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पिछले कुछ दिनों से गुल कुछ चिड़चिड़ी, कुछ गुपचुप, कुछ असहज-सी दिख रही थी। पहले मुझे लगा कि घर वाले शादी का प्रेशर बना रहे होंगे या ऑफिस का कोई स्ट्रेस होगा। शायद मैं ठीक थी। हंसमुख गुल के चेहरे पर सन्नाटा छाया रहता। उसका बेडौल होता शरीर। अवांछित बाल। चेहरे पर भूरे रंग के धब्बे और मुहांसे। एक बार मैंने पूछा कि क्या तुम नियमित सैलून या जिम नहीं जाती?
इस सवाल से बौखला गई गुल। जानती थी मेरी गुल को कोई न कोई परेशानी अंदर ही अंदर खोखला कर रही है। जब मैंने उससे इस बदलाव का कारण पूछा, तो उसने बताया कि वह अनियमित महावारी, चेहरे पर आवांछित बाल, ज्यादा ब्लीडिंग, शौच के दौरान पेट में दर्द, अत्यधिक पसीना, पेशाब में जलन, बार-बार पेशाब लगना, पेट में भारीपन, पेशाब से दुर्गंध, पसलियों व कमर में एक तरफ दर्द, उल्टी और मितली जैसी समस्याओं से परेशान है। तीस की उम्र में इन सब समस्याओं से उसे जूझता देख तुरंत उसे गायनोकॉलोजिस्ट के पास ले गई। डॉक्टर के नियमित इलाज से अब ठीक है मेरी गुल। आपका भी ध्यान है मुझे। गुल जैसी समस्या से आप, आपकी सहेली, भाभी ना जाने कब से जूझ रही हों। गायनोकॉलोजिस्ट की गुल को राय व समाधान आप उनसे शेयर करें और उन्हें डॉक्टर की मदद लेने के लिए प्रेरित करें।
नई दिल्ली स्थित शांता आईवीएफ सेंटर की गायनोकॉलोजिस्ट और इंफर्टिलिटी विशेषज्ञ अनुभा सिंह के अनुसार, महिलाओं को अपनी माहवारी के चक्र पर खासा ध्यान देना चाहिए। इस ओर बरती लापरवाही घातक हो सकती है। यदि माहवारी के दौरान ज्यादा ब्लीडिंग, पेट में दर्द और पेशाब की थैली पर जोर पड़े, बार-बार बाथरूम जाना पड़े, कब्ज की शिकायत रहे, कमर दर्द व पेट के निचले हिस्से में सूजन रहे, संभोग के दौरान दर्द या बेचैनी या गर्भपात या बांझपन रहे, तो आप फाइब्रॉयड से ग्रस्त हो सकती हैं। ये इसके ही कुछ लक्षण हैं। इसकी पुष्टि अल्ट्रासाउंड व अन्य जांच से की जा सकती है।
समस्या है तो इलाज भी है
कुछ समय पूर्व तक फाइब्रॉयड हटाने के लिए ओपन सर्जरी ही एकमात्र जरिया था, जिससे महिला के गर्भाशय में दिक्कत हो जाती थी। आधुनिक तकनीक ने इस सर्जरी का तोड़ निकाला, जिसके अंतर्गत फाइब्रॉइड को लैप्रोस्कोपीक या हिस्टेरोस्कोपीक के जरिए निकाला जाता है। यदि अनुभवी हाथों से यह प्रक्रिया करवाई जाए तो गर्भाशय को पूरी तरह सुरक्षित बचाया जा सकता है। कई बार फाइब्रॉयड्स बार-बार आते रहते हैं, यहां तक कि सर्जरी के कुछ साल बाद ये दोबारा आ जाते हैं। इस समस्या से बचाव भी अब संभव है।
अनियमिता को नहीं करें नजरअंदाज
प्रजनन उम्र वाली लगभग 77 प्रतिशत महिलाओं को फाइब्रॉयड गर्भवती होने में बाधा उत्पन्न करता है। यह समस्या आमतौर पर 30 से 50 साल उम्र की महिलाओं में देखी जाती है। बताए गए लक्षणों को नजरअंदाज नहीं करें। जल्द से जल्द उचित इलाज कराएं। अन्यथा समस्या गंभीर भी हो सकती है।
कम उम्र में भी होता है खतरा
आईवीएफ एक्सपर्ट डॉक्टर शोभा गुप्ता कहती हैं कि अगर आपको अनियमित माहवारी, बहुत ज्यादा गर्मी व पसीना आने की शिकायत हो, तो जल्द से जल्द अपनी जांच करवानी चाहिए। अगर ब्लड टेस्ट में आपका फालिक्यूल स्टिम्यूलेटिंग हार्मोन 25 प्रतिशत से ज्यादा है, तो आपको पीओएफ (प्रीमेच्योर ओवेरियन फेल्योर) का खतरा है। पीओएफ का मतलब है 40 की उम्र से पहले ओवरीज का सामान्य काम न करना। भारत में 30 से 40 साल के उम्र वर्ग में पीएफओ के मामले 0.1 प्रतिशत है। भले यह आंकड़ा नाममात्र हैं लेकिन 25 प्रतिशत महिलाएं अनियमित माहवारी या माहवारी के कई महीने तक न होने के बाद फिर शुरू होने (अमनोरिया), थायरॉयड, जैसी समस्याओं से जूझ रही हैं। वैसे तो विशेषज्ञ इस समस्या को आनुवांशिक मानते हैं। यदि समय पर लक्षणों को पहचान कर उचित जांच और इलाज कराया जाए, तो गर्भधारण किया जा सकता है।
पोलीसिस्टिक ओविरियन सिन्ड्रोम (पीसीओएस) के खतरे
गायनोकॉलोजिस्ट व आईवीएफ विशेषज्ञ डॉक्टर श्वेता गोस्वामी बताती हैं कि करीब दस फीसदी महिलाएं किशोरावस्था में ही पीसीओएस की समस्या से प्रभावित होती है। आमतौर पर यह समस्या महिलाओं को प्रजनन की उम्र से लेकर रजोनिवृत्ति तक प्रभावित करती है। महिलाओं और पुरुषों दोनों के शरीर में प्रजनन संबंधी हार्मोन बनते हैं। एंड्रोजेंस हार्मोन पुरुषों के शरीर मे भी बनते हैं, लेकिन पीसीओएस की समस्या से ग्रस्ति महिलाओं के अंडाशय में हार्मोन सामान्य से अधिक बनने लगते हैं। इसकी वजह से अंडाणु सिस्ट या गांठ में तब्दील हो जाता है। कई बार कैंसर का रूप भी ले लेता है। यह स्थिति घातक होती है। यह सिस्ट छोटी-छोटी थैलीनुमा रचनाएं होती हैं, जिनमें तरल पदार्थ भरा होता है। अंडाशय में यह सिस्ट एकत्र होते रहते हैं और इनका आकार भी बढ़ता जाता है। यह स्थिति पॉलिसिस्टिक ओवेरियन सिंड्रोम कहलाती है। इस समस्या की वजह से महिलाएं गर्भ धारण नहीं कर पाती हैं। उन्होंने बताया कि पीसीओएस के कारण अंडोसर्ग (ओवेल्युशन) में भी बाधा आती है और वजन बढऩे लगता है। यदि पीसीओएस का शुरू में पता न चल पाए और इलाज न हो तो बांझपन की समस्या के साथ-साथ महिला को मधुमेह टाइप 2 और अत्यधिक कोलेस्ट्रॉल की शिकायत भी हो जाती है।
पीसीओएस के लक्षण
पीसीओएस के लक्षण हैं, शरीर व चेहरे पर बालों का बढऩा, यौन इच्छा में अचानक कमी, युवावस्था या प्रजनन की उम्र के दौरान अनियमित मासिक धर्म, त्वचा पर भूरे रंग के धब्बों का उभरना या बहुत ज्यादा मुहांसों का होना और शादीशुदा महिलाओं में बांझपन या गर्भ न ठहर पाना लक्षण दिखते ही सचेत हो जाएं और तुरंत गायनोकॉलोजिस्ट से संपर्क करें। इलाज के साथ-साथ वजन नियंत्रित रखें, रोजाना व्यायाम करें, अत्यधिक तैलीय, मीठा, व वसा युक्त भोजन न खाएं और तनाव रहित रहें। ऐसा करने से ओवरीज में दोबारा अंडे बनना शुरू हो जाते हैं।
क्या है यूटीआई
यूरिनरी ट्रैक्ट इंफेक्शन यानी मूत्र मार्ग के संक्रमण को यूटीआई कहते हैं। यह बैक्टीरिया का संक्रमण है। यह मूत्र मार्ग के किसी भी हिस्से को प्रभावित कर सकता है। मुख्यत: ई-कोलाई नामक बैक्टीरिया से यूटीआई की समस्या पैदा होती है। हालांकि, कई अन्य किस्म के बैक्टीरिया, फंगस और परजीवी भी हैं, जिनसे यूटीआई की समस्या होती है। इस संक्रमण से मरीज के यूरिनरी ट्रैक्ट का निचला हिस्सा प्रभावित होता है और यह संक्रमण यूरेथ्रा और ब्लैडर तक फैल जाता है। यह पुरुषों की तुलना में महिलाओं में अधिक होता है। यूटीआई के कारण हैं, पीरियड्स के दिनों में योनि और गुदामार्ग की साफ-सफाई में कमी और शरीर की रोग प्रतिरोधी क्षमता में कमी। मूत्र मार्ग के अंदर और आसपास मौजूद बैक्टीरिया मानसून में बहुत तेजी से बढ़ते हैं, जिससे संक्रमण का खतरा बढ़ता है।
यूटीआई के लक्षण
-पेशाब में जलन, बार-बार पेशाब लगना, पर पर्याप्त पेशाब नहीं होना
-पेट में भारीपन का अनुभव होना
-पेशाब से दुर्गंध आना
-पसलियों, कमर के एक तरफ दर्द होना
-बुखार और कंपकंपी होना
-उल्टी और मितली का होना
रोकथाम के उपाय
-शारीरिक साफ-सफाई की सामान्य आदतें डालना, जैसे कि यौन संबंध से पहले और बाद में पेशाब कर लेना।
-अधिक मात्रा में तरल पदार्थ का सेवन करना और पेशाब देर तक न रोकना।
-क्रेनबेरीज या ब्ल्यूबेरीज खाना या उनका जूस पीना, अनन्नास का जूस भी इस बीमारी और इसके खतरे को कम करने में सहायक होता है।
-पर्याप्त विटामिन सी लेने से भी पेशाब में बैक्टीरिया नहीं पनपता है।