samay ka antar
samay ka antar

एक गधा घने जंगल में रास्ता भूल जाने से इधर-उधर भटक रहा था। अचानक उसे गुफा दिखाई दी। वह डरते-डरते उस गुफा के पास पहुँचा तो देखा कि उसका ही एक स्वजातीय (गधा) गुफा में सहमा डरा-सा लेटा आराम की मुद्रा में था। उसे देखकर गुमे गधे का खोया साहस जाग गया और उसने गुफा के गधे से पूछा-मित्र आप इस गुफा में बेफिक्र होकर पड़े हो, बारह बज रहे हैं, पहले मैं अकेला था, अब दो हो गये हैं, अब डर काहे का है, अब बारह बजे का हूटर बजाते हैं।

इस पर गुफा के गधे ने अकड़कर खड़े होते हुए कहा- देख भाई गधे, एक समय तूने मेरा चमड़ा लेकर अपना तन छुपा लिया था तो सारे जंगल में हड़कम्प मच गया था परन्तु आज मैं शिकारियों के डर से अपना अस्तित्व बचाने के लिये तेरा चमड़ा अपना तन छुपाने के लिये उपयोग कर रहा हूँ, परन्तु यह बात किसी से मत कहना कि एक शेर ने गधे के चमड़े से अपना तन छुपा रखा है। आज मैं तुम्हारे साथ हूटर बजाकर वन्य प्राणियों के कुछ शत्रु मानवों को यह नहीं बताना चाहता कि मैं शेर हूँ क्योंकि अब गधा बनकर रहना ही मेरी जाति को संसार से लुप्त होने से बचा सकता है।

ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंAnmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)