स्वामी दयानन्द के पाखंड खंडन से चिढ़कर पूना के पोंगापंथी पाखंडियों ने उन्हें अपमानित करने तथा चिढ़ाने के लिए एक जुलूस निकाला। उन्होंने एक नकली दयानंद बनाकर चूना और कालिख से उसका मुँह रँगकर गधे पर बिठाकर जुलूस के आगे कर रखा था और लोग पीछे-पीछे उस पर दयानन्द के नाम से तरह-तरह की व्यंग्य बौछार करते तथा तालियाँ बजाते चल रहे थे।
दयानन्द के शिष्यों से न रहा गया। वे स्वामीजी के पास गये और कहने लगे कि यदि अनुमति मिले, तो इन पाखंडियों को उचित सजा वे दे सकते हैं।
इस पर स्वामीजी बड़े ही सहज भाव से समझाते हुए बोले, “इसमें सजा देने की क्या बात? दूसरे की नकल करने वालों की जो दशा होती है, वह बेचारे नकली दयानन्द की हो रही है। यह क्रोध करने का नहीं_ शिक्षा लेने का विषय है।”
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