों ने आ घेरा। उनसे किसी तरह पिंड छुड़ाकर झटपट तैयारी शुरू कर दी। परमेश्वरी ने बुलाया है तो जाना ही होगा।
हिरनापुर के शहीद मेले का जिक्र मैंने सुना था। मोहना की शहादत का प्रसंग भी। पर कभी जा न सका। अब परमेश्वरी बाबू के साथ वहाँ जाने का एक अलग रोमांच। परमेश्वरी बाबू, जिन्हें हम सारे नजदीकी दोस्त प्यार से पंबे बाबू भी बोलते हैं, आजकल भारत के शहीदों पर अपने महाग्रंथ को पूरा करने में जुटे हैं।…
रात-दिन मेहनत।…समझना मुश्किल नहीं था कि जरूर मोहना की शहीदी गाथा भी उसमें शामिल होगी।
उसी रात गाड़ी पकड़कर सुबह-सुबह इलाहाबाद में। देखकर पंबे बाबू खुश। बोले, “ठीक है राजेश्वर, तुम सही समय पर आए। मेरा बड़ा मन था कि तुम्हारे साथ वहाँ जाऊँ। तुम नहा-धोकर तैयार हो जाओ। हिरनापुर गाँव बनारस से कोई बीस-पच्चीस मील आगे है, रास्ता भी ठीक नहीं। खासा ऊबड़-खाबड़। पर जाना तो होगा ही।…बस, थोड़ी देर में चल पड़ते हैं। शाम तक तो पहुँच ही जाएँगे।”
“ठीक है पंबे बाबू।…” मेरे होंठों से निकलता है।
पंबे बाबू के जोश और समर्पण के आगे मैं नतमस्तक।…
ये उपन्यास ‘बच्चों के 7 रोचक उपन्यास’ किताब से ली गई है, इसकी और उपन्यास पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं – Bachchon Ke Saat Rochak Upanyaas (बच्चों के 7 रोचक उपन्यास)
