गुरु गोविंद सिंहजी को पता चला कि अमुक गाँव के लोग बड़े चोर हैं। चोरी करना ही उनका धंधा है। सारा गाँव इस कलुषित कार्य में संलिप्त है। उन्होंने उनको सुधारने की सोची और पहुँच गए उस गाँव में। कहीं चौपाल में, छाया में जा बैठे। गाँव वालों से कि पूछा उनका मुख्य काम क्या है, जिससे वे अपना गुजर-बसर करते हैं। उन्होंने बिना छिपाए, सहर्ष कह दिया कि वे तो चोर हैं। सबके सब…
गुरुसाहब ने उन्हें सलाम दी- “देखो! यह बुरा काम है। बुरा काम करना पाप है। इसे छोड़ क्यों नहीं देते?”
“ऐसा संभव नहीं” एक बुजुर्ग ने कहा।
‘क्यों?’
“हमें पेट पालना मुश्किल हो जाएगा।” “कोई और काम क्यों नहीं कर लेते?” ‘यह बड़ा मुश्किल है’
“ठीक है।” चोरी तो करते रहो। मगर रोज सबेरे सूची बनाते रहो। रोजाना किस व्यक्ति ने कहां चोरी की। किसी भी चोरी को छोड़ना मत। मगर हर दिन सूची बढ़ने लगी। लंबी होने लगी। जब वे देखते तो उन्हें स्वयं ही शर्म आने लगी। विचार-विमर्श भी होने लगा। आज किसी ने चोरी करना छोड़ दिया तो कल दूसरे ने तौबा कर ली… धीरे-धीरे सुधर गया गाँव।
ये कहानी ‘ अनमोल प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएं–Anmol Prerak Prasang(अनमोल प्रेरक प्रसंग)
