जन्माष्टमी पर इस तरह करें भगवान श्रीकृष्ण का पूजन, जानिए खास बातें: Janmashtami Puja Tips
चलिए जानते हैं कि इस जन्माष्टमी आप श्री कृष्ण की पूजा कैसे करेंगे और शुभ मुहूर्त क्या है।
Janmashtami Puja Tips: भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण ने अत्याचारी कंस का संहार करने के लिए मथुरा के कारागार में मध्यरात्रि को जन्म लिया था। देश विदेश में बड़ी श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाए जाने वाले इस पर्व की छटा मथुरा-वृंदावन में विशेष रूप से देखने को मिलती है। इस दिन देश भर के मंदिरों को विशेष रूप से सजाया जाता है और श्रीकृष्ण के जन्म से जुड़ी घटनाओं की झांकियां सजाई जाती हैं। कहते हैं कि श्रीकृष्णजन्माष्टमी का व्रत करने वाले के सब क्लेश दूर हो जाते हैं। चलिए जानते हैं कि इस जन्माष्टमी आप श्री कृष्ण की पूजा कैसे करेंगे और शुभ मुहूर्त क्या है।
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जन्माष्टमी की तारीख

हिंदू पंचांग की मानें तो इस बार 26 अगस्त (सोमवार) को मनाया जाएगा। सुबह 3 बजकर 40 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू होगी और अगले दिन यानी 27 अगस्त को सुबह 2 बजकर 19 मिनट पर इसका समापन होगा।
शुभ मुहूर्त
पूजा का शुभ समय मध्य रात्रि 12:02 से रात्रि 12:45 तक रहेगा। व्रत का पारण 27 अगस्त को सुबह 6:36 तक किया जा सकता है।
जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण की कैसी मूर्ति लाएं?

जन्माष्टमी पर सामान्यता बाल कृष्ण की स्थापना की जाती है। आप अपनी मनोकामना के आधार पर जिस स्वरूप को चाहें स्थापित कर सकते हैं। प्रेम और दाम्पत्य जीवन के लिए राधा कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर सकते हैं। संतान के लिए बाल कृष्ण की मूर्ति स्थापित कर सकते हैं। धन प्राप्ति के लिए कामधेनु गाय के साथ विराजमान श्रीकृष्ण की प्रतिमा स्थापित कर सकते हैं।
कैसे करें श्रीकृष्ण का श्रृंगार?
जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण के श्रृंगार में रंग बिरंगे फूलों का खूब प्रयोग करें। पीले रंग के वस्त्र और चंदन की सुगंध से भगवान का श्रृंगार करें, इसमें काले रंग का प्रयोग बिल्कुल न करें। वैजयंती के फूल अगर कृष्ण जी को अर्पित करें तो सर्वोत्तम होगा।
क्या होगा श्रीकृष्ण का प्रसाद ?

जन्माष्टमी पर श्रीकृष्ण को पंचामृत जरूर अर्पित करें, उसमें तुलसी दल भी जरूर डालें। मेवा, माखन और मिसरी का भोग भी लगाएं, कुछ जगहों पर धनिये की पंजीरी भी अर्पित की जाती है।
कैसे मनाएं जन्माष्टमी?
जन्माष्टमी की सुबह स्नान करके व्रत, पूजा का संकल्प लें। दिनभर जलाहार या फलाहार ग्रहण करें और सात्विक रहें। मध्य रात्रि को भगवान कृष्ण की धातु की प्रतिमा को किसी पात्र में रखें। उसे पहले दूध, फिर दही, फिर शहद व शक्कर और अंत में घी से स्नान कराए। इसी को पंचामृत स्नान कहते हैं। इसके बाद कान्हा को जल से स्नान कराएं।
