Hindi Vyang: अपने पापा को फर्राटे से कार लेकर गेट से निकलते देख कर छ: साल का बुकू उनके तेज गति से अभिभूत हो अपनी दादी गायत्री देवी से बोला, ‘दादी, मैं कब बड़ा होऊंगा?
‘अब तुम्हे कौन-सी जल्दी पड़ गई बड़े होने की? घर के दो बड़े, तेरे मम्मी-पापा ही क्या कम हैं, उथल-पुथल मचाए रखने के लिए जो अब तू बड़ा होने के लिए परेशान है।
‘अरे दादी, मैं तो जल्दी से बड़ा होकर आपको अपने बाईक पर बैठा कर सर…सर…रोड पर घूमाना चाहता हूं। सोचो दादी कितना मजा आएगा। दादी का बड़बड़ाना बंद नहीं होते देख बुकू जी दादी के गले में बाहें डालते हुए बोले, ‘दादी, दरअसल बात यह है कि मुझे एक डॉगी चाहिए ठीक वैसा ही जैसा सामने वाली राधिका आंटी के पास है, वह भी आज ही, पर मम्मा कहती है बड़े हो जाओ फिर डागी पालने की बात करना।
सामने वाले मकान में अभी छ: महीने पहले ही राधिका रहने आई थी। उसके पास एक डॉगी था, जिसका पूरा शरीर इस कदर बालों से ढ़का हुआ था कि पता ही नहीं चलता था कि सर किधर है और पूंछ किधर है। बस एक ऊन का बड़ा सा गोला लगता, जिसे हर समय वह गोद में उठाए रहती। सुनते ही दादी बिगड़ कर बोली, ‘अब यह कौन सा फितूर तेरे दिमाग में भर गया। ठीक ही तो कहती है तुम्हारी मम्मा, तुम्हारे लिए तो तुम्हारे मम्मा-पापा को समय ही नहीं है, तुम्हारे डॉगी की देखभाल कौन करेगा?
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उधर अत्यन्त आधुनिका राधिका का नाम सुनते ही उसकी मम्मी सुनंदा के कान खड़े हो गए, बीच में ही टपक पड़ी ‘क्यो नहीं, क्यों नहीं, अंधा क्या चाहे दो नैन, जाने कब से तुम अपनी इस नई पड़ोसन से बातें करने के लिए बहाने खोजते रहते हो। कभी रास्ते में मिल जाती है तो उसके टॉमी को गोद में उठाकर पुचकारते हो तो कभी उसके टॉमी को बिस्किट ऑफर करते हो। तुम्हारा बस चले तो तुम खुद ही अपने गले में बांध उसका टॉमी बन जाओ, वैसे भी लाड़ टपकाने और पूंछ हिलाने जैसे कुकुर गुण तो तुम में आ ही गए हैं, बुकू के सहारे वहां जाने के बदले, अब ईश्वर से प्रार्थना करो अगले जन्म मुझे कुता कीजो।
‘तुम महिलाओं की भी न जाने कैसी अजब फितरत होती है, किसी औरत के विषय में कुछ बोलो नहीं कि पति का चरित्र ही संदेह के घेरे में ला खड़ा करती हो। क्या तुम नहीं देखती कैसे रेशम के गोले जैसा मुलायम बालों वाला डागी है, उसे देख कर भला किसका मन उसे गोद में उठा लेने का नहीं होगा? जितना प्यारा राधिका जी का डागी है उतने ही प्यार और सम्मान से उसे अपने परिवार के सदस्य की तरह रखती भी हैं।
‘हां-हां, मुझे तो ताने दोगे ही, तुम्हारी राधिका जी के सारे पशु प्रेम तब कहां चले जाते हैं, जब अपने किचेन में नॉनवेज पकाती है और चटखारे लेकर खाती है या फिर जब गली का कोई डॉगी गलती से भी उसके गेट के अंदर आ जाए तो अपने चौकीदार को ल_ लेकर उसके पीछे दौड़ा देती है। सभी जानवरों में समान आत्मा होती है, इतनी सी बात उस एनिमल लवर को क्यों नहीं समझ में आती।
‘अब घोड़ा घास से यारी करेगा तो खायेगा क्या? जीने के लिए आहार तो लेना हर आदमी का ईश्वर प्रदत मौलिक अधिकार है। जहां तक राधिका जी के डॉगी का सवाल है, तुम एक उच्चवर्गीय डॉगी की तुलना, गली के लावारिस होमलेस और सर्वहारा कुत्ते से कैसे कर सकती हो? जिसकी सारी उम्र ही अदद एक टाट के टुकड़े और गिलहरियों और बिल्लियों पर भौंकते और कूड़े के ढ़ेर से खाना खोजते निकल जाती है।
बहुत समझाने पर बुकू इस बात पर राजी हुआ कि वह कल तक इंतजार कर लेगा। पापा कल जब ऑफिस से वापस लौटेंगे तो उसके लिए डॉगी लेते आएंगे।
दूूसरे दिन काम में उलझ कर अतुल भूल ही गया कि बुकू के लिए डॉगी लाना है। ऑफिस से लौट कर घर के अंदर कदम रखते ही डॉगी लाने का अपना वादा याद आ गया। बात याद आते ही वह उल्टे पांव डॉगी लाने के लिए लौट गया पर उस समय डॉगी मिलता कहां से? तभी उसकी नजर, गली में घूमने वाले एक पप्पी पर पड़ी तो उसे ही उठा कर घर ले आया। बुकू के दोनो कान खड़े हो गए। वह सशंकित नजरों से कभी पापा को देखता तो कभी डॉगी को, पर थोड़ा समझाने-बुझाने पर अपने डॉगी के आवभगत में जुट गया। तभी सड़क पर से उसे अपनी मां की आवाज सुनाई दी। फिर क्या था, देखते-देखते वह सारे बंधनों को धता बताते हुए रोड पर जा कर दौडने लगा। बुकू जी भी उसके पीछे दौड़े पर उस डॉगी की मम्मी (राधिका) बीच में आ गई। उसकी तेज गुर्राहट सुन बुकू जी के होश फाख्ता हो गए और वह उलटे पांव भागे।
दूसरे दिन रविवार था। नास्ता समाप्त कर बुकू जी अपनी दादी को लेकर राधिका आंटी के घर पहुंचे। बुकू जी भी उतने ही प्यार से डॉगी को बिस्किट खिलाने गए, पर बुकू जी को उसके मुंह का पता ही नहीं चल रहा था। उसने झट से अपने मुहं में बुकू जी का हाथ थाम लिया। फिर क्या था बुकू जी कूद कर दादी की गोद में जा चढ़े और जल्दी घर चलने का शोर मचाने लगे। घर पहुंचने तक बुकू जी का डॉगी नाम के प्राणी से मोह भंग हो गया था। दादी ने भी उसके दूसरे फितूर चढ़ने तक राहत की सांस ली।
