asha deep
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एक कमरे में चार दीप जल रहे थे। वहाँ का परिवेश इतना शांत था कि उनकी मंद स्वर में की जाने वाली बात को आसानी से सुना जा सकता था।

पहले दीपक ने दुःखी स्वर में कहा- “मैं शांति हूँ, कोई मुझे बनाये नहीं रखना चाहता है, मेरा विश्वास है कि मुझे बुझ जाना चाहिए।”

और तुरंत उसकी लौ बुझ गई।

दूसरे दीपक ने अपना रोना रोया- “मैं विश्वास हूँ, अधिकांश लोग मुझे लंबे समय तक कायम नहीं रख सकते हैं, फिर मेरे जलते रहने का क्या प्रयोजन है?”

उसका यह कहना था कि हवा का एक झोंका आया और उसके प्रकाश को हर ले गया।

अब बारी तीसरे दीपक की थी, उसने बड़े निराशा भरे स्वर में आंसू बहाते हुए दुखड़ा सुनाया- ‘मैं प्रेम हूँ, मुझमें जलते रहने की ताकत नहीं रह गई है, क्योंकि लोगों ने मेरे महत्व को न समझते हुए मुझे एक किनारे कर दिया है। यहाँ तक कि वे उनको भी प्रेम नहीं करते जो उनके सबसे नजदीक हैं और प्रेम पाने के अधिकारी हैं।

निराशा के इन क्षणों में वह भी बिना एक पल की प्रतीक्षा किए बुझ गया।

अचानक एक बालक उस कक्ष में प्रविष्ट हुआ और देखा कि तीन दीपक नहीं जल रहे हैं। “तुम तीनों क्यों नहीं जल रहे हो? जबकि तुम्हें आखिरी क्षण तक जलकर प्रकाश देना चाहिये।” इतना कह कर वह रोने लग गया।

उसका रोना सुनकर चौथे दीपक का हृदय द्रवित हुआ उसने कहा- “मेरे रहते तुम्हें डरने और रोने की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि मैं आशा हूँ।”

उस बालक की आंखों में चमक लौटी और उसने आशा दीप से शेष तीनों दीपों को पुनः रोशन कर दिया।

आशा दीप शांति, विश्वास और प्रेम को पुनर्जीवित कर सकता है। आपके जीवन में आशा की किरण बनी रहनी चाहिये। इसके बल पर आप संपूर्ण मानवता के लिए नंदा-दीप बन सकते हैं।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)