नव्या-गृहलक्ष्मी की कहानियां
Navya

Grehlakshmi Ki Kahani: ‘पापा आप…?
नव्या बरामदे में पिता को देखकर सहम गयी थी। अभी परसों ही तो फोन पर परिवार में सबसे बात हुयी थी बारी-बारी से। सब कुछ तो ठीक ही था। कहीं कोई नयी बात नही थी, फिर अचानक से पापा कैसे आ गये? सोचा था उसने। फिर अचानक से उसे कल की घटना याद हो आयी। कॉलेज के गार्डन में प्राचार्य सर ने उसे सोहन के साथ हाथों में हाथ लिये मुस्कुराते हुये देखा था। नव्या तुरंत सोहन का हाथ छुड़ाकर क्लास रूम में आ गयी थी फिर भी प्राचार्य सर ने ऑफिस में बुलाकर उसे अच्छा खासा लेक्चर दिया था।
‘यहां पढ़ने आयी हो कि तफरी करने?
‘पढ़ने आयी हूं सर।
‘फिर क्लास छोड़कर यहां गार्डन में कौन सी क्लास चल रही है?
‘सारी-सर…अब आगे से ऐसा नही होगा। कहकर नव्या सीधे क्लास में आ गयी थी। प्राचार्य सर पिताजी के मित्र थे तो नव्या ने माफी भी मांग ली थी कि वे पिताजी को इस घटना की सूचना न दे दें।
‘क्या पापा, मेरे विवाह को लेकर मम्मी की चिन्ता पुन: बताने आए हैं! या प्रचार्य सर से माफी मांग लेने के बावजूद सर ने पापा को फोन कर ही दिया? सोचा था उसने। वह पिताजी से सीधे मुखातिब भी नही हो पायी थी, तभी वे लगभग बिफरते हुए बोले थे।
‘हमारे पारिवारिक संस्कार को तो तुम कायदे से जानती और समझती हो।
‘जी पापा। नव्या सहमते हुए बोली थी।
‘तो हमारी उस सामाजिक मर्यादा को किस तरह समाप्त कर रही हो तुम, सोचा है तुमने?
‘पापा आप गलतफहमी में हैं।
‘क्या गलतपहमी में हूं? पिताजी रोष में बोले थे।
‘मैं सब बताती हूं पापा! आप कमरे में तो आइए।
उसे स्वयं को सम्हालने में कुछ वक्त अवश्य लगा था लेकिन अब तक बहुत हद तक स्वयं को सम्हाल लिया था उसने। उसे लगा कि कोई घूर रहा है उसे। दरवाजे का ताला खोलते हुए उसने देखा कि मकान मालकिन आंटी घूर रही थीं।
कमरे में आते ही पिता जी फिर बोले थे, ‘हमारे परिवार की सामाजिक मर्यादा खतरे में है नव्या। मेरे विश्वास को तोड़ा है तुमने।
नव्या जब यहां घर से बहुत दूर अपने करियर को संवारने के प्रयास में थी, तब वहां घर में बैठे उसके परिवार के लोगों में उसके भावी जीवन को लेकर बैठकें चल रहीं थीं। घर में सुंदर युवा कुंवारी बेटी का पिता नींद भर सो नहीं पाता। प्राचार्य सर का फोन मिलते ही पिताजी तुरंत भागे-भागे आए थे। नव्या खुद को संयत करते हुए बोली, ‘सोहन अच्छा लड़का है पापा। मैंने दीदी से फोन पर बताया था उसके बारे में और यह भी कहा था कि वे आपको सारी बातें बता भी दें।’
पिताजी ने देखा कि नव्या पारिवारिक मिथ तोड़ने की तरफ बढ़ चुकी है। वह अक्सर कभी-कभी अपनी बुआ लोगों से नारी स्वतंत्रता के मुद्दे पर बहस करती और उन्हें शालीनता से कोसती भी कि वे इस तरह बंधकर कैसे जी गयीं अपना जीवन। बुआ लोग भले समझातीं कि जिसे वह बंधन समझ रही है वह हमारे परिवार का संस्कार है। छोटे-बड़े के बीच की वह मजबूत आधार रेखा जिस पर चलकर वे लोग सदैव प्रसन्न ही रही हैं। जब वह बहुत छोटी थी तो बिल्कुल बिना किसी शरारत के अकेले भी खेला करती। जो लड़कियां बहुत सीधी होती हैं, गाय कही जाती हैं। पिता भी नव्या को गाय ही कहते थे, पर आज उनका भ्रम टूटता सा लगा। फिर भी पिताजी ने एक बार और समझाने का प्रयास किया-
‘तुम यह बहुत ठीक से जानती हो कि हम उनकी हैसियत के नहीं हैं। उनका रहन-सहन हमारे स्तर से बहुत ऊपर का है। कहां उनका कृष्ण जैसा राजसी ठाट और ऊंची राजनैतिक पकड़, कहां मेरा सुदामा वाला परिवार। तुम उस परिवार में सामंजस्य कैसे कर पाओगी।’
‘मैं समझती हूं, मैंने अब तक उनके परिवार को बहुत करीब से देख और समझ लिया है। मैं आश्वस्त हूं।
‘उसके परिवार वाले तैयार हैं इस रिश्ते से?
‘हां पापा, उनके परिवार को इस रिश्ते से कोई ऐतराज नहीं है। उसने बात कर रखी है अपने घर में। बस उसके सिविल परीक्षा के परिणाम के बाद उसके पापा स्वयं मिलेंगे आपसे। नव्या ने पिताजी को आश्वस्त करने का प्रयास किया था।
‘तुम गर्मी की छुट्टियों में घर भी नही आयीं और कालेज टूर के बहाने शिमला, नैनीताल घूमती रहीं।
‘मैं गंगा की तरह पवित्र हूं पापा।
नव्या बोल तो गयी पर टूर का मादक एहसास उसे याद हो आया, जब सोहन ने अचानक से उसे स्त्री होने का बोध कराया था। सोहन ने कहा था-
‘नव्या क्या हम अपनी मित्रता को परिवार बनने तक नहीं ले चल सकते हैं?
‘मैं समझी नहीं।
‘इतनी बुद्धू तो नहीं थी तुम?
नव्या मुस्कुराते हुए बोली थी- बुद्धू नहीं हूं इसलिए ही तो स्पष्ट करना चाहती हूं। खैर छोड़ो, सीधे मुद्दे पर आती हूं। मैं समझती हूं कि तुम्हें शरत का उपन्यास पढ़ना चाहिए।
‘उससे क्या होगा?
‘स्त्री मन पढ़ना सीख जाओगे। नव्या इठलाते हुए बोली थी।
‘मतलब?
‘मतलब यह कि मैं बुद्धू होऊं या ना होऊं पर तुम बुद्धू अवश्य हो। टूर के मित्रों का साथ छोड़ कर एक सुंदर जवान लड़की यहां अकेले तुम्हें गीता पाठ कराने तो आयी नहीं है।
सोहन ने तुरंत उसके माथे पर एक पवित्र चुंबन अंकित करके यह एहसास कराया था कि वह बुद्धू नहीं है केवल उसकी स्वीकृति की प्रतीक्षा कर रहा था।
नव्या चिहुंकी थी, प्यार से धक्का देकर उसने कृत्रिम विरोध किया था।
‘क्या सोहन! क्या है यह?
‘लड़की से स्त्री होने की प्रक्रिया का पहला चरण। सोहन ने अपना ज्ञान बघारा था।
‘धत! नव्या ने कहा तो था पर साथ में सोच भी रही थी, हिन्दुस्तानी लड़की की शायद यही विवशता है, वह चाहती तो है पर पहल नहीं कर सकती।
पिता उसे कहीं खोया हुआ देखकर थोड़ा तेज बोले थे,
‘मैं उसी गंगा को गंगा ही रखना चाहता हूं।
पिता की आवाज से वह वर्तमान में आयी थी। पिता जी बोल रहे थे- ‘सामान पैक करो अभी घर चलते हैं।
‘किस लिए घर चलूं? दीवारों से सर फोड़ने के लिए? कमरे में बंद किए जाने के लिए? नव्या अब गाय नहीं थी, सख्त हो उठी। स्थिति नाजुक देख पिता जी मुलायमियत से बोले-
‘घर की मान-मर्यादा के प्रति तुम्हारा भी कुछ कर्तव्य है बेटा, तुमसे छोटे भाई बहनों के विवाह होने हैं अभी। घर कलंकित हो जाने से कौन विवाह करेगा?
‘कलंकित? छोभ में भरकर नव्या पिता से पूछ बैठी, ‘अपने जीवन का स्वयं निर्णय लेना कलंकित होने जैसा कैसे हो गया पापा? तुम पुरानी सामाजिक मान्यताओं को क्यों नहीं समझ रही हो? इन मान्यताओं का हमारे जीवन में खासा दखल है बेटा। उनसे बाहर जाने का मतलब अपने समाज से विद्रोह करने जैसा होगा।’
‘पापा, किसी न किसी को तो यह क्रांति लानी ही होगी। शायद मैंने इसकी शुरुआत कर दी है।
‘तुम आखिर समझ क्यों नहीं रही हो मेरी पीड़ा।
‘मैं स्कूल नही छोड़ूंगी और अभी विवाह भी नहीं करूंगी। स्कूल या सोहन को छोड़ने के अतिरिक्त आप अन्य कोई आदेश देकर देख लें, खरी उतरुंगी। गहरी खायी में छलांग लगाने को कहेंगे तो लगा दूंगी। कहकर नव्या रो पड़ी थी।
‘ऐसा क्यों हो रहा है नव्या? पिता कराहे थे।
‘क्योंकि हम सब लोगों की अपनी जिंदगी है पापा। हमें अपनी जिंदगी जीने का अधिकार मिलना ही चाहिए। भला कोई दूसरे की जिंदगी कैसे जी सकता है।
‘तो क्या मैं यह समझूं कि यह तुम्हारा अंतिम फैसला है?
‘जी!
‘ठीक है, आज से तुम्हारा खर्चा आना बंद हो जाएगा। पिता जी आंखों में आंसू भरकर आहत म‌न से बोले थे।
‘मुझे पता था ऐसा कुछ हो सकता है, मैंने ट्यूशन प्रारंभ कर दिया है। नव्या बड़ी ढिठाई से बोली थी।
‘ठीक है! पिता उठ खड़े हुए थे, असामान्य रूप से शांत।
‘यहां की जगमगाहट से तुम चौंधियायी हो, जो तुमने चुना है वह तुम्हें पतन की तरफ ले जाएगा। आज से तुम्हारा उस घर से कोई संबंध नहीं रहेगा जहां तुम्हारे अन्य भाई-बहन रह रहे हैं। जहां एक मां अपनी लाडली के लिए रोज नये-नये चेहरे के गुड्डे तलाश रही है, काश तुम पैदा ही न होतीं उस घर में।’
आंखों से आंसू पोंछते पिता जा चुके थे। मकान मालकिन आंटी ने भी नव्या की अटैची बाहर रखते हुए कहा था-
‘तुम्हारे जैसी लड़की मेरे बच्चों को भी बर्बाद करेंगी, कहीं और कमरा तलाश लो।
नव्या ने फोन पर सोहन को सब कुछ बता दिया था। फोन पर सोहन की बात का जवाब देते हुए नव्या बोली थी-
‘अपना अस्तित्व बचाना मेरी अपनी जिम्मेदारी है सोहन जिसके लिए मैं प्रतिबद्ध हूं। हालांकि मैं स्वयं ही ऐसा कर सकती हूं पर तुम्हारे सहयोग के बिना मुझे कुछ कठिनाई अवश्य होगी। तुम चौक पुस्तकालय आओ, आ रही हूं मैं।
अटैची में कुछ अधिक नहीं था पर वह भारी लग रही थी। मन का भारीपन अटैची में उतर आया था। मन को स्थिर करने का तमाम प्रयास किया पर जैसे कोई बहुत अपना आज हुतात्मा हुआ हो और फिर कभी मुलाकात न होगी। बचपन के वे तमाम दिन जलने-बुझने लगे जो उसके भाई-बहनों मम्मी-पापा के साथ बीते थे। गली-कूचे याद आने लगे थे। उनके साथ की उछल-कूूद, हंसी-मसखरी अब नहीं मिलेगी। पारिवारिक जीवन की जड़ें कट गयीं थीं। उसे अब अपने स्तर से जीवन की नयी कोपल खिलानी थी, सोचा था उसने।
वह कब चौक पुस्तकालय आ गयी पता ही नहीं चला।‌ देखा सोहन खड़े थे। नव्या को उदास देखकर उसने बाहें फैला दीं और उसका मुंह सोहन के सीने में छिप गया। सोहन की शर्ट भीगने लगी थी तो उनकी उंगलियां नव्या के बालों में उलझ गयीं। अचानक से पिता फिर याद आए थे, कहीं पढ़ा था उसने। ‘सुरक्षा और प्रेम दोनों मामलों में पुरुष का दखल एक औरत के जीवन में बहुत अधिक होता है।’ नव्या ने सोचा था, ‘इस मिथक को वह कैसे तोड़ पाएगी भला। कुछ चीजें जीवन में बहुत सच और आवश्यक होती हैं। आप लाख विरोध करो लेकिन उसे झुठला नहीं पाओगे। वह कितनों बार पिता के सीने से चिपकी थी, स्नेह और कवच का यही भाव तब भी आता था। एक लड़की के जीवन में पुरुष का महत्व अनायास नहीं होता, चाहे वह पिता हों या प्रेमी।
‘चलो चलते हैं। सोहन बोले थे।
‘कहां?
‘एक लम्बी ड्राइव पर, जिससे तुम फिर मुस्करा सको।
नव्या बिना किसी प्रतिवाद के आगे ही बगल में बैठ गयी थी।
‘सोहन!
‘हूं!
‘परिवार की प्राचीन मान्यताएं हमारे व्यक्तिगत जीवन में इतना दखल क्यों रखती हैं? अपनी रूढ़ि से क्या वे हमारे जीवन को प्रभावित नहीं करती हैं?
‘न्ना!
सोहन बहुत हल्के अंदाज में बोल गये थे। नव्या चौंकी थी। उसे इस उत्तर की आशा नही थी, नव्या को अचंभित देखकर सोहन बोले-
‘अपनी जड़ से अलग होकर कोई वृक्ष हरा-भरा रह पाया है आज तक! मां-बाप हमारी जड़ ही तो हैं! तुम स्वयं महसूस करो जबसे पापा को रुलाकर भेजी हो तुम कितना उद्गिन हो!
नव्या सांस भरकर रह गयी। बातों में ऐसा खोयी कि कब पांच घंटे बीत गए और वह अपने शहर की सीमा में पहुंच गयी, पता ही नहीं चला। पिताजी दरवाजे पर ही थे। नव्या ने देखा तो चौंक गयी।
‘कहां ले आए हो?
‘तुम्हारी जड़ से तुम्हें जोड़ने। मुझे हरी-भरी नव्या चाहिए सूखी नहीं। सोहन बोला था।
गाड़ी से उतरते देख पिता करीब आ गए थे, बोले
‘अब क्या करने आए हो तुम लोग?
नव्या ने देखा पिता के गालों पर आंसुओं के निसान सूखे थे, मिटे नहीं। सोहन ने पैर छुए तो पिताजी दो कदम पीछे हटे, ‘ब्राह्मïण होकर ठाकुर के पांव छूते हो, अब नरक भी भेजना चाहते हो!
‘अंकल, मेरे विचार से ब्राह्मïण-ठाकुर की बातें, बीते जमाने की बाते हैं। व्यक्ति का सम्मान उसकी योग्यता व पद से निर्धारित होनी चाहिए। आप श्रेष्ठ हैं, पिता तुल्य हैं। पुत्र सदैव पिता के पैर ही छूता है अंकल जी। सोहन बोला था।
तब तक नव्या की मां भी आ गयी थीं। पति को समझाते हुए बोलीं-
‘अभी कुछ बिगड़ा नहीं है। आखिर बच्चे घर तो आ गए न! चलो बैठकर बात कर लेते हैं। मेरे विचार से किसी भी समस्या का हल आपसी बातचीत से ही संभव होता है। इस तरह चुप रहने से कोई हल नहीं निकलेगा। संवाद हीनता भ्रम ही पैदा करती है, निराकरण नहीं।
मां के हस्तक्षेप से पिताजी थोड़ा नरम पड़े और दोनों बैठक में आ गए। परिवार के सभी सदस्य आकर बैठ गए थे। वह कक्ष परिवार की आम सभा जैसा कुछ बन गया था। चाचा जी बोले-
‘पिताजी क्या करते हैं आपके?
‘हद है भैया! यह कैसा प्रश्न हुआ आपका? आप करते क्या हो? यह सवाल पहले पूछना चाहिए था आपको। प्रत्येक कन्या पक्ष की पहली जांच-पड़ताल होने वाले दामाद के विषय में होनी चाहिए। लड़के का बाप चाहे जितना योग्य हो, हमारी प्राथमिकता में उनका स्थान लड़के के बाद ही आना चाहिए। आप लोगों की प्राथमिकताएं अजीब हैं। उच्च शिक्षित बुआ जी ने अपने महानगरीय जीवन शैली का बेहतर प्रयोग करते हुये भाई को टोका था।
‘जी मैं सिविल की तैयारी कर रहा हूं। सोहन बुआ जी थे। मुखातिब होकर बोले थे।
‘और पिताजी के विषय में भी बता दीजिए, छोटे के प्रश्न का उत्तर भी आ जाए। बुआजी छोटे भाई की तरफ देखकर मुस्काई थीं।
‘पापाजी राजनीति में हैं। वे शुरू से वंचितों के हक और अधिकार की लड़ाई लड़ते रहे हैं।
‘और मां जी?
‘मां हाउस वाईफ हैं। सोहन मुस्काते हुए बोले थे।
‘बेटा, इस रिश्ते को लेकर आपके परिवार वालों की क्या राय है? पहली बार नव्या की मां ने कोई प्रश्न पूछा था।
नव्या और सोहन के गाड़ी से उतरने के बाद माता जी ने जिस तरह पिताजी को सम्हाला था, उससे सोहन काफी प्रभावित थे। उन्होंने अब ध्यान से मां जी के तरफ देखा था। नव्या इनकी प्रतिमूर्ति ही थी। समय की छुवन से बहुत दूर। एक ऐसा सौंदर्य जिस पर समय का कोई प्रभाव नहीं था। बिना किसी सौंदर्य प्रसाधन को प्रयोग में लाए हुए भी वे घने काले बालों की विशाल केशराशि को समेटे हुए लंबी लहराती हुई चोटियों में, दूधिया त्वचा पर नारंगी रंग की हल्की साड़ी और सफेद ब्लाउज में सौंदर्य की देवी लग रही थीं। ‘नव्या इस उम्र में पहुंच कर ऐसे ही दिखेंगी सोचा था सोहन ने।
‘बेटा, भाभी कुछ पूछ रही हैं। बुआ जी सोहन को मोहाविष्ट देख मुस्कुराते हुए बोली थीं।
सोहन झेंप से गए। जल्दी से बोले, ‘इस रिश्ते को लेकर मेरे परिवार में सबने अपनी सहमति दे रखी है। बस उन्हें आप सबकी सहमति की प्रतीक्षा है। सोहन मां जी का पांव छूते हुए बोले थे।
परिवार के सभी सदस्यों ने अपने-अपने स्तर से सोहन का इंटरव्यू लिया था‌। करीब एक घंटे के साक्षात्कार के बाद दादी बोली थीं-
‘बेटा हमारे जमाने में जाति से बाहर विवाह वर्जित था और मैं उसी पीढ़ी से हूं। यहां सब ठीक है फिर भी आप ब्राह्मण हैं और मैं ठाकुर। मैं समझती हूं तुम्हारे दादा-दादी भी मेरे ही समय के होंगे।
बुआजी जिनका इस घर में अच्छा खासा दखल था, बोल पड़ीं, ‘अम्मा मुझे लगता है समय के साथ हमें स्वयं को बदलते रहना चाहिए। भीष्म प्रतिज्ञा से बंधे रह गए तो केवल महावीर बन पाए जबकि कृष्ण स्वयं को समय के साथ बदलते रहे तो अवतारी बन गए।
‘तू कहना क्या चाहती है?
‘यही की लड़का उच्च शिक्षित होते हुये भी अपनी जड़ नहीं भूला है, हमसे मिलने आया है। हमारी नव्या को बहकने से बचाकर उसे हमसे पुन: मिलाने लाया है।
बुआ के चुप होते ही सबकी निगाहें दादी की तरफ थीं। दादी संज्ञा शून्य हो नव्या को निहारती रहीं। फिर उसे अपनी गोदी में खींचते हुए मुस्करायीं, सोहन से बोलीं-
‘नव्या को उसकी जड़ तक तो ले आए, अपनी जड़ से कब मिलवा रहे हो?
नव्या, दादी की उद्घोषणा से आह्लादित होकर लिपट गयी। जड़ों की नमी के अहसास ने आर्द किया था उसे।

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