Love Story: “नही माँ ,कैसे कर लू शादी विभा से,?आप तो मेरी पसंद जानती हो ।मुझे बहुत ही सुंदर लड़की चाहिए और आधुनिक भी ,आख़िर मैने कुछ सपने देखे हैं कैसे समझौता करूँ इनके साथ । आपका जमाना और था लेकिन अब ऐसे शादियाँ नही होतीं कि बिना पसंद शादी कर लो “
आज एक बार फिर विभोर अपनी माँ के साथ बहस कर रहा था ।अनुभवी माँ नही चाहती थी कि आधुनिकता के चक्कर में बेटे का धरातल ही खो जाए ।
“पर बेटा विभा बहुत पढ़ी लिखी समझदार लड़की है जीवन ख़ूबसूरती से जीने के लिए केवल सुंदरता ही नही और भी चीजें देखीं जाती हैं,लड़की ऐसी हो जो तुझे समझे , जो तेरे सुख दुख की सांझी बने ।सुंदरता तन की नहीं मन की चाहिए और फिर विभा सुंदर भी है, हंसती है तो सावन खिल उठता है । तू पता नही किन आँखों से देखता है ?
“बस आप तो रहने ही दो ,आपको तो हर लड़की सुंदर लगती है । आप समझती क्यूँ नही ?सोसाइटी में उठने बैठने के लिए साधारण नही स्मार्ट लड़की चाहिए ,आप पापा से कह देना ,मैं उनकी दोस्त की लड़की से शादी करने वाला नही ।”
विभोर अपने बनाए आधुनिकता के जाल से बाहर आने को तैयार ही नहीं था ।अपनी बात कह कर आगे कुछ ना सुनने के लिये कमरे से बाहर जाते हुए रुका ,दो मिनट चुप रह कर कुछ सोच कर बोला ,
“मैं पापा से तो नही कह पाऊँगा ,आप ये बात जानती हो ,पर आप ज़रूर कह देना ,केवल सुंदरता ही सब कुछ नही ,मोर्डन होनी चाहिए ।मेरे साथ क्लब में जाए और ….”
कहते हुए विभोर रुक गया ।उसे लगा माँ के सामने ये सब भी कि उसे ड्रिंक में भी साथ दे ,नही कहना चाहिए ,कैसे समझाऊँ आपको “
कहकर पैर पटकते कमरे से बाहर चला गया । दो पीढ़ियों का अंतर मुखर हो रहा था ।
माँ अनिश्चिता की स्थिति में बैठी रह गई ।आज की युवा पीढ़ी का जीवन साथी के प्रति दृष्टिकोण उसे मायूस कर गया । फ़िल्मी दुनियाँ और पाश्चात्य सभ्यता का असर बच्चों को दिवास्वप्न की ओर ढकेल रहा है। बच्चों के जीवन में यथार्थ और कल्पना की वास्तविकता से अनभिज्ञ हो रहें हैं ।।दिग्भ्रमित से वस्तुस्थिति नहीं समझ पा रहे हैं ।
आख़िर ना ना करते हुए विभोर की शादी विभा से हो गई ।बच्चा ग़लत रास्ते चुने तो उनके कहे अनुसार कोई कार्य कैसे किया जा सकता है ? अनुभवी माँ जानती थी जीवन का यथार्थ ।
शांत सौम्य पी एच डी कर चुकी विभा विभोर की अर्धांगनी बन कर विभोर के जीवन में आ गई ।विभोर अपनी विचार धारा से बाहर ही नही आ पा रहा था ।
विभा को देखता तो अपनने मापदंडों पर उसको खरा ना उतरते देख जब तब उसका अपमान कर देता .लेकिन विभा के पापा ने समझाया था ।बेटा शादी केवल सपनों की पूर्ति ही नहीं है ।अधिकार और कर्त्तव्यों का खूबसूरत ताना बाना है ।देकर ही पाने की अपेक्षा सही है ।अपने जीवन के आदर्श पापा की बात तो विभा मानती ही थी । इसलिए शांत रहती थी । विभा ये भी समझती थी विभोर दिल का अच्छा इंसान है उसकी कोई और पसंद भी नहीं है ।
“बेटा विभोर दिल का बुरा नही, ना ही उसकी कोई पसंद है । बस थोड़ा अव्यवहारिक है । मुझे पूरा विश्वास है तुम अपने प्यार और समझदारी से उसके दिल में भी जगह बना लोगी । मेरी बिटिया रानी विभोर का साथ पाने व सही दिशा में ले जाने में कामयाब होगी ।और फिर तुम्हारी सास और ससुर जो मेरे बचपन के दोस्त हैं ।उनका आशीर्वाद भी तुम्हारे साथ है ही “
विभा बचपन से विभोर के घर आती थी. उसकी खुद की माँ नही थी ।लेकिन विभोर की माँ ने एक माँ की तरह भरपूर प्यार दिया था .इसलिए भी विभा आश्वस्त थी कि जल्दी ही विभोर भी उसके क़रीब आ जाएगा ।थोड़ा चंचल है तो क्या आख़िर प्यार में भी बड़ी शक्ति होती है ।
विभोर जब भी कुछ उल्टा सीधा बोलता विभा हँस के टाल जाती ।एक विश्वास की डोर थामे विभोर को अपना बनाने का सपना संजोये चलती जा रही थी । उसके सास ससुर का भी पूरा समर्थन था ।
सावन की रिमझिम और भादों की गुनगुनाहट ने जीवन के कदमों को आहिस्ता से रवाना किया ।दो तन मन दो टहनियों से जो हवा के झोकों से मिलती सिमटती रहती हैं ,आगे बढ़ने लगे ।यूँ ही पास आने की ज़िद और ख़ुद में सिमटने का तारतम्य बदस्तूर चलता रहा ।खिलती रही विभा के होटों की मुस्कराहट मौन से ।
विभोर नापता रहा हर वो कौना जिसके दायरे उसने ख़ुद बनाए थे । वक्त कब रुकता है ।रात दिन ने अपनी माला फेरनी जारी रखी ,इन दोनों की शादी को एक साल गुजर गया ।कभी नज़दीक आए भी तो भावावेश में लेकिन प्यार जैसा विभोर के मन में नही उपजा ,या नहीं उपजने दिया उसके मस्तिष्क ने ,जिसमें आधुनिकता ने धूसर रंग छितरा रखा था ।विभा की तरफ़ से पूर्ण समर्पण रहता ।
विभोर के मम्मी पापा भी बहुत समझाते पर विभोर की आँख में तो मोर्डन होने का चश्मा चढ़ा था ।
विभा भी कम नही थी । अंग्रेज़ी बोलती जींस पहनती थी , हाँ पब आदि जाना पसंद नही था ।शालीनता में रहकर करती । भारतीय संस्कार उनके व्यक्तित्व को पूर्ण करते थे ।
आज विभा विभोर की शादी की साल गिरह थी । विभा के मम्मी पापा ने बहुत बड़ी पार्टी दी थी ।
“बेटा आज शाम टाईम से आ जाना “
ऑफिस जाते समय माँ ने विभोर को कहा ,ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे विभोर को कुछ याद ही नहीं है।
“क्यूँ माँ?”
“अरे ,तुम्हें कुछ याद नही ,आज एक साल हो गया तुम्हारी शादी को ?”
“देखता हूँ माँ ,आज ऑफ़िस में मीटिंग है.”
कह कर लापरवाही के भाव चेहरे पर लिए ऑफ़िस को निकल गया ।
सारे मेहमान आ चुके थे ।विभा ब्यूटी पार्लर से तैयार होकर आई थी ।ग़ज़ब की सुंदर लग रही थी ।गोल बड़ी आँखें ,खूबसूरत जूड़ा ,पिंक लहंगा ,मैचिंग जवेलरी ,आने वालों की निगाह उस पर से हट नही रही थी ।
पर विभा को इंतज़ार था तो सिर्फ़ विभोर का ।वो बैचैनी से थोड़ी थोड़ी देर में दरवाज़े की ओर देख रही थी ।इंतज़ार का हर पल उसे सदी सा लग रहा था ।
माँ ने विभा की बैचेनी समझते हुए कहा ,
” अभी आ जाएगा विभोर, कह रहा था ना सुबह मिट्टिंग है “
“जी माँ ,”
कहते हुए उसने शरमा कर नज़रें झुका लीं ,लेकिन दिल की कसक को नज़रें कहाँ सम्भाल पा रहीं थी ,दिल के हाथों मजबूर नज़रें फिर दरवाज़े पर अटक गईं ।
अभी केक नही काटा गया था होटल के बड़े हाल को बहुत सुंदर सजाया गया था ।विभोर का इंतज़ार हो रहा था ।
हल्का मियूजिक माहौल को और भी दिलकश बना रहा था । लोग स्नेक्स ले रहे थे कि विभोर ने हाल में प्रवेश किया ।सभी ने एक साथ स्वागत में ताली बजा दी लेकिन अगले ही पल उसके पीछे पीछे मिनी स्कर्ट में एक और लड़की आ कर विभोर के बग़ल में खड़ी हो गई
विभा के साथ सभी कुछ मिनट के लिये शांत हो गए ।विभा के दिल में तूफ़ान करवट लेने लगा ।
“ये मेरे ऑफ़िस में अभी नई आई है ,स्वेरी नाम है ,मेरी कलीग है “
सास ससुर को भी अजीब लगा लेकिन मेहमानों के सामने तमाशा ना बने इस लिए चुप रहे ।पार्टी ख़त्म हो गई ।विभा ने आज कुछ नही कहा,ना कोई झगड़ा ना कोई मनुहार ।वो समझ चुकी थी विभोर को ऐसे समझाना आसान नही ।
विभा महसूस कर रही थी कुछ दिनों से विभोर समय से घर आ जाते हैं ।उसके इर्द गिर्द घूमते है ।लेकिन विभा अभी संभल कर चलना था ।
“अरे विभा इस समय कहाँ जा रही हो ? ,आ जाओ साथ बैठ कर नाश्ता करते हैं “
“नही ,मेरा सहेलियों के साथ प्रोग्राम है ,आप कर लीजिए “
कहते हुए विभा घर से बाहर तो आ गई लेकिन विभोर का अपनी ओर ध्यान महसूस कर ख़ुशी से खिलखिला उठी ।
आज सुबह कुछ ज़्यादा ही खूबसूरत थी डाल पर बैठे चिड़ा चिड़ी का जोड़ा विभा को मीठी गुदगुदी कर गये ।दिल की सरगम में प्रेम गीत गुनगुना उठा ।
आज विभोर विभा को जाते हुए देखता ।बिना नाश्ता किए हुए जाने लगा तो माँ ने पूछा ,
“क्या हुआ बेटा ? ,यूँ नाश्ता थाली छोड़ कर नहीं उठते पहले नाश्ता कर फिर जाना “
“ नही माँ मन नहीं है “ कहकर सिर झुकाये चला गया ।माँ सब देख समझ रही थी उसे भी विभोर का विभा से नाश्ते के लिए पूछना अच्छा लगा ।विभोर की माँ ने तसल्ली की सांस ली ,बादल समुद्र का रास्ता ढूँढने लगे हैं तो बारिश भी शीघ्र होगी ।
विभोर को अब विभा के व्यवहार पर आश्चर्य होता ।उसने तो विभा को हमेशा उसे मनाते समझाते देखा था । कभी अकेली बाहर भी नही जाती थी ।उससे नही रहा गया तो वापिस माँ के पास आकर बोला
“माँ आपको पता है विभा कहाँ गई है ,आपको कुछ बताया ?”
“क्या विभा बाहर गई है ?मुझे तो पता नही ,आ जाएगी “
माँ ने उसका चेहरा पढ़ते हुए मुस्कुराते हुए कहा । माँ विभोर की पैशानी पर पड़े बल देख रही थी । उन्हें अच्छा लगा आज बेटा विभा के लिए पूछ रहा है । वे फिर अपना काम करने लगी ।उन्होंने विभोर की ओर कुछ ध्यान नहीं दिया ।थोड़ी देर विभोर माँ के पास खड़ा रहा फिर चला गया
अब आए दिन विभा बाहर चली जाती ,उसने मोर्डन ड्रेस पहना शुरू कर दिया ।
”तुम ये ड्रेस क्यूँ पहनती हो ?तुम पर अच्छी नही लगतीं “
“पर मैने तो आपसे पूछा ही नही मुझे क्या पहनना है क्या नही,मुझे अच्छा लगता है तो मैं पहनती हूँ “
सुबह शाम पूजा करने वाली विभा ज़ोर ज़ोर से अंग्रेज़ी गाने सुनती ।और विभोर देख देख परेशान होता ना कह पा रहा था, ना रोक पा रहा था । मम्मी पापा भी चुप थे । कोई अब विभोर की ओर तवज्जो नही दे रहा था । खोने के एहसास से ही उस चीज़ का महत्व पता चलता है । इंसान खुद कुछ भी करे पर सही ग़लत का मापदंड तो दूसरों के लिए ही बनाता है ,अपने लिए नही ।अब उसकी चिंता विभा को लेकर बढ़ गई .
विभोर को समझ ही नही आ रहा था क्या करे?,कैसे विभा से बात करे ।
“विभा सुनो ,..
“हाँ कहो क्या बात है ?”
“तुमसे कुछ बात करनी है “
“जल्दी बोलो ,मुझे जाना है “
“यहाँ पास बैठो प्लीज़ ,मैं जानता हूँ मैने तुम्हारा दिल दुखाया है ,मुझे अफ़सोस है ,मेरी बात सुन लो “
उसके अनुनय भरे स्वर को सुन विभा का मन अंदर तक भीग गया ।
“ अच्छा बताओ क्या कहना है ?
मेरे साथ चलोगी घूमने ?”
“नही मुझे ज़रूरत नही है “
“ याद है जो पार्टी में स्वेरी आई थी ,उसने मुझे धोखा दिया है “
अब विभा उसके पास बैठ गई ।
“हुम्म “कह उसकी ओर देखने लगी ।विभोर का चेहरा उसकी आत्म ग्लानि का साक्षी था ।उसके मुख पर पश्चताप साफ़ दिख रहा था ।विभा को इसी दिन का इंतज़ार था ।
“जानती हो विभा ,”
कुछ कह कर विभोर रुक गया ,कहाँ से बात शुरू करे उसे समझ ही नही आ रहा था ।उसने विभा का हाथ अपने हाथ में प्यार से लिया और कहना शुरू किया
“विभा ,वो लड़की पहले तो उसने मुझसे दोस्ती की फिर और दोस्तों के संग घूमने लगी .मुझसे महंगे गिफ़्ट माँगती रही मैं देता रहा ,मेरे ऊपर आधुनिकता का आवरण चढ़ा था उसने मुझे ,फिर ऑफ़िस में अपनी तरक़्क़ी की सीढ़ी बनाया ,मैं उसके प्यार में अंधा होकर ऑफिस में उसी का काम करता रहता ,जिससे आज उसका प्रमोशन भी हो गया ,मेरा काम भी बहुत पीछे रह गया ।मुझे अब समझ आया कि ऐसे रिश्ते सिर्फ़ स्वार्थ वश पनपते हैं प्यार नहीं होता । मेरे ही सामने अब औरों से फ़्लर्ट करती है ,कुछ कहता हूँ तो कहती है ,इतने पुराने ख़्यालों के हो तो मेरे साथ क्या कर रहे हो अपनी बीवी के पास जाओ ।
मै समझ चुका हूँ जीवन की असलियत क्या है ?प्लीज़ मुझे माफ़ कर दो .तुम जैसी पत्नी मिलना सौभाग्य की बात है ,मैं ग़लत था माँ पापा सही थे “
एक बार बस मुझे माफ़ कर दो
विभा मन ही मन अपनी जीत पर मुस्कुरा रही थी विभा का एक हाथ विभोर ने ले रखा था विभा ने दूसरा हाथ उसके ऊपर रख आश्वस्त भारी नज़रों से मुस्करा दी । प्यार की सुहावनी शाम इन्द्रधनुषी आभा लिए मन के अरण्य में खिलने को बेताब हो उठी ।.
