‘ईश्वर का सच्चा भक्त कौन है?’ भक्त ने नीशापुर के संत अहमद से पूछ लिया। प्रश्न बहुत अच्छा है। इसके लिए में तुम्हें अपने पड़ोसी की आपबीती सुनाता हूँ। उसने लाखों रुपयों का माल, घोड़े तथा ऊंटों पर लादकर भेजा। इसे दूसरे देश में बेचा जाना था किंतु मार्ग में डाकू मिल गए। उन्होंने सारा माल लूट लिया। मेरे पड़ोसी का यह बहुत बड़ा नुकसान था।
जब मुझे पता चला तो मैं अपने इस पड़ोसी मित्र से सहानुभूति जतलाने गया। जैसे ही मुझे वहाँ देखा, उन्होंने नौकर को बुलाकर कहा- ‘रात के खाने का समय हो चुका है। हमारे दोस्त के लिए खाना लगाओ।’ मैंने कहा- ‘श्रीमान मैं तो आपके माल के लूटे जाने की खबर सुनकर सांत्वना देने आया हूँ। मैं भोजन नहीं करूंगा।’ मेरी बात सुनकर उन्होंने कहा- ‘इसमें कोई सन्देह नहीं कि मुझे काफी क्षति पहुँची है।
ड़ाकुओं ने मेरा पूरा माल लूट लिया किंतु अब भी मैं भगवान को धन्यवाद देता हूँ कि उन डाकुओं ने मेरी केवल नश्वर सम्पत्ति ही लूटी है। उन्होंने मेरी शाश्वत सम्पत्ति को छेड़ा भी नहीं। मेरी दृष्टि में मेरी शाश्वत सम्पत्ति है मेरी आस्था। आप मेरे साथ सहानुभूति जतलाने आए, इसके लिए आपका धन्यवाद। नीशापुर के संत अहमद ने प्रश्नकर्ता से फिर यह कहा- ‘मेरी नजरों में तो यह मेरा पड़ोसी ही ईश्वर का सच्चा भक्त है।’
सारः सद्गुण व अच्छे विचार ही सच्चे भक्त की निशानी है।
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