har kaam ka ek waqt hota hai
har kaam ka ek waqt hota hai

एक बार एक अमीर व्यवसायी एक गुरु के पास पहुँचा और उसे बताया कि वह काम को लेकर बहुत परेशान रहता है और ठीक से सो भी नहीं पाता। उसने बताया कि मैं हर रात अपना ब्रीफकेस खोलकर देखता हूँ और उसमें ढेर सारा काम बचा हुआ दखिता है।

गुरु ने पूछा कि तुम उसे अपने साथ घर लेकर जाते ही क्यों हो? व्यवसायी ने बताया कि काम इतना ज्यादा है कि इसके अलावा कोई चारा भी तो नहीं है। गुरु ने कहा कि वह अपने सहयोगियों, भाई-बंदों की मदद क्यों नहीं लेता तो उसने कहा कि सिर्फ मैं ही अपना काम कर सकता हूँ। उसे समय पर पूरा करने के लिए सब कुछ मुझ पर ही निर्भर करता है। इस पर गुरु ने उसे एक पर्चे पर कुछ लखिकर दिया और बोला-कि अगर तुम इस नुस्खे पर अमल करोगे तो तुम बहुत जल्द ठीक हो जाओगे।

व्यवसायी ने देखा कि पर्चे पर यह लिखा था कि वह हर हफ्ते कम से कम आधा दिन का वक्त निकालकर किसी कब्रिस्तान में रहे। व्यवसायी ने हैरानी से पूछा कि इससे क्या होगा? गुरु ने कहा कि जब तुम आधा दिन वहाँ बैठकर कब्रों पर लगे पत्थरों को देखोगे तो समझ जाओगे कि तुम्हारी तरह ही वे भी यही सोचते थे कि पूरी दुनिया का भार उनके ही कंधों पर ही था। अब जरा यह सोचो कि यदि तुम भी उनकी तरह दुनिया से चले जाओगे तब भी यह दुनिया चलती रहेगी। तुम नहीं रहोगे तो तुम्हारी जगह कोई और ले लेगा। दुनिया कभी नहीं रुकने वाली। व्यवसायी को यह बात समझ में आ गई और उसके बाद उसने काम की वजह से उद्वेलित होना और व्यथित रहना छोड़ दिया।

सारः जीवन के लिए काम है, काम के लिए जीवन नहीं।

ये कहानी ‘इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग’ किताब से ली गई है, इसकी और कहानियां पढ़ने के लिए नीचे दिए गए लिंक पर जाएंIndradhanushi Prerak Prasang (इंद्रधनुषी प्रेरक प्रसंग)